हैदराबाद: हर 30 साल में एक जनरेशन बदल जाती है. साथ ही उनके सोचने का तरीका भी बदल जाता है. फिल्म निर्माता इसे ट्रेंड कहते हैं. जो लोग इसे समझते हैं और इस पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत करते हैं और उन्हें ट्रेंडसेटर कहा जाता है, जो लोग नए विचारों को आगे बढ़ाते हैं उन्हें मशालवाहक कहा जाता है. वहीं, अगर बात करें तेलुगु मीडिया की तो तेलुगु प्रेस जगत में मशालवाहक 'ईनाडु' है.
इंफॉर्मेशन रिवॉल्यूशन के रूप में उभरा ईनाडु समय-समय पर ताजगी लाता रहा. 4,500 की सर्कूलेशन से शुरू होकर यह टॉप पर पहुंचा और आज 13 लाख से अधिक प्रसार संख्या के साथ नंबर वन तेलुगु न्यूज पेपर बना हुआ है. 10 अगस्त, 2024 को 'ईनाडु' शब्दों की दुनिया में अपनी शानदार यात्रा के 50 साल पूरे कर रहा है.
ईनाडु की शुरुआत कैसे हुई?
ईनाडु की शुरुआत 10 अगस्त, 1974 को विशाखापट्टनम के सीतामधरा इलाके में एक क्लोज शेड में हुई. उस समय आस-पास के लोगों को समझ नहीं आया कि वहां क्या होने जा रहा है. जल्द ही वहां 'ईनाडु' की शुरुआत हुई और आगे चलकर ईनाडु सूचना क्रांति लेकर आया. अंधेरे के पर्दों को चीरता हुआ 'ईनाडु' हर सुबह रीडर्स तक तरह-तरह की खबरें पहुंचाता. इसने एक रीजनल न्यूज पेपर के रूप में अपनी यात्रा शुरू की और जल्द ही यह सबसे अधिक सर्कूलेट होने वाला न्यूज पेपर बन गया. इस साल ईनाडु गर्व के साथ अपनी गोल्डन जुबली मना रहा है.
इस अवसर पर ईनाडु के मैनेजिंग डायरेक्टर सीएच किरण ने कहा, "50 साल पुरानी ईनाडू की यात्रा में भूमिका निभाना और 35 साल तक संगठन में जिम्मेदारी से काम करना गर्व की बात है. यह हमारे चेयरमैन द्वारा कंपनी में स्थापित अनुशासन के कारण संभव हुआ. मुझे ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि संगठन में बाकी सभी लोगों की तरह मुझमें भी वही अनुशासन है. इसलिए यह यात्रा जारी है."
शब्दों के जादूगर रामोजी राव!
उन्होंने बताया कि चेयरमैन रामोजी राव का पत्रिका शुरू करने का कोई विचार नहीं था. यह एक अप्रत्याशित यात्रा थी. 'ईनाडु' की शुरुआत आकस्मिक परिस्थितियों की वजह से हुई. रामोजी राव के एक परिचित थे जिनका नाम टी रामचंद्र राव था. रामचंद्र राव विज्ञापन के क्षेत्र में काम करते थे. उन्हें देखकर रामोजी राव को विज्ञापन से जुड़ी तकनीक सीखने में रुचि पैदा हुई. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद रामोजी राव ने दिल्ली में एक विज्ञापन एजेंसी को बतौर आर्टिस्ट ज्वाइन कर लिया. वहां तीन साल तक काम करने के बाद वे हैदराबाद वापस आ गए. उन दिनों तेलुगु मीडिया में गोयनका के आंध्र प्रभा का सर्कूलेशन सबसे अधिक था, जबकि तेलुगु लोगों द्वारा स्थापित अखबारों का नंबर उसके बाद आता था. इस दौरान रामोजी राव ने खुद से कहा कि तेलुगु अखबार तेलुगु की धरती पर क्यों पिछड़े? इस तरह उनके मन में डेली न्यूज पेपर शुरू करने का विचार अंकुरित हुआ.
उस समय उनके मन में कई सवाल थे जैसे कि अगर आप कोई पत्रिका शुरू करें, तो उसे कहां से शुरू करें? कैसे शुरू करें? उस समय, सभी तेलुगु अखबार विजयवाड़ा में प्रकाशित होते थे. वहां से उन्हें अन्य स्थानों पर ले जाया जाता था. विजयवाड़ा से ट्रेन द्वारा विशाखापतट्टनम तक अखबारों को भेजना पड़ता था. ट्रेन से आने और रीडर्स तक पहुंचने में लगभग दोपहर हो जाती थी. वे शाम को उत्तर आंध्र के अन्य हिस्सों में पहुंचते थे.
उन्होंने सोचा कि अगर वह विजयवाड़ा में कोई पत्रिका शुरू करे, तो वे दूसरों की तरह ही हो जाएंगे, उनके लिए क्या खास होगा सिवाय इसके कि वे अन्य पत्रिकाओं के लिए प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे? इसके बाद रामोजी राव ने विशाखापतट्टनम में अखबार प्रकाशित करने फैसला किया, जहां उस समय कोई अखबार नहीं छपता था. रामोजी राव कहते थे कि चीन की युद्ध रणनीति 'नो मैन्स लैंड' सिद्धांत भी इस निर्णय के लिए एक प्रेरणा थी.
