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सरहदों में बंटा भाई-बहन का प्यार, रक्षाबंधन पर गुजरात की इन बहनों की आंखों में छलके आंसू - Raksha Bandhan 2024

Raksha Bandhan 2024: 'पंछी नदिया पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके, सरहद इंसानों के लिए हैं', फिल्म रिफ्यूजी के गाने की ये लाइन कई दिलों पर गहरा प्रभाव डालती है, खासकर भारत और पाकिस्तान में बसे हिंदू परिवारों पर, जिनके सदस्य वहां भी है और यहां भी है. रक्षाबंधन पर अपने भाइयों को राखी न बांध सकने के कारण इन परिवारों की बहनों की आंखें भर आती हैं.

many sisters from Gujarat celebrates rakshabandhan with her brother who living in pakistan
रक्षाबंधन पर गुजरात की बहनों की आंखों में छलके आंसू (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 19, 2024, 10:58 PM IST

बनासकांठा: भाई-बहनों के अटूट प्यार का पर्व रक्षाबंधन सोमवार 19 अगस्त को देश-दुनिया में बनाया गया. वहीं गुजरात के बनासकांठा जिले के थराद गांव की बहनें रक्षाबंधन के पर्व पर पाकिस्तान में बसे अपने भाइयों को प्रत्यक्ष रूप से राखी न बांध सकने के कारण उनकी आंखें भर आती हैं. इन बहनों ने मोबाइल पर वीडियो कॉल के जरिए अपने भाइयों की राखी बांधी.

दरअसल, वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध दौरान कई हिंदू परिवार पाकिस्तान छोड़कर गुजरात में आ गए थे और यहीं बस गए हैं. ऐसे में कुछ परिवार बनासकांठा के थराद गांव में भी आ बसे. वैसे तो त्योहार खुशियां लेकर आता है, लेकिन यहां की बहनों के लिए राखी का पर्व इनकी आंखों में आंसू लेकर आता है, क्योंकि रक्षाबंधन के दिन गुजरात की यह बहनें पाकिस्तान में बसे अपने भाइयों को राखी नहीं बांध सकतीं. लेकिन मोबाइल में वीडियो कॉल के जरिये भाई को राखी बांधने की रश्म निभाती हैं और एक-दूसरे का चेहरा देखकर भावुक हो जाते हैं. आज भी भाई की याद में बहनों की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं.

रक्षाबंधन पर गुजरात की इन बहनों की आंखों में छलके आंसू
रक्षाबंधन पर गुजरात की इन बहनों की आंखों में छलके आंसू (ETV Bharat)

1971 के युद्ध में भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान की सैना को धूल चटाई थी और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. इस युद्ध के बाद कई हिंदू परिवारों ने पाकिस्तान छोड़ने का फैसला किया, जिसमें 100 परिवार गुजरात आ गए और इसे अपनी मातृभूमि मानकर नागरिकता स्वीकार कर ली, हालांकि इनमें से कई परिवारों के सदस्य आज भी पाकिस्तान में रह रहे हैं. चूंकि इन परिवारों की महिला बहनों के भाई 53 वर्षों से पाकिस्तान में रह रहे हैं, इसलिए आज भी बहनें रक्षाबंधन के दिन वीडियो कॉल पर ही राखी की सब रश्म निभाती हुईं भाइयों को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद देती हैं और उनकी आंखें नम हो जाती हैं.

थराद की संतोकबेन और हुवा बेन नाम की बहनों ने कहा कि रक्षाबंधन के दौरान हमें अपने भाइयों की बहुत याद आती है, जब हम छोटे थे तो हम सभी त्योहार पाकिस्तान में मनाते थे. कुछ सालों से हम मोबाइल से वीडियो कॉलिंग के माध्यम से ही एक दूसरे का चेहरा देखकर आरती और तिलक लगाकर राखी की रश्में निभाते आ रहे हैं.

यह भी पढ़ें- बहनों ने भाई के कलाई पर बांधी रक्षा की डोर, भाइयों ने ऐसे जीता उनका दिल

बनासकांठा: भाई-बहनों के अटूट प्यार का पर्व रक्षाबंधन सोमवार 19 अगस्त को देश-दुनिया में बनाया गया. वहीं गुजरात के बनासकांठा जिले के थराद गांव की बहनें रक्षाबंधन के पर्व पर पाकिस्तान में बसे अपने भाइयों को प्रत्यक्ष रूप से राखी न बांध सकने के कारण उनकी आंखें भर आती हैं. इन बहनों ने मोबाइल पर वीडियो कॉल के जरिए अपने भाइयों की राखी बांधी.

दरअसल, वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध दौरान कई हिंदू परिवार पाकिस्तान छोड़कर गुजरात में आ गए थे और यहीं बस गए हैं. ऐसे में कुछ परिवार बनासकांठा के थराद गांव में भी आ बसे. वैसे तो त्योहार खुशियां लेकर आता है, लेकिन यहां की बहनों के लिए राखी का पर्व इनकी आंखों में आंसू लेकर आता है, क्योंकि रक्षाबंधन के दिन गुजरात की यह बहनें पाकिस्तान में बसे अपने भाइयों को राखी नहीं बांध सकतीं. लेकिन मोबाइल में वीडियो कॉल के जरिये भाई को राखी बांधने की रश्म निभाती हैं और एक-दूसरे का चेहरा देखकर भावुक हो जाते हैं. आज भी भाई की याद में बहनों की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं.

रक्षाबंधन पर गुजरात की इन बहनों की आंखों में छलके आंसू
रक्षाबंधन पर गुजरात की इन बहनों की आंखों में छलके आंसू (ETV Bharat)

1971 के युद्ध में भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान की सैना को धूल चटाई थी और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. इस युद्ध के बाद कई हिंदू परिवारों ने पाकिस्तान छोड़ने का फैसला किया, जिसमें 100 परिवार गुजरात आ गए और इसे अपनी मातृभूमि मानकर नागरिकता स्वीकार कर ली, हालांकि इनमें से कई परिवारों के सदस्य आज भी पाकिस्तान में रह रहे हैं. चूंकि इन परिवारों की महिला बहनों के भाई 53 वर्षों से पाकिस्तान में रह रहे हैं, इसलिए आज भी बहनें रक्षाबंधन के दिन वीडियो कॉल पर ही राखी की सब रश्म निभाती हुईं भाइयों को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद देती हैं और उनकी आंखें नम हो जाती हैं.

थराद की संतोकबेन और हुवा बेन नाम की बहनों ने कहा कि रक्षाबंधन के दौरान हमें अपने भाइयों की बहुत याद आती है, जब हम छोटे थे तो हम सभी त्योहार पाकिस्तान में मनाते थे. कुछ सालों से हम मोबाइल से वीडियो कॉलिंग के माध्यम से ही एक दूसरे का चेहरा देखकर आरती और तिलक लगाकर राखी की रश्में निभाते आ रहे हैं.

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