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झामुमो की बढ़ती राजनीतिक महत्वकांक्षा ने सहयोगी दलों की बढ़ाई चिंता, कल्पना सोरेन की सक्रियता से उड़ी राजद और कांग्रेस की नींद - JMM Political Ambition

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 22, 2024, 8:14 PM IST

Concern of RJD and Congress in Jharkhand. झारखंड मुक्ति मोर्चा की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने महागठबंधन में शामिल सहयोगी दलों की चिंता बढ़ा दी है. पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की राज्यभर में सक्रियता से राजद और कांग्रेस की नींद उड़ गई है.

JMM POLITICAL AMBITION
पलामू में झामुमो के मिलन समारोह में मौजूद विधायक कल्पना सोरेन. (फाइल फोटो-ईटीवी भारत)

रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 इसी वर्ष के नवंबर-दिसंबर महीने में होने की संभावना है. लिहाजा राज्य के सभी राजनीतिक दल अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. इन सबके बीच एक बात जो बेहद खास और गौर करने लायक है वह है पलामू प्रमंडल में विधानसभा स्तर तक जाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की बढ़ती गतिविधियां.

जानकारी देते वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सतेंद्र सिंह, कांग्रेस, राजद और झामुमो के नेता. (वीडियो-ईटीवी भारत)

हुसैनाबाद में झामुमो के महा मिलन समारोह के बाद राजद और कांग्रेस के कान खड़े

अभी हाल के दिनों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने पलामू के हुसैनाबाद में महामिलन समारोह का आयोजन कर बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को झामुमो में शामिल कराया. उसके बाद विरोधी तो विरोधी झामुमो के सहयोगी दल राजद और कांग्रेस के भी कान खड़े हो गए और इसके पीछे कारण भी है.

पलामू वर्षों तक राजद और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था

राज्य बनने के बाद कई वर्षों तक पलामू क्षेत्र में जहां राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में पहचान रखती थी, अब वहां धीरे-धीरे झामुमो अपना ताकत बढ़ा रहा है. भाजपा को हर हाल में सत्ता में आने से रोकने की राजद-कांग्रेस की नीति को झामुमो नेतृत्व ने अपने लिए एक मौका माना और महागठबंधन में आहिस्ता-आहिस्ता सहयोगी दलों की सीट भी अपने कोटे में लेते गए. ताजा उदाहरण 2019 के विधानसभा चुनाव के समय गढ़वा में दिखा. जहां राजद एक मजबूत राजनीतिक ताकत हुआ करती थी, आज वहां झामुमो से मिथिलेश ठाकुर झामुमो विधायक हैं और चंपाई सरकार में मंत्री बने हुए हैं.

क्या कल्पना झारखंड की राजनीति को झामुमो की नजर से देख रही हैं!

ऐसे में सवाल यह है कि क्या 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो और खासकर सोरेन परिवार की बहू कल्पना सोरेन की पलामू में गतिविधियों इसलिए बढ़ी है क्योंकि झामुमो की नजर अपने सहयोगियों की अन्य दूसरी सीटों पर भी है? इस सवाल के जवाब में राज्य की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि जब से कल्पना सोरेन राज्य की राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हुई हैं, वह झारखंड की राजनीति को झामुमो की नजर से देख रही हैं, न कि महागठबंधन की नजर से.

हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर दावा ठोक सकता है झामुमो!

वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि पलामू दौरे पर जिस तरह कल्पना सोरेन राजद के गढ़ रहे हुसैनाबाद तक पहुंच गईं और वहां उन्हें देखने-सुनने के लिए उमड़ा जनसैलाब, मिलन समारोह में कई लोगों के झामुमो में शामिल होने के बाद तो अब इसकी भी संभवना बनती दिख रही है कि कहीं हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर भी झामुमो अपनी दावेदारी न ठोक दे.

