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पति को बिल्ली से था ज्यादा लगाव, पत्नी ने 498 A के तहत दर्ज करवाया केस - SECTION 498 A

एक महिला ने अपने पति के खिलाफ IPC की धारा 498 A के तहत दायर किया था, जिसपर पति ने हाई कोर्ट का रुख किया.

कर्नाटक हाई कोर्ट
कर्नाटक हाई कोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 13, 2024, 6:05 PM IST

Updated : Dec 13, 2024, 7:36 PM IST

बेंगलुरु: एक असामान्य घरेलू विवाद में कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर उत्पीड़न के मामले की जांच पर रोक लगा दी है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पति को अपनी पालतू बिल्ली से अधिक लगाव है. यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498 A के तहत दायर किया गया था.

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह रोक लगाई है. याचिका में पति ने अपने, अपनी मां और अपने पिता के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज करने की मांग की थी.अदालत ने पाया कि शिकायत में धारा 498 ए के तहत उत्पीड़न का समर्थन करने वाले कोई विशेष आरोप नहीं लगाए गए थे.

जस्टिस नागप्रसन्ना ने मामले में टिप्पणी की कि इस तरह के तुच्छ घरेलू विवाद अक्सर न्यायपालिका पर अनावश्यक बोझ डालते हैं और घरेलू हिंसा के वास्तविक मुद्दों को संबोधित करने के लिए कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग करते हैं.

क्या है मामला?
अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार महिला ने दावा किया कि उसका पति अपनी पालतू बिल्ली पर अत्यधिक ध्यान देता है और कथित तौर पर उसे अनदेखा करता है. इतना ही नहीं वह उससे बहस भी करता है. महिला ने यह भी आरोप लगाया कि बिल्ली ने उसे कई बार खरोंचा, जिससे दंपति के बीच तनाव बढ़ गया.

साक्ष्यों की समीक्षा करते हुए हाई कोर्ट ने पाया कि विवाद क्रूरता या दहेज से संबंधित उत्पीड़न के किसी वैध आरोप के बजाय पालतू जानवर के प्रति पति के व्यवहार के इर्द-गिर्द घूमता है. पीठ ने कहा, "यह मुद्दा घरेलू पालतू जानवर को लेकर असहमति से संबंधित है, न कि आईपीसी 498 ए के तहत आने वाले किसी शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार से."

कानूनी टिप्पणियां
अदालत ने वास्तविक उत्पीड़न मामलों और तुच्छ घरेलू मुद्दों से उपजे विवादों के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर जोर दिया. इसने कहा कि ऐसे मामलों में मुकदमा चलाना अनावश्यक रूप से न्याय प्रणाली को बाधित करता है और आपराधिक कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग करता है. इसके अलावा हाई कोर्ट ने पत्नी को नोटिस जारी किया और मामले को आगे के विचार के लिए स्थगित कर दिया.

कानूनों के दुरुपयोग को लेकर बहस
इस मामले ने उत्पीड़न कानूनों के दुरुपयोग के बारे में बहस छेड़ दी है. कानूनी विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि यह घटना व्यक्तिगत शिकायतों को वास्तविक कानूनी सहारा के साथ संतुलित करने के महत्व को रेखांकित करती है. यह महिलाओं को उपलब्ध कानूनी सुरक्षा की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए निराधार दावों को छानने में न्यायपालिका की भूमिका को उजागर करता है.

यह भी पढ़ें- Techie Suicide: क्या है सेक्शन 498-A? जिसके दुरुपयोग पर SC और वरिष्ठ अधिवक्ता ने जताई चिंता

बेंगलुरु: एक असामान्य घरेलू विवाद में कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर उत्पीड़न के मामले की जांच पर रोक लगा दी है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पति को अपनी पालतू बिल्ली से अधिक लगाव है. यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498 A के तहत दायर किया गया था.

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह रोक लगाई है. याचिका में पति ने अपने, अपनी मां और अपने पिता के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज करने की मांग की थी.अदालत ने पाया कि शिकायत में धारा 498 ए के तहत उत्पीड़न का समर्थन करने वाले कोई विशेष आरोप नहीं लगाए गए थे.

जस्टिस नागप्रसन्ना ने मामले में टिप्पणी की कि इस तरह के तुच्छ घरेलू विवाद अक्सर न्यायपालिका पर अनावश्यक बोझ डालते हैं और घरेलू हिंसा के वास्तविक मुद्दों को संबोधित करने के लिए कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग करते हैं.

क्या है मामला?
अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार महिला ने दावा किया कि उसका पति अपनी पालतू बिल्ली पर अत्यधिक ध्यान देता है और कथित तौर पर उसे अनदेखा करता है. इतना ही नहीं वह उससे बहस भी करता है. महिला ने यह भी आरोप लगाया कि बिल्ली ने उसे कई बार खरोंचा, जिससे दंपति के बीच तनाव बढ़ गया.

साक्ष्यों की समीक्षा करते हुए हाई कोर्ट ने पाया कि विवाद क्रूरता या दहेज से संबंधित उत्पीड़न के किसी वैध आरोप के बजाय पालतू जानवर के प्रति पति के व्यवहार के इर्द-गिर्द घूमता है. पीठ ने कहा, "यह मुद्दा घरेलू पालतू जानवर को लेकर असहमति से संबंधित है, न कि आईपीसी 498 ए के तहत आने वाले किसी शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार से."

कानूनी टिप्पणियां
अदालत ने वास्तविक उत्पीड़न मामलों और तुच्छ घरेलू मुद्दों से उपजे विवादों के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर जोर दिया. इसने कहा कि ऐसे मामलों में मुकदमा चलाना अनावश्यक रूप से न्याय प्रणाली को बाधित करता है और आपराधिक कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग करता है. इसके अलावा हाई कोर्ट ने पत्नी को नोटिस जारी किया और मामले को आगे के विचार के लिए स्थगित कर दिया.

कानूनों के दुरुपयोग को लेकर बहस
इस मामले ने उत्पीड़न कानूनों के दुरुपयोग के बारे में बहस छेड़ दी है. कानूनी विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि यह घटना व्यक्तिगत शिकायतों को वास्तविक कानूनी सहारा के साथ संतुलित करने के महत्व को रेखांकित करती है. यह महिलाओं को उपलब्ध कानूनी सुरक्षा की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए निराधार दावों को छानने में न्यायपालिका की भूमिका को उजागर करता है.

यह भी पढ़ें- Techie Suicide: क्या है सेक्शन 498-A? जिसके दुरुपयोग पर SC और वरिष्ठ अधिवक्ता ने जताई चिंता

Last Updated : Dec 13, 2024, 7:36 PM IST
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