कैथल: पूरे देश में लोकसभा चुनाव का दौर जारी है और ऐसे में नेता लोगों के बीच जाकर बड़े-बड़े दावे करते हैं कि वो उनके लोकसभा क्षेत्र में विकास कार्य करेंगे. लेकिन चुनाव खत्म होते ही जीत हासिल करने के बाद वो सभी वादों को भूल जाते हैं और 5 सालों तक जनता से उनकी समस्याएं नहीं जानते और न ही दोबारा उन स्थानों पर जाते जहां पर ज्यादातर समस्याएं होती है. जिसके चलते लोगों को मजबूर होकर हर परेशानी का सामना करना पड़ता है.
हरियाणा के गांव पंजाब पर निर्भर: कुरुक्षेत्र लोकसभा के एक इलाके में ईटीवी भारत की टीम पहुंची. जहां कैथल जिले में घग्गर नदी से पार करीब दो दर्जन गांव बसते हैं. लेकिन यहां के लोग हरियाणा से अपना नाता कटा हुआ मानते हैं. क्योंकि उनको अपनी छोटी-मोटी हर मूलभूत सुविधा के लिए पंजाब में जाना पड़ता है और पंजाब पर ही आश्रित है. हैरानी की बात ये है कि चुनाव के समय हरियाणा के राजनीतिक नेता यहां जाते हैं और वोट करने की अपील करते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि हरियाणा के नेता यहां सिर्फ मतदान मांगने आते हैं. कभी उनकी समस्या के बारे में बात नहीं करते और आश्वसान देकर रवाना हो जाते हैं.
नदी के पार गांव में नहीं पहुंचती सरकार: घग्गर नदी के पार बसे गांव बुडनपुर, भूषला,सरकपूर,हरनौली, कमहेड़ी, बौपूर, कसौली, घघड़पुर, पाबसर, छन्ना, जोदवा, सौंगलपुर, लंडाहेड़ी सहित करीब 23 गांव है. जो पंजाब के बॉर्डर पर बसते हैं. ईटीवी भारत ने घग्गर पार बुडनपुर ग्रामीणों से बात की जिन्होंने बताया कि वह एक ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं, जो अपनी सरकारी सुविधाओं के लिए यहां से करीब 50 किलोमीटर से ज्यादा दूर कैथल शहर में जाते हैं. जबकि अन्य सभी छोटी-मोटे सुविधाओं के लिए वह पंजाब पर आश्रित हैं.
वोटिंग मांगने पहुंचे है नेता: ईटीवी भारत द्वारा जब बुडनपुर गांव में जाकर ग्रामीणों से बातचीत की गई और उनसे जाना की चुनावी माहौल चल रहा है. ऐसे में आपके गांव में क्या माहौल है, तो उन्होंने कहा कि हमारे गांव का माहौल हमेशा से ऐसा ही है. क्योंकि यहां पर चुनावी समय में ही नेता वोट मांगने के लिए आते हैं. उसके बाद 5 साल के लिए उनके गांव को वो भूल जाते हैं. उन्होंने कहा कुछ उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जो उनके गांव में चुनाव के दौरान भी नहीं आते. ऐसे में वो चुनाव के बाद यहां पर क्या करने आएंगे. उन्होंने कहा कि हरियाणा के नेता उनके गांव बेगाना छोड़ चुके हैं. जिसको चुनाव के समय में याद नहीं किया जाता. ग्रामीणों ने कहा कि नेताओं के लिए घग्गर नदी लक्ष्मण रेखा के रूप में काम कर रही है. इससे पर कोई भी नेता नहीं आना चाहता.
गांव में नहीं कोई सरकारी स्कूल: ग्रामीणों ने कहा कि उनके गांव में पांचवीं तक का एक सरकारी स्कूल है. उसके बाद अगर उनके बच्चे आगे क्लास में पढ़ने के लिए जाते हैं. तो उनको दूसरे गांव में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाना पड़ता है. वहीं, उनके गांव से 1 किलोमीटर दूर से ही पंजाब शुरू हो जाता है. ऐसे में उनके बच्चे ज्यादातर पंजाब में पढ़ने के लिए जाते हैं. सरकार बड़े-बड़े दावे करती है कि उनके बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन उनको शिक्षा भी पंजाब से लेनी पड़ रही है.
