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व्यवसायी की अवैध हिरासत : सुप्रीम कोर्ट ने मजिस्ट्रेट को उपयुक्त प्रशिक्षण दिलवाने को कहा

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By PTI

Published : Jan 29, 2024, 7:14 PM IST

SC on contempt custody case: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में तल्ख टिप्पणी की है. शीर्ष कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि मजिस्ट्रेट को उपयुक्त प्रशिक्षण देना चाहिए. मामला गुजरात के व्यवसायी की अवैध हिरासत से जुड़ा हुआ है.

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सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अग्रिम जमानत हासिल कर चुके एक व्यवसायी की पुलिस रिमांड को अदालत की घोर अवमानना करार देते हुए सोमवार को कहा कि वह गुजरात उच्च न्यायालय को दंडाधिकारियों (मजिस्ट्रेट) को उपयुक्त प्रशिक्षण देने के लिए कहेगा.

गुजरात के व्यवसायी की पुलिस रिमांड को लेकर अत्यधिक नाखुशी जाहिर करते हुए शीर्ष अदालत ने 10 जनवरी को व्यक्ति की अवमानना याचिका पर सूरत के कुछ पुलिस अधिकारियों और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि पिछले साल 8 दिसंबर को याचिकाकर्ता तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह को अग्रिम जमानत दी गई थी, लेकिन उन्हें धोखाधड़ी के एक मामले में 13 से 16 दिसंबर 2023 तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया.

यह विषय न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष फिर से सुनवाई के लिए सोमवार को आया. कुछ प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने गलती की है. उन्होंने पीठ से कहा, 'यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका बचाव किया जा सकता है या जिसका बचाव किया जाना चाहिए...यह स्पष्ट रूप से गलती का मामला है.'

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने का शीर्ष अदालत का 8 दिसंबर, 2023 का आदेश स्पष्ट था और इसे मजिस्ट्रेट और संबंधित पुलिस अधिकारियों के समक्ष भी रखा गया था.

शीर्ष अदालत ने कहा, 'हमें गुजरात उच्च न्यायालय से मजिस्ट्रेट को उचित प्रशिक्षण देने और राज्य सरकार से अपने अधिकारियों को उपयुक्त रूप से शिक्षित करने के लिए कहना होगा.'

मेहता ने पीठ को बताया कि शीर्ष अदालत के आदेश का 'गलत अर्थ समझने' वाले पुलिस अधिकारी को निलंबित कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि सूरत के पुलिस आयुक्त को शीर्ष अदालत द्वारा पारित आदेश के बारे में शुरू में जानकारी नहीं थी.

पीठ को गुजरात की एक परिपाटी के बारे में भी बताया गया, जहां आम तौर पर अर्जी देने वाले व्यक्ति को अग्रिम जमानत के आदेश में उल्लेख किया जाता है कि जांच अधिकारी को उसकी रिमांड के लिए अर्जी देने की छूट दी जाती है.

शीर्ष अदालत ने कहा, 'यदि आप इस परिपाटी का पालन करते हैं तो गुजरात को शिक्षित होने की जरूरत है. मजिस्ट्रेट को भी शिक्षित होने की जरूरत है. आपके पास अहमदाबाद में इतनी अच्छी (प्रशिक्षण) अकादमी है.'

पीठ ने कहा कि यह उपयुक्त होगा कि शीर्ष अदालत द्वारा मामले पर फैसला करने से पहले गुजरात उच्च न्यायालय को भी सुना जाए. इसने अपने रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से उच्च न्यायालय को नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया.

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गुजरात के व्यवसायी की पुलिस रिमांड को लेकर अत्यधिक नाखुशी जाहिर करते हुए शीर्ष अदालत ने 10 जनवरी को व्यक्ति की अवमानना याचिका पर सूरत के कुछ पुलिस अधिकारियों और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि पिछले साल 8 दिसंबर को याचिकाकर्ता तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह को अग्रिम जमानत दी गई थी, लेकिन उन्हें धोखाधड़ी के एक मामले में 13 से 16 दिसंबर 2023 तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया.

यह विषय न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष फिर से सुनवाई के लिए सोमवार को आया. कुछ प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने गलती की है. उन्होंने पीठ से कहा, 'यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका बचाव किया जा सकता है या जिसका बचाव किया जाना चाहिए...यह स्पष्ट रूप से गलती का मामला है.'

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने का शीर्ष अदालत का 8 दिसंबर, 2023 का आदेश स्पष्ट था और इसे मजिस्ट्रेट और संबंधित पुलिस अधिकारियों के समक्ष भी रखा गया था.

शीर्ष अदालत ने कहा, 'हमें गुजरात उच्च न्यायालय से मजिस्ट्रेट को उचित प्रशिक्षण देने और राज्य सरकार से अपने अधिकारियों को उपयुक्त रूप से शिक्षित करने के लिए कहना होगा.'

मेहता ने पीठ को बताया कि शीर्ष अदालत के आदेश का 'गलत अर्थ समझने' वाले पुलिस अधिकारी को निलंबित कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि सूरत के पुलिस आयुक्त को शीर्ष अदालत द्वारा पारित आदेश के बारे में शुरू में जानकारी नहीं थी.

पीठ को गुजरात की एक परिपाटी के बारे में भी बताया गया, जहां आम तौर पर अर्जी देने वाले व्यक्ति को अग्रिम जमानत के आदेश में उल्लेख किया जाता है कि जांच अधिकारी को उसकी रिमांड के लिए अर्जी देने की छूट दी जाती है.

शीर्ष अदालत ने कहा, 'यदि आप इस परिपाटी का पालन करते हैं तो गुजरात को शिक्षित होने की जरूरत है. मजिस्ट्रेट को भी शिक्षित होने की जरूरत है. आपके पास अहमदाबाद में इतनी अच्छी (प्रशिक्षण) अकादमी है.'

पीठ ने कहा कि यह उपयुक्त होगा कि शीर्ष अदालत द्वारा मामले पर फैसला करने से पहले गुजरात उच्च न्यायालय को भी सुना जाए. इसने अपने रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से उच्च न्यायालय को नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया.

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