ETV Bharat / bharat

लोकसभा चुनाव 2024: केंद्र की सीढ़ी चढ़े हैं हरिद्वार के सांसद, BJP-कांग्रेस का रहा है दबदबा, मुस्लिम वोटर बनता है किंग मेकर

History of Haridwar Lok Sabha Seat उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट जनसंख्या के लिहाज से प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. सीट पर भाजपा और कांग्रेस का दबदबा देखा गया है. बसपा ने भी सीट पर जीत का स्वाद चखा है. खास बात है कि इस सीट पर मुस्लिम वोटर कई बार किंग मेकर की भूमिका निभा चुका है.

Haridwar Lok Sabha Seat
हरिद्वार लोकसभा सीट
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 23, 2024, 6:58 AM IST

हरिद्वार: उत्तराखंड राज्य का प्राचीन और पवित्र नगर है हरिद्वार. जिसका नाम संस्कृत में 'हरि का द्वार' के अर्थ में है. यह नगर अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. इसी तरह हरिद्वार लोकसभा सीट भी भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह सीट राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस सीट का इतिहास विवादों और उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है. सीट पर कांग्रेस, भाजपा और बसपा का दबदबा रहा है.

1977 में अस्तित्व में आई सीट: मैदानी क्षेत्र के लिहाज से हरिद्वार को उत्तराखंड का द्वार भी कहा जाता है. 1977 में अस्तित्व में आई इस सीट ने कई बड़े नेताओं को देखा है. मायावती से लेकर रामविलास पासवान को यहां की जनता ने बेरंग लौटाया है. जबकि कई ऐसे चेहरों पर भरोसा भी जताया है, जिनका राजनीतिक सफर कुछ ही सालों का रहा हो. खास बात ये भी है कि हरिद्वार सीट पर एक ही पार्टी का दबदबा कभी नहीं रहा. यहां के लोगों ने कभी 'कमल' को पसंद किया तो कभी 'हाथ' के साथ खड़े दिखाई दिए. सन 1977 से 2019 तक हरिद्वार लोकसभा सीट पर 6 बार भाजपा और 4 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.

Haridwar Lok Sabha Seat
हरिद्वार लोकसभा सीट पर कब कौन जीता.

समय के साथ बदले सीट के समीकरण: हरिद्वार लोकसभा सीट पर ग्रामीण आबादी अधिक होने के कारण 1977 से 2009 तक यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित (रिजर्व) रही है. इसके बाद साल 2009 में इस सीट को सामान्य घोषित किया गया. 1977 में जब देश में कांग्रेस के खिलाफ लहर थी तो हरिद्वार लोकसभा सीट पर भारतीय लोक दल (अब राष्ट्रीय लोक दल) के प्रत्याशी भगवानदास राठौड़ ने जीत का परचम लहराया था. 1977 के बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में लोक दल (सेक्युलर) के जगपाल सिंह चुनाव जीते. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो सुंदर लाल ने भारी मतों से हरिद्वार लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की.

कब कौन जीता? 1984 के बाद तो कांग्रेस ने इस सीट पर कई बाद जीत दर्ज की. 1987 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के ही राम सिंह यहां से सांसद चुने गए. 1989 में भी देश में कांग्रेस की लहर के बीच कांग्रेस के जगपाल सिंह सांसद चुने गए. लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता ने लोकसभा सीट की कमान भाजपा के राम सिंह के हाथों सौंप दी. इसके बाद भाजपा की जीत का सिलसिला लंबा चला. 1991 से लेकर 1999 तक लगातार 4 बार यहां से भाजपा के उम्मीदवार जीते. 1991 के बाद 1996 में हरपाल सिंह साथी एमपी बने. उन्हें 1998 और 1999 में भी जीत मिली.