क्यों पिछड़ रहा राजद और झामुमो क्यों बढ़ रहा आगे

वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह के अनुसार पूरे पलामू में मजबूत जनाधार और मजबूत नेता के बावजूद राजद के प्रदेश नेतृत्व को पटना और लालू-तेजस्वी के फैसले पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं दूसरी ओर झामुमो और सोरेन परिवार को खुद के फैसले लेने की आजादी है. यही वजह है कि झामुमो एक-एक विधानसभा सीट पर पहले से मजबूत चेहरे को झामुमो में शामिल करा रहा है, ताकि जब सीट शेयरिंग के लिए सहयोगियों के साथ टेबल मीटिंग हो तो कुछ और सीट उनकी झोली से लेकर अपनी झोली में डाली जा सके.

झारखंड कांग्रेस की जमीनी ताकत कमजोर

वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि कांग्रेस की राजनीति रांची कार्यालय से पार्टी को मजबूत करने की रही है. लिहाजा उसका जमीनी ताकत कमजोर है. महागठबंधन की राजनीति का लाभ उसे मिलता है. जिसकी वजह से वह सम्मानजनक सीट पा जा रही है.ऐसे में झारखंड की राजनीति में महागठबंधन की राजनीति से अलग झामुमो अकेले राज्य की सबसे बड़ी पार्टी की पहचान बना लें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

एक नजर झारखंड की उन सीटों पर जहां पहले राजद और कांग्रेस थी मजबूत, पर अब झामुमो का है जलवा

एकीकृत बिहार और झारखंड राज्य बनने के बाद की राजनीति में गांडेय, सिसई, गुमला, रांची, सिल्ली, चाईबासा, राजमहल, घाटशिला जैसे कई विधानसभा हैं जहां कांग्रेस की तूती बोलती थी. तब के बागुन सुमराई, प्रदीप बलमुचू, थॉमस हांसदा, गीताश्री उरांव उनसे पहले उनके पिता कार्तिक उरांव ने राज्य और देश की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी थी, लेकिन आज इन विधानसभा सीटों पर झामुमो एक मजबूत ताकत है.

पहले गांडेय में कांग्रेस थी मजबूत, अब झामुमो ने गाड़ा झंडा

गांडेय विधानसभा सीट पहले कांग्रेस की मजबूत सीट हुआ करती थी, 2019 में झामुमो का झंडा यहां बुलंद हुआ और वर्तमान में पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गांडेय से झामुमो विधायक हैं.

सिंहभूम और राजमहल लोकसभा सीट पूर्व में कांग्रेस की झोली में थी, अब झामुमो के खाते में गई

इसी तरह लोकसभा की कांग्रेस की सीट झामुमो की झोली में जाने का ताजा मामला सिंहभूम लोकसभा सीट है. जहां 2019 में कांग्रेस सांसद थे और आज जोबा मांझी झामुमो की सांसद होकर लोकसभा पहुंच चुकी हैं. वहीं राजमहल लोकसभा सीट पर कभी दिग्गज थॉमस हांसदा का नाम था, पर आज की तारीख में ये सीट झामुमो के पास है.

राजद की परंपरागत सीट गढ़वा अब झामुमो के खाते में

इसी तरह लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता रहे पूर्व मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रहे गिरिनाथ सिंह की परंपरागत सीट गढ़वा अब झामुमो के खाते में हैं तो कभी मनोहरपुर से राजद के उम्मीदवार जीत कर विधायक बनते थे. इस संबंध में राजद के प्रदेश महासचिव कहते हैं कि कभी लातेहार, मनोहरपुर, गढ़वा, जमुआ, सारठ, नाला, राजधनवार जैसी कई विधानसभा सीटों पर राजद मजबूत था, लेकिन आज उन सीटों पर झामुमो का कब्जा का.

अब भवनाथपुर और बरकट्ठा पर है झामुमो की नजर

2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर झामुमो 43 सीटों पर चुनाव लड़ा था. अब पार्टी के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि इस बार पलामू के भवनाथपुर विधानसभा सीट और उत्तरी छोटानागपुर के बरकट्ठा विधानसभा सीट अपनी झोली में चाहता है. ये दोनों सीटें क्रमशः कांग्रेस और राजद की थी.

