प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि पति-पत्नी के बीच विवाद में यदि क्रूरता को लेकर लगाए गए आरोप साबित नहीं होते हैं, तो अधीनस्थ न्यायालय क्रूरता के आधार पर तलाक की डिग्री मंजूर नहीं कर सकता है. कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर प्रधान परिवार न्यायालय बागपत द्वारा 4 सितंबर 2015 को दी गई तलाक की डिक्री को रद्द कर दिया. कविता की अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति एस डी सिंह और न्यायमूर्ति डी रमेश की खंडपीठ ने दिया.
अपीलार्थी कविता की ओर से अधिवक्ता विभु राय ने पक्ष रखा. केस के अनुसार कविता और रोहित कुमार की शादी वर्ष 2011 में हुई थी. उनके कोई संतान नहीं हुई. शादी के 2 वर्ष बाद पति रोहित ने परिवार न्यायालय में तलाक का मुकदमा यह कहते हुए दाखिल किया कि उसकी पत्नी झगड़ालू प्रकृति की है. शादी के बाद से ही ससुराल वालों के प्रति उसका व्यवहार अच्छा नहीं है. पत्नी द्वारा क्रूरता किए जाने को लेकर पति की ओर से जिन दो घटनाओं का उल्लेख किया गया, उनमें 16 अप्रैल 2012 की घटना का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया कि वह जब अपने चचेरे भाई के साथ ससुराल जा रहा था उसे समय उसके ऊपर हमला किया गया जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गया और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
वहीं दूसरी घटना 3 जनवरी 2013 की बताई गई, जिसमें कहा गया कि उस दिन कविता अपनी सास के साथ घर पर अकेली थी. परिवार के अन्य लोग बाहर गए थे. तभी कविता के मायके से उसके पिता और कुछ अन्य रिश्तेदार आए. उसकी मां के साथ झगड़ा और मारपीट की. इसका मुकदमा दर्ज कराया गया. बाद में ट्रायल में सभी आरोपी बरी हो गए.
फैमिली कोर्ट ने इन घटनाओं के आधार पर पत्नी द्वारा क्रूरता किए जाने का आधार पाते हुए तलाक की डिक्री को मंजूरी दे दी. अपीलार्थी के अधिवक्ता का कहना था कि उसे पर लगाए गए क्रूरता के आरोप कभी साबित नहीं किया जा सके. सभी आरोप झूठे पाए गए. यहां तक की 16 अप्रैल को हुई घटना की प्राथमिक भी नहीं दर्ज कराई गई थी, जबकि प्रतिवादी स्वयं पुलिस अधिकारी है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए आरोप साबित नहीं किया जा सके हैं. इस स्थिति में क्रूरता के आधार पर तलाक को मंजूरी नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने तलाक की डिक्री रद्द कर दी.
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