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पूर्व चेतावनी और तैयारी से भविष्य की आपदाओं को रोका जा सकता है, वायनाड भूस्खलन पर बोले विशेषज्ञ - Wayanad Landslide

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 31, 2024, 8:27 PM IST

Expert on Wayanad landslide: वायनाड आपदा ने एक बार फिर भारत की भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली की खामियों को उजागर किया है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, भारत में कई भूस्खलन के बाद की जांच से पता चला है कि भूस्खलन का प्रमुख कारण अप्रत्याशित भारी वर्षा है. भू-क्षेत्र की प्रकृति, भू-आकृति विज्ञान, भूमि-आवरण आदि कारक भूस्खलन के लिए प्रारंभिक कारक हैं. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

Expert on Wayanad landslide
वायनाड भूस्खलन (ETV Bharat)

नई दिल्ली: केरल के वायनाड में विनाशकारी भूस्खलन ने एक बार फिर भूस्खलन और कटाव के मामले में सामुदायिक और ग्राम स्तर पर चेतावनी प्रणाली की कमी को उजागर किया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) बीके खन्ना के अनुसार, प्रकृति के बड़े पैमाने पर दोहन के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन ने आपदा को जन्म दिया है.

खन्ना का कहना है कि इस घटना ने एक बार फिर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला पश्चिमी घाट पर बेरोकटोक दोहन को दर्शाया है. इस पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति इसे बहुत संवेदनशील क्षेत्र बनाती है. इसके अलावा, वायनाड में बहुत सारी निर्माण गतिविधियां हुईं, जिससे यह क्षेत्र ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए अधिक संवेदनशील हो गया है.

वायनाड भूस्खलन की दृश्य
वायनाड भूस्खलन की दृश्य (ANI)

इस मुद्दे को जटिल बताते हुए ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा, 'यह मुद्दा जटिल है. बहुत सारे अध्ययन किए गए हैं, मैं राष्ट्रीय भूस्खलन फोरम का हिस्सा हूं. लेकिन जिला स्तर पर धन की कमी दुखद मुद्दा बनी हुई है. वायनाड केरल का ऊटी है. पहाड़ी इलाका, जिसमें तेज ढलान है. ढलानों पर प्राकृतिक जल निकासी की व्यवस्था होती है, ताकि पानी नदी में बह जाए. जल निकासी क्षेत्र के साथ-साथ तलहटी में बस्तियां बस गई हैं, जो सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. मलबे, कीचड़ और चट्टानों के गिरने से नाजुक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा है.

उन्होंने कहा कि क्षेत्र से निकासी के लिए पूर्व चेतावनी दी गई थी, कुछ लोगों ने निकासी की, अन्य लोग वहीं रह गए और भूस्खलन में मारे गए. चक्रवातों के लिए किए जाने वाले जबरन निकासी की तरह ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई. पश्चिमी घाट के इलाके में भारी बारिश (48 घंटों में 572 मिमी) हुई, जहां वनों की कटाई और खनन के कारण प्रकृति का बहुत अधिक दोहन हुआ है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण और भी बदतर हो गया है.

उन्होंने कहा कि समुदाय स्तर पर पहले से चेतावनी देना, कमजोरियों को कम करना और तैयारियों को बढ़ाना भविष्य की आपदाओं के लिए सफलता की कुंजी है. उन्होंने कहा कि आपदाओं के बारे में समुदाय को जागरूक करना ही मुख्य उपाय है, जिसकी मैं अनुशंसा करता हूं. गांव स्तर पर आपदाओं के निवारण और तैयारियों के लिए धन का प्रावधान किया जाना चाहिए.

वहीं, वायनाड भूस्खलन पर चर्चा में भाग लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद को सूचित किया कि इस तरह के भूस्खलन के बारे में राज्य सरकार को बार-बार चेतावनी दी गई थी. हालांकि, वायनाड की घटना ने एक बार फिर भारत में भूस्खलन चेतावनी प्रणाली की मौजूदगी को उजागर किया है.

