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कालसी में 5 पेड़ों की अनुमति मिलने पर 6000 वृक्ष काटने की जांच पूरी, CCF स्तर के अधिकारी पर फूटा ठीकरा - Uttarakhand Forest Department

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 27, 2024, 2:26 PM IST

Kalsi Tree Cutting Case देहरादून के कालसी क्षेत्र में करीब 6000 पेड़ काटे जाने के प्रकरण पर विभागीय जांच पूरी हो गई है. खास बात यह है कि जांच रिपोर्ट में तत्कालीन डीएफओ और रिटायर्ड सीसीएफ को जिम्मेदार माना गया है. कुल मिलाकर हजारों पेड़ों को काटे जाने के मामले में DFO स्तर के एक अधिकारी को लापरवाह मानकर इतिश्री कर दी गयी है.

Kalsi Tree Cutting Case
उत्तराखंड वन विभाग (photo-ETV Bharat)

देहरादून: कालसी क्षेत्र में एक निजी भूमि पर हजारों पेड़ काट दिए गए और वन विभाग को इसकी भनक भी नहीं लगी. यह बात यकीन करने लायक तो नहीं है, लेकिन हजारों पेड़ों को काटे जाने के मामले में जो स्थिति पैदा हुई है, वह कुछ यही बता रही है. मामला साल 2015 से 2022 तक का है, जब कालसी क्षेत्र में एक निजी भूमि पर मौजूद हजारों पेड़ों को धीरे-धीरे काटा जाता रहा. इस प्रकरण पर पीसीसीएफ धनंजय मोहन ने अपनी जांच रिपोर्ट तैयार कर शासन को सौंप दी है. जांच रिपोर्ट में 2015-16 के तत्कालीन डीएफओ मानसिंह को लापरवाह बताकर हजारों पेड़ों को काटे जाने के मामले को शांत कर दिया गया है.

कालसी में 6000 पेड़ काटने का है यह प्रकरण: यह मामला साल 2015 से शुरू होता है, जब कालसी क्षेत्र में मानसिंह डीएफओ के तौर पर काम कर रहे थे. इस दौरान इस क्षेत्र में एक निजी भूमि पर हजारों पेड़ मौजूद थे, जिनमें से पांच पेड़ों को काटने की अनुमति डीएफओ मानसिंह से मांगी गई. डीएफओ स्तर पर पांच पेड़ों को काटने की अनुमति भी दे दी गई. जांच रिपोर्ट कहती है कि इन्हीं पांच पेड़ों की अनुमति के सहारे इस भूमि से धीरे-धीरे हजारों पेड़ काट दिए गए, जबकि मानसिंह कहते हैं कि जिन पेड़ों की अनुमति मांगी गई थी, केवल उन्हीं पांच पेड़ों को काटा गया था. लेकिन कुछ दिन बाद पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने राजनीतिक पैठ का इस्तेमाल करते हुए बाकी पेड़ों को भी अवैध रूप से काटना शुरू कर दिया. मामले में आरोपी मानसिंह चीफ कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट के पद से हाल ही में रिटायर हुए हैं और उन्हें इस मामले में साल 2019 में चार्जशीट भी दे दी गई है. उनका कहना है कि प्रभाग में मौजूद स्टाफ ने उन्हें धोखे में रखा और उनकी जानकारी के बिना ही कुछ दिनों बाद पेड़ों को काटा गया. हालांकि प्रकरण जानकारी में आने के बाद उन्होंने अपने अधीनस्थ कई अधिकारी और कर्मचारियों को आरोप पत्र दिए और इन्हें यहां से हटाया भी गया.

सवालों के घेरे में तैनात रहे करीब पांच डीएफओ: यह मामला 2015 से 2022 तक का है, लिहाजा पेड़ कटान की बात केवल मानसिंह के कार्यकाल में ही सामने नहीं आई, बल्कि इसके बाद भी यहां अवैध रूप से पेड़ काटे जाने की बात कही गई है. ऐसे में मानसिंह के यहां से हटाने के बाद भी पेड़ों को काटे जाने का सिलसिला जारी रहा और इस दौरान इस क्षेत्र में डीएफओ रहे तमाम अधिकारी इससे अंजान बने रहे. मानसिंह कहते हैं कि सैटेलाइट इमेज में इस बात की पुष्टि होती है कि उनके जाने के बाद भी कई सालों तक इस जमीन से पेड़ काटे जाते रहे, लेकिन वन विभाग की जांच और तमाम दूसरी कार्रवाई में केवल उन पर ही फोकस किया गया और बाकी अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई.

