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MSP फॉर्म्यूला फाइनल: चुनावी तारीख के ऐलान से पहले किसान आंदोलन होगा खत्म! ड्राफ्ट PMO भेजने की तैयारी - government Farmers Income Plan

Modi Government MSP Draft Ready: प्रधानमंत्री हाई लेवल MSP कमेटी ने आंदोलनकारी किसानों को मनाने के लिए एमएसपी फॉर्म्यूला तैयार कर लिया है. दावा किया जा रहा है कि यह गेम चेंजर होगा और किसानों को खुश करने वाला. जल्द पीएम मोदी के पास फाइनल ड्राफ्ट भेजा जाएगा. MSP कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी ने दावा किया है कि बीजेपी के पास किसानों की समस्याओं का पूरा समाधान है. जबलपुर में संवाददाता विश्वजीत सिंह की खास रिपोर्ट.

Farmers protest end before election
प्रधानमंत्री हाई लेवल एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 5, 2024, 6:01 PM IST

Updated : Mar 5, 2024, 7:12 PM IST

प्रधानमंत्री हाई लेवल एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी से चर्चा

जबलपुर। प्रधानमंत्री हाई लेवल एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी ने दावा किया है कि चुनाव के पहले कुछ ऐसी घोषणाएं होंगी जिससे खेती को लाभकारी बनाने का वादा पूरा होगा. प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि फसलों की लागत और लाभकारी मूल्य को लेकर मिनिमम सपोर्ट प्राइस को लेकर कमेटी की रिपोर्ट लगभग तैयार है. मिनिमम सपोर्ट प्राइस के साथ ही कुछ ऐसे दूसरे तरीके भी हैं जिनसे कृषि को लाभकारी धंधा बनाया जाएगा.

MSP तय करने का तरीका

केंद्र सरकार का एक आयोग है जिसे कृषि लागत मूल्य आयोग सीएसीपी के नाम से जाना जाता है. इस आयोग में कृषि के कई विशेषज्ञ और कुछ आईएएस अधिकारी शामिल होते हैं और यही संस्था मिनिमम सपोर्ट प्राइस जिसे हम एमएसपी के नाम से जानते हैं वह तय करती है. कृषि लागत और मूल्य आयोग अपने आकलन में कृषि से जुड़ी लागत को कुछ इस तरह शामिल करता है, जिसमें बीज की लागत खाद की लागत, कृषि में काम करने वाले मजदूर की लागत के अलावा कुछ छोटे खर्चों को जोड़कर मिनिमम सपोर्ट प्राइस तय की जाती है.

कांग्रेस सरकारों के बने हैं नियम

एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि यह संस्था 1985 से काम कर रही है और लंबे समय तक इसके नियम कांग्रेस सरकारों के दौरान बनाए गए. इस संस्था के कृषि उत्पादन और कृषि लागत के मूल्यांकन के तरीके में कई गड़बड़ियां हैं. पहली गड़बड़ी में इसमें किसान के परिवार की मेहनत को लगभग शून्य माना गया है और उसे खेतिहर मजदूर के रूप में मात्र 40 दिनों के वेतन को ही जोड़कर मिनिमम सपोर्ट प्राइस में जोड़ा जाता है जो पूरी तरह से गलत है.

इसमें दूसरी गड़बड़ी किसान की जमीन की लागत को शून्य माना गया है वर्तमान में मिनिमम सपोर्ट प्राइस की लागत में कृषि जमीन का ना तो किराया जोड़ा गया है और ना ही कृषि जमीन की कीमत के ब्याज को इसमें शामिल किया गया है. प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि उन्होंने इन दोनों ही बातों पर आपत्ति जाहिर की है और इन्हें मिनिमम सपोर्ट प्राइस में जोड़ने की मांग रखी है.

कांग्रेस ने कभी लागू नहीं की एमएसपी

प्रमोद कुमार चौधरी ने कहा कि कांग्रेस ही मिनिमम सपोर्ट प्राइस देने की बात कर रही है, यदि यह संभव होता तो कांग्रेस अपने कार्यकाल में इसे दे चुकी होती. उनके पास किसानों को मिनिमम सपोर्ट प्राइस देने के खूब मौके थे लेकिन कांग्रेस भी यह जानती है कि यह समस्या का समाधान नहीं है, इसलिए कांग्रेस सरकार ने इसे लागू नहीं किया.

'रिपोर्ट की जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते'

प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि वे पीएम हाई लेवल कमेटी के सदस्य हैं. इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता क्योंकि यह रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री को सौंपी जाएगी और प्रधानमंत्री और सरकार ही यह तय करेगी कि फसलों की मिनिमम सपोर्ट प्राइस कितनी होनी चाहिए.

