देहरादून: उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीटें हैं. हर एक सीट का अपना एक महत्व और इतिहास भी है. इसमें टिहरी सीट भी शामिल है. ये स्थान राजशाही, पुराने शहर और एशिया के सबसे बड़े बांधों में से एक टिहरी बांध की वजह से खास पहचान रखता है. अगर टिहरी लोकसभा सीट की बात करें तो यह हमेशा से वीआईपी सीट रहा है. इस पर आज भी राजशाही परिवार का वर्चस्व कायम है. ऐसे में आज इस लोकसभा सीट की उन खासियतों से आपको रूबरू करवाते हैं, जिन्हें कम लोग ही जानते होंगे.
देश की आजादी के बाद भी रहा राज परिवार का शासन: आजादी के बाद तक टिहरी में राज परिवार का राज चलता था, लेकिन 1 अगस्त 1949 में टिहरी रियासत भारत के अधीन आ गई. या यूं कह सकते हैं कि राजशाही परिवार ने अपनी रियासत को भारत में विलय कर लिया. आज भी राजशाही परिवार के कई निशान इस शहर में मौजूद हैं. इसके साथ ही आज भी राजनीति में इस राजशाही परिवार के वंशज सक्रिय हैं. मौजूदा समय में राजशाही परिवार की ही सांसद हैं.
टिहरी शहर को जब देश की बिजली आपूर्ति के लिए डुबाया जा रहा था, तब पानी में वो सभ्यता भी डूब गई जो इस शहर की निशानी हुआ करती थी. आज पूरा राजमहल टिहरी झील में डूबा हुआ है. जब झील का जलस्तर कम होता है तब पुरानी टिहरी के अवशेष दिखाई देते हैं. कभी टिहरी की सत्ता का केंद्र रहा टिहरी नरेश का राजमहल भी झील में उभर आता है. वहीं, टिहरी में चुनाव की बात करें तो साल 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में राजपरिवार की ही राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय चुनाव में खड़ी होकर बड़ी जीत हासिल की थी.
3 जिलों से मिलकर बनी है टिहरी लोकसभा सीट: टिहरी लोकसभा सीट उत्तराखंड के एकमात्र ऐसी लोकसभा सीट है, जिसने राज्य की पहली महिला सांसद दी. इस सीट पर साल 2012 से लगातार तीन बार माला राज्य लक्ष्मी शाह सांसद हैं. टिहरी लोकसभा क्षेत्र उत्तराखंड के तीन जिलों से मिलकर बना है. जिसमें उत्तरकाशी, टिहरी और देहरादून के कुछ हिस्से शामिल हैं. इसके अलावा इस संसदीय क्षेत्र में 14 विधानसभाएं आती हैं.
टिहरी लोकसभा क्षेत्र में देहरादन जिले की कैंट, चकराता, मसूरी, रायपुर, राजपुर रोड, सहसपुर, विकासनगर विधामसभाएं शामिल हैं. टिहरी जिले की टिहरी, धनौल्टी, घनसाली और प्रताप नगर विधानसभाएं शामिल हैं. वहीं, उत्तरकाशी जिले की पुरोला, गंगोत्री और यमुनोत्री विधानसभा सीटें आती है. साथ ही इस लोकसभा सीट के अंतर्गत गंगा और यमुना पवित्र नदियां भी शामिल हैं. ऐसे में पर्यटन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण टिहरी लोकसभा सीट धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से उत्तराखंड की आर्थिकी मजबूत करने में योगदान भी देता है.
राजशाही परिवार का रहा दबदबा: टिहरी लोकसभा सीट की आबादी 19,23,454 (जनगणना 2011 के हिसाब से) है. इस क्षेत्र की करीब 62 फीसदी आबादी गांव में ही निवास करती है. जबकि, 38.07 फीसदी आबादी शहर में रहती है. अगर आबादी के लिहाज से अनुसूचित जाति की बात करें तो 17.15 फीसदी लोग इस क्षेत्र में रहते हैं. जबकि, 5.80 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के लोगों की है.
