कुल्लू: कंगना रनौत अपनी शानदार एक्टिंग की बदौलत बॉलीवुड की 'क्वीन' कहलाती हैं. 4 नेशनल अवॉर्ड समेत कई पुरस्कार जीत चुकी कंगना इन दिनों नए अवतार में हैं. आजकल कंगना लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं. बीजेपी ने उन्हें हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से उतारा है और उनका धुंआधार प्रचार सुर्खियां भी बटोर रहा है. लेकिन उनके बयानों के साथ-साथ उनकी ड्रेस को लेकर भी बात हो रही है, खासकर कुल्लू-मनाली में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जो ड्रेस पहनी. सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें और लोगों के बीच खूब चर्चा हो रही है. आखिर इस ड्रेस को क्या कहते हैं ? क्या हैं इस ड्रेस की खूबियां और कीमत ?
कंगना ने पहना कुल्लवी पट्टू
मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार कंगना रनौत ने 11 और 12 अप्रैल को कुल्लू जिले में प्रचार किया. इस दौरान कंगना ने मंदिर जाने से लेकर कार्यकर्ताओं से मुलाकात और जनसभा को संबोधित किया. जब से कंगना चुनाव मैदान में उतरी हैं तबसे वो भारतीय परिधान और सिर पर हिमाचली टोपी के साथ नजर आ रही हैं. लेकिन कुल्लू के दौरे पर वो कुल्लू की परंपरागत परिधान में नजर आईं. जिसे कुल्लवी पट्टू कहते हैं. कंगना के प्रचार, उनके भाषण और बयानों के साथ-साथ आम जन के बीच उनकी इस ड्रेस की भी खूब चर्चा है.
पट्टू हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र की महिलाएं पहनती हैं. हिमाचल प्रदेश एक ठंडा प्रदेश हैं. सर्दियों के मौसम में महिलाएं ऊन से बने इस पट्टू को पहनती हैं. पट्टू को किसी स्वेटर की तरह सूट या साड़ी के ऊपर पहना जाता है. ऊन के भेड़ से तैयार होने वाला ये पट्टू पहले सिर्फ लकड़ी की बनी मशीन पर बनता है जिसे स्थानीय भाषा में खड्डी कहते हैं. इस पट्टू में कंगना रनौत खूबसूरत लग रही थीं. साथ में उन्होंने हिमाचली टोपी और शॉल ली थी जो उन्हें एक परफेक्ट लुक दे रहा था और स्थानीय परिधान में वो अपने लोगों के बीच अच्छे से कनेक्ट भी कर रही थीं.
कब पहना जाता है ये पट्टू ?
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, मंडी और किन्नौर जिलों में पट्टू पहना जाता है. हिमाचल के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं लंबे वक्त से कुल्लवी पट्टू पहनती आ रही हैं. शादी समारोह, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में ये पट्टू पहनने का रिवाज है. कुल्लू जिले के कुछ मंदिरों में महिलाओं को सिर्फ कुल्लवी पट्टू में ही जाती हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में कुल्लवी पट्टू का ट्रेंड बढ़ा है.
कुल्लू की आर्थिकी
कुल्लवी पट्टू ही नहीं कुल्लू की शॉल, टोपियां और अन्य ऊनी उत्पाद भी बहुत फेमस हैं. एशिया की मशहूर हथकरघा सोसायटी भुट्टिको के रिटायर्ड महाप्रबंधक रमेश ठाकुर बताते हैं कि साल 1940 के दशक में ये पट्टू अस्तित्व में आया था. पहले इसे सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं ही पहनती थी लेकिन वक्त के साथ-साथ इसका प्रचलन बढ़ा है. हिमाचल के रामपुर और किन्नौर के बुनकर जब कुल्लू घाटी आए तो उन्होंने पट्टू बनाने की कला को और निखार दिया. कभी सादे और एक-दो रंगों वाला पट्टू इन कारीगरों के आने के बाद डिजाइनर और रंग बिरंगा भी हो गया. आज यहां काली ऊन में सफेद ऊन की पट्टी के साथ कई डिजाइन के पट्टू मिलते हैं.
आज भी कुल्लू के कई कारीगर हाथ से पट्टू बनाते हैं. कुल्लू के हीरालाल ठाकुर, लोत राम, हरि सिंह और भागचंद जैसे कई लोग इस काम में जुटे हैं. वो बताते हैं कि पट्टू बनाने का ये हुनर उन्हें पुरखों से विरासत में मिला है. हाथ से पट्टू को तैयार करने में काफी वक्त लगता है लेकिन अब मशीनों से भी ये पट्टू तैयार हो रहे हैं. जिसका असर हथकरघे से पट्टू बनाने वालों पर भी पड़ा है.
ये कारीगर बताते हैं कि हाथ और मशीन से बने पट्टू का अंतर देखते ही पता चल जाएगा. हाथ से प्ट्टू बनाने में 20 से 25 दिन भी लग सकते हैं, जबकि मशीन में बहुत कम समय लगता है. लेकिन क्वालिटी के मामले में हाथ से बना पट्टू अच्छा होता है. कुल्लू जिले के ज्यादातर आबादी शॉल, टोपी, स्टॉल, पट्टू आदि बनाने के काम में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है.
5 हजार से 50 हजार तक कीमत
भुट्टिको सोसायटी से जुड़े रहे रमेश ठाकुर कहते हैं कि मशीन से पट्टू बनने के कारण स्थानीय लोगों को रोजगार पर तो असर पड़ा ही है लेकिन इसके साथ हाथ से पट्टू बनाने वाले कलाकार भी धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. रमेश ठाकुर के मुताबिक एक बेसिक और साधारण से पट्टू की कीमत करीब 5,000 से शुरू होती है. जो अलग-अलग डिजाइन, रंग, ऊन की क्वालिटी के आधार पर 40 से 50 हजार और इससे भी अधिक हो सकती है. लकड़ी की मशीन पर एक पट्टू को तैयार करने में कारीगर को 25 दिन का समय लगता है. हाथ से बने पट्टू की क्वालिटी भी अच्छी होती है और मशीन से बने पट्टू के मुकाबले ये महंगा मिलता है.
पर्यटकों की पसंद
बीते कुछ वर्षों में हिमाचल प्रदेश ने पर्यटन के मानचित्र पर अपनी अलग जगह बनाई है. इसमें यहां की सुंदरता के अलावा संस्कृति, खान-पान और पहनावा भी वजह हैं. हिमाचल आने वाले पर्यटकों में शायद ही कोई ऐसा होता है जो यहां के परिधानों में तस्वीर ना खिंचाता है. कुल्लू मनाली आने वाले पर्यटक कुल्लवी पट्टू में तस्वीरें खिंचाते हैं और इसे एक याद की तरह संजोकर रखते हैं. इसके अलावा विदेशी पर्यटक भी लोकल पहनावे की ओर आकर्षित होते हैं.