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हिन्दू विवाह के लिए कन्यादान अनिवार्य परंपरा नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट - Allahabad High Court Lucknow Bench - ALLAHABAD HIGH COURT LUCKNOW BENCH

इलाहाबाद हाई कोर्ट लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने अपने एक आदेश में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य परंपरा नहीं है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 7, 2024, 7:22 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य परंपरा नहीं है. न्यायालय ने कहा कि प्रावधानों के मुताबिक सिर्फ सप्तपदी ही ऐसी परंपरा है, जो हिन्दू विवाह को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक है.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने आशुतोष यादव की ओर से दाखिल एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है. याची की ओर से वैवाहिक विवाद के सम्बंध में चल रहे आपराधिक मामले में एक गवाह को पुनः समन की जाने की प्रार्थना की गई थी. विचारण अदालत ने याची की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया, इस पर उसने हाईकोर्ट की शरण ली. याची की ओर से दलील दी गई कि उसकी पत्नी का कन्यादान हुआ था अथवा नहीं, यह स्थापित करने के लिए अभियोजन के गवाहों जिसमें वादी भी शामिल है, पुनः समन किया जाना आवश्यक है.

इस पर न्यायालय ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 7 का उल्लेख किया जिसके तहत हिन्दू विवाह के लिए सप्तपदी को ही अनिवार्य परंपरा माना गया है. न्यायालय ने कहा कि उक्त प्रावधान को देखते हुए, कन्यादान हुआ था अथवा नहीं, यह प्रश्न प्रासंगिक ही नहीं है. लिहाजा गवाहों को पुनः समन की जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया.

न्यायालय ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अदालत की शक्ति का प्रयोग केवल वादी के कहने पर आकस्मिक तरीके से नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब किसी मामले के उचित निर्णय के लिए गवाह को बुलाना आवश्यक हो. इसलिए कोर्ट ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी.

ये भी पढ़ें- दुनिया ने देखा हिंदुस्तान का दम; लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे पर लड़ाकू विमानों ने किया टच डाउन

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य परंपरा नहीं है. न्यायालय ने कहा कि प्रावधानों के मुताबिक सिर्फ सप्तपदी ही ऐसी परंपरा है, जो हिन्दू विवाह को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक है.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने आशुतोष यादव की ओर से दाखिल एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है. याची की ओर से वैवाहिक विवाद के सम्बंध में चल रहे आपराधिक मामले में एक गवाह को पुनः समन की जाने की प्रार्थना की गई थी. विचारण अदालत ने याची की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया, इस पर उसने हाईकोर्ट की शरण ली. याची की ओर से दलील दी गई कि उसकी पत्नी का कन्यादान हुआ था अथवा नहीं, यह स्थापित करने के लिए अभियोजन के गवाहों जिसमें वादी भी शामिल है, पुनः समन किया जाना आवश्यक है.

इस पर न्यायालय ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 7 का उल्लेख किया जिसके तहत हिन्दू विवाह के लिए सप्तपदी को ही अनिवार्य परंपरा माना गया है. न्यायालय ने कहा कि उक्त प्रावधान को देखते हुए, कन्यादान हुआ था अथवा नहीं, यह प्रश्न प्रासंगिक ही नहीं है. लिहाजा गवाहों को पुनः समन की जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया.

न्यायालय ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अदालत की शक्ति का प्रयोग केवल वादी के कहने पर आकस्मिक तरीके से नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब किसी मामले के उचित निर्णय के लिए गवाह को बुलाना आवश्यक हो. इसलिए कोर्ट ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी.

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