पलामू: झारखंड का एक ऐसा इलाका जो प्रत्येक वर्ष सुखाड़ और अकाल से जूझता है. जहां खेती और किसानी बड़ी चुनौती है. पिछले कई वर्षों से यह इलाका सुखाड़ से जूझ रहा है. लेकिन इस चुनौती से पार पाते हुए किसानों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है, जो बड़ा उदाहरण बन रहा है. करीब 500 किसान मल्चिंग विधि से खेती कर मालामाल हो रहे हैं.
मल्चिंग विधि से किसानों को काफी फायदा हो रहा है. चार कट्ठा में एक एकड़ के बराबर किसान पैदावार कर रहे हैं. दरअसल पलामू जिले के सतबरवा इलाके में खेती और किसानी के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग होते रहते हैं. यह इलाका किसानी के हब के रूप में विकसित हो चुका है. इलाके के किसान मल्चिंग विधि से सब्जी, मिर्च, दाल, मक्का आदि की खेती कर रहे हैं.
पलामू के सतबरवा के खामडीह रजडेरवा के इलाके में पवनसुत प्रसाद और उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी ने मल्चिंग विधि से खेती की शुरुआत की थी. दोनों ने शुरुआत में मिर्च और करेला की खेती में इस विधि को अपनाया था. पहले मात्र एक कट्ठा में मल्चिंग विधि से खेती की थी. एक कट्ठा में मल्चिंग विधि से खेती करने में करीब पांच हजार रुपए की लागत आई थी. एक कट्ठा में मिर्च और करेला को बेचकर पवनसुत प्रसाद को करीब 40 हजार रुपए की आमदनी हुई थी.
दोनों के फायदा को देखते हुए अन्य किसान भी जुड़ने लगे. फिलहाल सतबरवा के खामडीह, रजडेरवा, पोलपोल, लहलहे आदि के किसानों ने मल्चिंग विधि की खेती को अपनाना शुरू कर दिया है. पवनसुत प्रसाद और उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी बताते हैं कि शुरुआत में खेती करने के लिए लागत लगती है. लेकिन एक बार इस विधि से खेती करने पर फायदा सामने नजर आने लगता है. एक एकड़ के बराबर चार कट्ठा में ही उत्पादन होता है.
किसानों को दी गई थी ट्रेनिंग
सतबरवा इलाके में मल्चिंग विधि की खेती करने से पहले किसानों की एक टीम को ट्रेनिंग दी गई थी. यह टीम रांची के बिरसा कृषि अनुसंधान केंद्र गई थी और मल्चिंग विधि के तरीकों को सीखा था. कृषि विभाग से जुड़े हुए कमलेश प्रसाद ने बताया कि किसानों को पहले ट्रेनिंग दी गई थी और शुरुआत में उन्हें मल्चिंग विधि से खेती करने की सामग्री उपलब्ध करवाई गई. उन्होंने बताया की शुरुआत में करीब छह से सात किसानों को ट्रेनिंग दी गई था और इस विधि से खेती करने वालों में 500 से अधिक किसान के नाम जुड़ चुके हैं. कमलेश प्रसाद ने बताया कि मल्चिंग विधि से खेती करने से बेहद ही कम पानी खर्च होता है और सब्जी के उत्पादन में इसका अधिक इस्तेमाल होता है.
क्या है मल्चिंग विधि ? जिससे किसान कर रहे हैं खेती
मल्चिंग विधि से खेती करने में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. पौधों की जमीन के चारों तरफ प्लास्टिक से ढक दिया जाता है ताकि पानी को बचाया जा सके. इस विधि से खेती करने में ड्रिप सिंचाई विधि का भी का इस्तेमाल होता है. कृषि वैज्ञानिक प्रमोद कुमार का कहना है कि इस विधि से खेती करने से जमीन को कठोर होने से रोका जा सकता है.
चार से पांच कट्ठा जमीन में आठ हजार रुपए का प्लास्टिक खर्च होता है. अगर किसान एक एकड़ में इसकी खेती करना चाहते हैं तो 40 से 50 हजार रुपए की लागत लगेगी. 40 से 50 हजार रुपए की लागत के बाद किसानों को दो से ढाई लाख रुपए की आमदनी हो सकती है. उन्होंने बताया कि मल्चिंग विधि से खेती करने पर किसानों को दो तरह के फायदे. लतर वाले खेती में किसान जिसे स्थानीय भाषा में मचान कहा जाता है उसका भी उपयोग होता है. मचान का इस्तेमाल, कोहड़ा, कद्दू आदि के फसलो में होता है.
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