नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि विविधता में एकता का भारत का मंत्र इतना व्यापक है कि इसमें विभाजन की कोई गुंजाइश नहीं है और जैसे-जैसे देश आगे बढ़ेगा विकास एवं विरासत साथ-साथ आगे बढ़ते रहेंगे. प्रगति मैदान के भारत मंडपम में श्रील प्रभुपाद की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि अब भारत में वंदे भारत ट्रेन भी दौड़ेंगी और वृन्दावन, मथुरा तथा अयोध्या का कायाकल्प भी होगा.
उन्होंने अपने दृष्टिकोण में बदलाव के लिए युवा पीढ़ी की सराहना की और इस बात पर जोर दिया कि वह ज्ञान और अनुसंधान दोनों को एक साथ लेकर चले. मोदी ने कहा, 'हमारी नई पीढ़ी अब अपनी संस्कृति को गर्व से माथे पर लगाती है.' उन्होंने कहा कि जब युवा देश का नेतृत्व करते हैं तो वे चंद्रमा पर रोवर उतार सकते हैं और लैंडिंग स्थल को 'शिवशक्ति' नाम देकर परंपराओं को भी पोषित कर सकते हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी और अयोध्या जैसे तीर्थस्थलों में बड़ी संख्या में युवा श्रद्धालु आ रहे हैं और वे आध्यात्मिकता तथा स्टार्ट-अप, दोनों के महत्व को समझते हैं. उन्होंने आध्यात्मिक गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी 150वीं जयंती उस समय मनाई जा रही है, जब महज कुछ दिन पहले अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का सदियों पुराना सपना पूरा हुआ है. अयोध्या में राम मंदिर और 22 जनवरी को वहां संपन्न हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि इतना बड़ा महायज्ञ संतों के आशीर्वाद से ही पूरा हुआ.
उन्होंने कहा, 'हम ऐसे समय में श्रील प्रभुपाद की 150वीं जयंती मना रहे हैं, जब कुछ ही दिन पहले भव्य राम मंदिर का सदियों पुराना सपना पूरा हुआ था. आपके चेहरे पर दिख रहा उत्साह रामलला 'विराजमान' की खुशी का भी संकेत देता है.' प्रधानमंत्री ने कहा, 'अनेकता में एकता का भारत का मंत्र इतना सहज है, इतना व्यापक है कि उसमें विभाजन की गुंजाइश ही नहीं है. हम एक बार 'हरे कृष्ण' बोलते हैं और एक-दूसरे के दिलों से जुड़ जाते हैं.'
उन्होंने कहा, 'इसीलिए, दुनिया के लिए राष्ट्र एक राजनीतिक अवधारणा हो सकती है... लेकिन भारत के लिए तो 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' एक आध्यात्मिक आस्था है.' उन्होंने यह भी कहा कि 15वीं शताब्दी के संत चैतन्य महाप्रभु भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम के प्रतीक थे. मोदी ने कहा, 'उन्होंने आध्यात्मिकता और साधना को आम लोगों तक पहुंचाया.' प्रधानमंत्री ने आध्यात्मिक गुरु के सम्मान में एक विशेष डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया.
प्रभुपाद गौड़ीय मिशन के संस्थापक थे, जिन्होंने वैष्णव सम्प्रदाय के मौलिक सिद्धांतों को संरक्षित करने और फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गौड़ीय मिशन ने श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं और दुनिया भर में वैष्णव धर्म की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे यह 'हरे कृष्ण' आंदोलन का केंद्र बन गया है. मोदी ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु ने आनंद के जरिए ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता दिखाया.
उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव को याद किया जब अपने जीवन के एक चरण में, उन्होंने महसूस किया कि 'भक्ति' को पूरी तरह से जीने के बावजूद, एक खालीपन था लेकिन जब वह भजन-कीर्तन में बैठने लगे तो उसमें रम गए. उन्होंने कहा, 'चैतन्य प्रभु की इस परंपरा में जो सामर्थ्य है, उसका मैंने साक्षात्कार किया हुआ है. और अभी जब आप नृत्य कर रहे थे तो मैं ताली बजाने लगा. लोगों को लग रहा था कि पीएम ताली बजा रहा है. पीएम ताली नहीं बजा रहा था, प्रभु भक्त ताली बजा रहा था.'
मोदी ने कहा कि कोई समाज जब अपनी जड़ों से दूर जाता है तो वह सबसे पहले अपने सामर्थ्य को भूल जाता है और उसका सबसे बड़ा प्रभाव ये होता है कि जो हमारी खूबी होती है उसे ही लेकर हम हीनभावना का शिकार हो जाते हैं. उन्होंने कहा, 'जब भक्ति की बात आती है तो कुछ लोग सोचते हैं कि भक्ति, तर्क और आधुनिकता ये विरोधाभासी बातें हैं. लेकिन, असल में ईश्वर की भक्ति हमारे ऋषियों का दिया हुआ महान दर्शन है. भक्ति हताशा नहीं, बल्कि आशा, आत्मविश्वास, उत्साह और उमंग है.'
प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमें युद्ध भी अपने लिए नहीं, बल्कि 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे' की भावना से मानवता के लिए लड़ना है.' उन्होंने कहा, 'और यही भावना हमारी संस्कृति में, हमारी रगों में रची-बसी हुई है. इसीलिए, भारत कभी सीमाओं के विस्तार के लिए दूसरे देशों पर हमला करने नहीं गया.' उन्होंने कहा कि आज आजादी के अमृत काल में देश गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प लेकर संतों के संकल्प को आगे बढ़ा रहा है.
मोदी ने कहा कि भक्ति परंपरा का प्रचार करने वाले संतों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में, बल्कि हर चुनौतीपूर्ण दौर में देश का मार्गदर्शन करने में भी अमूल्य भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि भारत के उथल-पुथल भरे इतिहास में प्रख्यात संत और आध्यात्मिक नेता विभिन्न क्षमताओं में देश को दिशा प्रदान करने के लिए उभरे हैं. श्रील प्रभुपाद के जीवन को 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' का एक उदाहरण बताते हुए, मोदी ने कहा कि उनका जन्म पुरी में हुआ था, उन्होंने रामानुजाचार्य की परंपरा में दीक्षा ली जो दक्षिण भारत से थे और चैतन्य महाप्रभु की परंपरा को आगे बढ़ाया, जिनका बंगाल में मठ था.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'बंगाल आध्यात्मिकता और बौद्धिकता से निरंतर ऊर्जा का स्रोत है.' उन्होंने कहा कि इसने देश को रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो, रवींद्रनाथ टैगोर और राजा राममोहन रॉय जैसे संत दिए हैं.
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