समतलीकरण की परमिशन SDM स्तर पर कैसे हुई बड़ा सवाल: आरोप लगा है कि कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने इस जमीन पर बड़ी संख्या में पेड़ कटवाए और मामले में राजनीतिक दबाव के कारण प्रकरण पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. लेकिन बात केवल वन विभाग तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि जिस बेसकीमती जमीन पर यह पेड़ लगे थे, उसको समतलीकरण करने की भी अनुमति दे दी गई, जबकि नियम है कि जिस जमीन पर पेड़ मौजूद हों, उसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. मानसिंह का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान समतलीकरण की अनुमति दी गई, जिसे बाद में कैंसिल कर दिया गया. इसके बाद 2022 में भी एक बार फिर अनुमति दे दी गई. उन्होंने कहा कि सैटेलाइट इमेज में जमीन पर पेड़ मौजूद होने की बात स्पष्ट थी, इसके बावजूद उनके कार्यकाल में समतलीकरण की अनुमति हुई. हालांकि ये जांच का विषय है.

मामले में पेड़ कटान के 19 मामले हुए दर्ज: सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि निजी भूमि पर हजारों पेड़ काटने के इस मामले में अलग-अलग 19 मामले दर्ज होने की बात सामने आई है. बताया गया कि एक ही क्षेत्र में अलग-अलग समय पर पेड़ काटने को लेकर वन विभाग की तरफ से केस दर्ज किए गए, लेकिन पूरा प्रकरण केवल जुर्माना देने तक ही सीमित रहा. एक ही व्यक्ति के बार-बार पेड़ काटने के मामले में सामने आने के बाद भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई. मानसिंह उसके पीछे राजनीतिक दबाव को वजह मानते हैं.

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद कराई गई थी जांच: हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इस पूरे प्रकरण की जांच भी कराई गई. पेड़ काटने की स्थितियों, इसके समय से जुड़े तमाम तथ्यों को भी जांच में आना था, लेकिन जांच रिपोर्ट का क्या हुआ अब तक उसका पता नहीं है. हालांकि जांच पूरी कर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ को दे दी गई थी. फिलहाल इससे संबंधित PIL हाईकोर्ट में विचाराधीन है. इसके अलावा कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 6000 पेड़ काटे जाने पर सीबीआई जांच कर रही है और प्रकरण में कई लोग जेल भी जा चुके हैं. उधर दूसरी तरफ इस मामले में जेल जाना तो दूर जांच रिपोर्ट के आधार पर अभी अधिकारियों और निजी भूमि के मालिक की गलती पर ही स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है.

धनंजय मोहन की रिपोर्ट अब शासन को मिल चुकी है और शासन को इसमें आगे की कार्रवाई करनी है, लेकिन माना जा रहा है कि इसमें मानसिंह को प्रकरण का लापरवाह बताकर सामान्य दंड तक सीमित कर दिया है. इतना ही नहीं अलग-अलग कार्यकाल में रहे अधिकारियों की भूमिका पर भी अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है. यहां तक की जो जांच रिपोर्ट वन मुख्यालय तक भेजी गई, उस पर क्या हुआ. यह भी सस्पेंस बना हुआ है. जांच रिपोर्ट के शासन को भेजे जाने की विभागीय अधिकारियों ने पुष्टि की है.

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देहरादून: कालसी क्षेत्र में एक निजी भूमि पर हजारों पेड़ काट दिए गए और वन विभाग को इसकी भनक भी नहीं लगी. यह बात यकीन करने लायक तो नहीं है, लेकिन हजारों पेड़ों को काटे जाने के मामले में जो स्थिति पैदा हुई है, वह कुछ यही बता रही है. मामला साल 2015 से 2022 तक का है, जब कालसी क्षेत्र में एक निजी भूमि पर मौजूद हजारों पेड़ों को धीरे-धीरे काटा जाता रहा. इस प्रकरण पर पीसीसीएफ धनंजय मोहन ने अपनी जांच रिपोर्ट तैयार कर शासन को सौंप दी है. जांच रिपोर्ट में 2015-16 के तत्कालीन डीएफओ मानसिंह को लापरवाह बताकर हजारों पेड़ों को काटे जाने के मामले को शांत कर दिया गया है.

कालसी में 6000 पेड़ काटने का है यह प्रकरण: यह मामला साल 2015 से शुरू होता है, जब कालसी क्षेत्र में मानसिंह डीएफओ के तौर पर काम कर रहे थे. इस दौरान इस क्षेत्र में एक निजी भूमि पर हजारों पेड़ मौजूद थे, जिनमें से पांच पेड़ों को काटने की अनुमति डीएफओ मानसिंह से मांगी गई. डीएफओ स्तर पर पांच पेड़ों को काटने की अनुमति भी दे दी गई. जांच रिपोर्ट कहती है कि इन्हीं पांच पेड़ों की अनुमति के सहारे इस भूमि से धीरे-धीरे हजारों पेड़ काट दिए गए, जबकि मानसिंह कहते हैं कि जिन पेड़ों की अनुमति मांगी गई थी, केवल उन्हीं पांच पेड़ों को काटा गया था. लेकिन कुछ दिन बाद पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने राजनीतिक पैठ का इस्तेमाल करते हुए बाकी पेड़ों को भी अवैध रूप से काटना शुरू कर दिया. मामले में आरोपी मानसिंह चीफ कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट के पद से हाल ही में रिटायर हुए हैं और उन्हें इस मामले में साल 2019 में चार्जशीट भी दे दी गई है. उनका कहना है कि प्रभाग में मौजूद स्टाफ ने उन्हें धोखे में रखा और उनकी जानकारी के बिना ही कुछ दिनों बाद पेड़ों को काटा गया. हालांकि प्रकरण जानकारी में आने के बाद उन्होंने अपने अधीनस्थ कई अधिकारी और कर्मचारियों को आरोप पत्र दिए और इन्हें यहां से हटाया भी गया.

