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महाशिवरात्रि पर काशी में इटली के जोड़े ने हिंदू रीति से रचाई शादी, घरवाले नहीं आए तो मुंहबोले पिता व भाई ने किया कन्यादान; दुल्हन को किया विदा

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 9, 2024, 12:14 PM IST

बनारस में शुक्रवार को इटली के एक जोड़े ने हिंदू रीति रिवाज (Foreign couple got married) से शादी की. इटली की रहने वाली दुल्हन ग्राजिया और कार्डियोलॉजी के स्पेशलिस्ट डॉ पाउलो की करीब दस साल से दोस्ती थी.

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इटली में दोस्ती बनारस में लिए सात फेरे

वाराणसी : धर्म और आध्यात्म के शहर बनारस में अक्सर विदेशी जोड़े हिंदू रीति रिवाज से सात जन्मों के बंधन में बंधने के लिए आते हैं और ऐसा ही मौका शुक्रवार को महाशिवरात्रि के मौके पर काशी में देखने को मिला. यहां पर बीते 10 वर्षों की दोस्ती को जन्म-जन्म के साथ में बदलने के लिए इटली की रहने वाली दुल्हन ग्राजिया और कार्डियोलॉजी के स्पेशलिस्ट डॉ पाउलो शादी की बंधन में बंध गए.

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विदेशी जोड़े की शादी करवाई : दरअसल, वाराणसी के गोदौलिया क्षेत्र में रहने वाले धन्नी गुरु ने अपने ही घर पर इस विदेशी जोड़े की शादी करवाई है. महाशिवरात्रि के मौके पर इटली के इस जोड़े ने वैदिक रीति रिवाज का पालन करते हुए शादी की सभी रस्मों को निभाया. सबसे बड़ी बात यह है की धूम धड़ाके से अपनी शादी करने वाले इस जोड़े ने विदेश की संस्कृति को छोड़कर काशी की सभ्यता और हिंदू सनातन धर्म के अनुसार अपने वैवाहिक कार्यक्रम को पूर्ण करने की प्लानिंग की. सफारी सूट पहनकर दूल्हा पहुंचा तो दुल्हन भी लाल जोड़े में दिखाई दी. हिंदू परंपरा के अनुसार, सिंदूरदान, कन्यादान के साथ साथ अन्य रस्में भी निभाई गईं. विदेश से दुल्हन का कोई रिश्तेदार नहीं आ पाया तो मुंह बोले पिता और मुंह बोले भाई ने रस्मों को पूरा किया.

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विदेशी जोड़े को दिया आशीर्वाद : पुरोहित धन्नी गुरु ने बताया कि इस दुल्हन और दूल्हे को अपना गोत्र नहीं पता था तो पुरातन संस्कृति और सभ्यता के अनुसार ऐसी स्थिति में कश्यप गोत्र के जरिए सारे धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण कराए जाते हैं. शादी के दौरान पंडित द्वारा पढ़े जा रहे मंत्र को दुल्हन के ट्रांसलेटर दोस्त ने ट्रांसलेट करके उसे उसके मतलब को भी समझाया. दरअसल, वाराणसी में यहां की संस्कृति और सभ्यता से इटली में काम करने वाले डॉ पाउलो और उनकी 10 साल पुरानी दोस्त ग्राजिया काफी प्रभावित थे. इन दोनों ने अपने 10 साल पुरानी दोस्ती को काशी में ही वैवाहिक रूप में आगे बढ़ाने की प्लानिंग की थी और इसके लिए ही वह काशी आए थे. इस दौरान दुल्हन और दूल्हे का परिवार नहीं आ पाया तो यहां के लोगों ने ही उनके परिवार के रूप में सारी रस्म को अदा किया. विश्वनाथ मंदिर में रोज भोग और आरती लेकर जाने वाले नारकोट्यम क्षेत्र के लोगों ने भी पहुंचकर इस विदेशी जोड़े को आशीर्वाद दिया. लगभग 2 घंटे के रस्मों रिवाज के साथ ही सात वचनों को निभाने का वादा करके इस जोड़े ने शादी संपन्न की.

इटली में क्रिश्चियन रीति रिवाज से की थी शादी : शादी संपन्न होने के बाद दूल्हा डॉ. पाउलो और ग्राजिया ने बताया कि यह दोनों लगभग 10 साल से दोस्त हैं. 3 मार्च को उन्होंने इटली में क्रिश्चियन रीति रिवाज से चर्च में शादी की थी, लेकिन इच्छा थी कि सनातनी बनाकर हिंदू रीति रिवाज से शादी करें. इसलिए दोनों वाराणसी पहुंचे. स्थानीय निवासी पदमा देवी से संपर्क किया और उन्होंने ही बेटी के रूप में ग्राजिया को अपना कर उसका कन्यादान किया, जबकि दूल्हे के पिता के रूप में विजय जो उसके लोकल दोस्त हैं वह दिखाई दिए. उन्होंने सारी रस्म दूल्हे की तरफ से अदा की. जबकि, ग्राजिया के एक मित्र अक्षत ने भाई बनकर लावा परछन का काम किया. द्वारा चार, वरमाला, फेरे, सिंदूरदान और विदाई की पूरी रस्म अदा की गई. ग्राजिया का बनारस से पुराना नाता है. उन्होंने वाराणसी में ही गुरु मंत्र भी लिया हुआ है. इसलिए वह यहां की परंपरा से काफी प्रभावित रहती हैं.

