देहरादून (उत्तराखंड): इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) ने एक ऐसी रिपोर्ट जारी की है, जिसने दुनियाभर के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है. ISRO की यह रिपोर्ट हिमालय के ग्लेशियरों से जुड़ी है, जिसमें ग्लेशियर्स के सैटेलाइट डेटा और रिपोर्ट जारी किया गया है. डेटा पर गौर करें तो ग्लेशियरों के पिघलने के साथ ही उससे बनने वाली झीलों का आकार भी बढ़ा है. यानी हिमालय के ऊपरी हिस्सों में कई तरह की झील बन गई हैं, जो साल दर साल बड़ा आकार ले रही हैं. अगर भविष्य में यह झील टूटती हैं तो केदारनाथ जैसी आपदा हिमालय के किसी भी क्षेत्र में आ सकती है.
डरा रही है इसरो की रिपोर्ट: दरअसल, बीती 22 अप्रैल (पृथ्वी दिवस) पर जारी ISRO की इस रिपोर्ट में हिमालय को लेकर कई तरह के खुलासे किए गए हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रकृति और जलवायु को संजोकर रखने वाला हिमालय एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है. यह समस्या कुछ और नहीं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग है. हिमालय में साल दर साल मौसम में परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं. ISRO की रिपोर्ट में विस्तारपूर्वक आंकड़े दिए गए हैं. ISRO लगातार 3 दशक से ज्यादा समय से हिमालय की इन गतिविधियों पर डाटा तैयार कर रहा है. हाल में जारी ISRO की रिपोर्ट काफी चिंताजनक है.
इसरो ने साल 1984 से लेकर 2023 तक के ग्लेशियर से जुड़े सैटेलाइट आंकड़े जुटाए हैं. उसके मुताबिक, हिमालय में साल 2016-17 में 2,431 ग्लेशियर झीलें थीं, जो करीब 10 हेक्टेयर में फैली थी, लेकिन चिंता की बात ये है कि साल 1984 के बाद हिमालयी क्षेत्र में आश्चर्यजनक तरीके से 676 झीलें विकसित हुई हैं. इन 2,431 झील में से 676 ऐसी झीलें हैं, जिनका आकार लगातार बढ़ रहा है.
भारत में 130 झीलें हैं, जिसमें से गंगा नदी के ऊपर 7 बड़ी झीलें, सिंधु नदी के ऊपर 65 और ब्रह्मपुत्र के बेसिन में 58 झीलें बनकर तैयार हो गई है. ये सभी ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के बाद बने हैं. हालांकि, हिमालय में झीलों का बना कोई नई बात नहीं है, लेकिन चिंता की बात ये है कि इनकी संख्या लगातार न केवल बढ़ रही है बल्कि, इनके फैलने का समय भी बेहद कम है. यानी कम समय में झील अपना आकार कई गुना बड़ा कर रही है.
ISRO की रिपोर्ट की मानें तो ये झीलें तेजी से फैल रही हैं. इन 676 में से 601 से झीलों का स्तर दोगुना से ऊपर चला गया है. इन 676 में से 130 झीलें भारत में हैं. रिपोर्ट की मानें तो भारत में मौजूद इन 130 झीलों में से 10 झीलें ऐसी हैं, जिनका आकार 2 गुना बड़ा हो गया है. जबकि, 65 झीलें ऐसी हैं, जिनका डेढ़ गुना आकर तेजी से बढ़ गया है.
सबसे ज्यादा तेजी से हिमाचल प्रदेश के घेपांग घाटी में बनी झील का आकार बढ़ा है. इसकी इमेज भी ISRO ने जारी की है. यह झील 4068 मीटर की ऊंचाई पर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बढ़ने का इजाफा करीब 178 फीसदी है. साल 1984 में यह झील मात्र 36.40 हेक्टेयर में थी. जबकि, अब इसका आकार 101.30 हेक्टेयर हो गया है. वहीं, 4000-5000 मीटर की उंचाई पर करीब 314 झीलें हैं. जबकि, 5000 से ऊपर 296 ग्लेशियर झीलें मौजूद हैं.
कुमाऊं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी कर चुके थे इसी तरह का खुलासा: बात अगर उत्तराखंड की करें तो ISRO से इतर कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के वैज्ञानिक डॉक्टर डीएस परिहार ने भी साल 2023 में जीआईएस और रिमोट सेंसिंग के साथ सैटेलाइट के माध्यम से बड़ा खुलासा किया था. जिसमें उन्होंने बताया था कि कुमाऊं के ऊपर भी कई तरह की झील बनी हुई हैं, ये झील पहाड़ों के मलबे की दीवार बन जाने की वजह से बने हैं. इसकी जानकारी उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग को भी दी गई थी. ये झीलें अचानक नहीं, बल्कि 10 सालों के भीतर बनी हैं.
वहीं, उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रणजीत सिंह कहते हैं कि राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग लगातार ग्लेशियरों की समय-समय पर मॉनिटरिंग करता है. अपने वैज्ञानिकों को भेजकर इस बात की समय-समय पर रिपोर्ट लेता है कि हिमालय के ऊपर बने ग्लेशियरों में किसी तरह का कोई खतरा तो नहीं है. फिलहाल, साल 2013 की आपदा के बाद उत्तराखंड में हर झील पर नजर रखी जा रही है. समय-समय पर अगर ऐसा कुछ होता है तो झील का पानी भी धीरे-धीरे निकाला जाता है.
पद्मश्री पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी ने जताई चिंता: पद्मश्री और पद्मभूषण पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी ने ISRO की इस रिपोर्ट के बाद चिंता जताई है. उनका कहना है कि इस पर ध्यान देना होगा कि इस संकट से कैसे निकला जाए? क्योंकि, अगर भारत में ही 130 ऐसी झीलें बन गई हैं तो उसके परिणाम आने वाले समय में क्या होंगे? अनिल जोशी 2013 की केदारनाथ आपदा को याद करते हुए कहते हैं कि इसमें न केवल सरकार की बल्कि, आम जनमानस की भागीदारी भी बेहद जरूरी है. यह मुद्दा सभी के लिए गंभीर है और इस पर चर्चा होनी चाहिए.
अनिल जोशी कहते हैं कि लगातार तेजी से बढ़ रही इन जिलों की संख्या और उनके पिघलने की गति भविष्य के लिए खतरा बन सकती है. इससे नदियों में पानी अचानक बढ़ेगा और फिर जल का संकट भी अचानक से ही लोगों के सामने खड़ा हो जाएगा. इसलिए भविष्य की चुनौती को अभी से देखकर हम सभी को सतर्क हो जाना चाहिए.
वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिक और निदेशक काला चंद साईं कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग का असर हिमालय क्षेत्र में देखने को मिल रहा है. उनका कहना है कि इसका मुख्य कारण ये भी है कि हिमालय के जिन क्षेत्रों में पहले बर्फबारी हुआ करती थी, अब वहां पर बारिश होती है और बारिश की वजह से भी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इसके साथ ही जिस तरह से शहरीकरण हो रहा है, वो भी ग्लोबल वार्मिंग में एक बड़ा फैक्टर है. इसी तरह और भी कई कारण हैं, जिसकी वजह से ये सब हो रहा है.
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