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उत्तराखंड कैबिनेट का बड़ा फैसला, 1962 युद्ध के गवाह रहे इन दो गांवों को मिलेगी नई पहचान

Nelang and Jadung villages of Uttarkashi will be developed धामी कैबिनेट में उत्तरकाशी के नेलांग और जादूंग गांवों को होम स्टे क्लस्टर के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया. केंद्र के हस्तक्षेप के बाद धामी सरकार ने भी गांव के विकसित करने को लेकर कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 24, 2024, 8:03 PM IST

Updated : Jan 24, 2024, 10:16 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में धामी कैबिनेट ने उत्तराखंड के नेलांग और जादूंग गांव को भारत सरकार द्वारा वाइब्रेंट विलेज का दर्जा देने के बाद गांव में और अधिक सुविधा देने का निर्णय लिया है. कैबिनेट में फैसला लिया गया कि इस गांव में होम स्टे क्लस्टर के रूप में विकसित किए जाएंगे. ये गांव इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि साल 1962 में भारतीय सेना ने इस गांव में रुककर ही चीनी सेना के दांत खट्टे किए थे.

उत्तरकाशी स्थित नेलांग और जादूंग गांव, भारत और चीन सीमा पर मिलता है. 1960 युद्ध के दौरान गांव के निवासियों को अपने आशियाने छोड़कर जाना पड़ा था. तब से उत्तराखंड का नेलांग और जादूंग गांव और आसपास की सीमाएं वीरान पड़ी है. लेकिन अब उत्तराखंड सरकार इन दोनों गांव को फिर से बसाने की कवायद में जुट चुकी है. सरकार इन दोनों गांव में सुख-सुविधा देने के साथ ही पर्यटन के लिहाज से भी विकास करने का प्लान बना रही है. इसी क्रम में आज की कैबिनेट बैठक में दोनों गांव को विकास की क्षेणी में लाने पर फैसला लिया गया.

केंद्र की वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम योजना के तहत गांव को विकसित करने से पहले वहां पर मूलभुत सुविधा दी जा रही है. ऐसे में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की सुविधा गांव तक पहुंच सके, इसके लिए उत्तरकाशी के 71 स्थानों पर मोबाइल टावर लगाने जाने हैं. इससे न केवल सेना को फायदा होगा. बल्कि आने वाले समय में पर्यटकों की आमद भी बढ़ेगी.
ये भी पढ़ेंः जल्द नए कलेवर में दिखाई देगा उत्तरकाशी का जादूंग गांव, भवनों के जीर्णोद्धार की कवायद तेज

जानें इतिहास और मौजूदा गांव के हालात: उत्तरकाशी स्थित गंगोत्री नेशनल पार्क के क्षेत्र में आने वाले नेलांग और जादूंग गांव समुद्र तल से 11 हजार 400 फीट की ऊंचाई मौजूद हैं. ये गांव तिब्बत और भारत के बीच व्यापार का गवाह भी रहे हैं. इन गांव में जाने का फिलहाल एक बेहद पुराना मार्ग है. जहां एक छोटा सा लकड़ी का पुल बना हुआ है, जो मुख्यालय की सड़क से गांवों को जोड़ता है. अभी इन दोनों गांव को सेना ने अपना ठिकाना बनाया है. युद्ध के बाद आम नागरिकों को इन गांव तक जाने की अनुमति नहीं थी. लेकिन 2022 के बाद से विशेष परमिट लेकर यहां पर कुछ पर्वतारोही पहुंचने लगे हैं.

