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जम्मू कश्मीर : सीएम उमर अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 के खिलाफ प्रस्ताव लाने का दिया संकेत

Jammu Kashmir Assembly, विधानसभा में सीएम उमर अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 के खिलाफ प्रस्ताव लाने का संकेत दिया. वहीं पीडीपी विधायक वहीद उर रहमान पर्रा ने केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के 5 अगस्त के फैसले पर चर्चा की मांग करते हुए प्रस्ताव पेश किया.

CM Omar Abdullah
सीएम उमर अब्दुल्ला (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 4, 2024, 3:19 PM IST

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संकेत दिया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ प्रस्ताव पेश करेंगे. सदन में अपने संक्षिप्त भाषण में अब्दुल्ला ने लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित किया.

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हम जानते थे कि माननीय सदस्य द्वारा तैयारियां चल रही थीं, लेकिन हमें उम्मीद थी कि वे स्पीकर के चुनाव और लेफ्टिनेंट गवर्नर के संबोधन तथा श्रद्धांजलि के बाद ऐसा कर सकते हैं. खासकर तब जब एक मौजूदा सदस्य अब हमारे बीच नहीं हैं. उन्होंने कहा, "इसके बाद हम इस मुद्दे पर फिर से चर्चा करेंगे." मैं आज राजनीतिक भाषण के लिए तैयार नहीं था, लेकिन अब उल्टा हो गया है और राजनीति केंद्र में आ गई है. कुछ सदस्यों को राजनीति के अलावा कुछ नहीं करना है. यह विधानसभा जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं को दर्शाती है.

सच तो यह है कि लोगों ने 5 अगस्त के फ़ैसले को स्वीकार नहीं किया है. अगर उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया होता, तो आज नतीजे अलग होते. उन्होंने कहा कि 90 सदस्यीय सदन में बहुमत उन दलों का है जिन्होंने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रावधानों को समाप्त करने और उसके स्वरूप को कम करने का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि अब सदन भावनाओं को प्रतिबिंबित करेगा और इस मुद्दे को कैसे उठाया जाएगा और दर्ज किया जाएगा, इसका निर्णय किसी एक माननीय सदस्य द्वारा नहीं किया जाएगा.

बता दें कि ईटीवी भारत ने खबर दी थी कि सरकार सदन के पहले सत्र में प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है, जो चुनाव में सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस का एक प्रमुख वादा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, उसके गठबंधन सहयोगी कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) तथा निर्दलीयों के समर्थन से विधानसभा में कुल 55 विधायकों का आंकड़ा प्राप्त होता है, जिससे उसे प्रस्ताव पारित करने के लिए पर्याप्त बहुमत प्राप्त हो जाता है.

पहले दिन विपक्षी विधायक वहीद उर रहमान पर्रा की रणनीतिक चाल ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार से बाजी छीन ली है. सत्र के पहले घंटे में सात बार विधायक चुने गए और 90 सदस्यीय सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य अब्दुल रहीम राथर को अध्यक्ष के रूप में चुना गया. पुलवामा से पीडीपी विधायक वहीद उर रहमान पर्रा ने केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के 5 अगस्त के फैसले पर चर्चा की मांग करते हुए प्रस्ताव पेश किया.

इससे पीडीपी के तीन विधायक और विधायक लंगेट शेख खुर्शीद, जो जेल में बंद सांसद इंजीनियर राशिद के भाई हैं, नाराज हो गए और सदन में अपनी सीटों से खड़े हो गए, जिससे अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और फिर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पारंपरिक अभिभाषण के लिए कार्यवाही फिर से शुरू करनी पड़ी.

बता दें कि जम्मू और कश्मीर को विधानसभा सहित केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, लेकिन लद्दाख को सदन के बिना एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद यह पहला विधानसभा सत्र है. वहीं जब पिछली राज्य विधानसभा को नवंबर 2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भंग कर दिया था, तभी से प्रत्यक्ष केंद्रीय शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ था. 17 अक्टूबर को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में उमर अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया था और पिछले महीने राष्ट्रीय राजधानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक के दौरान राज्य के दर्जे की मांग को लेकर प्रस्ताव रखा था.

