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गणतंत्र दिवस में राजपथ पर 600 साल पुराने मुरिया दरबार की झांकी - गणतंत्र दिवस

History of Muria Darbar छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर संभाग आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. बस्तर के आदिवासियों की परंपरा, वेशभूषा, रीति-रिवाज, अनोखी परम्परा भारत देश सहित विश्वभर में एक अलग पहचान के लिए जानी जाती है. ऐसी कई परम्पराएं हैं जो सैंकड़ों सालों से चली आ रही हैं.आपको जानकर हैरानी होगी कि बस्तर में आदिवासियों की संसद उस समय से लग रही है. जब भारत देश में लोकतंत्र स्थापित नहीं हुआ था. सैंकड़ों सालों तक बस्तर के आदिवासियों ने अपनी समस्याओं को इस संसद में उठाया है. ये संसद आज भी लगती है.जिसे लोग मुरिया दरबार के नाम से जानते हैं.इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर कर्तव्य पथ पर मुरिया दरबार की झांकी देखने को मिलेगी. muriya darbar

History of Muria Darbar
600 साल पुराना है मुरिया दरबार का इतिहा
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 24, 2024, 6:35 PM IST

Updated : Jan 26, 2024, 8:56 AM IST

600 साल पुराना है मुरिया दरबार का इतिहास

बस्तर : विश्व में सबसे अधिक दिनों तक चलने वाला पर्व बस्तर में मनाया जाता है. यह पर्व 75 दिनों तक मनाते हैं. इस पर्व को बस्तर दशहरा के नाम से जाना जाता है. रिकॉर्ड के मुताबिक बस्तर दशहरा पर्व 600 सालों से बस्तर में मनाया जा रहा है. जिसे देखने के लिए भारत देश के अलावा दूसरे देशों से भी लोग बस्तर आते हैं. इस पर्व में कई अनोखी रस्में निभाई जाती है. इन्हीं रस्मों में एक रस्म मुरिया दरबार भी है. जिसकी झांकी इस बार दिल्ली में गणतंत्र दिवस के अवसर पर कर्तव्य पथ पर दिखेगी.

कैसी है गणतंत्र दिवस पर प्रदर्शित होने वाली झांकी ? : गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर प्रदर्शित होने वाली छत्तीसगढ़ की झांकी बस्तर की आदिम जन संसद मुरिया दरबार पर आधारित है. जगदलपुर के बस्तर दशहरे की परंपरा में शामिल मुरिया दरबार और बड़े डोंगर के लिमऊ राजा को केंद्रीय विषय बनाया गया है. साथ ही झांकी की साज-सज्जा में बस्तर के बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती से भी दुनिया को परिचित कराया गया है.

रियासतकाल से चली आ रही परंपरा : बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि रियासत काल में जितने भी समस्याएं गांव की होती थी. उनका निपटारा किया जाता था. यह कार्यक्रम मुरिया दरबार और गंगामुण्डा जात्रा तक चलता था. यहां बहुतों की संख्या में पहुंचे लोगों की समस्याओं को सुना जाता था.

''मुरिया दरबार एक ऐसा मंच है जहां 7 जिला और 12 विधानसभा क्षेत्र के लोगों के साथ ही सीमावर्ती राज्य आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओड़िशा, महाराष्ट्र के लोग पहुंचते हैं. साथ ही इन क्षेत्रों की देवी देवताओं को देखना और उनकी समस्याओं को भी सुनने का संगम भारत देश में और कहीं देखने को नहीं मिलता है.'' कमलचंद भंजदेव, सदस्य राजपरिवार


मुरिया दरबार का अपना अलग है रिवाज : इस दरबार में राजा अपनी शाही वेशभूषा में नहीं पहुंचते थे. बल्कि साधारण कपड़े पहनकर वे लोगों के बीच बैठते थे. ताकि बिना झिझक के लोग अपनी बातें उनसे कह सके.इन बातों को सुनकर राजा समस्याओं का निराकरण भी मौके पर ही करते थे. यही मुरिया दरबार का मुख्य उद्देश्य है.


क्यों है मुरिया दरबार खास ? : मुरिया समाज के सदस्य शंकर कश्यप ने बताया कि मुरिया दरबार इसीलिए बेहद खास है. क्योंकि आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का तत्काल निराकरण होता है. मुरिया दरबार में राजा के साथ ही मुख्यमंत्री और जिला कलेक्टर मौजूद रहते हैं. जिसके बाद समस्याओं पर घोषणा होती है. इसके कुछ दिनों के बाद काम शुरू भी हो जाता है.

मुरिया दरबार रियासत काल में एकतंत्रीय न्याय प्रणाली के रूप में स्थापित थी जो रियासत की जनता को स्वीकार्य होती थी. मुरिया दरबार का पहला आयोजन 08 मार्च 1876 को पहली बार हुआ था. इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था.बस्तर में बसने वाले जाति और जनजातीय परिवारों हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया आदि जाति के पहचान के लिए पूर्व में मुरिया शब्द ही इस्तेमाल होता था.

