देहरादून (रोहित सोनी): रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (DGRE) ने उत्तराखंड में चमोली जिले में एवलॉन्च की आशंका जताई है. एवलॉन्च को लेकर DGRE (Defence Geoinformatics Research Establishment) ने ऑरेंज अलर्ट भी जारी किया है. आज आपको एवलॉन्च (हिमस्खलन) के बारे में कुछ अहम जानकारियां देते हैं. उत्तराखंड में पहले भी कई एवलॉन्च आ चुके हैं.
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र पर हजारों की संख्या में ग्लेशियर मौजूद हैं, जहां समय-समय पर हिमस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं. सामान्य रूप से शीतकाल के दौरान जब उच्च हिमालय क्षेत्रों में बर्फबारी होती है तो उस दौरान ग्लेशियर पर हिमस्खलन की घटनाएं होती हैं, जिसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है. ऐसे में बीते दो दिन 27 और 28 दिसंबर को प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के बाद रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (DGRE) ने चमोली जिले में हिमस्खलन को लेकर ऑरेंज अलर्ट जारी किया है.
DGRE ने जारी किया था अलर्ट: वैज्ञानिकों का मानना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में यह एक सामान्य फिनोमिना है कि जब अधिक बर्फबारी होती है, तो उस दौरान एवलॉन्च की घटनाएं भी होती हैं. हाल फिलहाल में भी उत्तराखंड में अच्छी खासी बर्फबारी हुई है. इसीलिए प्रदेश के उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में हिमस्खलन को लेकर येलो अलर्ट जारी किया है. डिफेंस जिओइंफॉर्मेटिक्स रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (DGRE) चंडीगढ़ ने 29 दिसंबर से 30 दिसंबर की शाम 5 बजे तक खासकर चमोली जिले में एवलॉन्च को लेकर चेतावनी जारी थी.
2023 में केदारनाथ में आया था एवलॉन्च: उत्तराखंड में पहले भी हिमस्खलन की कई घटनाएं हो चुकी हैं, जो लोगों ने खुद देखी हैं. लेकिन कई घटनाएं थी, जिन पर किसी की भी नजर नहीं पड़ती है. साल 2023 के मई महीने में केदारघाटी में चार दिन के भीतर तीन बार हिमस्खलन की घटना हुई थी. उस दौरान बाबा केदारनाथ की यात्रा पर गए श्रद्धालुओं की चिंताएं बढ़ गई थी.
2022 में एवलॉन्च के कारण कई लोगों की जान गई थी: इसके साथ ही साल 2022 के सितंबर-अक्टूबर महीने में उत्तरकाशी के द्रौपदी पर्वत के पास हिमस्खलन की घटना हुई थी. हिमस्खलन के इस हादसे में ट्रेकिंग पर गए कई ट्रेक्टर्स की मौत भी हो गई थी. वहीं, हिमस्खलन की घटनाओं पर ज्यादा जानकारी देते हुए वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व हिमनद वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में एवलॉन्च का आना एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन मौजूदा समय में क्लाइमेट चेंज होने की वजह से भी एवलॉन्च की घटनाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं.
रोकी नहीं जा सकती हिमस्खलन की घटनाएं: वैज्ञानिक डीपी डोभाल का कहना है कि बर्फबारी के बाद जब चटक धूप निकलती है तो ग्लेशियर पिघलने या फिर ये कहें कि ताजी बर्फ पिघलती है, ऐसे में हिमस्खलन की घटनाएं होने की ज्यादा आशंका है. हिमस्खलन की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन यदि पहले से तैयारी कर लें तो जानमाल के नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है.
30 मीटर से 300 मीटर प्रति सेकंड हो सकती है हिमस्खलन की रफ्तार: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ मनीष मेहता ने बताया कि हिमस्खलन (Avalanche) एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें स्लोप क्षेत्र वाली सतह पर तेज़ी से बर्फ गिरने लगती है. इसके अलावा भी हिमस्खलन के कई कारण हैं. फिलहाल DGRE ने जो अलर्ट जारी किया था, उसकी वजह तो स्लोप क्षेत्र में तेजी से बर्फ पिघलना ही है. क्योंकि दो दिनों की अच्छी खासी बर्फबारी के बाद उत्तराखंड में चटक धूप निकली है. सामान्य रूप से हिमस्खलन की रफ्तार 30 मीटर से 300 मीटर प्रति सेकंड तक होती है.
2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होता है Avalanche: इसके अलावा ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ मनीष बताते है कि बर्फबारी के बाद जब चटक धूप निकलती है तो ग्लेशियर पर असर पड़ता. बर्फ स्लिप होने लगती है. इसके अलावा जब स्लोप क्षेत्र में ज्यादा बर्फ गिरती है तो वहां भी स्लोप बर्फ का भार सहन नहीं कर पाता है. जिससे बर्फ नीचे गिरने लगती है. ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ मनीष के मुताबिक हिमालय में हिमनद (Glacier) करीब 3800 मीटर से अधिक ऊंचाई पर होते हैं. इसके साथ ही हिमस्खलन (Avalanche) करीब 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर होते हैं.
चेतावनी के बाद उत्तराखंड में नहीं आया कोई एवलॉन्च: वहीं, ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि आमतौर पर हिमस्खलन ऐसी जगहों पर होता है, जहां पर इंसान नहीं बसे होते हैं. लेकिन यदि कहीं पर ऐसा लगता है कि हिमस्खलन की वजह से लोगों को नुकसान होगा, तो उन जगहों से लोगों को सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया जाता है. DGRE के चेतावनी के बाद प्रशासन अलर्ट है. हालांकि प्रदेश में अभीतक कहीं से भी हिमस्खलन की कोई सूचना नहीं है.
आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन भी मानते हैं कि मौसम की सटीक जानकारी मिल सके, इसके लिए कई काम किए जा रहे हैं. मौसम विभाग की ओर से डॉप्लर रडार और बहुत सारे सेंसर लगाए गए हैं, जहां पर इसकी जरूरत है. हालांकि ये एक ऐसा कार्य है जो लगातार चलता रहता है. साथ ही सेटेलाइट डाटा, डॉप्लर रडार डेटा और सेंसर डाटा को लेकर लगातार अध्ययन किया जा रहा है. इन सभी डाटा के आधार कर आईएमडी की ओर से अलर्ट जारी किया जाता है, जिसपर आपदा विभाग काम करता है.
एवलॉन्च एक नेचुरल प्रोसेस है और आमतौर पर अप्रैल महीने में प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन होता रहता है. ऐसे में आपदा विभाग का प्रयास है कि हिमस्खलन के दौरान किसी भी तरह के जानमाल का नुकसान न हो.
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