मुख्य सचिव स्तर से चल रही है कार्रवाई: उत्तरकाशी के इन गांव को बसाने और यहां तक सुविधाओं को पहुंचाने के लिए साल 2022 के बजट में केंद्र सरकार ने बकायदा वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत बजट रखा था. जिसके बाद राज्य सरकार के साथ भी पत्राचार किया गया था. उसी का नतीजा है कि आज कैबिनेट में भी इन गांव को लेकर फैसला लिया गया है. केंद्र के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार भी चाहती है कि इन गांव को जल्द से जल्द न केवल ग्रामीणों के लिए बसाया जाए. बल्कि एक मॉडल गांव की तरह विकसित भी किया जाए. ताकि आने वाले समय में गंगोत्री नेशनल पार्क घूमने आने वाले पर्यटक उन ऐतिहासिक जगहों को भी निहार सके. इसके लिए सरकार ने होम स्टे क्लस्टर के रूप में विकसित करने के लिए अपनी अनुमति प्रदान कर दी है.
ये भी पढ़ेंः वाइब्रेंट विलेज योजना: 1962 भारत-चीन युद्ध में उत्तराखंड ये दो गांव हो गए थे वीरान, अब बनेंगे टूरिज्म हब

राज्य में होम स्टे योजना के फायदे: तीस लाख रुपये की सीमा तक कमर्शियल लोन की अनुमति के बदले कोलैटरल पर लगने वाले शुल्क की प्रतिपूर्ति होगी. पुराने मकानों के आधुनिकीकरण और साज-सज्जा, नए शौचालयों के निर्माण पर भू-उपयोग परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होगी. होम स्टे योजना में घर का नवीनीकरण करने के लिए पात्र आवेदकों को बैंक लोन लिए जाने की हालत में सरकार से मदद मिलेगी. होम स्टे योजना के प्रचार-प्रसार के लिए अलग वेबसाइट और मोबाइल ऐप विकसित किया गया है. होम स्टे संचालकों को आतिथ्य सत्कार का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

होम स्टे से आमदनी पर शुरुआती तीन साल तक SGST की धनराशि की भरपाई विभाग द्वारा की जाएगी. इसके साथ ही खास बात ये है कि मैदानी जनपदों के लिए लागत का 25 प्रतिशत या अधिक से अधिक रुपए 7.50 लाख की सहायता मिलेगी. साथ ही पांच साल के लिए अधिक से अधिक रुपए 1 लाख प्रति वर्ष की ब्याज सहायता और पर्वतीय जनपद के लिए लागत का 33 प्रतिशत या अधिक रुपए 10 लाख सहायता राशि दी जाएगी. इतना ही नहीं, पांच साल के लिए अधिक 1.50 लाख/वर्ष की ब्याज सहायता राशि दी जाएगी.
ये भी पढ़ेंः अब देश और दुनिया से जुड़ेंगे नेलांग और जादूंग गांव, जल्द शुरू होगी BSNL की मोबाइल टावर सेवा

देहरादूनः उत्तराखंड में धामी कैबिनेट ने उत्तराखंड के नेलांग और जादूंग गांव को भारत सरकार द्वारा वाइब्रेंट विलेज का दर्जा देने के बाद गांव में और अधिक सुविधा देने का निर्णय लिया है. कैबिनेट में फैसला लिया गया कि इस गांव में होम स्टे क्लस्टर के रूप में विकसित किए जाएंगे. ये गांव इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि साल 1962 में भारतीय सेना ने इस गांव में रुककर ही चीनी सेना के दांत खट्टे किए थे.

उत्तरकाशी स्थित नेलांग और जादूंग गांव, भारत और चीन सीमा पर मिलता है. 1960 युद्ध के दौरान गांव के निवासियों को अपने आशियाने छोड़कर जाना पड़ा था. तब से उत्तराखंड का नेलांग और जादूंग गांव और आसपास की सीमाएं वीरान पड़ी है. लेकिन अब उत्तराखंड सरकार इन दोनों गांव को फिर से बसाने की कवायद में जुट चुकी है. सरकार इन दोनों गांव में सुख-सुविधा देने के साथ ही पर्यटन के लिहाज से भी विकास करने का प्लान बना रही है. इसी क्रम में आज की कैबिनेट बैठक में दोनों गांव को विकास की क्षेणी में लाने पर फैसला लिया गया.

