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हिंद-प्रशांत द्वीप देशों में नई सौर परियोजनाओं में 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा भारत - NEW DELHI

भारत ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) के साथ एक परियोजना कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

कोमोरोस, फिजी, मेडागास्कर और सेशेल्स में सौर परियोजनाओं को चालू करने के लिए विदेश मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के बीच परियोजना कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए अधिकारी
कोमोरोस, फिजी, मेडागास्कर और सेशेल्स में सौर परियोजनाओं को चालू करने के लिए विदेश मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के बीच परियोजना कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए अधिकारी (PTI)
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By Chandrakala Choudhury

Published : Nov 27, 2024, 1:12 PM IST

नई दिल्ली: एक प्रमुख घटनाक्रम में भारत के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) के साथ एक परियोजना कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका उद्देश्य कोमोरोस, फिजी, मेडागास्कर और सेशेल्स में सौर ऊर्जा परियोजनाओं को चालू करना है.

आईएसए परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (PIA) के रूप में इन इंडो-पैसिफिक देशों को कार्यक्रम संबंधी सहायता प्रदान करेगा. ये परियोजनाएं इंडो-पैसिफिक के द्वीप देशों में रेन्युबल एनर्जी और एनर्जी ट्रांजैक्शन के लिए भारत की क्वाड प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं.

विदेश मंत्रालय के अनुसार इस साल 21 सितंबर को अमेरिका के डेलावेयर में क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन में जारी विलमिंग्टन घोषणापत्र में कहा गया है कि क्वाड देश नीति और सार्वजनिक वित्त के माध्यम से मिलकर काम करेंगे, ताकि सहयोगी और साझेदार क्लीन एनर्जी सप्लाई चेन में कॉम्पलीमेंटेरिटी और हाई स्टैंडर्ड प्राइवेट सेक्टर के निवेश को उत्प्रेरित करने की अपनी प्रतिबद्धता को क्रियान्वित किया जा सके.

इस उद्देश्य से भारत ने भारत की वित्तीय सहायता से फिजी, कोमोरोस, मेडागास्कर और सेशेल्स में नई सौर परियोजनाओं में 2 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है.

आईएसए द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार सौर परियोजनाओं के लिए विचाराधीन देशों में कृषि उत्पादों की खराब होने की संभावना, स्वास्थ्य केंद्रों में अविश्वसनीय बिजली सप्लाई और दूरदराज के क्षेत्रों में सिंचाई उद्देश्यों के लिए ऊर्जा संबंधी समस्याएं हैं, जहां ग्रिड बिजली सप्लाई या सौर मिनी ग्रिड अभी तक उपलब्ध नहीं हैं.

परियोजना प्राप्तकर्ता देशों के साथ चर्चा के आधार पर कोल्ड स्टोरेज, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के सौरकरण और सौर जल पंपिंग सिस्टम के क्षेत्रों में सौर परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है. इन परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से इन इंडो-पैसिफिक देशों में एनर्जी एक्सेस में वृद्धि, रोजगार सृजन और विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण बिजली सप्लाई उपलब्ध होने की उम्मीद है.

विशेषज्ञ की राय
ईटीवी भारत से बात करते हुए हरियाणा के एमिटी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और भू-राजनीति और इंडो-पैसिफिक में भारत की विशेषज्ञ डॉ मानसी ने कहा, "भारत वर्तमान में आईएसए की अध्यक्षता कर रहा है और यह समझौता न केवल जलवायु कार्रवाई के लिए पंचामृत पहल के तहत सौर ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है, बल्कि इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में द्वीप कूटनीति को भी मजबूत करता है. इंडो-पैसिफिक का भू-राजनीतिक जल अमेरिका और चीन के बीच महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता के साथ तेजी से एक विवादित स्थान बनता जा रहा है."

उन्होंने कहा, "ये दोनों देश क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देशों को लुभाने और अपने सैन्य और आर्थिक प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत के मामले में इन द्वीपीय देशों तक पहुंच बनाना चीनी प्रभाव को संतुलित करने और चीन के नेतृत्व वाली पहल का विकल्प प्रदान करने का एक तरीका भी है. जलवायु परिवर्तन जैसी गैर-पारंपरिक सुरक्षा की आड़ में की गई पहल में भारत की स्थिति को बढ़ावा देने और क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी इमेज पेश करनी की क्षमता है."

