चमोली: बदरीनाथ धाम में दोनों आंखों से दिव्यांग जिला दुमका झारखंड निवासी कृष्ण पाल पिछले 17 साल से रह रहे हैं. 35 साल के कृष्ण पाल वर्ष 2007 से फेरी लगाकर, डलिया गले में डालकर भगवान बदरीनाथ धाम का प्रसाद, पूजा सामग्री, सिंदूर आदि बेचते हैं. इसी से वो बदरीनाथ में अकेले रहकर अपना जीवन यापन करते हैं. वह कहते हैं कि वह जन्मांध हैं, लेकिन इसका उन्हें कुछ भी मलाल नहीं है.
आंखों से दिव्यांग कृष्ण पाल में है अनोखी प्रतिभा: कृष्ण पाल में ईश्वर की अद्भुत देन है कि वह मौसम का अनुमान बता देते हैं. जिस व्यक्ति की आवाज तथा नाम एक बार सुन लेते हैं, दूर से आवाज से पहचान जाते हैं. आंखों में रोशनी नहीं होने के बावजूद सिक्कों तथा नोटों की पहचान करते हैं. अपने वस्त्र भी वह स्वयं धोते हैं. अपने लिए भोजन भी स्वयं बनाते हैं. इसके साथ ही वो फोन नंबर डायल कर लेते हैं, तथा फोन अच्छी तरह अटेंड करते हैं.
स्वरोजगार करते हैं कृष्ण पाल: गरीब घर में जन्मे कृष्ण पाल स्कूल तो गये, लेकिन अधिक पढ़-लिख नहीं सके. उनकी इच्छा थी कि वह बदरीनाथ धाम पहुंच जाएं. लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था. वर्ष 2007 में पहली बार किसी तरह अकेले जिला दुमका झारखंड से श्री बदरीनाथ धाम पहुंच गए. बदरीनाथ मंदिर के सिंह द्वार पर माथा टेका. वह कुछ दिन बदरीनाथ धाम में घूमे फिरे. इस दौरान लोगों ने दिव्यांगता के कारण उन्हें दानस्वरूप पैसे देने शुरू किए. एक दो दिन भीख के पैसे लेने के बाद उन्हें बहुत आत्मग्लानि हुई. उन्होंने निश्चय किया कि वह कभी न तो भीख मांगेंगे, और न ही किसी की दान में दी हुई वस्तु स्वीकारेंगे. कुछ ऐसा करेंगे जिससे लोग उन्हें दया का पात्र न समझें और वह स्वाभिमान से जी सकें.
बदरीनाथ का प्रसाद बेचते हैं कृष्ण पाल: उन्होंने निश्चय किया कि वह भगवान बदरीविशाल का प्रसाद बेच कर जीवन यापन करेंगे. कृष्ण पाल अब यात्राकाल में मंदिर परिसर के बाहर सिंह द्वार के निकट तथा दर्शन पंक्ति में डलिया में रखकर प्रसाद, सिंदूर, पूजा सामग्री बेचते दिख जाते हैं. वह प्रसाद बेचने के बाद क्यूआर कोड से डिजिटल पेमेंट भी स्वीकारते हैं. उनका कहना है कोई भी यात्री उन्हें ठगता नहीं है. बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद वह झारखंड चले जाते हैं.
भिखारियों को कृष्ण पाल की सलाह: कृष्ण पाल का कहना है कि वह जन्मांध होकर भी भीख न मांगते हैं, न स्वीकार करते हैं. वह उन लोगों को अपने कार्य से प्रेरणा देना चाहते हैं जो शरीर सपन्न होने के बावजूद भीख मांगते हैं. उनका कहना है कि पुरुषार्थ करना चाहिए. जो लोग बदरीनाथ, तीर्थस्थलों या अन्य जगह भीख मांगते हैं, उनको कृष्ण पाल से सीख लेनी चाहिए.
भीख मांगने से अच्छा काम करना: बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ हरीश गौड़ ने बताया कि दिव्यांग कृष्ण पाल बहुत स्वाभिमानी हैं. उन्हें अपने दिव्यांग होने का कोई दु:ख नहीं है. लेकिन उनको इस बात की टीस है कि अच्छे खासे लोग तीर्थस्थलों, सड़कों पर भीख मांगते फिरते हैं तथा काम नहीं करना चाहते. कृष्ण पाल अपने जीवन संघर्ष बारे में मीडिया तथा सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को बताना चाहते हैं, ताकि उनसे कुछेक लोग प्रेरणा ले सकें. मीडिया समय-समय पर उनके पुरुषार्थ को बहुत सराहता है.
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