सरकारी दफ्तर से पहले होता है काम : आदिवासी समाज के लोगों की माने तो समस्याओं को लेकर यदि सरकारी दफ्तर में जाते हैं. तो वो केवल फाइल बन जाती है. तारीख पर तारीख मिलती है. बार-बार आवेदन देने पर भी निराकरण नहीं होता है. आपको बता दें कि इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर मुरिया दरबार को देश की राजधानी दिल्ली में झांकी के माध्यम से प्रदर्शित किया जा रहा है. जो मुरिया समाज के साथ ही बस्तर के आदिवासियों के लिए गर्व की बात है.

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600 साल पुराना है मुरिया दरबार का इतिहास

बस्तर : विश्व में सबसे अधिक दिनों तक चलने वाला पर्व बस्तर में मनाया जाता है. यह पर्व 75 दिनों तक मनाते हैं. इस पर्व को बस्तर दशहरा के नाम से जाना जाता है. रिकॉर्ड के मुताबिक बस्तर दशहरा पर्व 600 सालों से बस्तर में मनाया जा रहा है. जिसे देखने के लिए भारत देश के अलावा दूसरे देशों से भी लोग बस्तर आते हैं. इस पर्व में कई अनोखी रस्में निभाई जाती है. इन्हीं रस्मों में एक रस्म मुरिया दरबार भी है. जिसकी झांकी इस बार दिल्ली में गणतंत्र दिवस के अवसर पर कर्तव्य पथ पर दिखेगी.

कैसी है गणतंत्र दिवस पर प्रदर्शित होने वाली झांकी ? : गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर प्रदर्शित होने वाली छत्तीसगढ़ की झांकी बस्तर की आदिम जन संसद मुरिया दरबार पर आधारित है. जगदलपुर के बस्तर दशहरे की परंपरा में शामिल मुरिया दरबार और बड़े डोंगर के लिमऊ राजा को केंद्रीय विषय बनाया गया है. साथ ही झांकी की साज-सज्जा में बस्तर के बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती से भी दुनिया को परिचित कराया गया है.

रियासतकाल से चली आ रही परंपरा : बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि रियासत काल में जितने भी समस्याएं गांव की होती थी. उनका निपटारा किया जाता था. यह कार्यक्रम मुरिया दरबार और गंगामुण्डा जात्रा तक चलता था. यहां बहुतों की संख्या में पहुंचे लोगों की समस्याओं को सुना जाता था.

''मुरिया दरबार एक ऐसा मंच है जहां 7 जिला और 12 विधानसभा क्षेत्र के लोगों के साथ ही सीमावर्ती राज्य आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओड़िशा, महाराष्ट्र के लोग पहुंचते हैं. साथ ही इन क्षेत्रों की देवी देवताओं को देखना और उनकी समस्याओं को भी सुनने का संगम भारत देश में और कहीं देखने को नहीं मिलता है.'' कमलचंद भंजदेव, सदस्य राजपरिवार


मुरिया दरबार का अपना अलग है रिवाज : इस दरबार में राजा अपनी शाही वेशभूषा में नहीं पहुंचते थे. बल्कि साधारण कपड़े पहनकर वे लोगों के बीच बैठते थे. ताकि बिना झिझक के लोग अपनी बातें उनसे कह सके.इन बातों को सुनकर राजा समस्याओं का निराकरण भी मौके पर ही करते थे. यही मुरिया दरबार का मुख्य उद्देश्य है.


क्यों है मुरिया दरबार खास ? : मुरिया समाज के सदस्य शंकर कश्यप ने बताया कि मुरिया दरबार इसीलिए बेहद खास है. क्योंकि आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का तत्काल निराकरण होता है. मुरिया दरबार में राजा के साथ ही मुख्यमंत्री और जिला कलेक्टर मौजूद रहते हैं. जिसके बाद समस्याओं पर घोषणा होती है. इसके कुछ दिनों के बाद काम शुरू भी हो जाता है.

मुरिया दरबार रियासत काल में एकतंत्रीय न्याय प्रणाली के रूप में स्थापित थी जो रियासत की जनता को स्वीकार्य होती थी. मुरिया दरबार का पहला आयोजन 08 मार्च 1876 को पहली बार हुआ था. इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था.बस्तर में बसने वाले जाति और जनजातीय परिवारों हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया आदि जाति के पहचान के लिए पूर्व में मुरिया शब्द ही इस्तेमाल होता था.

सरकारी दफ्तर से पहले होता है काम : आदिवासी समाज के लोगों की माने तो समस्याओं को लेकर यदि सरकारी दफ्तर में जाते हैं. तो वो केवल फाइल बन जाती है. तारीख पर तारीख मिलती है. बार-बार आवेदन देने पर भी निराकरण नहीं होता है. आपको बता दें कि इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर मुरिया दरबार को देश की राजधानी दिल्ली में झांकी के माध्यम से प्रदर्शित किया जा रहा है. जो मुरिया समाज के साथ ही बस्तर के आदिवासियों के लिए गर्व की बात है.

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Last Updated : Jan 26, 2024, 8:56 AM IST
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