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यहां भगवान राम से पहले की जाती है रावण की पूजा, नहीं जलाते रावण का पुतला, वध के बाद होता है तेरहवीं संस्कार

खजुहा कस्बे में 550 वर्षों से दशहरे पर होती है भव्य रामलीला, दशहरे पर रामजानकी मंदिर में गणेश पूजा से होती है रामलीला शुरू.

Photo Credit- ETV Bharat
मंदिर में रावण का विशालकाय तांबे के शीश की पूजा होती है (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 12, 2024, 3:41 PM IST

Updated : Oct 12, 2024, 4:28 PM IST

फतेहपुर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद में छोटी काशी के नाम से मशहूर खजुहा कस्बे की 550 वर्षों से दशहरे पर होने वाली रामलीला में कुछ तो अद्भुत हैं. यहां की रामलीला देखने वाले भी एक बारगी आश्चर्य में पड़ जाते हैं. यहां पर न तो रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही पहले श्रीराम को पूजा जाता है. इतना ही नहीं लक्ष्मण की मूर्छा भी काल्पनिक नहीं बल्कि हकीकत होती है. लोगों की मानें तो मेघनाद के मंत्रों से दी गई मूर्छा को कोई डॉक्टर भी नहीं तोड़ सकता है.

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खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे (Photo Credit- ETV Bharat)

बता दें कि गंगा यमुना के दोआब में बसे खजुहा कस्बे में होने वाली 550 वर्षीय रामलीला अपनी भव्यता के आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है. मुगल रोड के किनारे बसा ऐतिहासिक खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था, जिसकी छाप यहां की रामलीला में अब भी देखी जा सकती है. इस रामलीला में भगवान राम से पहले रावण की पूजा होती है, जो इसे अन्य रामलीला से अलग करती है.

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खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था (Photo Credit- ETV Bharat)

इस रामलीला में राम-रावण युद्ध के दौरान विशालकाय पुतले को लकड़ी के पहिए पर व्यवस्थित करके बनाया जाता है. इसका मंचन एक बड़े से तालाब के किनारे एक आभासी लंका मैदान बनाकर किया जाता है. इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. रामलीला के लिए यहां एक माह पहले से ही कुशल कारीगरों के माध्यम से विशालकाय रावण और राम के स्वरूपों का निर्माण किया जाता है. दशहरे के दिन राम जानकी मंदिर में गणेश पूजा से रामलीला शुरु होती है. इस मंदिर में रावण का विशालकाय तांबे का शीश रखा है, जिसकी लोग पूजा करते हैं.

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रामलीला देखने वालों को होता है अनोखा अनुभव (Photo Credit- ETV Bharat)

वहीं रामलीला में रावण की पूजन के पश्चात भगवान राम की पूजा होती है. आठवें दिन आभासी लंका मैदान में बड़े से तालाब के किनारे रावण का वध होता है. वध के बाद रावण की विधिवत 13वीं की जाती है और लोगों को ब्रम्हभोज कराया जाता है. इन रस्मों को देखने के लिए यहां दूर-दराज से लोग आते हैं. मेले में छोटी बड़ी लगभग दो दर्जन से अधिक झांकिया सजाई जाती हैं. राम-रावण युद्ध के दिन लाखों की तादात में लोग जुटते हैं.

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कारीगर विशालकाय रावण और राम के स्वरूप बनाते हैं (Photo Credit- ETV Bharat)

राम जानकी मंदिर के पुजारी पंडित रामजी महाराज ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मराठाओं ने करवाया था, जिसमें केवल गणेश जी की पूजा होती थी. औरंगजेब के काल में यहां के ब्राह्मण लोगों ने राम जानकी मंदिर की स्थापना की और भव्य रामलीला की शुरुआत की. तभी से यह रामलीला निरंतर चली आ रही है. रामलीला में लकड़ी के पहिए पर राम और रावण की विशालकाय संरचना तैयार की जाती है.

