जयपुर. साहित्य के महाकुंभ जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में प्रख्यात गीतकार गुलजार ने अपने जीवन के अनछुए अनुभव बताए. उन्होंने अपने बचपन और उस दौर में झेले बंटवारे के दर्द को भी मंच से शायरी के जरिए साझा किया. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनकी लेखनी शुरू से ही अच्छी थी. इसलिए वे अपने दोस्तों के लिए उनकी गर्लफ्रेंड को लेटर भी लिखते थे. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि रविंद्रनाथ टैगोर की एक किताब ने उनका जीवन बदल दिया.
एक रात में पढ़ डालते हैं पूरा जासूसी नॉवेल : गुलजार ने कहा कि अन्य परिवारों की तरह उनका परिवार भी पाकिस्तान से दिल्ली आया था. वे दिन में स्कूल से आकर दुकान पर बैठते और रात में जासूसी नॉवेल पढ़ते थे, लेकिन जासूसी नॉवेल का सस्पेंस जानने के लिए वे एक ही रात में पूरी की पूरी किताब पढ़ डालते. उनकी इस आदत से किताब वाला दुकानदार काफी परेशान हो गया. एक दिन दुकानदार ने उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर की किताब दी. उस किताब ने उनका जीवन बदल दिया. इसके बाद उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कई किताबें पढ़ीं. इस दौरान गुलजार ने बताया कि, "जब देश का बंटवारा हुआ था. उनकी उम्र महज 9-10 साल की थी. उस उम्र के बच्चे को देश और बंटवारे के बारे में पता नहीं होता है.
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जिंदगी का असर दिखता है लेखनी पर : गुलजार ने कहा कि जिंदगी का असर लेखनी पर रहता ही है. हर लेखक अपनी जिंदगी को अपनी रचनाओं में पिरोता है. बंटवारे का दंश मेरे जेहन से नहीं निकल पाता है. पाकिस्तान मेरा पड़ोसी और कमरे की दूसरी खिड़की की तरह लगता है. वे बोले- "मैं अपनी नज्मों को देखता हूं, तो लगता है इनमें उदासी है, उसमें बचपन का असर भी दिखता है."