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'मुसलमानों मेंं एक दर्जन जातियां ऐसी जिनकी हालत हिन्दू दलितों से भी खराब..' पसमांदा समाज की मांग- 'SC में करें शामिल' - Pasmanda Muslim community

Balakrishnan Commission : पसमांदा मुस्लिमों की हालत हिन्दू दलितों से भी खराब है. पसमांदा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अली अनवर के मुताबिक पसमांदा में एक दर्जन ऐसी जातियां हैं जिनकी हालत बेहद ही खराब है. इसलिए वो लड़ाई लड़ रहे हैं कि इन जातियों को SC में शामिल कर लिया जाय, ताकि इन जातियों को भी वही सुविधाएं मिल सकें जो दलितों को दी जाती है. बालकृष्णन आयोग इसी की जांच कर रहा है- पढ़ें पूरी खबर

मुस्लिम ‘दलित’ जातियों की SC में शामिल होने की मांग क्यों?
मुस्लिम ‘दलित’ जातियों की SC में शामिल होने की मांग क्यों? (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 24, 2024, 6:10 PM IST

Updated : Aug 24, 2024, 6:31 PM IST

पसमांदा मुस्लिम को SC में शामिल करने को लेकर क्या कहते हैं अली अनवर (ETV Bharat)

पटना : धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने को लेकर सरकार ने बालकृष्णन आयोग का गठन किया था. इसे दो साल का समय दिया गया था. आज पटना में केजी बालाकृष्णन जांच आयोग की टीम पहुंची थी. केजी बालाकृष्णन जांच आयोग की टीम पटना के ज्ञान भवन में लोगों से राय लिया. विभिन्न धर्मों के 500 से अधिक प्रतिनिधि इस जांच आयोग के सामने प्रस्तुत हुए. जांच आयोग से मिलने वालों में दलितों के अलावा बौद्ध, ईसाई एवं मुस्लिम पसमांदा समाज के प्रतिनिधि शामिल थे.

तीन सदस्यों की कमेटी का गठन : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी का गठन हुआ था. केजी बालाकृष्णन के अलावा तीन सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ. रविंदर कुमार जैन और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य प्रोफेसर सुषमा यादव भी शामिल हैं. इस कमेटी का गठन अक्टूबर 2022 में किया गया था.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

बता दें कि बालकृष्णन जांच आयोग पसमांदा महाज के लोगों को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा देने पर आकलन करेगा, जिनका किसी न किसी रूप से अनुसूचित जाति से ताल्लुक है, लेकिन उन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया है. संविधान में कहा गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है. इसी के आकलन के लिए इस कमेटी का गठन किया गया था.

मुस्लिम ‘दलित’ जातियों की SC में शामिल होने की मांग क्यों? : मुस्लिम में आने वाली पिछड़ी जातियों में भटियारा, नट, मुस्लिम, धोबी, हलालखोर, मेहतर, भंगी, बक्खो, मोची, भाट, डफाली, पमरिया, नालबंद, रंगरेज, हजाम, चीक, चूड़ीहार, पासी, मछुआरा है. पसमांदा समाज के अंदर आने वाले इन जातियों का कहना है कि, हमलोग बिल्कुल नीच हैं, तो हमें नीच श्रेणी का दर्जा दिया जाए. वे सामाजिक तौर पर बहिष्कार झेलते हैं और आर्थिक तथा शैक्षणिक तौर पर भी एकदम निचले पायदान पर खड़े हैं. इसलिए उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए. बिहार सरकार ने 2023 में जाति आधारित गणना करवाया था. जिसमें मुसलमान के एक दर्जन जातियों के बारे में कहा गया था कि उनकी आर्थिक शैक्षणिक स्थिति बहुत ही खराब है.

