जोधपुर. बचपन में पोलियो की मार और परिवार में व्याप्त आर्थिक तंगी के बीच सफलता के मुकाम तक पहुंचना आसान न था, लेकिन हौसले की उड़ान और कुछ कर गुजरने की चाह में जोधपुर की दो बेटियों ने संकट की सभी वैतरणी को पार कर अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त किया. आज दुनिया के सामने इनकी कामयाबी की कहानी बेमिसाल नजीर है. खास कर उन लोगों के लिए जो हालात का रोना रोते नहीं थकते हैं. वहीं, इस मुकाम को हासिल करने के लिए इन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी. दिव्यांगता के दंश को दरकिनार कर स्विमिंग सीखी और राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में एक के बाद एक कई मेडल जीते. साथ ही देखते ही देखते दूसरों के लिए प्रेरणा बन गईं. वहीं, इनके नक्शे कदम पर चलते हुए बचपन में हादसे का शिकार हुई एक युवती भी स्विमिंग को हथियार बना आज पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो चुकी है.
स्विमिंग में बनाया मुकाम : महिला स्विमर पूरण वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में क्लर्क के पोस्ट पर कार्यरत हैं. उन्हें ये नौकरी राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित पैरा स्विमिंग प्रतियोगिता में मेडल जीतने के बाद मिली. यही वजह है कि वो आज भी प्रैक्टिस करती हैं और इसके लिए विभाग की ओर से उन्हें हर रोज चार घंटे दिया जाता है. महिला स्विमर पूरण बताती हैं कि जब वो 3 साल की थी, तभी पोलियो का शिकार हो गई थीं. इससे उनका एक हाथ पूरी तरह से खराब हो गया. पिता एक सामान्य मजदूर थे. किसी तरह से परिवार का पालन पोषण किया करते थे. सात संतान होने के कारण उनके लिए संभव नहीं था, वो सही तरीके से उनका इलाज करा पाते. साथ ही कुछ समय के बाद पिता को कैंसर ने जकड़ लिया. ऐसे में परिजनों ने पढ़ाई छोड़ खेतों में मजदूरी करने की सलाह दी. परिवार के पालन पोषण के लिए मजदूरी शुरू की. साथ ही स्वयंपाठी बन 12वीं उत्तीर्ण कीं.
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कोच ने किया प्रोत्साहित : इधर, 12वीं में टॉप करने पर गार्गी पुरस्कार मिलने की बात कही गई, लेकिन यह पुरस्कार केवल नियमित छात्रों को मिलता है. इसलिए वो इससे वंचित हो गईं. हालांकि, बाद में स्नातक प्रथम वर्ष में नियमित प्रवेश लिया. उसके बाद उन्हें इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसकी राशि का उपयोग घर में हुआ. स्नातक करने के बाद गौशाला मैदान गई तो वहां पता चला कि पैरा स्विमिंग होती है. कोच शेराराम से मिली तो उन्होंने प्रोत्साहित किया. वहीं, उनके प्रोत्साहन के बाद स्विमिंग की शुरुआत की. एक माह बाद ही स्टेट गेम्स हुए, जिसमें तीन गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतने में कामयाब हुईं. उसके बाद उदयपुर में नेशनल चैंपियनशिप हुई, जिसमें दो गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता. साल 2017 से आज तक एथलेटिक्स व स्विमिंग में स्टेट और नेशनल चैंपियनशिप में 25 से ज्यादा गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं. वहीं, 2021 में शादी हो गई. फिर भी वो गेम्स में अब तक सक्रिय हैं. वर्तमान में वो पैरा ओलंपिक के लिए तैयारी कर रही हैं.
नौकरी की दहलीज पर कमला : कमला भी पोलियो का शिकार हैं. एक पांव से चलने में असमर्थ हैं. वो बताती हैं कि जैसे-जैसे वो बड़ी होती गई सभी का उनको देखने नजरिया भी बदलता गया. वहीं, 10वी पास करने के बाद माणकलाव के दिव्यांग स्कूल में दाखिल हुईं, जहां उनकी मुलाकात स्विमिंग कोच से हुई. कोच ने उन्हें स्विमिग के बारे में बताया और फिर जोधपुर बुलाकर स्विमिंग की ट्रेनिंग दी. इस बीच उनकी शादी हो गई, लेकिन पति का सहयोग नहीं मिला. आखिरकार रिश्ता टूटने के कगार पर आ गया. कोर्ट में केस चल रहा है. इसके बावजूद उन्होंने स्विमिंग नहीं छोड़ी. 2022 में स्टेट लेवल पर दो गोल्ड और एक ब्रॉन्ज मेडल जीतीं. उसके बाद गुवाहाटी में हुई नेशनल प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहीं. नेशनल लेवल के सर्टिफिकेट के कारण आज उनका ग्रेड थर्ड टीचर के लिए चयन हो गया है. ज्वाइनिंग अभी बाकी है, लेकिन आज भी उनका स्विमिंग जारी है, क्योंकि इसमें अभी बहुत कुछ करने की गुंजाइश है.
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हादसे ने बनाया दिव्यांग : तीसरी कक्षा में पढ़ने के दौरान जिया की स्कूल बस हादसे में एक हाथ कट गया. उसके बाद परिजनों ने उन्हें संभाला और बताया कि अभी दुनिया खत्म नहीं हुई है. वहीं, जिया ने पढ़ाई के साथ ही पैरा स्पोर्ट्स की ओर कदम बढ़ाया और स्विमिंग सीखी. वहीं, कोच शेराराम ने जिया को तराशने का काम किया. साल 2016 में पैरा एथलीट स्टेट कंपटीशन में जिया ने दो सिल्वर और दो कांस्य पदक जीते और तभी से उनका स्विमिंग का सिलसिला जारी है. 2022 में नेशनल पैरा स्विमिंग में जिया ने तीन गोल्ड मेडल जीते और वर्तमान में वो 9वीं की छात्रा हैं.