भवनाथपुर-हुसैनाबाद यदि सहयोगियों से लेंगे तो कोई सीट देंगे भी-मनोज पांडेय

जेएमएम राज्य में अपना आधार बढ़ाने और संगठन को मजबूत करने की लगातार कोशिश कर रहा है. पार्टी ने उन क्षेत्रों में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ा दी हैं जो उसके सहयोगी कांग्रेस और राजद के गढ़ माने जाते रहे हैं. इस संबंध में झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों में हमारी पार्टी बहुत मजबूत हुई है. जनता कल्पना सोरेन के भाषणों में हेमंत सोरेन को देखती है. उन्होंने कहा कि अगर हम सहयोगी दलों से भवनाथपुर और हुसैनाबाद लेंगे तो बदले में कुछ सीटें देंगे भी, इसका फैसला आलाकमान करेगा.

महागठबंधन में शामिल सहयोगी दलों की चिंता बढ़ी

विधानसभा चुनावों से पहले जेएमएम की रैलियों और अन्य कार्यक्रमों ने राज्य में उसके सहयोगियों के बीच तनाव बढ़ा दिया है. कांग्रेस के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता जगदीश साहू और राजद के प्रदेश महासचिव कैलाश यादव झामुमो की राजनीति को समझ भी रहे हैं. झामुमो के सहयोगी दोनों दल राजद और कांग्रेस के नेता कहते हैं कि महागठबंधन की राजनीति में झामुमो को कुछ धैर्य रखने की सलाह देते हुए यह मानते हैं कि झामुमो की बढ़ती महत्वाकांक्षा का नुकसान भाजपा को कम सहयोगी दलों को ज्यादा होता है.

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हुसैनाबाद में झामुमो के महा मिलन समारोह के बाद राजद और कांग्रेस के कान खड़े

अभी हाल के दिनों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने पलामू के हुसैनाबाद में महामिलन समारोह का आयोजन कर बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को झामुमो में शामिल कराया. उसके बाद विरोधी तो विरोधी झामुमो के सहयोगी दल राजद और कांग्रेस के भी कान खड़े हो गए और इसके पीछे कारण भी है.

पलामू वर्षों तक राजद और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था

राज्य बनने के बाद कई वर्षों तक पलामू क्षेत्र में जहां राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में पहचान रखती थी, अब वहां धीरे-धीरे झामुमो अपना ताकत बढ़ा रहा है. भाजपा को हर हाल में सत्ता में आने से रोकने की राजद-कांग्रेस की नीति को झामुमो नेतृत्व ने अपने लिए एक मौका माना और महागठबंधन में आहिस्ता-आहिस्ता सहयोगी दलों की सीट भी अपने कोटे में लेते गए. ताजा उदाहरण 2019 के विधानसभा चुनाव के समय गढ़वा में दिखा. जहां राजद एक मजबूत राजनीतिक ताकत हुआ करती थी, आज वहां झामुमो से मिथिलेश ठाकुर झामुमो विधायक हैं और चंपाई सरकार में मंत्री बने हुए हैं.

क्या कल्पना झारखंड की राजनीति को झामुमो की नजर से देख रही हैं!

ऐसे में सवाल यह है कि क्या 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो और खासकर सोरेन परिवार की बहू कल्पना सोरेन की पलामू में गतिविधियों इसलिए बढ़ी है क्योंकि झामुमो की नजर अपने सहयोगियों की अन्य दूसरी सीटों पर भी है? इस सवाल के जवाब में राज्य की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि जब से कल्पना सोरेन राज्य की राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हुई हैं, वह झारखंड की राजनीति को झामुमो की नजर से देख रही हैं, न कि महागठबंधन की नजर से.

हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर दावा ठोक सकता है झामुमो!

वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि पलामू दौरे पर जिस तरह कल्पना सोरेन राजद के गढ़ रहे हुसैनाबाद तक पहुंच गईं और वहां उन्हें देखने-सुनने के लिए उमड़ा जनसैलाब, मिलन समारोह में कई लोगों के झामुमो में शामिल होने के बाद तो अब इसकी भी संभवना बनती दिख रही है कि कहीं हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर भी झामुमो अपनी दावेदारी न ठोक दे.