MSP समस्या का हल नहीं

मिनिमम सपोर्ट प्राइस किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं है. प्रमोद कुमार चौधरी का तर्क है कि भारत का 80 प्रतिशत किसान बहुत छोटी जोत वाला है. जिसके पास एक से दो एकड़ जमीन है और इतनी छोटी जमीन में वह जो उत्पादन पैदा करता है उसका इस्तेमाल वह अपने खुद के भोजन के लिए करता है. ऐसी स्थिति में यदि मिनिमम सपोर्ट प्राइस बड़ा भी दिया जाए तो उस किसान को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि वह अपना उत्पादन सरकार को बेचने नहीं आता.

किसान के खाते में सीधे पहुंचे खाद सब्सिडी

प्रमोद कुमार चौधरी ने इस समस्या का एक समाधान बताया है जिसमें किसानों की लागत घट सकती है और खेती फायदे का सौदा हो सकती है. प्रमोद कुमार चौधरी का तर्क है कि रासायनिक खाद के लिए सरकार हर साल लगभग ढाई लाख करोड़ की सब्सिडी देती है और यह सब्सिडी रासायनिक खाद बनाने वाली कंपनियों को दी जा रही है. यदि इस सब्सिडी को सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाए तो किसानों की लागत बहुत हद तक घट जाएगी. यदि किसान कम रासायनिक खाद में या जैविक खाद के जरिए उत्पादन कर लेगा तो किसान को बड़ी बचत होगी.

किसान आंदोलन केवल राजनीति से प्रेरित

किसान आंदोलन को लेकर प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि यह आंदोलन पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है. इसमें किसानों के मुद्दों के समाधान को लेकर कोई बात नहीं कही गई है. यहां किसान जेसीबी लेकर सरकार से लड़ने के लिए आ रहा है ऐसे में यदि कोई अनहोनी घट जाती है तो इसको पूरे देश में ऐसे प्रचारित किया जाएगा की मोदी सरकार किसान विरोधी है.

ये भी पढ़ें:

सरकार ने खरीफ फसलों की एमएसपी 4-9 प्रतिशत बढ़ाई, धान का MSP 100 रुपये क्विंटल बढ़ा
विरोध मार्च के लिए दिल्ली जा रहे कर्नाटक के 70 किसानों को भोपाल में ट्रेन से उतारा, हिरासत में लिया

गेम चेंजर हो सकती है योजना

इस कमेटी की रिपोर्ट सरकार आचार संहिता लगने के पहले जारी कर सकती है और कमेटी के सुझावों के आधार पर प्रति एकड़ लागत मूल्य सीधे किसान के खाते में पहुंचने की बात भी कही जा सकती है. ऐसा प्रयोग इसके पहले तेलंगाना में किया जा चुका है हालांकि इसके लिए सरकार को वित्त मंत्रालय से स्वीकृति लेनी होगी लेकिन यदि ऐसा होता है तो यह योजना गेम चेंजर होगी.

प्रधानमंत्री हाई लेवल एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी से चर्चा

जबलपुर। प्रधानमंत्री हाई लेवल एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी ने दावा किया है कि चुनाव के पहले कुछ ऐसी घोषणाएं होंगी जिससे खेती को लाभकारी बनाने का वादा पूरा होगा. प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि फसलों की लागत और लाभकारी मूल्य को लेकर मिनिमम सपोर्ट प्राइस को लेकर कमेटी की रिपोर्ट लगभग तैयार है. मिनिमम सपोर्ट प्राइस के साथ ही कुछ ऐसे दूसरे तरीके भी हैं जिनसे कृषि को लाभकारी धंधा बनाया जाएगा.

MSP तय करने का तरीका

केंद्र सरकार का एक आयोग है जिसे कृषि लागत मूल्य आयोग सीएसीपी के नाम से जाना जाता है. इस आयोग में कृषि के कई विशेषज्ञ और कुछ आईएएस अधिकारी शामिल होते हैं और यही संस्था मिनिमम सपोर्ट प्राइस जिसे हम एमएसपी के नाम से जानते हैं वह तय करती है. कृषि लागत और मूल्य आयोग अपने आकलन में कृषि से जुड़ी लागत को कुछ इस तरह शामिल करता है, जिसमें बीज की लागत खाद की लागत, कृषि में काम करने वाले मजदूर की लागत के अलावा कुछ छोटे खर्चों को जोड़कर मिनिमम सपोर्ट प्राइस तय की जाती है.