एक साहसिक शुरुआत
अगर विशाखापट्टनम में एक पत्रिका शुरू करना साहसिक था, तो इसके लिए चुना गया नाम भी सनसनीखेज था! उस समय, सभी तेलुगु अखबारों के नाम में 'आंध्र' शब्द था - आंध्र पत्रिका, आंध्र प्रभा, आंध्र जनता, आंध्र ज्योति, विसालांध्र आदि. ऐसी परिस्थितियों में आंध्र शब्द के बिना अखबार का नाम रखना भी एक साहसिक कदम था! रामोजी राव किसी की नकल करने के आदी नहीं थे. इसलिए उन्होंने अपनी पत्रिका का नाम रखा ईनाडु. 'नाडु' के दो अर्थ हैं - 'स्थान और दिन'. इस नाम के साथ, एक मजबूत क्षेत्रीय संघ स्थापित हुआ.
विशाखापट्टनम के सीतामधरा इलाके में नक्कावनीपालेम में उस समय बंद पड़े एक स्टूडियो को लीज पर लिया गया. उसकी मरम्मत की गई. अखबार छापने के लिए मुंबई के नवहिंद टाइम्स से सेकेंड हैंड डुप्लेक्स फ्लैटबेड रोटरी प्रिंटिंग प्रेस खरीदी गई. उस समय इसकी कीमत एक लाख पांच हजार रुपये थी. करीब पांच-छह दिन पहले ही ट्रायल रन किया गया. सब कुछ योजना के अनुसार तैयार था. शुभ घड़ी आ गई! 9 अगस्त 1974 की शाम को रामोजी राव ने एक मजदूर से ईनाडू का पहला एडिशन छापने के लिए स्विच ऑन करवाया. इस तरह भोर से पहले ही यह विशाखापट्टनम में लोगों के दरवाजे तक पहुंच गया. यह 10 अगस्त का ईनाडू अंक था.
ईनाडु आंध्र प्रदेश के एडिटर एम नागेश्वर राव का कहना है कि पत्रिका शुरू होने पर रामोजी राव गारू ने कहा, "ईनाडु आपकी पत्रिका है. पाठकों ने इसे अपने दिल में बसा लिया है और कहा कि यह हमारी पत्रिका है. यही ईनाडु की प्रसिद्धि है. ईनाडु की प्रगति है. इसलिए ईनाडु तेलुगु परिवारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया. ईनाडु के लाखों पाठक हैं जो ईनाडु की खबरों पर विश्वास करते हैं. इसी तरह, ईटीवी पर भी. अगर किसी चैनल पर कोई खबर आती है, तो लोग यह जानने के लिए ईटीवी देखते हैं कि वह खबर सच है या नहीं."
आसान शब्दों का इस्तेमाल
तेलंगाना ईनाडु के एडिटर डीएन प्रसाद का कहना है कि ईनाडु के आगमन से पहले न्यूज पेपर में बहुत सारे संस्कृत शब्दों का इस्तेमाल किया जाता था. लोग उस भाषा को नहीं समझते थे और पाठक अखबारों से दूर रहते थे. रामोजी राव को आसानी से समझ में आने वाले शब्दों का इस्तेमाल करने पर जोर देते थे, ताकि न्यूज की जानकारी लोगों तक प्रभावी ढंग से पहुंच सके. उन्हें प्रेस में आसान शब्दों लाने का क्रेडिट दिया जाता है.
1974 तक आंध्र प्रदेश की कुल आबादी एक करोड़ हो गई थी और तेलुगु न्यूज पेपर का सर्कूलेशन केवल दो लाख था. रामोजी राव ने कर्मचारियों से कहा कि उनका लक्ष्य 90 लाख लोगों तक पहुंचना होना चाहिए. इसके बाद 17 दिसंबर 1975 को हैदराबाद में ईनाडु की शुरुआत हुई और हैदराबाद एडिशन लॉन्च किया गया. एडिशन की शुरुआत तत्कालीन सीएम जलागम वेंगलराव, तत्कालीन हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अवुला संबाशिवराव और तेलुगु अभिनेता एनटीआर और एएनआर की मौजूदगी में हुई.
मई दिवस 1978 को तत्कालीन राज्यपाल शारदा मुखर्जी के हाथों ईनाडु का विजयवाड़ा एडिशन बहुत धूमधाम से शुरू हुआ. विजयवाड़ा एडिशन ने अपनी शुरुआत से ही सर्कूलेशन संख्या में एक लाख का आंकड़ा पार कर लिया. इसने आंध्र प्रभा को पीछे छोड़ते हुए लीडिंग तेलुगु दैनिक का स्थान प्राप्त कर लिया. ईनाडु 46 साल से नंबर वन बना हुआ है.
इसकी चौथी यूनिट तिरुपति में शुरू हुई. 30 जून, 2002 को एक ही दिन में सात यूनिट का शुभारंभ किया गया, जिसने एक नया चलन स्थापित किया. इसके साथ ही कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र की राजधानियों में भी नए एडिशन सामने आए. 11 सितंबर, 2002 को रामोजी राव ने दिल्ली एडिशन का भी शुभारंभ किया. कुल 23 एडिशन के साथ, ईनाडु ने न केवल कदम दर कदम विस्तार किया, बल्कि जहां भी तेलुगु लोग हैं, वहां अपनी जड़ें जमा लीं.
1974 में ईनाडु की शुरुआती में सर्कूलेशन की संख्या 4,500 थी और इसकी 32 एजेंसियां थीं. 50 साल में ईनाडु अब 11,000 एजेंसियों के साथ 13 लाख से ज़्यादा कॉपियों के साथ सबसे बड़े तेलुगु दैनिक के रूप में प्रकाशित होता है. इसका सर्कूलेशन उस शिखर पर पहुंच गया है, जिसकी बराबरी आज कोई नहीं कर सकता.
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