क्यों पिछड़ रहा राजद और झामुमो क्यों बढ़ रहा आगे

वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह के अनुसार पूरे पलामू में मजबूत जनाधार और मजबूत नेता के बावजूद राजद के प्रदेश नेतृत्व को पटना और लालू-तेजस्वी के फैसले पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं दूसरी ओर झामुमो और सोरेन परिवार को खुद के फैसले लेने की आजादी है. यही वजह है कि झामुमो एक-एक विधानसभा सीट पर पहले से मजबूत चेहरे को झामुमो में शामिल करा रहा है, ताकि जब सीट शेयरिंग के लिए सहयोगियों के साथ टेबल मीटिंग हो तो कुछ और सीट उनकी झोली से लेकर अपनी झोली में डाली जा सके.

झारखंड कांग्रेस की जमीनी ताकत कमजोर

वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि कांग्रेस की राजनीति रांची कार्यालय से पार्टी को मजबूत करने की रही है. लिहाजा उसका जमीनी ताकत कमजोर है. महागठबंधन की राजनीति का लाभ उसे मिलता है. जिसकी वजह से वह सम्मानजनक सीट पा जा रही है.ऐसे में झारखंड की राजनीति में महागठबंधन की राजनीति से अलग झामुमो अकेले राज्य की सबसे बड़ी पार्टी की पहचान बना लें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

एक नजर झारखंड की उन सीटों पर जहां पहले राजद और कांग्रेस थी मजबूत, पर अब झामुमो का है जलवा

एकीकृत बिहार और झारखंड राज्य बनने के बाद की राजनीति में गांडेय, सिसई, गुमला, रांची, सिल्ली, चाईबासा, राजमहल, घाटशिला जैसे कई विधानसभा हैं जहां कांग्रेस की तूती बोलती थी. तब के बागुन सुमराई, प्रदीप बलमुचू, थॉमस हांसदा, गीताश्री उरांव उनसे पहले उनके पिता कार्तिक उरांव ने राज्य और देश की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी थी, लेकिन आज इन विधानसभा सीटों पर झामुमो एक मजबूत ताकत है.

पहले गांडेय में कांग्रेस थी मजबूत, अब झामुमो ने गाड़ा झंडा

गांडेय विधानसभा सीट पहले कांग्रेस की मजबूत सीट हुआ करती थी, 2019 में झामुमो का झंडा यहां बुलंद हुआ और वर्तमान में पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गांडेय से झामुमो विधायक हैं.

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इसी तरह लोकसभा की कांग्रेस की सीट झामुमो की झोली में जाने का ताजा मामला सिंहभूम लोकसभा सीट है. जहां 2019 में कांग्रेस सांसद थे और आज जोबा मांझी झामुमो की सांसद होकर लोकसभा पहुंच चुकी हैं. वहीं राजमहल लोकसभा सीट पर कभी दिग्गज थॉमस हांसदा का नाम था, पर आज की तारीख में ये सीट झामुमो के पास है.

राजद की परंपरागत सीट गढ़वा अब झामुमो के खाते में

इसी तरह लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता रहे पूर्व मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रहे गिरिनाथ सिंह की परंपरागत सीट गढ़वा अब झामुमो के खाते में हैं तो कभी मनोहरपुर से राजद के उम्मीदवार जीत कर विधायक बनते थे. इस संबंध में राजद के प्रदेश महासचिव कहते हैं कि कभी लातेहार, मनोहरपुर, गढ़वा, जमुआ, सारठ, नाला, राजधनवार जैसी कई विधानसभा सीटों पर राजद मजबूत था, लेकिन आज उन सीटों पर झामुमो का कब्जा का.

अब भवनाथपुर और बरकट्ठा पर है झामुमो की नजर

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महागठबंधन में शामिल सहयोगी दलों की चिंता बढ़ी

विधानसभा चुनावों से पहले जेएमएम की रैलियों और अन्य कार्यक्रमों ने राज्य में उसके सहयोगियों के बीच तनाव बढ़ा दिया है. कांग्रेस के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता जगदीश साहू और राजद के प्रदेश महासचिव कैलाश यादव झामुमो की राजनीति को समझ भी रहे हैं. झामुमो के सहयोगी दोनों दल राजद और कांग्रेस के नेता कहते हैं कि महागठबंधन की राजनीति में झामुमो को कुछ धैर्य रखने की सलाह देते हुए यह मानते हैं कि झामुमो की बढ़ती महत्वाकांक्षा का नुकसान भाजपा को कम सहयोगी दलों को ज्यादा होता है.

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