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पश्चिम एशिया में संघर्ष का भारत पर क्या असर होगा ? जानें एक्सपर्ट की राय - Israel Hezbollah Conflict

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

Israel and Hezbollah Conflict: पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ गया है. इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष में ईरान भी शामिल हो गया है. इसका भारत और उसके लोगों पर क्या असर होगा? इस पर भी चर्चा शुरू हो गई है.

Israel widens attack in Lebanon, How will it impact India
पश्चिम एशिया में संघर्ष का भारत पर क्या असर होगा (AP)

नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने और इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष के नए दौर के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब महत्वपूर्ण मोड़ पर है क्योंकि भू-राजनीतिक चुनौतियां बड़ी हैं.

हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद भी इजराइल ने लेबनान में चरमपंथी समूह के ठिकानों पर बमबारी जारी रखी है. इजराइल ने साफ कहा है कि वह हमले बंद नहीं करेगा और इजराइल के हितों पर हमला करने वाले किसी भी देश को नष्ट कर देगा.

इजराइल और फिलिस्तीनी आतंकी समूह हमास के बीच शुरू हुआ यह संघर्ष लेबनान तक पहुंच गया है और इसमें ईरान भी शामिल हो गया है. इसका भारत और उसके लोगों पर क्या असर होगा? इस पर भी चर्चा शुरू हो गई है.

पूर्व फेलो और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए) में पश्चिम एशिया एवं यूरेशिया केंद्र की हेड मीना सिंह रॉय ने कहा, "मेरा मानना है कि मौजूदा चिंता यह है कि ईरान संभावित रूप से क्षेत्र में संघर्षों में शामिल हो सकता है. मुख्य पक्षों और क्षेत्रीय देशों दोनों की ओर से संघर्ष के लिए अनिच्छा दिखाई देती है, लेकिन ईरान की स्थिति पर विचार करते समय सावधानी बरतना जरूरी है. इजराइल के पास बड़ी सैन्य शक्ति है और उसे अमेरिका से समर्थन प्राप्त है."

रॉय ने कहा, "यह असंभव है कि अमेरिका के अलावा कोई भी इजराइल पर इतना दबाव डाल सके कि वह समाधान और तनाव कम कर सके. प्रधानमंत्री नेतन्याहू इसे हिजबुल्लाह को कमजोर करने के अवसर के रूप में देख सकते हैं, जो इजराइल की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है. इसलिए भारत की मुख्य चिंता संघर्ष का बढ़ना है."

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. सीमा बैद्य का कहना है, "जहां तक भारत के हितों का सवाल है, पश्चिम एशिया में स्थिरता ऊर्जा सुरक्षा और इस क्षेत्र में काम करने वाले भारतीय नागरिकों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर खाड़ी देशों में. इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष का भारत की अर्थव्यवस्था या खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के देशों में इसके नागरिकों पर सीधा प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है. हालांकि, लेबनान, इराक, ईरान और यमन की स्थिति के अलग-अलग निहितार्थ हो सकते हैं."

उन्होंने कहा, "मुझे पश्चिम एशिया में युद्ध की आशंका नहीं है. इजराइल के साथ भारत के सकारात्मक संबंधों और ईरान के साथ ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद, इजराइल की आक्रामक कार्रवाई और कूटनीति की कमी चिंताजनक है. दूसरी ओर, कई उकसावे के बावजूद ईरान ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है, जिससे स्थिति और बिगड़ गई है."

बैद्य ने कहा, "ईरान का हिजबुल्लाह और अन्य समूहों के साथ मजबूत वैचारिक और व्यावहारिक संबंध है. हालांकि इसका भारत पर सीधा असर नहीं पड़ता है, लेकिन यह वैश्विक चिंता का विषय है. भारत तटस्थ रुख रखता है, न तो मध्यस्थता करता है और न ही इजराइल या ईरान के खिलाफ कोई पक्ष लेता है. भारत हमेशा शांति की वकालत करता है, जिससे संघर्ष न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी बड़ी चिंता का विषय बन जाता है."