क्या है इंटरनेशनल सोलर अलायंस?
भारत और फ्रांस ने 2015 में पेरिस में COP21 के दौरान अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की थी, जो एक संधि-आधारित अंतरराष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा की तैनाती को बढ़ावा देना है. कार्बन-तटस्थ भविष्य के लिए सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ISA का लक्ष्य सौर ऊर्जा समाधानों को लागू करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना है. अब इंडो-पैसिफिक के संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन और बढ़ता समुद्र स्तर मुख्य रूप से भारतीय और प्रशांत महासागरों के छोटे द्वीप देशों के लिए अस्तित्व का खतरा है.

विशेषज्ञ ने आगे कहा, "जब क्वाड की बात आती है, तो भारत का लक्ष्य ऐसी किसी भी धारणा से बचना है कि क्वाड एक सैन्य गुट है, या चीन को संतुलित करने के लिए एक समूह है, इसके बजाय इसे जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण, समुद्री सुरक्षा, एआई आदि जैसी गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों को संबोधित करने में अधिक व्यापक भूमिका की ओर ले जाना है.

क्वाड जलवायु परिवर्तन को एक अस्तित्वगत खतरे के रूप में भी रेक्ग्नाइज करता है, विशेष रूप से प्रशांत और हिंद महासागर के द्वीप देशों के लिए. जवाब में, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जलवायु परिवर्तन को कम करने और उसके अनुकूल होने, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और सतत विकास का समर्थन करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं. डॉ. मानसी ने जोर देकर कहा कि भारत जलवायु संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय सेटिंग में क्वाड देशों के साथ अपनी साझेदारी और सहयोग का विस्तार कर सकता है.

सौर ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता
भारत ने सौर ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन दोनों को संबोधित करने के उसके लक्ष्य को दर्शाता है. हाल के वर्षों में भारत सौर ऊर्जा परिनियोजन में विश्व के अग्रणी देशों में से एक बन गया है, जिसके पास नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य और नीतियां हैं.

भारत अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जो 121 देशों का गठबंधन है, जिसे भारत ने 2015 में लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य उच्च सौर क्षमता वाले देशों में सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देना है. भारत ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा था, जिसे बाद में 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता में अपडेट किया गया. इसमें सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय स्रोत शामिल हैं.

यह ध्यान देने योग्य है कि भारत क्वाड क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप (CWG) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसे क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वाड) द्वारा लॉन्च किया गया था - जो संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत से मिलकर बना एक रणनीतिक समूह है. इस पहल का उद्देश्य वैश्विक जलवायु चुनौतियों का समाधान करना और टिकाऊ, कम कार्बन आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है.

यह भी पढ़ें- बूढ़ापहाड़ के कुख्यात माओवादी कमांडर छोटू खरवार की हत्या, जांच में जुटी पुलिस

नई दिल्ली: एक प्रमुख घटनाक्रम में भारत के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) के साथ एक परियोजना कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका उद्देश्य कोमोरोस, फिजी, मेडागास्कर और सेशेल्स में सौर ऊर्जा परियोजनाओं को चालू करना है.

आईएसए परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (PIA) के रूप में इन इंडो-पैसिफिक देशों को कार्यक्रम संबंधी सहायता प्रदान करेगा. ये परियोजनाएं इंडो-पैसिफिक के द्वीप देशों में रेन्युबल एनर्जी और एनर्जी ट्रांजैक्शन के लिए भारत की क्वाड प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं.

विदेश मंत्रालय के अनुसार इस साल 21 सितंबर को अमेरिका के डेलावेयर में क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन में जारी विलमिंग्टन घोषणापत्र में कहा गया है कि क्वाड देश नीति और सार्वजनिक वित्त के माध्यम से मिलकर काम करेंगे, ताकि सहयोगी और साझेदार क्लीन एनर्जी सप्लाई चेन में कॉम्पलीमेंटेरिटी और हाई स्टैंडर्ड प्राइवेट सेक्टर के निवेश को उत्प्रेरित करने की अपनी प्रतिबद्धता को क्रियान्वित किया जा सके.

इस उद्देश्य से भारत ने भारत की वित्तीय सहायता से फिजी, कोमोरोस, मेडागास्कर और सेशेल्स में नई सौर परियोजनाओं में 2 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है.

आईएसए द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार सौर परियोजनाओं के लिए विचाराधीन देशों में कृषि उत्पादों की खराब होने की संभावना, स्वास्थ्य केंद्रों में अविश्वसनीय बिजली सप्लाई और दूरदराज के क्षेत्रों में सिंचाई उद्देश्यों के लिए ऊर्जा संबंधी समस्याएं हैं, जहां ग्रिड बिजली सप्लाई या सौर मिनी ग्रिड अभी तक उपलब्ध नहीं हैं.