इस लोकसभा सीट में 13,52,845 मतदाता हैं, जिसमें 7,12,039 पुरुष मतदाता शामिल हैं. जबकि, 6,40,806 महिला मतदाता शामिल हैं. इस लोकसभा सीट में देहरादून जिले की 7 विधानसभा सीटें आती हैं. जबकि, टिहरी की चार सीटों के अलावा उत्तरकाशी जिले की तीन विधानसभा सीटें भी शामिल हैं.
टिहरी का राजनीति पृष्ठभूमि: साल 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में राजपरिवार की राजमाता कमलेंदुमति शाह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में टिहरी से महिला सांसद चुनी गईं. इसके बाद हुए चुनावों में टिहरी रियासत के अंतिम राजा मानवेंद्र शाह साल 1957 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे और 1967 तक वे इस सीट पर सांसद रहे. इसके बाद जब साल 1971 में चुनाव हुए तो कांग्रेस के टिकट से परिपूर्णानंद टिहरी लोकसभा सीट पर विजय हुए.
साल 1980 से 1997 तक त्रेपन सिंह नेगी इस सीट से सांसद रहे. इसके बाद साल 1984 से 1989 तक कांग्रेस उम्मीदवार ब्रह्मदत्त को इस सीट से जनता ने सांसद बनाया, लेकिन ये बात भी किसी से छुपी नहीं है कि टिहरी में जीत उसी ने दर्ज की, जिसके ऊपर राजशाही परिवार का हाथ और साथ रहा. आगे चलकर एक बार फिर से राजशाही परिवार ने साल 1991 में मैदान में उतरने का मन बनाया.
जहां एक बड़ी जीत मानवेंद्र शाह ने दर्ज की. शाह बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े और पहली बार टिहरी लोकसभा सीट पर बीजेपी का खाता खुला. वे साल 2004 तक इस सीट पर सांसद रहे. साल 2007 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ और तब कांग्रेस के उम्मीदवार विजय बहुगुणा इस क्षेत्र से सांसद बने. जिसने बाद उन्हें उत्तराखंड का मुख्यमंत्री भी बनाया गया.
साल 2012 में विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव हुए तो शाही परिवार की बहू माला राज्य लक्ष्मी शाह चुनाव मैदान में उतरीं. उसके बाद से लेकर आज तक वही इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. साल 2019 में उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक प्रीतम सिंह को भारी मतों से हराया था. जबकि, इससे पहले हुए चुनाव में उन्होंने विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा को हराया था. इस तरह से माला राज्य लक्ष्मी शाह टिहरी लोकसभा सीट से हैट्रिक लगा चुकी हैं.
इस सीट को लेकर क्या कहते हैं जानकर? पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा के बेटे व राजनीतिक जानकार राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि टिहरी लोकसभा में ज्यादातर वोटर ग्रामीण एरिया में रहते हैं. इस परिवार को कांग्रेस ने टिकट शुरुआती समय से दिया. राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने राज परिवारों के लोगों को चुनाव लड़वाएं हैं. उसी तरह से टिहरी रियासत में भी कांग्रेस का हस्तक्षेप रहा. जब भी इस परिवार ने कांग्रेस का साथ छोड़ा, तब उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस परिवार का सम्मान इस क्षेत्र में बहुत है. अब तक तीन बार माला राज्य लक्ष्मी सांसद रही हैं. जो मौजूदा समय में भी सांसद हैं. अब वो उम्र के लिहाज से भी ज्यादा जनता तक नहीं पहुंच पाती हैं तो ऐसा लगता है कि अगला इस परिवार का कौन सा सदस्य होगा जो चुनाव लड़ेगा. राजीव कहते हैं कि परिवार के बहुत सारे सदस्य हैं, कुछ को लोग जानते हैं और कुछ को आज भी नहीं जानते हैं. ऐसे में हो सकता है कोई भी पार्टी इस परिवार के किसी दूसरे सदस्य को टिकट देकर चुनाव लड़वा दें.
राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों को ये पता है कि इस क्षेत्र में किस नेता ने क्या काम किया है? कैसे जीत दर्ज करवाई जा सकती है? टिहरी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के पास अच्छे नेता हैं. ऐसा लगता है कि इस बार दोनों ही पार्टियों कुछ अलग करने के मूड में है. हालांकि, आगे क्या होगा यह तो पार्टी ही तय करेगी, लेकिन मिजाज यही कहता है.
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