हालांकि, भाजपा का जीत का सिलसिला साल 2004 में रुका और समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बादी इस सीट से चुनाव जीते. हरिद्वार के लिए अनजान रहे बादी जनता की नजरों और कामों में खरे नहीं उतरे और उसके बाद 2009 में यहां से कांग्रेस के हरीश रावत सांसद चुने गए. कहते हैं हरीश रावत की किस्मत भी यहीं से खुली. इस जीत ने उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी और फिर उसके बाद उन्हें अचानक मुख्यमंत्री पद भी मिल गया. लेकिन सीएम रहते हरीश रावत ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी (रेणुका रावत) को भाजपा के प्रत्याशी रमेश पोखरियाल निशंक के सामने खड़ा किया. लेकिन निशंक ने भारी मतों से सीट पर जीत हासिल की. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी निशंक इस सीट पर दूसरी बार सांसद चुने गए.

सबसे अधिक वोटर वाली सीट: हरिद्वार लोकसभा सीट प्रदेश की सबसे बड़ी सीट है. 2019 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार हरिद्वार सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं. आंकड़ों के मुताबिक यहां पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 8 लाख 88 हजार 328 है. जबकि महिला वोटर्स की संख्या 7 लाख 54 हजार 545 है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 24 लाख 5 हजार 753 थी. यहां की लगभग 60 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. जबकि 40 फीसदी जनसंख्या का निवास शहरों में है. इस इलाके में अनुसूचित जाति की संख्या 19.23 फीसदी है.

हरिद्वार की 11 और देहरादून की 3 विस शामिल: हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में 14 विधान सभा सीटें हैं जिसमे हरिद्वार (नगर), मंगलौर, लक्सर, भेल रानीपुर, रुड़की, खानपुर, झाबरेड़ा (एससी), हरिद्वार ग्रामीण, पिरान कलियर, भगवानपुर (एससी), ज्वालापुर (एससी) ऋषिकेश, डोईवाला और धर्मपुर सीट शामिल है. हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में हरिद्वार की 11 और देहरादून की 3 विधानसभा सीट शामिल है.

मुस्लिम वोटर निर्णायक: हरिद्वार को भले ही हिंदुओं के धार्मिक स्थल के नाम से जाना जाता हो. लेकिन बात अगर राजनीति की करें तो इस सीट पर मुस्लिम वोटरों का काफी दबदबा रहता है. वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी कहते हैं कि राज्य बनने के बाद से अब तक उधमसिंह नगर और नैनीताल के साथ-साथ हरिद्वार जिले में मुस्लिम वोटर निर्णायक रहा है. वो बात अलग है कि उन्हें टिकट सिर्फ कुछ ही पार्टी देती है. आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जब राज्य का गठन हुआ और विधानसभा चुनाव (2002 में) हुए तो विधानसभा में हरिद्वार से तीन मुस्लिम विधायक (बहादराबाद से मोहम्मद शहजाद, मंगलौर से काजी मोहम्मद निजामुद्दीन और लालढांग से तस्लीम अहमद) पहुंचे थे. हालांकि, ये सिलसिला आज भी जारी है. खासकर हरिद्वार के तराई इलाकों में आज भी मुस्लिम वोटर निर्णायक के रूप में नजर आता है.

क्या हैं मुद्दे: हरिद्वार लोकसभा में शुरुआती समय से कुछ खास मुद्दे नहीं रहे हैं. कह सकते हैं कि जनता ने विधायक और सांसद को चेहरा और पार्टी के सिंबल पर चुना है. ग्रामीण से लेकर शहरों तक कुछ एजुकेशन से जुड़े मुद्दे हैं तो कुछ बेरोजगारी से जुड़े. लेकिन बात जब धर्म की आती है तो सभी मुद्दे शांत दिखाई देते हैं. लेखक और पत्रकार सुनील पांडेय कहते हैं कि हरिद्वार से जो भी सांसद बना है, वो देश की राजनीति में चमका है. हरीश रावत की किस्मत भी यहीं से खुली. इसके बाद रमेश पोखरियाल निशंक भी केंद्र की राजनीति में सत्तासीन रहे.