जब मीना सिंह रॉय से पूछा गया कि क्या संघर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था और विदेश में रहने वाले लोगों को प्रभावित करेगा, तो उन्होंने कहा, "अगर संघर्ष बढ़ता है, तो यह खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों के लिए बड़ा जोखिम पैदा कर सकता है. स्थिति अप्रत्याशित है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध का कारण नहीं बनेगा. कोई भी ऐसा परिणाम नहीं चाहता है."

उन्होंने बताया कि मौजूदा संघर्ष भारत के लिए आर्थिक चुनौतियों का कारण बनेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में भारत के बहुत से हित हैं. मीना सिंह रॉय ने समझाया, "कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पहले से ही आर्थिक मुद्दों और प्रतिबंधों से प्रभावित हैं. इसके अलावा, यूक्रेन-रूस युद्ध और चीन, अमेरिका और रूस के बीच तनाव के कारण भारत मध्य यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) सहित विभिन्न परियोजनाओं और मुद्दों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है. गाजा में संघर्ष ने इस आर्थिक गलियारे को धीमा कर दिया है.

हिजबुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह की हाल ही में हुई हत्या पर मीना सिंह ने कहा, "मौजूदा रणनीति इजराइल और प्रधानमंत्री नेतन्याहू के लिए सबसे अच्छी रणनीति प्रतीत होती है. घोषित लक्ष्यों के बावजूद गाजा की स्थिति के कारण इजराइली बंधकों की रिहाई या क्षेत्र पर इजराइल का पूर्ण नियंत्रण नहीं हो पाया है. यह सर्वविदित है कि ईरान हिजबुल्लाह को सीधे तौर पर वित्तीय सहायता प्रदान करता है और इजराइल को अमेरिका का पूरा समर्थन प्राप्त है. अमेरिका नवंबर तक कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं कर सकता है, जिससे प्रधानमंत्री नेतन्याहू को कार्रवाई करने का अवसर मिल जाएगा. वास्तविक परिणाम चाहे जो भी हो, प्राथमिक उद्देश्य इजराइली नागरिकों की वापसी के लिए उत्तरी क्षेत्र को सुरक्षित करना प्रतीत होता है."

यह भी पढ़ें- ईरान ने इजराइल पर एक साथ कई मिसाइलें दागीं, पूरे देश में बज रहे सायरन, लोगों को बंकर में भेजा गया

नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने और इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष के नए दौर के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब महत्वपूर्ण मोड़ पर है क्योंकि भू-राजनीतिक चुनौतियां बड़ी हैं.

हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद भी इजराइल ने लेबनान में चरमपंथी समूह के ठिकानों पर बमबारी जारी रखी है. इजराइल ने साफ कहा है कि वह हमले बंद नहीं करेगा और इजराइल के हितों पर हमला करने वाले किसी भी देश को नष्ट कर देगा.

इजराइल और फिलिस्तीनी आतंकी समूह हमास के बीच शुरू हुआ यह संघर्ष लेबनान तक पहुंच गया है और इसमें ईरान भी शामिल हो गया है. इसका भारत और उसके लोगों पर क्या असर होगा? इस पर भी चर्चा शुरू हो गई है.

पूर्व फेलो और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए) में पश्चिम एशिया एवं यूरेशिया केंद्र की हेड मीना सिंह रॉय ने कहा, "मेरा मानना है कि मौजूदा चिंता यह है कि ईरान संभावित रूप से क्षेत्र में संघर्षों में शामिल हो सकता है. मुख्य पक्षों और क्षेत्रीय देशों दोनों की ओर से संघर्ष के लिए अनिच्छा दिखाई देती है, लेकिन ईरान की स्थिति पर विचार करते समय सावधानी बरतना जरूरी है. इजराइल के पास बड़ी सैन्य शक्ति है और उसे अमेरिका से समर्थन प्राप्त है."

रॉय ने कहा, "यह असंभव है कि अमेरिका के अलावा कोई भी इजराइल पर इतना दबाव डाल सके कि वह समाधान और तनाव कम कर सके. प्रधानमंत्री नेतन्याहू इसे हिजबुल्लाह को कमजोर करने के अवसर के रूप में देख सकते हैं, जो इजराइल की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है. इसलिए भारत की मुख्य चिंता संघर्ष का बढ़ना है."