सवालों के घेरे में तैनात रहे करीब पांच डीएफओ: यह मामला 2015 से 2022 तक का है, लिहाजा पेड़ कटान की बात केवल मानसिंह के कार्यकाल में ही सामने नहीं आई, बल्कि इसके बाद भी यहां अवैध रूप से पेड़ काटे जाने की बात कही गई है. ऐसे में मानसिंह के यहां से हटाने के बाद भी पेड़ों को काटे जाने का सिलसिला जारी रहा और इस दौरान इस क्षेत्र में डीएफओ रहे तमाम अधिकारी इससे अंजान बने रहे. मानसिंह कहते हैं कि सैटेलाइट इमेज में इस बात की पुष्टि होती है कि उनके जाने के बाद भी कई सालों तक इस जमीन से पेड़ काटे जाते रहे, लेकिन वन विभाग की जांच और तमाम दूसरी कार्रवाई में केवल उन पर ही फोकस किया गया और बाकी अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई.

समतलीकरण की परमिशन SDM स्तर पर कैसे हुई बड़ा सवाल: आरोप लगा है कि कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने इस जमीन पर बड़ी संख्या में पेड़ कटवाए और मामले में राजनीतिक दबाव के कारण प्रकरण पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. लेकिन बात केवल वन विभाग तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि जिस बेसकीमती जमीन पर यह पेड़ लगे थे, उसको समतलीकरण करने की भी अनुमति दे दी गई, जबकि नियम है कि जिस जमीन पर पेड़ मौजूद हों, उसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. मानसिंह का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान समतलीकरण की अनुमति दी गई, जिसे बाद में कैंसिल कर दिया गया. इसके बाद 2022 में भी एक बार फिर अनुमति दे दी गई. उन्होंने कहा कि सैटेलाइट इमेज में जमीन पर पेड़ मौजूद होने की बात स्पष्ट थी, इसके बावजूद उनके कार्यकाल में समतलीकरण की अनुमति हुई. हालांकि ये जांच का विषय है.

मामले में पेड़ कटान के 19 मामले हुए दर्ज: सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि निजी भूमि पर हजारों पेड़ काटने के इस मामले में अलग-अलग 19 मामले दर्ज होने की बात सामने आई है. बताया गया कि एक ही क्षेत्र में अलग-अलग समय पर पेड़ काटने को लेकर वन विभाग की तरफ से केस दर्ज किए गए, लेकिन पूरा प्रकरण केवल जुर्माना देने तक ही सीमित रहा. एक ही व्यक्ति के बार-बार पेड़ काटने के मामले में सामने आने के बाद भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई. मानसिंह उसके पीछे राजनीतिक दबाव को वजह मानते हैं.

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद कराई गई थी जांच: हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इस पूरे प्रकरण की जांच भी कराई गई. पेड़ काटने की स्थितियों, इसके समय से जुड़े तमाम तथ्यों को भी जांच में आना था, लेकिन जांच रिपोर्ट का क्या हुआ अब तक उसका पता नहीं है. हालांकि जांच पूरी कर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ को दे दी गई थी. फिलहाल इससे संबंधित PIL हाईकोर्ट में विचाराधीन है. इसके अलावा कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 6000 पेड़ काटे जाने पर सीबीआई जांच कर रही है और प्रकरण में कई लोग जेल भी जा चुके हैं. उधर दूसरी तरफ इस मामले में जेल जाना तो दूर जांच रिपोर्ट के आधार पर अभी अधिकारियों और निजी भूमि के मालिक की गलती पर ही स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है.

धनंजय मोहन की रिपोर्ट अब शासन को मिल चुकी है और शासन को इसमें आगे की कार्रवाई करनी है, लेकिन माना जा रहा है कि इसमें मानसिंह को प्रकरण का लापरवाह बताकर सामान्य दंड तक सीमित कर दिया है. इतना ही नहीं अलग-अलग कार्यकाल में रहे अधिकारियों की भूमिका पर भी अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है. यहां तक की जो जांच रिपोर्ट वन मुख्यालय तक भेजी गई, उस पर क्या हुआ. यह भी सस्पेंस बना हुआ है. जांच रिपोर्ट के शासन को भेजे जाने की विभागीय अधिकारियों ने पुष्टि की है.

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