ये भी पढ़ेंः हरिद्वार सीट को हरक ने कहा BYE BYE! हाईकमान के सामने की हरदा की पैरवी, चुनाव लड़ने से किया इंकार

ये भी पढ़ेंः हरिद्वार लोकसभा सीट से बेटे आनंद के लिए टिकट चाहते हैं हरीश रावत, जता दी अपने मन की इच्छा

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी प्रियंका गांधी! कांग्रेस ने बनाई रणनीति, जानिये कौन सी होगी हॉट सीट

हरिद्वार: उत्तराखंड राज्य का प्राचीन और पवित्र नगर है हरिद्वार. जिसका नाम संस्कृत में 'हरि का द्वार' के अर्थ में है. यह नगर अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. इसी तरह हरिद्वार लोकसभा सीट भी भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह सीट राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस सीट का इतिहास विवादों और उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है. सीट पर कांग्रेस, भाजपा और बसपा का दबदबा रहा है.

1977 में अस्तित्व में आई सीट: मैदानी क्षेत्र के लिहाज से हरिद्वार को उत्तराखंड का द्वार भी कहा जाता है. 1977 में अस्तित्व में आई इस सीट ने कई बड़े नेताओं को देखा है. मायावती से लेकर रामविलास पासवान को यहां की जनता ने बेरंग लौटाया है. जबकि कई ऐसे चेहरों पर भरोसा भी जताया है, जिनका राजनीतिक सफर कुछ ही सालों का रहा हो. खास बात ये भी है कि हरिद्वार सीट पर एक ही पार्टी का दबदबा कभी नहीं रहा. यहां के लोगों ने कभी 'कमल' को पसंद किया तो कभी 'हाथ' के साथ खड़े दिखाई दिए. सन 1977 से 2019 तक हरिद्वार लोकसभा सीट पर 6 बार भाजपा और 4 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.

Haridwar Lok Sabha Seat
हरिद्वार लोकसभा सीट पर कब कौन जीता.

समय के साथ बदले सीट के समीकरण: हरिद्वार लोकसभा सीट पर ग्रामीण आबादी अधिक होने के कारण 1977 से 2009 तक यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित (रिजर्व) रही है. इसके बाद साल 2009 में इस सीट को सामान्य घोषित किया गया. 1977 में जब देश में कांग्रेस के खिलाफ लहर थी तो हरिद्वार लोकसभा सीट पर भारतीय लोक दल (अब राष्ट्रीय लोक दल) के प्रत्याशी भगवानदास राठौड़ ने जीत का परचम लहराया था. 1977 के बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में लोक दल (सेक्युलर) के जगपाल सिंह चुनाव जीते. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो सुंदर लाल ने भारी मतों से हरिद्वार लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की.

कब कौन जीता? 1984 के बाद तो कांग्रेस ने इस सीट पर कई बाद जीत दर्ज की. 1987 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के ही राम सिंह यहां से सांसद चुने गए. 1989 में भी देश में कांग्रेस की लहर के बीच कांग्रेस के जगपाल सिंह सांसद चुने गए. लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता ने लोकसभा सीट की कमान भाजपा के राम सिंह के हाथों सौंप दी. इसके बाद भाजपा की जीत का सिलसिला लंबा चला. 1991 से लेकर 1999 तक लगातार 4 बार यहां से भाजपा के उम्मीदवार जीते. 1991 के बाद 1996 में हरपाल सिंह साथी एमपी बने. उन्हें 1998 और 1999 में भी जीत मिली.

हालांकि, भाजपा का जीत का सिलसिला साल 2004 में रुका और समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बादी इस सीट से चुनाव जीते. हरिद्वार के लिए अनजान रहे बादी जनता की नजरों और कामों में खरे नहीं उतरे और उसके बाद 2009 में यहां से कांग्रेस के हरीश रावत सांसद चुने गए. कहते हैं हरीश रावत की किस्मत भी यहीं से खुली. इस जीत ने उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी और फिर उसके बाद उन्हें अचानक मुख्यमंत्री पद भी मिल गया. लेकिन सीएम रहते हरीश रावत ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी (रेणुका रावत) को भाजपा के प्रत्याशी रमेश पोखरियाल निशंक के सामने खड़ा किया. लेकिन निशंक ने भारी मतों से सीट पर जीत हासिल की. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी निशंक इस सीट पर दूसरी बार सांसद चुने गए.

