रांचीः झारखंड में एनडीए को चौतरफा नुकसान हुआ है. प्रदेश में इंडिया गठबंधन ने जादुई आंकड़े को छूते हुए हर प्रमंडल में अपनी पकड़ मजबूत की है. झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व 09 सीटों पर भी भाजपा की पकड़ ढीली पड़ी है.
भाजपा को सबसे बड़ा झटका एससी के लिए रिजर्व चंदनकियारी सीट पर लगा है. यहां अमर बाउरी हार गये हैं. उन्हें झामुमो के उमाकांत रजक ने हराया है. कभी उमाकांत रजक आजसू प्रत्याशी के तौर पर चंदनक्यारी से चुनाव लड़ते थे. लेकिन इस बार गठबंधन की वजह से यह सीट आजसू के हाथ से निकल गई थी. खास बात है कि माहौल को देखते हुए आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने खुद अमर बाउरी के लिए चंदनक्यारी में चुनावी सभाएं की थी लेकिन कोई फायदा नहीं मिला.
एससी सीटों का लेखा-जोखा
झारखंड में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो कुल 9 विधानसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन ने अपनी पकड़ को मजबूत किया है. इंडिया ब्लॉक के दलों ने 6 सीटों पर कब्जा जमाया. वहीं भाजपा मात्र तीन सीट ही जीत पायी है.
2019 में 06 एससी सीटें जीतने वाली भाजपा इसबार 03 एससी (सिमरिया, जमुआ और लातेहार) सीटों पर सिमट गई है. जबकि एनडीए गठबंधन के तहत मिली एकमात्र चतरा सीट पर लोजपा (आर) के प्रत्याशी जनार्दन पासवान जीत गये हैं. उन्होंनें निवर्तमान मंत्री सत्यानंद भोक्ता की बहू और राजद प्रत्याशी रश्मि प्रकाश को हरा दिया है. इस जीत के साथ लोजपा ने पहली बार झारखंड विधानसभा में इंट्री ले ली है.
इस बार के चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने एससी पॉकेट में जबरदस्त पैठ बनायी है. एससी के लिए रिजर्व 09 सीटों में से 05 सीटों पर इंडिया ब्लॉक की जीत हुई है. इनमें झामुमो के खाते में चंदनक्यारी और जुगसलाई सीट गई है. कांग्रेस ने ना सिर्फ छतरपुर बल्कि भाजपा की परंपरागत सीट रही कांके पर भी कब्जा जमा लिया है. इस सीट पर लंबे समय से संघर्ष कर रहे कांग्रेस के सुरेश बैठा ने भाजपा के जीतू चरण को हराकर पहली बार जीत दर्ज की है. वहीं राजद के सुरेश पासवान ने देवघर सीट पर भाजपा के नारायण दास को पटखनी दे दी है. राजद की टिकट पर सुरेश पासवान ने तीसरी जीत दर्ज की है.
गौर करने वाली बात ये है कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को ना सिर्फ एसटी सीटों पर बल्कि परंपरागत एससी सीटों पर भी बड़ा झटका लगा है. 2014 के चुनाव में भाजपा को 06 और आजसू को 01 एससी सीट पर जीत मिली थी. एक सीट जेवीएम के खाते में गई थी. यह भाजपा के लिए स्वर्णिम दौर था. लेकिन महज 10 वर्षों में भाजपा ने एससी वोटर्स के बीच भी अपनी पकड़ कमजोर कर ली है.
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