भारत में 4.3 लाख वर्ग किमी क्षेत्र भूस्खलन के लिए संवेदनशील
एक शोध पत्र के अनुसार, पूर्व चेतावनी प्रणाली को कमजोरियों को कम करने और खतरों के प्रति तैयारी और प्रतिक्रिया में सुधार करने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में मान्यता दी गई है. शोध पत्र में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के सदस्य देशों द्वारा 2015 में अपनाए गए एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज, आपदा जोखिम न्यूनतम करने के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) के अनुसार देशों को 2030 तक बहु-खतरे दृष्टिकोण के साथ एक पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करनी होगी. इसमें कहा गया है कि भारत में 4.3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (भारतीय भूभाग का 12.6 प्रतिशत) भूस्खलन के लिए संवेदनशील है. उत्तर-पश्चिमी हिमालय (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) का पहाड़ी क्षेत्र, उत्तर-पूर्व का उप-हिमालयी इलाका (सिक्किम, पश्चिम बंगाल-दार्जिलिंग, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा), पश्चिमी घाट क्षेत्र (महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल) और पूर्वी घाट क्षेत्र (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु का अराकू क्षेत्र) भूस्खलन के लिए संदेनशील है.

इधर, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत में भूस्खलन की आपदा के बाद की जांच का जिक्र करते हुए कहा कि भूस्खलन का प्रमुख कारण अप्रत्याशित भारी बारिश है. मंत्रालय ने कहा कि भू-क्षेत्र की प्रकृति, ढलान बनाने वाली सामग्री, भू-आकृति विज्ञान, विभिन्न भू-क्षेत्रों में भूमि-उपयोग या भूमि-आवरण आदि जैसे अन्य महत्वपूर्ण भू-कारक भूस्खलन के लिए प्रारंभिक कारक हैं. कई भूस्खलन में असुरक्षित ढलान कट, जल निकासी को अवरुद्ध करने आदि जैसे मानवजनित कारण भी सामने आए हैं.

खनन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हुए बड़े भूस्खलनों का डेटा एकत्र करता है और उनका रिकॉर्ड रखता है.

भूस्खलन के लिए जीएसआई की पायलट परियोजना
जीएसआई ने लैंडस्लिप (LANDSLIP Project) परियोजना के हिस्से के रूप में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले और तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में वर्षा सीमा पायलट अध्ययन क्षेत्रों के आधार पर एक प्रायोगिक क्षेत्रीय भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (एलईडब्ल्यूएस) विकसित की है. 2020 के मानसून के बाद से जीएसआई ने इन दो पायलट क्षेत्रों में जिला प्रशासन को मानसून के दौरान दैनिक भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन जारी करना शुरू कर दिया है. जीएसआई भारत के भूस्खलन के लिए संवेदनशील कई राज्यों में इसी तरह के प्रयास को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में है. जीएसआई ने पहले ही पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग जिले और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली का विस्तार किया है और जिला प्रशासन को मानसून के दौरान दैनिक भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन जारी करना शुरू कर दिया है.

यह भी पढ़ें- वायनाड में लैंडस्लाइड: 'एक सप्ताह पहले ही चेतावनी दे दी गई थी ' शाह ने साधा निशाना, केरल सीएम ने किया पलटवार

नई दिल्ली: केरल के वायनाड में विनाशकारी भूस्खलन ने एक बार फिर भूस्खलन और कटाव के मामले में सामुदायिक और ग्राम स्तर पर चेतावनी प्रणाली की कमी को उजागर किया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) बीके खन्ना के अनुसार, प्रकृति के बड़े पैमाने पर दोहन के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन ने आपदा को जन्म दिया है.

खन्ना का कहना है कि इस घटना ने एक बार फिर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला पश्चिमी घाट पर बेरोकटोक दोहन को दर्शाया है. इस पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति इसे बहुत संवेदनशील क्षेत्र बनाती है. इसके अलावा, वायनाड में बहुत सारी निर्माण गतिविधियां हुईं, जिससे यह क्षेत्र ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए अधिक संवेदनशील हो गया है.

वायनाड भूस्खलन की दृश्य
वायनाड भूस्खलन की दृश्य (ANI)

इस मुद्दे को जटिल बताते हुए ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा, 'यह मुद्दा जटिल है. बहुत सारे अध्ययन किए गए हैं, मैं राष्ट्रीय भूस्खलन फोरम का हिस्सा हूं. लेकिन जिला स्तर पर धन की कमी दुखद मुद्दा बनी हुई है. वायनाड केरल का ऊटी है. पहाड़ी इलाका, जिसमें तेज ढलान है. ढलानों पर प्राकृतिक जल निकासी की व्यवस्था होती है, ताकि पानी नदी में बह जाए. जल निकासी क्षेत्र के साथ-साथ तलहटी में बस्तियां बस गई हैं, जो सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. मलबे, कीचड़ और चट्टानों के गिरने से नाजुक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा है.

