भुवनेश्वर: ओडिशा के कोरापुट के सुदूर नुआगुडा गांव की आदिवासी किसान रायमती घिउरिया जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ीं, तो तालियां सिर्फ उनके लिए नहीं बजी थीं - बल्कि यह भारत की समृद्ध बाजरा विरासत को संरक्षित करने के लिए उनके द्वारा बोए गए हर बीज के लिए थीं. कोरापुट की ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों से लेकर ओडिशा यूनिवर्सिटी एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (OUAT) के दीक्षांत समारोह तक रायमती की यात्रा समर्पण, परंपरा और इनोवेशन की परिवर्तनकारी शक्ति की गवाह है.
5 दिसंबर यानी गुरुवार को ओडिशा के बाजरा मिशन के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था. अपने समुदाय में मंडिया रानी (बाजरा की रानी) के रूप में जानी जाने वाली रायमती के लिए, यह सम्मान सिर्फ व्यक्तिगत नहीं था - यह क्षेत्र में टिकाऊ खेती की रीढ़, पारंपरिक अनाज को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए दशकों से चले आ रहे संघर्ष का जश्न था.
![राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से डॉक्टरेट की मानद उपाधि रायमती घिउरिया](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/05-12-2024/23050984_raimati.jpg)
कुंदुरा ब्लॉक से आने वाली रायमती की यात्रा कोरापुट के उपजाऊ लेकिन चुनौतीपूर्ण इलाकों से शुरू हुई, जो अपनी जैव विविधता और स्वदेशी कृषि पद्धतियों के लिए प्रसिद्ध है. अपने पैतृक तरीकों से प्रेरित होकर रायमती ने पारंपरिक चावल और बाजरा की किस्मों को संरक्षित करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया, जो आधुनिक कृषि के चलते तेजी से लुप्त हो रहे थे.
आज वह एक किसान, ट्रेनर और नेता के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिन्होंने कोरापुट के बेशकीमती बाटी मंडिया और मामी मंडिया सहित 72 पारंपरिक चावल की किस्मों और बाजरे की 30 किस्मों को संरक्षित किया है. ये अनाज न केवल पौष्टिक हैं, बल्कि जलवायु चुनौतियों के लिए भी लचीले हैं.
महिला किसानों के लिए एक आदर्श
रायमती का योगदान उनके अपने खेतों से कहीं आगे तक फैला हुआ है. वह बामनदाई फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड का नेतृत्व करती हैं. यह एक एफपीओ है, जो बायो-फर्टिलाइजर, बायो-पेस्टिसाइड और बाजरा-बेस्ड वैल्यू एडेड प्रोडक्ट्स का केंद्र बन गया है.
उनके मार्गदर्शन में सैकड़ों किसानों, विशेषकर महिलाओं को जैविक खेती अपनाने और अपने उत्पादों को प्रभावी ढंग से बेचने के लिए सशक्त हुए हैं. हालांकि, शायद उनकी सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि उनके गांव में कृषि विद्यालय है. 2012 में उनके परिवार द्वारा दान की गई भूमि पर स्थापित यह विद्यालय ज्ञान के आदान-प्रदान के केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो किसानों को स्थानीय आनुवंशिक संसाधन संरक्षण और टिकाऊ कृषि पद्धतियों का महत्व सिखाता है.
मान्यता और वैश्विक प्रभाव
रायमती के काम ने पिछले कुछ साल में उन्हें कई प्रशंसाएं दिलाई हैं. वह 2012 में जीनोम सेवर कम्युनिटी अवार्ड जीतने वाली टीम का हिस्सा थीं और उनके प्रयासों को स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन जैसी संस्थाओं का समर्थन मिला है. इसके निदेशक, प्रशांत परिदा के अनुसार ओग्रेनिक मिलेट (बाजरा) की खेती के प्रति रायमती के समर्पण ने उन्हें पारंपरिक खेती के तरीकों के लिए वैश्विक राजदूत बना दिया है.