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. सीमा बैद्य का कहना है, "जहां तक भारत के हितों का सवाल है, पश्चिम एशिया में स्थिरता ऊर्जा सुरक्षा और इस क्षेत्र में काम करने वाले भारतीय नागरिकों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर खाड़ी देशों में. इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष का भारत की अर्थव्यवस्था या खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के देशों में इसके नागरिकों पर सीधा प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है. हालांकि, लेबनान, इराक, ईरान और यमन की स्थिति के अलग-अलग निहितार्थ हो सकते हैं."

उन्होंने कहा, "मुझे पश्चिम एशिया में युद्ध की आशंका नहीं है. इजराइल के साथ भारत के सकारात्मक संबंधों और ईरान के साथ ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद, इजराइल की आक्रामक कार्रवाई और कूटनीति की कमी चिंताजनक है. दूसरी ओर, कई उकसावे के बावजूद ईरान ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है, जिससे स्थिति और बिगड़ गई है."

बैद्य ने कहा, "ईरान का हिजबुल्लाह और अन्य समूहों के साथ मजबूत वैचारिक और व्यावहारिक संबंध है. हालांकि इसका भारत पर सीधा असर नहीं पड़ता है, लेकिन यह वैश्विक चिंता का विषय है. भारत तटस्थ रुख रखता है, न तो मध्यस्थता करता है और न ही इजराइल या ईरान के खिलाफ कोई पक्ष लेता है. भारत हमेशा शांति की वकालत करता है, जिससे संघर्ष न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी बड़ी चिंता का विषय बन जाता है."

जब मीना सिंह रॉय से पूछा गया कि क्या संघर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था और विदेश में रहने वाले लोगों को प्रभावित करेगा, तो उन्होंने कहा, "अगर संघर्ष बढ़ता है, तो यह खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों के लिए बड़ा जोखिम पैदा कर सकता है. स्थिति अप्रत्याशित है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध का कारण नहीं बनेगा. कोई भी ऐसा परिणाम नहीं चाहता है."

उन्होंने बताया कि मौजूदा संघर्ष भारत के लिए आर्थिक चुनौतियों का कारण बनेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में भारत के बहुत से हित हैं. मीना सिंह रॉय ने समझाया, "कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पहले से ही आर्थिक मुद्दों और प्रतिबंधों से प्रभावित हैं. इसके अलावा, यूक्रेन-रूस युद्ध और चीन, अमेरिका और रूस के बीच तनाव के कारण भारत मध्य यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) सहित विभिन्न परियोजनाओं और मुद्दों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है. गाजा में संघर्ष ने इस आर्थिक गलियारे को धीमा कर दिया है.

हिजबुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह की हाल ही में हुई हत्या पर मीना सिंह ने कहा, "मौजूदा रणनीति इजराइल और प्रधानमंत्री नेतन्याहू के लिए सबसे अच्छी रणनीति प्रतीत होती है. घोषित लक्ष्यों के बावजूद गाजा की स्थिति के कारण इजराइली बंधकों की रिहाई या क्षेत्र पर इजराइल का पूर्ण नियंत्रण नहीं हो पाया है. यह सर्वविदित है कि ईरान हिजबुल्लाह को सीधे तौर पर वित्तीय सहायता प्रदान करता है और इजराइल को अमेरिका का पूरा समर्थन प्राप्त है. अमेरिका नवंबर तक कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं कर सकता है, जिससे प्रधानमंत्री नेतन्याहू को कार्रवाई करने का अवसर मिल जाएगा. वास्तविक परिणाम चाहे जो भी हो, प्राथमिक उद्देश्य इजराइली नागरिकों की वापसी के लिए उत्तरी क्षेत्र को सुरक्षित करना प्रतीत होता है."

यह भी पढ़ें- ईरान ने इजराइल पर एक साथ कई मिसाइलें दागीं, पूरे देश में बज रहे सायरन, लोगों को बंकर में भेजा गया

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