नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यूएपीए के मामले में आईएस के एक कथित समर्थक को जमानत दे दी है. जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि आरोपी अगर आईएस की विचारधारा में विश्वास करता है और उसका वेबसाइट देखता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वह आईएस का सदस्य है. हाईकोर्ट ने 30 वर्षीय अम्मार अब्दुल रहिमान को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
कोर्ट ने कहा कि कोई भी उत्सुक व्यक्ति इंटरनेट पर मोबाइल में कंटेंट देखता है और डाउनलोड करता है. कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने मोबाइल पर कंटेंट देखने के अलावा आईएस के प्रचार-प्रसार में कोई भूमिका नहीं निभाई. ऐसे में केवल मोबाइल पर कंटेंट देखना कोई अपराध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि किसी के मोबाइल फोन पर ओसामा बिन लादेन का फोटो होना, आपत्तिजनक सामग्री होना अपराध नहीं है.
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आज के इलेक्ट्रॉनिक दौर में जब वर्ल्ड वाइड वेब (www) मुफ्त में उपलब्ध है तो कोई भी कुछ भी डाउनलोड कर सकता है. इसके लिए उसे आईएस से नजदीकी होना नहीं माना जा सकता है. ऐसा करना यूएपीए की धारा 38 और 39 के प्रावधानों के तहत अपराध नहीं है. यूएपीए की धारा 38 और 39 के तहत आतंकी संगठनों का सदस्य और उसको समर्थन देने का आरोप है.
एनआईए के मुताबिक आरोपी को अगस्त 2021 में गिरफ्तार किया गया था. वह जम्मू और कश्मीर में आईएस के सदस्यों के साथ हिजरा में शामिल हुआ था ताकि भारत में आईएस की गतिविधियों को संचालित किया जा सके. वह आईएस के इंस्टाग्राम अकाउंट को फॉलो करता था और उसके मोबाइल में ओसामा बिन लादेन, आईए के झंडे पाए गए थे.
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