पलामूः पहली जनवरी 2025 को पलामू 133 वर्ष का हो गया है. पलामू के नाम का जिक्र होने के साथ ही अकाल, सुखाड़ और नक्सल हिंसा की तस्वीर सामने आने लगती है. दशकों से पलामू की यही पहचान भी रही है, लेकिन पलामू का एक समृद्ध और गौरवशाली इतिहास रहा है. जब 1857 की क्रांति देश के कई इलाकों में कमजोर हो गई थी, तब पलामू के इलाके में नीलांबर-पीतांबर की बदौलत यह लंबे वक्त तक चलती रही. नीलांबर और पीतांबर ने ही अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला वार की शुरुआत की थी. वहीं आजादी के बाद जब भारत के संविधान के निर्माण होने लगा तो पलामू के दो महान विभूति यदुवंश सहाय और अमियो कुमार घोष ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यदुवंश सहाय के सुझाव के बाद ही पेसा कानून को लागू किया गया था. वहीं काकोरी कांड के बाद अशफाकउल्ला खान ने 10 महीने तक पलामू में रहकर नौकरी की थी.
नीलांबर-पीतांबर ने की थी गुरिल्ला वार की शुरुआत
संयुक्त पलामू के गढ़वा के चेमो सान्या गांव के रहने वाले दो भाई नीलांबर और पीतांबर ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. दोनों भाइयों ने गुरिल्ला वार की शुरूआत की थी. दोनों भाइयों ने अंग्रेजों के कोयला सप्लाई को रोक दिया था और उस दौरान राजहरा रेलवे स्टेशन पर हमला किया था.दोनों भाइयों के खौफ के कारण अंग्रेजों ने मद्रास इन्फेंट्री के घुड़सवार सैनिकों और विशेष बंदूकधारी सैनिकों को कर्नल डाल्टन के नेतृत्व में पलामू भेजा था. 1859 में कर्नल डाल्टन के नेतृत्व में सैनिकों ने 24 दिनों तक कैंप किया था. बाद में दोनों भाइयों को अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ा था और पलामू के लेस्लीगंज में मार्च 1859 में दोनों को फांसी दी गई थी.
पहली भारतीय संविधान सभा में पलामू से थे दो सदस्य
भारतीय संविधान सभा का गठन 1946 में किया गया था. संविधान सभा में कुल 292 सदस्य थे. पलामू से यदुवंश सहाय और अमियो कुमार घोष संविधान सभा के सदस्य बने थे. दोनों ने संविधान के निर्माण में कई बहसों में भाग लिया था. यदुवंश सहाय को यदु बाबू भी कहा जाता था. संविधान सभा में पांचवीं अनुसूची के तहत पेसा कानून के बहस में यदुवंश सहाय ने भाग लिया था. यदुवंश सहाय ने पेसा कानून की वकालत की थी और उनकी बदौलत ही पेसा कानून को लागू किया गया था.
“ पलामू का एक समृद्ध इतिहास रहा है. लोग अकाल, सुखाड़ और पलायन के लिए पलामू को जानते रहे हैं. लेकिन पलामू ने देश को कई चीजें दी हैं. नीलांबर-पीतांबर का समृद्ध इतिहास रहा है. वहीं संविधान के निर्माण में पलामू की अहम भूमिका रही है. आजादी की लड़ाई में बहुत सारे लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी”. - प्रभात सुमन मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार
काकोरी कांड के बाद अशफाकउल्ला खां आये थे पलामू
नौ अगस्त 1925 को चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रौशन सिंह ने लखनऊ के काकोरी में ट्रेन से अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया था. इस घटना को काकोरी एक्शन डे के नाम से भी जाना जाता है. काकोरी कांड के बाद अशफाकउल्ला खां पलामू आ गए थे और यहां रहकर उन्होंने आठ से नौ महीने तक पलामू के मेदिनीनगर नगर पालिका में नौकरी की थी. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पास मौजूद किताब में अशफाकउल्ला खां के पलामू में नौकरी करने के बारे जानकारी है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक आनंद बताते हैं कि घटना के बाद अशफाकउल्ला खां कई जगह पनाह लेने की कोशिश की थी. बाद में वह अपने मित्र के जरिए पलामू में पहुंचे थे और नगरपालिका में नौकरी की थी.
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