President Droupadi Murmu graced the convocation ceremony of the Odisha University of Agriculture and Technology at Bhubaneswar, Odisha. The President said that climate change related issues such as rising temperatures and increases in greenhouse gases are affecting agricultural… pic.twitter.com/6iqkZwosxK
— President of India (@rashtrapatibhvn) December 5, 2024
उनकी आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंची, जिसमें दिल्ली में जी-20 सम्मेलन भी शामिल है, जहां उन्होंने कोरापुट की पारंपरिक बाजरा किस्मों पर अपना प्रजेंटेशन दिया.उनका ज्ञान और अनुभव दुनिया भर के बाजरा किसानों के लिए आशा की किरण बन गया.
कृषि अधिकारी तपस चंद्र राय ने गर्व व्यक्त करते हुए कहा, "रायमती इस बात का एक शानदार उदाहरण हैं कि कैसे पारंपरिक ज्ञान टिकाऊ खेती के भविष्य को आकार दे सकता है. उनके प्रयास याद दिलाते हैं कि कोरापुट की रागी वैश्विक मंच पर अपनी जगह बना सकती है."
महापुरुषों के मार्ग पर चलना
रायमती की यात्रा कोरापुट की एक अन्य प्रतिष्ठित हस्ती पद्मश्री कमला पुजारी से मिलती-जुलती है, जिन्होंने पारंपरिक चावल संरक्षण की ओर अंतराराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया. कमला की तरह रायमती ने भी कोरापुट की कृषि विरासत को गौरवान्वित करते हुए अपनी अलग पहचान बनाई है.
बाजरा संरक्षण में उनके योगदान का ओडिशा के बाजरा मिशन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है, जो राज्य सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य इन प्राचीन अनाजों को पुनर्जीवित करना है. यह कार्यक्रम, जो रायमती के जीवन के काम से जुड़ा है, कुपोषण से निपटने, किसानों की आय में सुधार और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में बाजरे के महत्व पर जोर देता है.
एक भावनात्मक मील का पत्थर
रायमती के लिए मानद डॉक्टरेट प्राप्त करना एक बहुत ही भावनात्मक क्षण था."मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम पीढ़ियों से जो काम कर रहे हैं, वह एक दिन मुझे ऐसे मंच पर ले आएगा. यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं है - यह कोरापुट की धरती का है और हर उस किसान का है जो हमारी परंपराओं की शक्ति में विश्वास करना जारी रखता है."
उनकी कहानी नुआगुडा के खेतों से कहीं आगे तक गूंज रही है. यह लचीलेपन, नेतृत्व, एक किसान और जमीन के बीच के स्थायी बंधन की कहानी है. जब वह मानद डॉक्टरेट की उपाधि लेकर मंच पर खड़ी हुई, तो रायमती ने अतीत के ज्ञान में निहित एक स्थायी भविष्य के वादे का प्रतीक बनाया.
राष्ट्रपति का अभिभाषण
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि OUAT का दीक्षांत समारोह छात्रों के उज्ज्वल भविष्य का मार्ग खोलता है. उन्होंने छात्रों से कहा कि वे अब एक अलग पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें उन्हें वास्तविक दुनिया की स्थितियों में अपने ज्ञान और कौशल के कठोर परीक्षणों का सामना करना पड़ेगा. उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने द्वारा अर्जित ज्ञान और कौशल के सर्वोत्तम अनुप्रयोग के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में योगदान दें.
उन्होंने छात्रों से अपने इनोवेटिव विचारों और समर्पित कार्यों के माध्यम से 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के राष्ट्रीय लक्ष्य में योगदान देने का आग्रह किया. राष्ट्रपति ने आगे कहा, "एक समय था जब हम खाद्यान्न के लिए दूसरे देशों पर निर्भर थे. अब हम खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात कर रहे हैं. यह हमारे कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन और हमारे किसानों की अथक मेहनत के कारण संभव हुआ है." राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि कृषि और किसानों के विकास के बिना देश का समग्र विकास संभव नहीं है. कृषि, मत्स्य उत्पादन और पशुधन के विकास से हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकती है.
उन्होंने कहा, "आज कृषि के सामने प्राकृतिक आपदाएं, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव, प्रति व्यक्ति कृषि का आकार घटता जाना और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन जैसी नई चुनौतियां हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमारे वैज्ञानिकों को समय पर प्रौद्योगिकियों का विकास तथा प्रसार करना होगा. हमें पर्यावरण संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य संरक्षण, जल एवं मृदा संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग पर जोर देना होगा."