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बड़े तालाब के किनारे लंका मैदान बनाया जाता है (Photo Credit- ETV Bharat)

बता दें कि खजुहा कस्बे के पास शाहजहां के पुत्र औरंगजेब और शाह शुजा के मध्य सत्ता के लिए 5 जनवरी 1659 में युद्ध हुआ था. इस युद्ध में औरंगजेब विजेता हुआ, जिसके बाद उन्होनें बाग बादशाही का निर्माण करवाया. औरंगजेब के द्वारा यहां मुगल सल्तनत का प्रभाव देखकर यहां के हिन्दू लोगों ने हिंदू धर्म के प्रभाव को बढ़ाया.

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लक्ष्मण की मूर्छा भी काल्पनिक नहीं बल्कि हकीकत होती है. (Photo Credit- ETV Bharat)

रावण की पूजा के सम्बंध में स्थानीय पंडित रामकृपाल जी बताते हैं कि खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे, जिसके कारण उन्हें रावण को जलाना ब्राह्मण जाति का अपमान लगता था. इसलिए यहां रावण को जलाने के बजाय उन्हें पूजा जाता है, और वध के बाद बकायदा तेरहवीं संस्कार कराया जाता है.
शाहजहांपुर में भगवान राम के साथ होती है रावण की पूजा: शाहजहांपुर के खिरनी बाग रामलीला मैदान में लोग रावण के पुतले के पैरों पर प्रसाद चढ़ाते हैं. दान दक्षिणा चढाते हैं और फिर रावण के के पुतले के पैर छूकर उसका आशीर्वाद लेते हैं. परिवार के लोग खासतौर पर अपने छोटे बच्चों को रावण के पुतले के पास लाते हैं और बच्चे रावण के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. श्रद्धालु रमाकांत द्विवेदी ने बताया कि माना जाता है कि रावण महाज्ञानी और महापराक्रमी था. लोगों को विश्वास है कि रावण के पैर छूने से उनके बच्चे महाज्ञानी और पराक्रमी बनेंगे. यही वजह है कि यहां लोग भगवान राम के साथ रावण की भी पूजा करते हैं.
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मेघनाद के मंत्रों से दी गई मूर्छा को कोई डॉक्टर भी नहीं तोड़ सकता (Photo Credit- ETV Bharat)
ये भी पढ़ें- विजयदशमी पर पहली बार काशी विश्वनाथ मंदिर में हुआ शस्त्र पूजन

फतेहपुर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद में छोटी काशी के नाम से मशहूर खजुहा कस्बे की 550 वर्षों से दशहरे पर होने वाली रामलीला में कुछ तो अद्भुत हैं. यहां की रामलीला देखने वाले भी एक बारगी आश्चर्य में पड़ जाते हैं. यहां पर न तो रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही पहले श्रीराम को पूजा जाता है. इतना ही नहीं लक्ष्मण की मूर्छा भी काल्पनिक नहीं बल्कि हकीकत होती है. लोगों की मानें तो मेघनाद के मंत्रों से दी गई मूर्छा को कोई डॉक्टर भी नहीं तोड़ सकता है.

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खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे (Photo Credit- ETV Bharat)

बता दें कि गंगा यमुना के दोआब में बसे खजुहा कस्बे में होने वाली 550 वर्षीय रामलीला अपनी भव्यता के आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है. मुगल रोड के किनारे बसा ऐतिहासिक खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था, जिसकी छाप यहां की रामलीला में अब भी देखी जा सकती है. इस रामलीला में भगवान राम से पहले रावण की पूजा होती है, जो इसे अन्य रामलीला से अलग करती है.

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खजुहा कस्बा पहले व्यापारियों और धनाढ्य लोगों के लिए जाना जाता था (Photo Credit- ETV Bharat)

इस रामलीला में राम-रावण युद्ध के दौरान विशालकाय पुतले को लकड़ी के पहिए पर व्यवस्थित करके बनाया जाता है. इसका मंचन एक बड़े से तालाब के किनारे एक आभासी लंका मैदान बनाकर किया जाता है. इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. रामलीला के लिए यहां एक माह पहले से ही कुशल कारीगरों के माध्यम से विशालकाय रावण और राम के स्वरूपों का निर्माण किया जाता है. दशहरे के दिन राम जानकी मंदिर में गणेश पूजा से रामलीला शुरु होती है. इस मंदिर में रावण का विशालकाय तांबे का शीश रखा है, जिसकी लोग पूजा करते हैं.

