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19 में शादी, 21 की उम्र में बनीं सरपंच, 8वीं तक पढ़ी प्रवीणा ने गांव में चलाई बालिका शिक्षा की मुहिम - Former Sarpanch Praveena Meena

पाली जिले के रूपावास गांव की सरपंच रहीं प्रवीणा महिलाओं के लिए मिसाल हैं. प्रवीणा 21 साल की उम्र में निर्विरोध सरपंच बन गईं. इसके बाद उन्होंने गांव में बालिका शिक्षा के लिए कई काम किए और स्कूल खुलवाए. खुद तो ज्यादा नहीं पढ़ पाईं, लेकिन प्रवीणा ने गांव को लड़कियों को शिक्षित करने की एक मुहिम चला दी. पढ़िए ये रिपोर्ट...

RUPAWAS EX SARPANCH PRAVEENA,  SCHOOLS IN RUPAWAS VILLAGE
प्रवीणा ने गांव में चलाई बालिका शिक्षा की मुहिम.
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 16, 2024, 8:02 PM IST

पूर्व सरपंच प्रवीणा

पाली. जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा मीणा शादी के बाद अपने ससुराल में महज 21 साल की उम्र में सरंपच बन गई थीं. पांच साल तक रुपावास गांव की सरपंच रहने के दौरान प्रवीणा ने बालिका शिक्षा को लेकर ज्यादा काम किया. प्रवीणा चाहकर भी ज्यादा नहीं पढ़ सकीं थी, लेकिन सरपंच रहते हुए करीब दो हजार लोगों की जनसंख्या वाले गांव की बालिकाओं के लिए स्कूल खुलवा दिया.

ऐसा रहा शुरुआती जीवन : सरपंच बनने के बाद लोगों का रहन सहन बदल जाता है, लेकिन प्रवीणा का परिवार आज भी सामान्य जीवन जी रहा है. पति आज भी मजदूरी के लिए जाते हैं. घर भी सामान्य ही है. प्रवीणा अपने घर का ही काम करती हैं. पिता की मौत के बाद वह बीमार रहने लगी हैं. प्रवीणा कहती है कि उनके गांव सकदारा में बालिका शिक्षा के लिए ज्यादा व्यवस्था नहीं थी. दूसरी कक्षा के बाद उनका एडमिशन कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय के लिए हो गया. आठवीं तक वहां पढ़ीं, इसके बाद वापस घर आ गई. आगे पढ़ाई करवाने की परिवार की स्थिति नहीं थी. 19 साल की उम्र में उनका विवाह सकदरा से करीब चालीस किमी दूर रूपावास गांव के गोमाराम से हुआ. दंपती के दो बेटे भी हैं. प्रवीणा की मां भंवरी देवी ने बताया कि पिता की मौत के बाद से बेटी भी बीमार रहने लगी. उनके दो बेटे भी हैं, जो अभी पढ़ रहे हैं.

शिक्षा के लिए प्रेरित करतीं प्रवीणा
शिक्षा के लिए प्रेरित करतीं प्रवीणा

पढ़ें. आत्मनिर्भरता की बेमिसाल नजीर बनी भरतपुर की ये महिला, कारनामे जान आप भी करेंगे साहस को सलाम

निर्विरोध सरपंच बनीं : 2014 में रूपावास गांव में पंचायत के चुनाव होने थे. इस क्षेत्र में सात गांव आते हैं. प्रवीणा के ससुर बुधाराम ने बताया कि एसटी वर्ग के लिए यहां सीट आरक्षित थी. प्रवीणा ने भी चुनाव के लिए नामांकन भरा. उनके सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी का नामांकन खारिज होने से वह निर्विरोध सरपंच चुनी गईं. प्रवीणा बताती हैं कि गांव के आस पास नदी के चलते सड़क टूट जाती थी. ऐसे में सड़क की रपट बनवाई, जिससे गांव का संपर्क बारिश के दिनों में नहीं टूटे. इसके अलावा गांव में सड़कें भी बनाई गईं. 2019 में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया. प्रवीणा बताती हैं कि सरपंच रहने के दौरान उन्हें सभी का सहयोग मिला, चाहे अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि. वह बताती हैं कि पढ़ाई को लेकर मेरी जागरूकता की सभी सराहना करते थे.

पूर्व सरपंच प्रवीणा

पाली. जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा मीणा शादी के बाद अपने ससुराल में महज 21 साल की उम्र में सरंपच बन गई थीं. पांच साल तक रुपावास गांव की सरपंच रहने के दौरान प्रवीणा ने बालिका शिक्षा को लेकर ज्यादा काम किया. प्रवीणा चाहकर भी ज्यादा नहीं पढ़ सकीं थी, लेकिन सरपंच रहते हुए करीब दो हजार लोगों की जनसंख्या वाले गांव की बालिकाओं के लिए स्कूल खुलवा दिया.

ऐसा रहा शुरुआती जीवन : सरपंच बनने के बाद लोगों का रहन सहन बदल जाता है, लेकिन प्रवीणा का परिवार आज भी सामान्य जीवन जी रहा है. पति आज भी मजदूरी के लिए जाते हैं. घर भी सामान्य ही है. प्रवीणा अपने घर का ही काम करती हैं. पिता की मौत के बाद वह बीमार रहने लगी हैं. प्रवीणा कहती है कि उनके गांव सकदारा में बालिका शिक्षा के लिए ज्यादा व्यवस्था नहीं थी. दूसरी कक्षा के बाद उनका एडमिशन कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय के लिए हो गया. आठवीं तक वहां पढ़ीं, इसके बाद वापस घर आ गई. आगे पढ़ाई करवाने की परिवार की स्थिति नहीं थी. 19 साल की उम्र में उनका विवाह सकदरा से करीब चालीस किमी दूर रूपावास गांव के गोमाराम से हुआ. दंपती के दो बेटे भी हैं. प्रवीणा की मां भंवरी देवी ने बताया कि पिता की मौत के बाद से बेटी भी बीमार रहने लगी. उनके दो बेटे भी हैं, जो अभी पढ़ रहे हैं.

शिक्षा के लिए प्रेरित करतीं प्रवीणा
शिक्षा के लिए प्रेरित करतीं प्रवीणा

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निर्विरोध सरपंच बनीं : 2014 में रूपावास गांव में पंचायत के चुनाव होने थे. इस क्षेत्र में सात गांव आते हैं. प्रवीणा के ससुर बुधाराम ने बताया कि एसटी वर्ग के लिए यहां सीट आरक्षित थी. प्रवीणा ने भी चुनाव के लिए नामांकन भरा. उनके सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी का नामांकन खारिज होने से वह निर्विरोध सरपंच चुनी गईं. प्रवीणा बताती हैं कि गांव के आस पास नदी के चलते सड़क टूट जाती थी. ऐसे में सड़क की रपट बनवाई, जिससे गांव का संपर्क बारिश के दिनों में नहीं टूटे. इसके अलावा गांव में सड़कें भी बनाई गईं. 2019 में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया. प्रवीणा बताती हैं कि सरपंच रहने के दौरान उन्हें सभी का सहयोग मिला, चाहे अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि. वह बताती हैं कि पढ़ाई को लेकर मेरी जागरूकता की सभी सराहना करते थे.

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