हैदराबाद: सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के बावजूद, निर्णय लेने वाले पदों पर उनका प्रतिनिधित्व काफी कम है. वास्तव में, अपेक्षाकृत कम संख्या में महिलाएं न्यायपालिका में हैं या उसका हिस्सा है. विशेषकर न्यायपालिका में उच्च पदों पर.
न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि अदालतें अपने नागरिकों का प्रतिनिधित्व करें, उनकी चिंताओं का समाधान करें और ठोस निर्णय दें. अपनी मात्र उपस्थिति से, महिला न्यायाधीश अदालतों की वैधता को बढ़ाती हैं, एक शक्तिशाली संकेत भेजती हैं कि वे उन लोगों के लिए खुले और सुलभ हैं जो न्याय का सहारा लेना चाहते हैं.
न्यायपालिका में समानता ऐतिहासिक रूप से असमान रही है, इसे ठीक करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से 10 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला न्यायाधीश दिवस के रूप में घोषित करने से पता चलता है. कि कतर राज्य की ओर से तैयार किया गया महासभा प्रस्ताव, एक सकारात्मक बदलाव का ठोस प्रमाण है.
लैंगिक असमानताओं का निवारण यूएनओडीसी की लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण की रणनीति के मूल में भी है. यह दोहा घोषणा के कार्यान्वयन के लिए वैश्विक कार्यक्रम की ओर से साझा किया गया एक लक्ष्य है, क्योंकि यह दुनिया भर में कानून की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम करता है. शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना और प्रत्येक व्यावसायिक क्षेत्र में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी का समर्थन करना.
वैश्विक न्यायिक नेटवर्क
ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) का वैश्विक न्यायिक अखंडता नेटवर्क महिला न्यायाधीशों को एक-दूसरे के जीवन के अनुभवों से सीखने और एकजुटता का स्रोत प्रदान करने के लिए एक साथ लाता है. नेटवर्क के कार्य के बारे में और जानें.
न्यायपालिका में लैंगिक असमानताओं का निवारण
न्यायपालिका में समानता ऐतिहासिक रूप से असमान रही है, इसे ठीक करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से 10 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला न्यायाधीश दिवस के रूप में घोषित करने से पता चलता है. कतर राज्य की ओर से तैयार किया गया महासभा प्रस्ताव, एक सकारात्मक बदलाव का ठोस प्रमाण है.
लैंगिक असमानताओं का निवारण यूएनओडीसी की लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण की रणनीति के मूल में भी है. यह दोहा घोषणा के कार्यान्वयन के लिए वैश्विक कार्यक्रम द्वारा साझा किया गया एक लक्ष्य है. यह दुनिया भर में कानून की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम करता है. शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना और प्रत्येक व्यावसायिक क्षेत्र में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी का समर्थन करना.
न्यायपालिका में महिलाएं , वैश्विक डेटा
- संयुक्त राष्ट्र के डेटा के अनुसार 2017 में 40 फीसदी जज महिलाएं थीं, जो 2008 की तुलना में 35 प्रतिशत अधिक है.
- 1946 में, एलेनोर रूजवेल्ट ने 'दुनिया की महिलाओं के लिए एक खुला पत्र' लिखा, जिसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी बढ़ती भागीदारी का आग्रह किया गया.
- अधिकांश यूरोपीय देशों में, पेशेवर न्यायाधीशों या मजिस्ट्रेटों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक है; हालांकि, राष्ट्रीय सर्वोच्च न्यायालयों में 41 प्रतिशत न्यायाधीशों और केवल 25 प्रतिशत न्यायालय प्रमुखों का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती हैं.
भारत में संविधान बनने के साथ ही उसकी रक्षा की जिम्मेदारी सुप्रीम कोई को सौंपी गई थी. तब से ही सुप्रीम कोर्ट संविधान के कस्टोडियन की जिम्मेदारी निभा रहा है. लेकिन क्या यहां आधी आबादी को पूरी भागीदारी मिल रही है. इसका जवाब आंकड़ों में छुपा है. साल 1989 में पहली बार एक महिला न्यायमूर्ति के रूप में नियुक्त हुईं. 1989 के बाद से, केवल 10 महिलाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं. वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट के 31 न्यायाधीशों में से केवल तीन महिला न्यायाधीश हैं - जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिसबीवी नागरत्ना.