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रामलीला देखने वालों को होता है अनोखा अनुभव (Photo Credit- ETV Bharat)

वहीं रामलीला में रावण की पूजन के पश्चात भगवान राम की पूजा होती है. आठवें दिन आभासी लंका मैदान में बड़े से तालाब के किनारे रावण का वध होता है. वध के बाद रावण की विधिवत 13वीं की जाती है और लोगों को ब्रम्हभोज कराया जाता है. इन रस्मों को देखने के लिए यहां दूर-दराज से लोग आते हैं. मेले में छोटी बड़ी लगभग दो दर्जन से अधिक झांकिया सजाई जाती हैं. राम-रावण युद्ध के दिन लाखों की तादात में लोग जुटते हैं.

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कारीगर विशालकाय रावण और राम के स्वरूप बनाते हैं (Photo Credit- ETV Bharat)

राम जानकी मंदिर के पुजारी पंडित रामजी महाराज ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मराठाओं ने करवाया था, जिसमें केवल गणेश जी की पूजा होती थी. औरंगजेब के काल में यहां के ब्राह्मण लोगों ने राम जानकी मंदिर की स्थापना की और भव्य रामलीला की शुरुआत की. तभी से यह रामलीला निरंतर चली आ रही है. रामलीला में लकड़ी के पहिए पर राम और रावण की विशालकाय संरचना तैयार की जाती है.

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बड़े तालाब के किनारे लंका मैदान बनाया जाता है (Photo Credit- ETV Bharat)

बता दें कि खजुहा कस्बे के पास शाहजहां के पुत्र औरंगजेब और शाह शुजा के मध्य सत्ता के लिए 5 जनवरी 1659 में युद्ध हुआ था. इस युद्ध में औरंगजेब विजेता हुआ, जिसके बाद उन्होनें बाग बादशाही का निर्माण करवाया. औरंगजेब के द्वारा यहां मुगल सल्तनत का प्रभाव देखकर यहां के हिन्दू लोगों ने हिंदू धर्म के प्रभाव को बढ़ाया.

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लक्ष्मण की मूर्छा भी काल्पनिक नहीं बल्कि हकीकत होती है. (Photo Credit- ETV Bharat)

रावण की पूजा के सम्बंध में स्थानीय पंडित रामकृपाल जी बताते हैं कि खजुआ कस्बा में ब्राह्मण लोग अधिक संख्या में रहते थे, जिसके कारण उन्हें रावण को जलाना ब्राह्मण जाति का अपमान लगता था. इसलिए यहां रावण को जलाने के बजाय उन्हें पूजा जाता है, और वध के बाद बकायदा तेरहवीं संस्कार कराया जाता है.
शाहजहांपुर में भगवान राम के साथ होती है रावण की पूजा: शाहजहांपुर के खिरनी बाग रामलीला मैदान में लोग रावण के पुतले के पैरों पर प्रसाद चढ़ाते हैं. दान दक्षिणा चढाते हैं और फिर रावण के के पुतले के पैर छूकर उसका आशीर्वाद लेते हैं. परिवार के लोग खासतौर पर अपने छोटे बच्चों को रावण के पुतले के पास लाते हैं और बच्चे रावण के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. श्रद्धालु रमाकांत द्विवेदी ने बताया कि माना जाता है कि रावण महाज्ञानी और महापराक्रमी था. लोगों को विश्वास है कि रावण के पैर छूने से उनके बच्चे महाज्ञानी और पराक्रमी बनेंगे. यही वजह है कि यहां लोग भगवान राम के साथ रावण की भी पूजा करते हैं.
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मेघनाद के मंत्रों से दी गई मूर्छा को कोई डॉक्टर भी नहीं तोड़ सकता (Photo Credit- ETV Bharat)
ये भी पढ़ें- विजयदशमी पर पहली बार काशी विश्वनाथ मंदिर में हुआ शस्त्र पूजन
Last Updated : Oct 12, 2024, 4:28 PM IST
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