परियोजना प्राप्तकर्ता देशों के साथ चर्चा के आधार पर कोल्ड स्टोरेज, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के सौरकरण और सौर जल पंपिंग सिस्टम के क्षेत्रों में सौर परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है. इन परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से इन इंडो-पैसिफिक देशों में एनर्जी एक्सेस में वृद्धि, रोजगार सृजन और विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण बिजली सप्लाई उपलब्ध होने की उम्मीद है.

विशेषज्ञ की राय
ईटीवी भारत से बात करते हुए हरियाणा के एमिटी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और भू-राजनीति और इंडो-पैसिफिक में भारत की विशेषज्ञ डॉ मानसी ने कहा, "भारत वर्तमान में आईएसए की अध्यक्षता कर रहा है और यह समझौता न केवल जलवायु कार्रवाई के लिए पंचामृत पहल के तहत सौर ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है, बल्कि इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में द्वीप कूटनीति को भी मजबूत करता है. इंडो-पैसिफिक का भू-राजनीतिक जल अमेरिका और चीन के बीच महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता के साथ तेजी से एक विवादित स्थान बनता जा रहा है."

उन्होंने कहा, "ये दोनों देश क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देशों को लुभाने और अपने सैन्य और आर्थिक प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत के मामले में इन द्वीपीय देशों तक पहुंच बनाना चीनी प्रभाव को संतुलित करने और चीन के नेतृत्व वाली पहल का विकल्प प्रदान करने का एक तरीका भी है. जलवायु परिवर्तन जैसी गैर-पारंपरिक सुरक्षा की आड़ में की गई पहल में भारत की स्थिति को बढ़ावा देने और क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी इमेज पेश करनी की क्षमता है."

क्या है इंटरनेशनल सोलर अलायंस?
भारत और फ्रांस ने 2015 में पेरिस में COP21 के दौरान अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की थी, जो एक संधि-आधारित अंतरराष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा की तैनाती को बढ़ावा देना है. कार्बन-तटस्थ भविष्य के लिए सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ISA का लक्ष्य सौर ऊर्जा समाधानों को लागू करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना है. अब इंडो-पैसिफिक के संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन और बढ़ता समुद्र स्तर मुख्य रूप से भारतीय और प्रशांत महासागरों के छोटे द्वीप देशों के लिए अस्तित्व का खतरा है.

विशेषज्ञ ने आगे कहा, "जब क्वाड की बात आती है, तो भारत का लक्ष्य ऐसी किसी भी धारणा से बचना है कि क्वाड एक सैन्य गुट है, या चीन को संतुलित करने के लिए एक समूह है, इसके बजाय इसे जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण, समुद्री सुरक्षा, एआई आदि जैसी गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों को संबोधित करने में अधिक व्यापक भूमिका की ओर ले जाना है.

क्वाड जलवायु परिवर्तन को एक अस्तित्वगत खतरे के रूप में भी रेक्ग्नाइज करता है, विशेष रूप से प्रशांत और हिंद महासागर के द्वीप देशों के लिए. जवाब में, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जलवायु परिवर्तन को कम करने और उसके अनुकूल होने, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और सतत विकास का समर्थन करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं. डॉ. मानसी ने जोर देकर कहा कि भारत जलवायु संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय सेटिंग में क्वाड देशों के साथ अपनी साझेदारी और सहयोग का विस्तार कर सकता है.

सौर ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता
भारत ने सौर ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन दोनों को संबोधित करने के उसके लक्ष्य को दर्शाता है. हाल के वर्षों में भारत सौर ऊर्जा परिनियोजन में विश्व के अग्रणी देशों में से एक बन गया है, जिसके पास नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य और नीतियां हैं.

भारत अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जो 121 देशों का गठबंधन है, जिसे भारत ने 2015 में लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य उच्च सौर क्षमता वाले देशों में सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देना है. भारत ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा था, जिसे बाद में 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता में अपडेट किया गया. इसमें सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय स्रोत शामिल हैं.

यह ध्यान देने योग्य है कि भारत क्वाड क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप (CWG) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसे क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वाड) द्वारा लॉन्च किया गया था - जो संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत से मिलकर बना एक रणनीतिक समूह है. इस पहल का उद्देश्य वैश्विक जलवायु चुनौतियों का समाधान करना और टिकाऊ, कम कार्बन आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है.

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