रायपुर: मन में कुछ करने का जज्बा हो तो परेशानी चाहे जितनी बड़ी हो, उसे हार जाना पड़ता है. अपने हिम्मत हौसले से कुछ इसी जीत को रायपुर की डॉक्टर गार्गी पांडे ने अर्जित करने का काम किया है. एक आम परिवार में शादी हुई और एक आम जिंदगी ही चल रही थी, लेकिन जब गार्गी पांडे मां बनी, तो जिंदगी कुछ इस कदर बेपटरी हुई कि उसे पटरी पर लाने के लिए गार्गी पांडे डॉक्टर गार्गी पांडे बन गई. इनकी कहानी के मूल में उनका बेटा था और कहा जाता है कि एक मां जब अपने बेटे की जिंदगी संवारने के लिए उतरती है तो कुछ भी कर गुजरती है.
संघर्षों से भरी है गार्गी पांडे की कहानी: अपने जीवन के संघर्ष की बातें ईटीवी भारत से करते हुए डॉक्टर गार्गी पांडे ने बताया कि मेरी शादी एक ब्राह्मण परिवार में हुई और गृहणी के तौर पर मैं जीवन जीने लगी. लगभग 14 सालों तक ये सिलसिला चलता रहा. लेकिन जब मेरा बेटा पैदा हुआ, तो मानसिक रूप से कमजोर और हाइपर था. जिसे मेडिकल टर्म में रिस्क ऑफ रीडिंग डिक्लेक्सिया कहा जाता है.उसे संभालने के लिए बहुत सारी दिक्कतें होती थी. ढाई साल तक मेरा बेटा बोलता नहीं था और ऐसे में समाज और समाज से जुड़े लोग तरह-तरह की बातें करने लगे. डॉक्टर के पास गए तो पैसा इतना ज्यादा उन लोगों ने मांगा कि इलाज के लिए इतने पैसे का इंतजाम करना मुश्किल था. अपने बेटे का इलाज करने के लिए मैंने 14 साल बाद पढ़ाई शुरू की और आज मैं मानसिक रूप से कमजोर 500 बच्चों को पढ़ा रही हूं.
"जब मैंने शुरूआत की थी तो मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं जिस विषय की पढ़ाई करने जा रही हूं. उस पढ़ाई में मैं गोल्ड मेडलिस्ट हो जाऊंगी. मैंने जो दर्द अपने बेटे के साथ महसूस किया और जिन चीजों को सुधारने का जज्बा मैंने अपने मन में बनाया, उसने मुझे कभी हारने नहीं दिया. बारिश हो या फिर ठंड, कभी हम रुके नहीं.यही वजह थी कि हम मेहनत करते गए. कभी हमने यह सोचा नहीं था कि मुझे जो डिग्री मिलने वाली है उसमें मैं गोल्ड मेडलिस्ट हो जाऊंगी. आज सरकार हमारी इस पढ़ाई को मान रही है और संविदा के आधार पर विशेष अध्यापिका के तौर पर मैं छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर काम कर रही हैं. मैं वैसे बच्चों पर काम कर रही हूं जो मानसिक रूप से कमजोर हैं. उन्हें ज्यादा सुविधा देने के लिए मैं लड़ाई लड़ रही हूं. जो मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के मां बाप जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं मैं उन बच्चों के लिए काम कर रही हूं" : गार्गी पांडे, डॉक्टर गार्गी पांडे, विशेष अध्यापिका एवं बाल मनोवैज्ञानिक
हौसले ने दी सेवा करने की हिम्मत: ईटीवी भारत से बातचीत में गार्गी पांडे ने बताया कि उन्हें जीवन के इस मुकाम तक उनके हौसले ने पहुंचाया है. जिसके बल पर वह मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि जीवन में काफी उतार चढ़ाव आया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. यही कारण है कि आज उनके साथ ऐसे परिवार के लोग जुड़ रहे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है. ऐसे लोग जिनके बच्चे मानसिक रूप से ठीक नहीं है उन तमाम लोगों के लिए जो भी विशेष बन पड़ रहा है उसे ठीक करने की कोशिश की जा रही है. यह प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी. मुझसे जितना बन पड़ रहा है उतना मैं इस तरह के बच्चों के लिए काम करने की कोशिश कर रही हूं.
इसके साथ ही गार्गी पांडे ने समाज की मुख्य धारा में शामिल लोगों से अपील की है कि जो मानसिक रूप से कमजोर बच्चें हैं उनकी बेहतरी के लिए उनसे जितना बन पड़ता है वह करें. इस तरह समाज में सभी लोगों की भागीदारी और हिस्सेदारी बनी रहे.