सबसे अधिक वोटर वाली सीट: हरिद्वार लोकसभा सीट प्रदेश की सबसे बड़ी सीट है. 2019 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार हरिद्वार सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं. आंकड़ों के मुताबिक यहां पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 8 लाख 88 हजार 328 है. जबकि महिला वोटर्स की संख्या 7 लाख 54 हजार 545 है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 24 लाख 5 हजार 753 थी. यहां की लगभग 60 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. जबकि 40 फीसदी जनसंख्या का निवास शहरों में है. इस इलाके में अनुसूचित जाति की संख्या 19.23 फीसदी है.

हरिद्वार की 11 और देहरादून की 3 विस शामिल: हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में 14 विधान सभा सीटें हैं जिसमे हरिद्वार (नगर), मंगलौर, लक्सर, भेल रानीपुर, रुड़की, खानपुर, झाबरेड़ा (एससी), हरिद्वार ग्रामीण, पिरान कलियर, भगवानपुर (एससी), ज्वालापुर (एससी) ऋषिकेश, डोईवाला और धर्मपुर सीट शामिल है. हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में हरिद्वार की 11 और देहरादून की 3 विधानसभा सीट शामिल है.

मुस्लिम वोटर निर्णायक: हरिद्वार को भले ही हिंदुओं के धार्मिक स्थल के नाम से जाना जाता हो. लेकिन बात अगर राजनीति की करें तो इस सीट पर मुस्लिम वोटरों का काफी दबदबा रहता है. वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी कहते हैं कि राज्य बनने के बाद से अब तक उधमसिंह नगर और नैनीताल के साथ-साथ हरिद्वार जिले में मुस्लिम वोटर निर्णायक रहा है. वो बात अलग है कि उन्हें टिकट सिर्फ कुछ ही पार्टी देती है. आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जब राज्य का गठन हुआ और विधानसभा चुनाव (2002 में) हुए तो विधानसभा में हरिद्वार से तीन मुस्लिम विधायक (बहादराबाद से मोहम्मद शहजाद, मंगलौर से काजी मोहम्मद निजामुद्दीन और लालढांग से तस्लीम अहमद) पहुंचे थे. हालांकि, ये सिलसिला आज भी जारी है. खासकर हरिद्वार के तराई इलाकों में आज भी मुस्लिम वोटर निर्णायक के रूप में नजर आता है.

क्या हैं मुद्दे: हरिद्वार लोकसभा में शुरुआती समय से कुछ खास मुद्दे नहीं रहे हैं. कह सकते हैं कि जनता ने विधायक और सांसद को चेहरा और पार्टी के सिंबल पर चुना है. ग्रामीण से लेकर शहरों तक कुछ एजुकेशन से जुड़े मुद्दे हैं तो कुछ बेरोजगारी से जुड़े. लेकिन बात जब धर्म की आती है तो सभी मुद्दे शांत दिखाई देते हैं. लेखक और पत्रकार सुनील पांडेय कहते हैं कि हरिद्वार से जो भी सांसद बना है, वो देश की राजनीति में चमका है. हरीश रावत की किस्मत भी यहीं से खुली. इसके बाद रमेश पोखरियाल निशंक भी केंद्र की राजनीति में सत्तासीन रहे.

ये भी पढ़ेंः हरिद्वार सीट को हरक ने कहा BYE BYE! हाईकमान के सामने की हरदा की पैरवी, चुनाव लड़ने से किया इंकार

ये भी पढ़ेंः हरिद्वार लोकसभा सीट से बेटे आनंद के लिए टिकट चाहते हैं हरीश रावत, जता दी अपने मन की इच्छा

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी प्रियंका गांधी! कांग्रेस ने बनाई रणनीति, जानिये कौन सी होगी हॉट सीट

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.