कांग्रेस सरकारों के बने हैं नियम

एमएसपी कमेटी के सदस्य प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि यह संस्था 1985 से काम कर रही है और लंबे समय तक इसके नियम कांग्रेस सरकारों के दौरान बनाए गए. इस संस्था के कृषि उत्पादन और कृषि लागत के मूल्यांकन के तरीके में कई गड़बड़ियां हैं. पहली गड़बड़ी में इसमें किसान के परिवार की मेहनत को लगभग शून्य माना गया है और उसे खेतिहर मजदूर के रूप में मात्र 40 दिनों के वेतन को ही जोड़कर मिनिमम सपोर्ट प्राइस में जोड़ा जाता है जो पूरी तरह से गलत है.

इसमें दूसरी गड़बड़ी किसान की जमीन की लागत को शून्य माना गया है वर्तमान में मिनिमम सपोर्ट प्राइस की लागत में कृषि जमीन का ना तो किराया जोड़ा गया है और ना ही कृषि जमीन की कीमत के ब्याज को इसमें शामिल किया गया है. प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि उन्होंने इन दोनों ही बातों पर आपत्ति जाहिर की है और इन्हें मिनिमम सपोर्ट प्राइस में जोड़ने की मांग रखी है.

कांग्रेस ने कभी लागू नहीं की एमएसपी

प्रमोद कुमार चौधरी ने कहा कि कांग्रेस ही मिनिमम सपोर्ट प्राइस देने की बात कर रही है, यदि यह संभव होता तो कांग्रेस अपने कार्यकाल में इसे दे चुकी होती. उनके पास किसानों को मिनिमम सपोर्ट प्राइस देने के खूब मौके थे लेकिन कांग्रेस भी यह जानती है कि यह समस्या का समाधान नहीं है, इसलिए कांग्रेस सरकार ने इसे लागू नहीं किया.

'रिपोर्ट की जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते'

प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि वे पीएम हाई लेवल कमेटी के सदस्य हैं. इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता क्योंकि यह रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री को सौंपी जाएगी और प्रधानमंत्री और सरकार ही यह तय करेगी कि फसलों की मिनिमम सपोर्ट प्राइस कितनी होनी चाहिए.

MSP समस्या का हल नहीं

मिनिमम सपोर्ट प्राइस किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं है. प्रमोद कुमार चौधरी का तर्क है कि भारत का 80 प्रतिशत किसान बहुत छोटी जोत वाला है. जिसके पास एक से दो एकड़ जमीन है और इतनी छोटी जमीन में वह जो उत्पादन पैदा करता है उसका इस्तेमाल वह अपने खुद के भोजन के लिए करता है. ऐसी स्थिति में यदि मिनिमम सपोर्ट प्राइस बड़ा भी दिया जाए तो उस किसान को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि वह अपना उत्पादन सरकार को बेचने नहीं आता.

किसान के खाते में सीधे पहुंचे खाद सब्सिडी

प्रमोद कुमार चौधरी ने इस समस्या का एक समाधान बताया है जिसमें किसानों की लागत घट सकती है और खेती फायदे का सौदा हो सकती है. प्रमोद कुमार चौधरी का तर्क है कि रासायनिक खाद के लिए सरकार हर साल लगभग ढाई लाख करोड़ की सब्सिडी देती है और यह सब्सिडी रासायनिक खाद बनाने वाली कंपनियों को दी जा रही है. यदि इस सब्सिडी को सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाए तो किसानों की लागत बहुत हद तक घट जाएगी. यदि किसान कम रासायनिक खाद में या जैविक खाद के जरिए उत्पादन कर लेगा तो किसान को बड़ी बचत होगी.

किसान आंदोलन केवल राजनीति से प्रेरित

किसान आंदोलन को लेकर प्रमोद कुमार चौधरी का कहना है कि यह आंदोलन पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है. इसमें किसानों के मुद्दों के समाधान को लेकर कोई बात नहीं कही गई है. यहां किसान जेसीबी लेकर सरकार से लड़ने के लिए आ रहा है ऐसे में यदि कोई अनहोनी घट जाती है तो इसको पूरे देश में ऐसे प्रचारित किया जाएगा की मोदी सरकार किसान विरोधी है.

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गेम चेंजर हो सकती है योजना

इस कमेटी की रिपोर्ट सरकार आचार संहिता लगने के पहले जारी कर सकती है और कमेटी के सुझावों के आधार पर प्रति एकड़ लागत मूल्य सीधे किसान के खाते में पहुंचने की बात भी कही जा सकती है. ऐसा प्रयोग इसके पहले तेलंगाना में किया जा चुका है हालांकि इसके लिए सरकार को वित्त मंत्रालय से स्वीकृति लेनी होगी लेकिन यदि ऐसा होता है तो यह योजना गेम चेंजर होगी.

Last Updated : Mar 5, 2024, 7:12 PM IST
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