उन्होंने कहा कि क्षेत्र से निकासी के लिए पूर्व चेतावनी दी गई थी, कुछ लोगों ने निकासी की, अन्य लोग वहीं रह गए और भूस्खलन में मारे गए. चक्रवातों के लिए किए जाने वाले जबरन निकासी की तरह ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई. पश्चिमी घाट के इलाके में भारी बारिश (48 घंटों में 572 मिमी) हुई, जहां वनों की कटाई और खनन के कारण प्रकृति का बहुत अधिक दोहन हुआ है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण और भी बदतर हो गया है.

उन्होंने कहा कि समुदाय स्तर पर पहले से चेतावनी देना, कमजोरियों को कम करना और तैयारियों को बढ़ाना भविष्य की आपदाओं के लिए सफलता की कुंजी है. उन्होंने कहा कि आपदाओं के बारे में समुदाय को जागरूक करना ही मुख्य उपाय है, जिसकी मैं अनुशंसा करता हूं. गांव स्तर पर आपदाओं के निवारण और तैयारियों के लिए धन का प्रावधान किया जाना चाहिए.

वहीं, वायनाड भूस्खलन पर चर्चा में भाग लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद को सूचित किया कि इस तरह के भूस्खलन के बारे में राज्य सरकार को बार-बार चेतावनी दी गई थी. हालांकि, वायनाड की घटना ने एक बार फिर भारत में भूस्खलन चेतावनी प्रणाली की मौजूदगी को उजागर किया है.

भारत में 4.3 लाख वर्ग किमी क्षेत्र भूस्खलन के लिए संवेदनशील
एक शोध पत्र के अनुसार, पूर्व चेतावनी प्रणाली को कमजोरियों को कम करने और खतरों के प्रति तैयारी और प्रतिक्रिया में सुधार करने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में मान्यता दी गई है. शोध पत्र में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के सदस्य देशों द्वारा 2015 में अपनाए गए एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज, आपदा जोखिम न्यूनतम करने के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) के अनुसार देशों को 2030 तक बहु-खतरे दृष्टिकोण के साथ एक पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करनी होगी. इसमें कहा गया है कि भारत में 4.3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (भारतीय भूभाग का 12.6 प्रतिशत) भूस्खलन के लिए संवेदनशील है. उत्तर-पश्चिमी हिमालय (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) का पहाड़ी क्षेत्र, उत्तर-पूर्व का उप-हिमालयी इलाका (सिक्किम, पश्चिम बंगाल-दार्जिलिंग, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा), पश्चिमी घाट क्षेत्र (महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल) और पूर्वी घाट क्षेत्र (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु का अराकू क्षेत्र) भूस्खलन के लिए संदेनशील है.

इधर, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत में भूस्खलन की आपदा के बाद की जांच का जिक्र करते हुए कहा कि भूस्खलन का प्रमुख कारण अप्रत्याशित भारी बारिश है. मंत्रालय ने कहा कि भू-क्षेत्र की प्रकृति, ढलान बनाने वाली सामग्री, भू-आकृति विज्ञान, विभिन्न भू-क्षेत्रों में भूमि-उपयोग या भूमि-आवरण आदि जैसे अन्य महत्वपूर्ण भू-कारक भूस्खलन के लिए प्रारंभिक कारक हैं. कई भूस्खलन में असुरक्षित ढलान कट, जल निकासी को अवरुद्ध करने आदि जैसे मानवजनित कारण भी सामने आए हैं.

खनन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हुए बड़े भूस्खलनों का डेटा एकत्र करता है और उनका रिकॉर्ड रखता है.

भूस्खलन के लिए जीएसआई की पायलट परियोजना
जीएसआई ने लैंडस्लिप (LANDSLIP Project) परियोजना के हिस्से के रूप में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले और तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में वर्षा सीमा पायलट अध्ययन क्षेत्रों के आधार पर एक प्रायोगिक क्षेत्रीय भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (एलईडब्ल्यूएस) विकसित की है. 2020 के मानसून के बाद से जीएसआई ने इन दो पायलट क्षेत्रों में जिला प्रशासन को मानसून के दौरान दैनिक भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन जारी करना शुरू कर दिया है. जीएसआई भारत के भूस्खलन के लिए संवेदनशील कई राज्यों में इसी तरह के प्रयास को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में है. जीएसआई ने पहले ही पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग जिले और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली का विस्तार किया है और जिला प्रशासन को मानसून के दौरान दैनिक भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन जारी करना शुरू कर दिया है.

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