नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पिता एक प्राकृतिक अभिभावक है, इसलिए उसे नाबालिग बच्चे की कस्टडी से वंचित नहीं किया जा सकता. साथ ही कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी अपने रिश्ते से लेने की मांग की थी.
बता दें कि बच्चे की मां की कोविड-19 संक्रमण के कारण उसे जन्म देने के 10 दिनों के बाद मौत हो गई थी. इसके बाद बच्चे की कस्टडी उसके रिश्तेदार को दे दी गई थी.जस्टिस बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “हमारी राय में, केवल इसलिए कि अपीलकर्ता (पिता) ने दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का सामना किया, जिसके परिणामस्वरूप उसे रिश्तेदार को नाबालिग बच्चे की अस्थायी कस्टडी दी गई और केवल इसलिए कि उन्होंने कुछ वर्षों तक उसकी देखभाल की, यह अपीलकर्ता को नाबालिग बच्चे की कस्टडी से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता, जो कि उसकी एकमात्र प्राकृतिक अभिभावक है.”
बच्चे की देखभाल कर सकते हैं पिता
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता पिता शिक्षित हैं और सरकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं. वह अपने बच्चे की देखभाल कर सकते हैं. इतना ही नहीं वह अपने बच्चे की देखभाल करने के अलावा, उसे बेहतरीन शिक्षा सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं. जिस बच्चे ने कम उम्र में अपनी मां को खो दिया, उसे उसके पिता और प्राकृतिक भाई की संगति से वंचित नहीं किया जा सकता.
पीठ ने कहा कि चूंकि व्यक्ति ने दोबारा शादी कर ली है और अब वह और उसकी पत्नी बच्चे की देखभाल कर सकते हैं. निर्णय में न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि नाबालिग बच्ची अभी बहुत छोटी है और वह कुछ ही समय में अपने प्राकृतिक परिवार के साथ बहुत अच्छी तरह से घुलमिल जाएगी.
चुनौती देने वाले व्यक्ति की अपील स्वीकार
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस साल अप्रैल के फैसले को चुनौती देने वाले व्यक्ति की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसकी बेटी की हिरासत की मांग करने वाली याचिका का निपटारा किया गया था.
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