हालांकि, 2021 में शीर्ष अदालत में जस्टिस कोहली, नागरत्न और त्रिवेदी की नियुक्ति ने इतिहास रच दिया. यह पहली बार था कि एक ही बार में इतनी सारी महिलाओं को SC में नियुक्त किया गया था. इसके अतिरिक्त, यह महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार हमारे पास सुप्रीम कोर्ट में एक साथ चार महिला न्यायाधीश थीं, जो अब तक की सबसे अधिक संख्या थी. इन तीन महिलाओं के अलावा भारत की शीर्ष अदालत के इतिहास में केवल आठ अन्य महिला न्यायाधीश रही हैं. उनमें जस्टिस सुजाता मनोहर, रूमा पाल, ज्ञान सुधा मिश्रा, रंजना देसाई, आर. भानुमति, इंदु मल्होत्रा, और इंदिरा बनर्जी और फातिमा बीवी शामिल हैं. इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में कुल 268 न्यायाधीशों में से केवल 11 महिलाएं रही हैं. दूसरे शब्दों में, सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों में से केवल 4.1% महिलाएं हैं, जबकि शेष 96% पुरुष हैं.
क्या उच्च न्यायालयों में स्थिति बेहतर है?
वर्तमान में, भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं जिनमें न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या 1,114 है. हालांकि, न्याय विभाग की वेबसाइट के अनुसार, केवल 782 न्यायाधीश ही कार्यरत हैं जबकि शेष 332 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं. इनमें से केवल 107 न्यायाधीश, या सभी एचसी न्यायाधीशों में से 13% महिलाएं हैं. वर्तमान में, गुजरात उच्च न्यायालय को छोड़कर, देश के 25 उच्च न्यायालयों में से किसी में भी महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं है, जहां कॉलेजियम ने इस साल जुलाई में न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल को नियुक्त किया था क्योंकि देश में कोई भी महिला उच्च न्यायालय सीजे नहीं थी.
आइये एक नजर डालते हैं सुप्रीम कोर्ट में बतौर न्यायमूर्ति नियुक्त हो चुकी महिला न्यायधीशों के कार्यकाल पर...
वर्तमान में कार्यरत महिला न्यायधीश
माननीय न्यायमूर्ति हिमा कोहली, कार्यकाल: 31-08-2021 से 01-09-2024
2 सितंबर, 1959 को दिल्ली में जन्मी जस्टिस कोहली ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट थॉमस स्कूल, नई दिल्ली से की और सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास, ऑनर्स में स्नातक किया. उन्होंने प्रथम श्रेणी में इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद एल.एल.बी. में दाखिला लिया. लॉ फैकल्टी, कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम और वर्ष 1984 में इसे पूरा किया. 1999-2004 तक दिल्ली उच्च न्यायालय में नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के स्थायी वकील और कानूनी सलाहकार रहीं. इसके बाद उसी वर्ष बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में एक वकील के रूप में नामांकित हुई. दिसंबर, 2004 में दिल्ली उच्च न्यायालय में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील सिविल के रूप में नियुक्त किया गया था.
कोहली ने कई महत्वपूर्ण जनहित याचिकाओं में दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व किया. लोक शिकायत आयोग, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम और अन्य निजी संगठनों, बैंकों आदि के कानूनी सलाहकार रहीं. दिल्ली उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के सदस्य के तौर पर काम किया जो कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है. 29 मई 2006 को दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं. 29.08.2007 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. 11.8.2017 से पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय, कोलकाता की सामान्य परिषद के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया. दिल्ली उच्च न्यायालय भवन और रखरखाव समिति, मध्यस्थता और सुलह समिति और परिवार न्यायालय समिति के अध्यक्ष रहीं.
एक न्यायाधीश के रूप में अपने आधिकारिक कर्तव्यों को निभाने के अलावा, वह वैकल्पिक विवाद समाधान मंच के रूप में मध्यस्थता को बढ़ावा देने, पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका और पारिवारिक विवादों को सुलझाने में पारिवारिक न्यायालयों की भूमिका को उजागर करने में गहरी रुचि लेती हैं. उन्होंने इन विषयों पर कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों और सम्मेलनों में भाग लिया है. 07.01.2021 को तेलंगाना राज्य के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च [एनएएलएसएआर] यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया. 31.08.2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुई.
माननीय न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, कार्यकाल: 31-08-2021 से 29-10-2027
30 अक्टूबर 1962 को बेंगलुरु में जन्म हुआ. 1984 में जीसस एंड मैरी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में बी.ए. (ऑनर्स) और जुलाई 1987 में कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की. 1987 में केईएसवीवाई एंड कंपनी, वकालत में कानून में अभ्यास शुरू किया. जुलाई 1994 में स्वतंत्र अभ्यास शुरू किया. इस दौरान इन्होंने प्रशासनिक कानून जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अभ्यास किया; संवैधानिक कानून; वाणिज्यिक कानून; पारिवारिक कानून, आदि विषयों में कर्नाटक राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति का प्रतिनिधित्व किया. इन्हें कुछ मामलों में एमिकस क्यूरी के रूप में भी नियुक्त किया गया. 2008 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुईं. 18 फरवरी, 2008 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश और 17 फरवरी, 2010 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं. 31 अगस्त 2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना 29 अक्टूबर, 2027 को सेवानिवृत्त होने वाली हैं.