केंद्र की वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम योजना के तहत गांव को विकसित करने से पहले वहां पर मूलभुत सुविधा दी जा रही है. ऐसे में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की सुविधा गांव तक पहुंच सके, इसके लिए उत्तरकाशी के 71 स्थानों पर मोबाइल टावर लगाने जाने हैं. इससे न केवल सेना को फायदा होगा. बल्कि आने वाले समय में पर्यटकों की आमद भी बढ़ेगी.
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जानें इतिहास और मौजूदा गांव के हालात: उत्तरकाशी स्थित गंगोत्री नेशनल पार्क के क्षेत्र में आने वाले नेलांग और जादूंग गांव समुद्र तल से 11 हजार 400 फीट की ऊंचाई मौजूद हैं. ये गांव तिब्बत और भारत के बीच व्यापार का गवाह भी रहे हैं. इन गांव में जाने का फिलहाल एक बेहद पुराना मार्ग है. जहां एक छोटा सा लकड़ी का पुल बना हुआ है, जो मुख्यालय की सड़क से गांवों को जोड़ता है. अभी इन दोनों गांव को सेना ने अपना ठिकाना बनाया है. युद्ध के बाद आम नागरिकों को इन गांव तक जाने की अनुमति नहीं थी. लेकिन 2022 के बाद से विशेष परमिट लेकर यहां पर कुछ पर्वतारोही पहुंचने लगे हैं.

मुख्य सचिव स्तर से चल रही है कार्रवाई: उत्तरकाशी के इन गांव को बसाने और यहां तक सुविधाओं को पहुंचाने के लिए साल 2022 के बजट में केंद्र सरकार ने बकायदा वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत बजट रखा था. जिसके बाद राज्य सरकार के साथ भी पत्राचार किया गया था. उसी का नतीजा है कि आज कैबिनेट में भी इन गांव को लेकर फैसला लिया गया है. केंद्र के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार भी चाहती है कि इन गांव को जल्द से जल्द न केवल ग्रामीणों के लिए बसाया जाए. बल्कि एक मॉडल गांव की तरह विकसित भी किया जाए. ताकि आने वाले समय में गंगोत्री नेशनल पार्क घूमने आने वाले पर्यटक उन ऐतिहासिक जगहों को भी निहार सके. इसके लिए सरकार ने होम स्टे क्लस्टर के रूप में विकसित करने के लिए अपनी अनुमति प्रदान कर दी है.
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राज्य में होम स्टे योजना के फायदे: तीस लाख रुपये की सीमा तक कमर्शियल लोन की अनुमति के बदले कोलैटरल पर लगने वाले शुल्क की प्रतिपूर्ति होगी. पुराने मकानों के आधुनिकीकरण और साज-सज्जा, नए शौचालयों के निर्माण पर भू-उपयोग परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होगी. होम स्टे योजना में घर का नवीनीकरण करने के लिए पात्र आवेदकों को बैंक लोन लिए जाने की हालत में सरकार से मदद मिलेगी. होम स्टे योजना के प्रचार-प्रसार के लिए अलग वेबसाइट और मोबाइल ऐप विकसित किया गया है. होम स्टे संचालकों को आतिथ्य सत्कार का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

होम स्टे से आमदनी पर शुरुआती तीन साल तक SGST की धनराशि की भरपाई विभाग द्वारा की जाएगी. इसके साथ ही खास बात ये है कि मैदानी जनपदों के लिए लागत का 25 प्रतिशत या अधिक से अधिक रुपए 7.50 लाख की सहायता मिलेगी. साथ ही पांच साल के लिए अधिक से अधिक रुपए 1 लाख प्रति वर्ष की ब्याज सहायता और पर्वतीय जनपद के लिए लागत का 33 प्रतिशत या अधिक रुपए 10 लाख सहायता राशि दी जाएगी. इतना ही नहीं, पांच साल के लिए अधिक 1.50 लाख/वर्ष की ब्याज सहायता राशि दी जाएगी.
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Last Updated : Jan 24, 2024, 10:16 PM IST
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