नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को बांग्लादेश के साथ भारत के बढ़ते संबंधों और दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रति इसकी बढ़ती पहुंच पर प्रकाश डाला. उन्होंने जोर देकर कहा कि विदेश नीति वैश्वीकृत दुनिया में हर किसी के लिए मायने रखती है. दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में दक्षिण पूर्व एशिया और जापान के साथ भारत के पूर्वोत्तर के एकीकरण पर एक सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने विस्तार से बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से पिछले दशक में भारत के पूर्वोत्तर को बड़े पैमाने पर लाभ हुआ है, खासकर संबंधों में सुधार के माध्यम से. पड़ोसी बांग्लादेश और 'एक्ट ईस्ट' नीति के साथ, जो 10 देशों वाले आसियान और उससे आगे के देशों के साथ नई साझेदारी बनाने पर केंद्रित है.
जयशंकर ने कहा, 'यदि आप पिछले दशक को देखें, तो पूर्वोत्तर भारत वास्तव में भारत-बांग्लादेश संबंधों में इस नाटकीय सुधार का एक बड़ा लाभार्थी रहा है. जब हमने 2015 में भूमि सीमा समझौता (LBA) किया और चीजें व्यवस्थित हुईं, तो दोनों देशों के बीच विश्वास कायम हुआ. आपने आतंकवाद और अस्थिरता से निपटने सहित कई अन्य समस्याओं का समाधान होते देखा है'. विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि मोदी सरकार बढ़ी हुई कनेक्टिविटी परियोजनाओं के जरिए 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले की स्थिति को बहाल करने में काफी हद तक सफल रही है.
उन्होंने कहा, '2015 के बाद से हमने वास्तव में जो देखा है, वह शुरुआत में आप जो कह सकते हैं. वह 1965 से पहले की (स्थिति) का पुनर्निर्माण है. 1965 के युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान ने उन सभी कनेक्शनों को काट दिया, जो उस समय शेष भारत के साथ थे. इनमें रेल और सड़क संपर्क शामिल था. इसलिए, शुरुआती चुनौती इसे वापस लाने की थी. हमने अब सड़क संपर्क और ट्रेन कनेक्टिविटी को बहाल होते देखा है. आज ट्रेनें और बसें इस तरफ से उस तरफ जा रही हैं'. जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश में चटगांव और मोंगला जैसे बंदरगाहों तक पहुंच मिलने से इस क्षेत्र में व्यापार को बड़े पैमाने पर बढ़ावा मिला है, खासकर भारत के उत्तर-पूर्व में.
विदेश मंत्री ने कहा, 'अगर आप भौगोलिक दृष्टि से देखें तो मोंगला या चटगांव जैसे बंदरगाह पूर्वोत्तर के लिए प्राकृतिक बंदरगाह होते. लेकिन, राजनीतिक कारणों से उन बंदरगाहों तक हमारी पहुंच नहीं हो सकी. आज, भारत-बांग्लादेश संबंधों में भारी सुधार ने वास्तव में वहां कई और अवसर खोले हैं'. उन्होंने कहा कि एक और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना, जिसमें मोदी सरकार ने भारी निवेश किया है. वह भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग है जो अंततः देश के पूर्वोत्तर को वियतनाम से जोड़ेगा.
जयशंकर ने स्वीकार किया कि म्यांमार में मौजूदा राजनीतिक स्थिति के कारण 'गेम-चेंजर' परियोजना में बाधा आ सकती है, लेकिन उन्होंने कनेक्टिविटी कॉरिडोर के अत्यधिक महत्व को रेखांकित किया जो क्षेत्र के भविष्य को आकार दे सकता है. उन्होंने कहा, 'इसके कुछ हिस्सों का निर्माण किया जा चुका है. जब त्रिपक्षीय राजमार्ग पूरा हो जाएगा, तो पहली बार भारत से वियतनाम तक रसद की सुचारु आवाजाही की संभावना है. अगर हम किसी तरह म्यांमार की चुनौती से पार पा सकते हैं, तो इसकी संभावना है. गलियारा जो दक्षिण-पूर्व एशिया के पार्श्व भाग से होकर भारत तक आएगा. मंत्री ने कहा कि म्यांमार जो 'बड़ी चुनौती' बन गया है, वह केवल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं तक ही सीमित नहीं है.
पढ़ें: विदेश में भी काम करती है मोदी की गारंटी, ईरान से जल्द भारतीयों को रिहा कराया जाएगा: जयशंकर