गांव में बस की भी नहीं व्यवस्था: गांव में हालात इतने बुरे हैं कि किसी भी गांव में सरकारी बस की सुविधा तक नहीं है. हैरानी की बात है कि आज के समय में जब बीजेपी सरकार गांव-गांव तक सड़कों का जाल बुनने की बात करती है और चुनावी रैलियों में विकास के दावे कर रही है. लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है. इस गांव में हफ्ते में दो बार बस आती है, लेकिन उसका भी कोई समय निर्धारित नहीं है. वहीं, सूबे की सरकार द्वारा दावा किया जाता है कि हरियाणा रोडवेज पूरे भारत में नंबर वन है. लेकिन यहां गांव में तो दूर-दूर तक प्राइवेट बस की भी व्यवस्था नहीं है. सरकार के किए वादे कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं.
बेटियों को नहीं मिल रही शिक्षा: ग्रामीणों ने कहा कि उनके गांव में 12वीं के बाद बहुत ही कम बेटियां आगे पढ़ जाती हैं. हालांकि उस गांव की बेटियां कैमरे के सामने नहीं आई. लेकिन उन्होंने बताया कि उनके गांव में से 12वीं के बाद केवल दो लड़कियां ही कॉलेज में पढ़ रही हैं. वहीं, एक लड़की ने बताया कि वह 12वीं के बाद कॉलेज में गई थी, लेकिन गांव में बस की व्यवस्था न होने के चलते उनको सेकंड ईयर में ही पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी. उन्होंने कहा कि अगर जो भी बेटे 12वीं के बाद आगे कॉलेज में जाती हैं, तो परिवार वालों को ही उनको छोड़कर आना पड़ता है और लेकर आना पड़ता है. जिसके चलते उनका काम भी बाधित होता है. इसलिए गांव में बेटियां 12वीं से आगे पढ़ने में असमर्थ हैं.
सरकारी सिस्टम लाचार: वहीं, हैरानी की बात है कि पूरे गांव से कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं है. ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में करीब 1500 जनसंख्या है. लेकिन उनके गांव की विडंबना यह है कि उनके गांव में एक भी सरकारी नौकरी पर नहीं है. जिसका मुख्य कारण है यह है कि गांव में या उसके आसपास कोई भी अच्छा स्कूल नहीं है या फिर गांव में आने-जाने के लिए कोई बस की व्यवस्था नहीं है. कुल मिलाकर न गांव में कहीं कोई कॉलेज है न स्कूल है न बस है.
किसानों को भी किया अनदेखा : असुविधाओं की मार तो यहां के किसानों को भी झेलनी पड़ रही है. हालांकि हरियाणा सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि बीते दिनों में हरियाणा में बाढ़ के चलते जिन किसानों की फसल तबाह हुई है. उनको मुआवजा दिया जाएगा. लेकिन यहां ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने अपनी फसल तीन से चार बार लगाई है. क्योंकि वहां पर घग्गर नदी के कारण बाढ़ आ गई थी. सरकार उनकी भरपाई करना तो दूर उनको ₹1 भी मुआवजा नहीं दे पाई. जहां नेता भी उनके गांव में नहीं पहुंचते वहां कर्मचारी अधिकारी भी उनके गांव में नहीं पहुंचे.
स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पंजाब पर निर्भर हैं ग्रामीण: ग्रामीणों का कहना है कि छोटे-मोटे काम के लिए तो पंजाब जाना पड़ता है, लेकिन गांव के आसपास कोई अस्पताल की सुविधा भी नहीं है. स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए उन्हें कैथल जाना पड़ता है या फिर अंबाला. जो कि गांव से काफी दूर पड़ता है और इमरजेंसी जैसी सेवाओं का तो इन लोगों को पता तक नहीं है. किसी भी तरह की बीमारी के इलाज के लिए उन्हें पंजाब में जाना पड़ता है. यहां पर सारी सुविधाएं केवल पंजाब से लेनी पड़ती है. अपने राज्य की सरकार ग्रामीणों तक पहुंच नहीं पाती, जिसके चलते मजबूर होकर पंजाब से ही सारी मदद लेनी पड़ती है.