यह भी पढ़ें : Rajasthan : जोधपुर में स्पैनिश कपल ने रचाया विवाह, दूल्हे फिलिप ने दुल्हन विक्टोरिया को पहनाया मंगलसूत्र, भरी मांग

यह भी पढ़ें : अनोखी शादी : विदेशी जोड़े ने हिंदू रीति-रिवाज से गुजरात में की शादी

इटली में दोस्ती बनारस में लिए सात फेरे

वाराणसी : धर्म और आध्यात्म के शहर बनारस में अक्सर विदेशी जोड़े हिंदू रीति रिवाज से सात जन्मों के बंधन में बंधने के लिए आते हैं और ऐसा ही मौका शुक्रवार को महाशिवरात्रि के मौके पर काशी में देखने को मिला. यहां पर बीते 10 वर्षों की दोस्ती को जन्म-जन्म के साथ में बदलने के लिए इटली की रहने वाली दुल्हन ग्राजिया और कार्डियोलॉजी के स्पेशलिस्ट डॉ पाउलो शादी की बंधन में बंध गए.

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विदेशी जोड़े की शादी करवाई : दरअसल, वाराणसी के गोदौलिया क्षेत्र में रहने वाले धन्नी गुरु ने अपने ही घर पर इस विदेशी जोड़े की शादी करवाई है. महाशिवरात्रि के मौके पर इटली के इस जोड़े ने वैदिक रीति रिवाज का पालन करते हुए शादी की सभी रस्मों को निभाया. सबसे बड़ी बात यह है की धूम धड़ाके से अपनी शादी करने वाले इस जोड़े ने विदेश की संस्कृति को छोड़कर काशी की सभ्यता और हिंदू सनातन धर्म के अनुसार अपने वैवाहिक कार्यक्रम को पूर्ण करने की प्लानिंग की. सफारी सूट पहनकर दूल्हा पहुंचा तो दुल्हन भी लाल जोड़े में दिखाई दी. हिंदू परंपरा के अनुसार, सिंदूरदान, कन्यादान के साथ साथ अन्य रस्में भी निभाई गईं. विदेश से दुल्हन का कोई रिश्तेदार नहीं आ पाया तो मुंह बोले पिता और मुंह बोले भाई ने रस्मों को पूरा किया.

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विदेशी जोड़े को दिया आशीर्वाद : पुरोहित धन्नी गुरु ने बताया कि इस दुल्हन और दूल्हे को अपना गोत्र नहीं पता था तो पुरातन संस्कृति और सभ्यता के अनुसार ऐसी स्थिति में कश्यप गोत्र के जरिए सारे धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण कराए जाते हैं. शादी के दौरान पंडित द्वारा पढ़े जा रहे मंत्र को दुल्हन के ट्रांसलेटर दोस्त ने ट्रांसलेट करके उसे उसके मतलब को भी समझाया. दरअसल, वाराणसी में यहां की संस्कृति और सभ्यता से इटली में काम करने वाले डॉ पाउलो और उनकी 10 साल पुरानी दोस्त ग्राजिया काफी प्रभावित थे. इन दोनों ने अपने 10 साल पुरानी दोस्ती को काशी में ही वैवाहिक रूप में आगे बढ़ाने की प्लानिंग की थी और इसके लिए ही वह काशी आए थे. इस दौरान दुल्हन और दूल्हे का परिवार नहीं आ पाया तो यहां के लोगों ने ही उनके परिवार के रूप में सारी रस्म को अदा किया. विश्वनाथ मंदिर में रोज भोग और आरती लेकर जाने वाले नारकोट्यम क्षेत्र के लोगों ने भी पहुंचकर इस विदेशी जोड़े को आशीर्वाद दिया. लगभग 2 घंटे के रस्मों रिवाज के साथ ही सात वचनों को निभाने का वादा करके इस जोड़े ने शादी संपन्न की.

इटली में क्रिश्चियन रीति रिवाज से की थी शादी : शादी संपन्न होने के बाद दूल्हा डॉ. पाउलो और ग्राजिया ने बताया कि यह दोनों लगभग 10 साल से दोस्त हैं. 3 मार्च को उन्होंने इटली में क्रिश्चियन रीति रिवाज से चर्च में शादी की थी, लेकिन इच्छा थी कि सनातनी बनाकर हिंदू रीति रिवाज से शादी करें. इसलिए दोनों वाराणसी पहुंचे. स्थानीय निवासी पदमा देवी से संपर्क किया और उन्होंने ही बेटी के रूप में ग्राजिया को अपना कर उसका कन्यादान किया, जबकि दूल्हे के पिता के रूप में विजय जो उसके लोकल दोस्त हैं वह दिखाई दिए. उन्होंने सारी रस्म दूल्हे की तरफ से अदा की. जबकि, ग्राजिया के एक मित्र अक्षत ने भाई बनकर लावा परछन का काम किया. द्वारा चार, वरमाला, फेरे, सिंदूरदान और विदाई की पूरी रस्म अदा की गई. ग्राजिया का बनारस से पुराना नाता है. उन्होंने वाराणसी में ही गुरु मंत्र भी लिया हुआ है. इसलिए वह यहां की परंपरा से काफी प्रभावित रहती हैं.

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