माननीय न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, कार्यकाल: 31-08-2021 से 09-06-2025
10 जून 1960 को पाटन, उत्तरी गुजरात में जन्म. पिता न्यायिक सेवा से जुड़े थे जिस कारण से उनके तबादले होते रहते थे इस वजह से उनकी स्कूली शिक्षा विभिन्न स्थानों पर हुई. एमएस यूनिवर्सिटी, वडोदरा से बीकॉम-एलएलबी की पढ़ाई की. लगभग दस वर्षों तक गुजरात उच्च न्यायालय में सिविल और संवैधानिक पक्ष पर वकील के रूप में अभ्यास किया. 10 जुलाई 1995 को सीधे अहमदाबाद में सिटी सिविल और सेशन कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया. यह एक सुखद संयोग था कि जब उनकी नियुक्ति हुई थी तब उनके पिता पहले से ही सिटी सिविल और सेशन कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे. लिम्का बुक ऑफ इंडियन रिकॉर्ड्स ने अपने 1996 संस्करण में यह प्रविष्टि दर्ज की है कि पिता-पुत्री एक ही न्यायालय में न्यायाधीश हैं. एचसी में रजिस्ट्रार - विजिलेंस, गुजरात सरकार में कानून सचिव, सीबीआई अदालत के न्यायाधीश, विशेष न्यायाधीश - सीरियल बम विस्फोट मामले आदि जैसे विभिन्न मामलों पर काम किया. 17 फरवरी 2011 को गुजरात HC के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुईं. राजस्थान HC में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने जून 2011 से जयपुर बेंच में काम किया. फिर उन्हें फरवरी 2016 में गुजरात के मूल HC में वापस भेज दिया गया. उन्हें 31 अगस्त, 2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. वह 9 जून, 2025 को सेवानिवृत्त होने वाली हैं.
पूर्व महिला न्यायधीश
माननीय न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी, कार्यकाल: 06-10-1989 से 29-04-1992
न्यायमूर्ति (रिटायर्ड) एम. फातिमा बीवी, 30 अप्रैल 1927 को पथानमथिट्टा (केरल) में जन्मीं. स्कूली शिक्षा कैथोलिकेट हाई स्कूल, पथानामथिट्टा से, बी.एससी. (यूनिवर्सिटी कॉलेज, त्रिवेन्द्रम), बी.एल. (लॉ कॉलेज, त्रिवेन्द्रम) से की. 14.11.1950 को वकील के रूप में नामांकित हुईं. मई 1958 में केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ के रूप में नियुक्त हुईं. 1968 में अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत की गईं. 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और फिर 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुईं. जनवरी, 1980 में आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण की न्यायिक सदस्य बनीं. 4 अगस्त 1983 को न्यायाधीश के रूप में उच्च न्यायालय में पदोन्नत हुईं. 14 मार्च 1984 को उच्च न्यायालय की स्थायी न्यायाधीश बनी. 29 अप्रैल 1989 को न्यायाधीश के रूप में सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत हुए. वह 29 अप्रैल 1992 को सेवानिवृत्त हुईं. न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पहली महिला न्यायमूर्ति बनी थीं.
माननीय न्यायमूर्ति सुजाता वी मनोहर, कार्यालय का कार्यकाल: 08-11-1994 से 27-08-1999
न्यायमूर्ति सुजाता वसंत मनोहर का जन्म 28 अगस्त, 1934 को हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा आनंदीलाल पोदार हाई स्कूल, बॉम्बे में शिक्षा प्राप्त की. आगे की पढ़ाई उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज, बॉम्बे, लेडी मार्गरेट हॉल, ऑक्सफोर्ड, यू.के. और लिंकन इन, लंदन से की. 14 फरवरी, 1958 को बंबई में वकील के रूप में नामांकित हुईं. बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की. 1970-71 के दौरान सिटी सिविल कोर्ट, बॉम्बे में सहायक सरकारी वकील के रूप में नियुक्त हुईं. 23 जनवरी, 1978 को बंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त की गईं. 28 नवबंर 1978 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हुई. 15 जनवरी 1994 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं. 21 अप्रैल 1994 से केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित हुई. 8 नवबंर 1994 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त की गईं. वह 27 अगस्त 1999 को सेवानिवृत्त हुईं.
माननीय न्यायमूर्ति रूमा पाल, कार्यकाल: 28-01-2000 से 02-06-2006
न्यायमूर्ति रूमा पाल का जन्म 3 जून 1941 को हुआ. उन्होंने बी.ए. (ऑनर्स), एलएल.बी., बी.सी.एल.(ऑक्सन) की पढ़ाई की. 1968 में कलकत्ता उच्च न्यायालय में सिविल, राजस्व, श्रम और संवैधानिक मामलों में प्रैक्टिस शुरू की. 6 अगस्त 1990 को कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्वर्ण जयंती के दिन यानी 28 जनवरी, 2000 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त की गईं. वह 03 जून 2006 को सेवानिवृत्त हुईं.