ये भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला सत्र आज से शुरू, राथर बनें स्पीकर, उमर ने दी बधाई दी

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संकेत दिया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ प्रस्ताव पेश करेंगे. सदन में अपने संक्षिप्त भाषण में अब्दुल्ला ने लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित किया.

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हम जानते थे कि माननीय सदस्य द्वारा तैयारियां चल रही थीं, लेकिन हमें उम्मीद थी कि वे स्पीकर के चुनाव और लेफ्टिनेंट गवर्नर के संबोधन तथा श्रद्धांजलि के बाद ऐसा कर सकते हैं. खासकर तब जब एक मौजूदा सदस्य अब हमारे बीच नहीं हैं. उन्होंने कहा, "इसके बाद हम इस मुद्दे पर फिर से चर्चा करेंगे." मैं आज राजनीतिक भाषण के लिए तैयार नहीं था, लेकिन अब उल्टा हो गया है और राजनीति केंद्र में आ गई है. कुछ सदस्यों को राजनीति के अलावा कुछ नहीं करना है. यह विधानसभा जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं को दर्शाती है.

सच तो यह है कि लोगों ने 5 अगस्त के फ़ैसले को स्वीकार नहीं किया है. अगर उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया होता, तो आज नतीजे अलग होते. उन्होंने कहा कि 90 सदस्यीय सदन में बहुमत उन दलों का है जिन्होंने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रावधानों को समाप्त करने और उसके स्वरूप को कम करने का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि अब सदन भावनाओं को प्रतिबिंबित करेगा और इस मुद्दे को कैसे उठाया जाएगा और दर्ज किया जाएगा, इसका निर्णय किसी एक माननीय सदस्य द्वारा नहीं किया जाएगा.

बता दें कि ईटीवी भारत ने खबर दी थी कि सरकार सदन के पहले सत्र में प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है, जो चुनाव में सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस का एक प्रमुख वादा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, उसके गठबंधन सहयोगी कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) तथा निर्दलीयों के समर्थन से विधानसभा में कुल 55 विधायकों का आंकड़ा प्राप्त होता है, जिससे उसे प्रस्ताव पारित करने के लिए पर्याप्त बहुमत प्राप्त हो जाता है.

पहले दिन विपक्षी विधायक वहीद उर रहमान पर्रा की रणनीतिक चाल ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार से बाजी छीन ली है. सत्र के पहले घंटे में सात बार विधायक चुने गए और 90 सदस्यीय सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य अब्दुल रहीम राथर को अध्यक्ष के रूप में चुना गया. पुलवामा से पीडीपी विधायक वहीद उर रहमान पर्रा ने केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के 5 अगस्त के फैसले पर चर्चा की मांग करते हुए प्रस्ताव पेश किया.

इससे पीडीपी के तीन विधायक और विधायक लंगेट शेख खुर्शीद, जो जेल में बंद सांसद इंजीनियर राशिद के भाई हैं, नाराज हो गए और सदन में अपनी सीटों से खड़े हो गए, जिससे अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और फिर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पारंपरिक अभिभाषण के लिए कार्यवाही फिर से शुरू करनी पड़ी.

बता दें कि जम्मू और कश्मीर को विधानसभा सहित केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, लेकिन लद्दाख को सदन के बिना एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद यह पहला विधानसभा सत्र है. वहीं जब पिछली राज्य विधानसभा को नवंबर 2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भंग कर दिया था, तभी से प्रत्यक्ष केंद्रीय शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ था. 17 अक्टूबर को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में उमर अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया था और पिछले महीने राष्ट्रीय राजधानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक के दौरान राज्य के दर्जे की मांग को लेकर प्रस्ताव रखा था.

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