गया : हाथ का पंखा गरीबों के लिए AC और कूलर से कम नहीं है. साथ ही परंपरा भी इस पंखे का साथ जुड़कर चलती है. गर्मी शुरू होते ही इसकी अहमियत सबको होने लगती है. यही वजह है कि इसको बनाने में भी तेजी गर्मी के मौसम में ही आती है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कारण हाथ के पंखे की अब डिमांड पहले की तरह नहीं रही. शहरों में अब पंखे का इस्तेमाल तीज-त्योहार और वट सावित्री पूजा तक ही सिमट कर रह गया है. जबकि गांवों में हाथ के पंखे की डिमांड आज भी बरकरार है. यही वजह है, कि 'पंखा गली' में लाखों पंखे इस गर्मी के सीजन बेचे जाते हैं.
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गया की पंखा गली : हाथ पंखे गया के मानपुर में शिवचरण लेन पंखा गली में बनते हैं. यहां लगभग दर्जनों लोग 100 साल से ज्यादा समय से यहां पंखा बना रहे हैं. इसलिए यह इलाका 'पंखा गली' के नाम से मशहूर है. पंखा गली का नाम इसलिए भी मशहूर हुआ, क्योंकि यहां रहने वाले तकरीबन सभी लोग हाथ के पंखे बनाने के काम से जुड़े हैं. यहां मोहल्ले में घुसते ही सड़क के किनारे ताड़ के पेड़ की लकड़ी और पत्ते से बनने वाले हाथ के पंखे मिल जाते हैं. पुरुषों के अलावे महिलाएं भी हाथ के पंखे बनाने में पीछे नहीं है.
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गर्मी में तेज हो जाता है निर्माण : इस बार बिहार में गर्मी ज्यादा पड़ रही है. गर्मी को लेकर हाथ के पंखे की वैल्यू होती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में. आज भी हर कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग नहीं कर सकता. लोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीदी करते हैं, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर बड़ी आबादी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे पंखा, कूलर, एसी से वंचित रह जाते हैं. ऐसे में इनका साथ हाथ का पंखा देता है. यही वजह है, कि इलेक्ट्रानिक उपकरणों के मार्केट में व्यापक पैमाने पर आने के बावजूद हाथ के पंखों की मांग बनी हुई है. हालांकि, बिक्री में थोड़ी गिरावट जरूर आई है.
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ग्रामीण इलाकों में पंखे की डिमांड : पंखा गली में लगभग दर्जनों कारीगर पंखा बनाने का काम करते हैं. इसकी बिक्री भी खूब हो रही है. ऑर्डर के अनुसार सप्लाई भी किया जा रहा है. ज्यादातर बिक्री ग्रामीण इलाकों में हो रही है. ग्रामीण इलाकों में हाथ के पंखे की डिमांड आज भी बनी हुई है. वट सावित्री पूजा भी नजदीक है. ऐसे में वट सावित्री पूजा को लेकर भी पंखे बनाए जा रहे हैं, क्योंकि वट सावित्री पूजा में सुहागिन महिलाएं हाथ के पंखे को अपने साथ जरूर रखती हैं. हाथ के पंखे का बड़ा धार्मिक महत्व वट सावित्री पूजा में होता है. इस पूजा को लेकर हाथ के पंखे के थोक आर्डर आ रहे हैं और सप्लाई की जा रही है.
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200 सालों का इतिहास : पंखा गली में हाथ के पंखे बनाने का इतिहास 200 साल पुराना है. पंखा गली के लोग बताते हैं, कि उनकी कई पुश्तें पंखा बनाते-बनाते गुजर गई. आज भी पुश्तैनी धंधे को उन्होंने संभाल कर रखा है. क्योंकि यदि मजदूरी करते हैं, तो 300-400 रुपए ही मिलेंगे, लेकिन अपने पुश्तैनी धंधे को करके उससे कहीं ज्यादा पैसा कमा लेते हैं. इसी से परिवार का गुजारा होता है. जितने परिवार के लोग काम करेंगे, उतनी ही आमदनी ज्यादा होगी और उतनी ही हाथ के पंखे ज्यादा बनेंगे. इस तरह हमारा यह पुश्तैनी काम आज भी चल रहा है.
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पंखे की कीमत उसकी खूबसूरती के आधार : वहीं, पंखे का निर्माण अलग-अलग साइजों में हो रहा है. बड़ा पंखा, छोटा पंखा, डिजाइन वाला पंखा बनाया जा रहा है. इस तरह के पंखे का मूल्य 5 से लेकर 20 रुपए तक है. फिलहाल में 50 रुपए के करीब हाथ के पंखे को इस 'पंखा गली' में बनाया जा रहा है.
बिहार के अलावे झारखंड तक है सप्लाई : गया का पंखा गली बिहार ही नहीं, बल्कि झारखंड में भी प्रसिद्ध है. यहां बिहार के दर्जनों जिलों के अलावा झारखंड के कई जिलों से पंखा गली खरीददार पहुंचते हैं और थोक भाव से काफी संख्या में पंखा खरीद कर ले जाते हैं. झारखंड के कोडरमा, हजारीबाग समेत कई जिलों में गया का पंखा गली का हाथ का पंखा बिक्री होती है.
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''यह हम लोग का पुश्तैनी बिजनेस है.सैकड़ों सालों से दादा परदादा करते आ रहे हैं. पंखा बनाए जाने के कारण ही इस मोहल्ले का नाम पंखा गली पड़ा है. गर्मी शुरू होते ही हम लोग पंखा बनाने का काम शुरू करते हैं. इस बार थोड़ी डिमांड कम है, लेकिन आर्डर आ रहे हैं. वट सावित्री पूजा को लेकर भी हाथ का पंखा बनाने का काम तेजी से चल रहा है. लाखों पंखे यहां से बिहार के अलावा झारखंड के जिलों में भी सप्लाई किए जाते हैं.''- विनोद कुमार, हाथ का पंखा बनाने वाले कारीगर
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