माननीय न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा, कार्यकाल: 30-04-2010 से 27-04-2014
माननीय न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने 30 अप्रैल, 2010 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया है. वह 27 अप्रैल 2014 को सेवानिवृत्त हुईं.
माननीय न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई, कार्यकाल: 13-09-2011 से 29-10-2014
माननीय न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई का जन्म 30 अक्टूबर, 1949 को हुआ था. 1970 में एलफिंस्टन कॉलेज से कला स्नातक और 1973 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बॉम्बे से कानून में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की. 30 जुलाई, 1973 को कानूनी पेशे में शामिल हुईं. उन्होंने अपने पिता एस.जी. सामंत के साथ भी काम किया, जो एक प्रख्यात आपराधिक वकील थे. उन्हें 1979 में सरकारी वकील के रूप में नियुक्त किया गया. उन्हें 1986 में निवारक हिरासत मामलों के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्हें 1 नवंबर, 1995 को बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपीलीय पक्ष के सरकारी वकील के पद पर नियुक्त किया गया.15 अप्रैल, 1996 को बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच के लिए पदोन्नत हुईं. उन्हें 13 सितंबर 2011 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. वह 29 अक्टूबर 2014 को सेवानिवृत्त हुईं.
माननीय न्यायमूर्ति आर भानुमति, कार्यकाल: 13-08-2014 से 19-07-2020
माननीय न्यायमूर्ति आर भानुमति जन्म 20.07.1955 को हुआ था. वह 07 जनवरी 1981 को वकील के रूप में नामांकित हुई. उन्होंने तमिलनाडु राज्य के तिरुपत्तूर, कृष्णागिरि और हरूर में मोफुस्सिल न्यायालयों में अभ्यास किया. 1988 में सीधी भर्ती से जिला न्यायाधीश के रूप में तमिलनाडु उच्च न्यायिक सेवा में प्रवेश किया और राज्य के विभिन्न जिलों में जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में काम किया. 3 अप्रैल 2003 को मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया.16.11.2013 को झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. जिला न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे में सुधार, मंत्रालयिक कर्मचारियों की भर्ती और रिक्तियों को भरने, न्यायिक अधिकारियों और स्टाफ सदस्यों के मार्गदर्शन के लिए हस्तपुस्तिकाएं प्रकाशित कीं. 13.08.2014 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. वह 19-07-2020 को सेवानिवृत्त हुईं.
माननीय न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा, कार्यकाल: 27-04-2018 से 13-03-2021
माननीय न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा का जन्म14 मार्च 1956 को बेंगलुरु में हुआ. अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल से की. 1975 में लेडी श्रीराम कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की, और फिर 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की. 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज और विवेकानंद कॉलेज में राजनीति विज्ञान में व्याख्याता के रूप में नियुक्त हुईं. 1978-79 में भारतीय कानून संस्थान से कॉर्पोरेट कानून और सचिवीय अभ्यास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया. 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री पूरी की. 12 जनवरी 1983 को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में एक वकील के रूप में नामांकित हुईं. 1988 में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की और परीक्षा में शीर्ष स्थान पाने के लिए उन्हें मुकेशगोस्वामी मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा 30 साल बाद 2007 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से वरिष्ठ वकील के रूप में नामित होने वाली दूसरी महिला बनी. मध्यस्थता के कानून में विशेषज्ञता, और भारत और विदेशों दोनों में विभिन्न घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में वकील के रूप में उपस्थित हुए. विभिन्न मध्यस्थता संस्थानों की ओर से उन्हें एकमात्र मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया गया.
माननीय न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, कार्यकाल: 07-08-2018 से 23-09-2022
माननीय न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी का जन्म 24 सितंबर 1957 को हुआ. लोरेटो हाउस, कलकत्ता से इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा उत्तीर्ण की. कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज से इतिहास (ऑनर्स) में स्नातक किया. फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ लॉ से एलएलबी की. 5 जुलाई, 1985 को एक वकील के रूप में नामांकित हुईं. उच्चतम न्यायालय, अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में उपस्थिति के साथ, आपराधिक कानून को छोड़कर कानून की सभी शाखाओं में कलकत्ता उच्च न्यायालय के मूल और अपीलीय दोनों पक्षों में अभ्यास किया. 5-2-2002 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुईं. लगभग 4 वर्षों तक कलकत्ता उच्च न्यायालय सेवा समिति के अध्यक्ष रहीं. आठ अगस्त 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त की गईं. पांच अप्रैल, 2017 को मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. सात अगस्त, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. 24 सितंबर, 2022 को सेवानिवृत्त हुईं.