क्या कहना है इन लोगों का : बिहार में अति पिछड़ा आयोग के सदस्य रह चुके उस्मान हलालखोर का कहना है कि उनके पूर्वज दलित हिंदू थे. हिंदुओं में छुआछूत के कारण उनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया, लेकिन इस्लाम धर्म कबूल करने के बाद भी वहां ऐसी ही कुप्रथा देखने को मिली. उन लोगों के साथ अभी भी दोयम दर्जे का सुलूक किया जाता है. आज भी मुसलमानों में पसमांदा समाज को नीचे के तबके के लोगों जैसा सलूक होता है. 500 साल पहले मुसलमान में मोहब्बत और एकता को देखते हुए उनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया था. लेकिन यहां भी सदियों से इसी तरीके की छुआछूत हो रही है.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

'मुसलमान रखते हैं पसमांदा से दूरी' : मेहतर, हलालखोर , भटियारा, धोबी दर्जन भर जातियां हैं, जिनके साथ यहां भी छुआछूत वाली व्यवस्था है. सदियों बिताने के बाद भी इन लोगों को मुसलमान ने अपना नहीं माना. "उस्मान हलालखोर" ने आयोग के सदस्यों से मिलकर मांग की है कि उन लोगों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया जाए. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि आज भी मुसलमान में अनेक ऐसी जातियां हैं जिनके यहां मुसलमान न खान-पान रखता है ना शादी विवाह में शामिल होता है.

'मुस्लिमों में हिन्दुओं से ज्यादा जातिवाद' : मेहतर समुदाय हलखोर समुदाय के लोगों को लोग अपने यहां बैठने तक नहीं देते हैं. सासाराम के रहने वाले "हसनैन गधेड़ी" का कहना है कि जिस तरीके का जातिवाद हिंदुओं में है उससे कहीं ज्यादा मुसलमानों में है. इन लोगों का परंपरागत पैसा मजदूरी था. घर बनाने में वह ईट और बालू उठाने के लिए गधों का प्रयोग करते थे. इसीलिए उन लोगों के पीछे गधेरी टाइटल लगा दिया गया. आज भी उन लोगों को कोई अच्छे कामों में अपने यहां नहीं बुलाता है. उन लोगों को भी वही हक मिलना चाहिए जो हिंदुओं में दलितों को मिलता है.

'एससी में शामिल हों पसमांदा मुस्लिम' : "फारूकी भटियारा" का कहना है कि इन लोगों के पूर्वजों ने सबसे पहले सराय और सड़कों के किनारे होटल चलने का काम शुरू किया था. लेकिन संभ्रांत मुस्लिम परिवार उनके रोजगार से अपने आप को अलग रखने लगे. नीचे तबके के आने के कारण इन लोगों को आज भी यह लोग अपना नहीं मानते हैं. यहां तक की उनके टाइटल को ऐसे प्रयोग करते हैं जैसे वह लोग किसी बात के लिए गुनाहगार हों. फारूकी का कहना है कि हिंदुओं में जिस तरीके से दलितों को कानूनी अधिकार मिला हुआ है, वैसे ही इन लोगों को भी कानूनी अधिकार मिले, ताकि वह भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें.

जांच कमेटी से मिले पसमांदा समाज के प्रतिनिधि : के जी बालाकृष्णन जांच आयोग की टीम से ऑल इंडिया पसमांदा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद अली अनवर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की. पसमांदा समाज के प्रतिनिधियों ने जांच आयोग के सामने खुलकर अपनी बात रखी. ईटीवी भारत से बातचीत में पूर्व सांसद अली अनवर ने कहा कि केंद्र सरकार ने संविधान की धारा 341 में उल्लेखित जातियों के अलावा दलित मुस्लिम और दलित ईसाइयों को शामिल करने की मांग के लिए इस आयोग का गठन किया था.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

''इस संबंध में पूर्व की सरकार ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन किया था, जिसने संविधान की धारा 341 पर धार्मिक प्रबंध को संविधान बताते हुए उसमें अन्य धर्म के दलितों को भी शामिल करने की सिफारिश की थी. इसी तरह की सिफारिश सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी की गई थी. मुसलमान और ईसाइयों में भी कई ऐसी जातियां हैं जिनके साथ दूसरे मुसलमान या इसाई छुआछूत जैसा व्यवहार करते हैं.'' -अली अनवर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पसमांदा समाज

'पसमांदा मुस्लिम की हालत हिंदू दलित से भी खराब' : ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अली अनवर ने जांच कमेटी को तीन पुस्तक 'मसावत की जंग', 'संपूर्ण दलित आंदोलन पसमांदा तसव्वुर', और बिहार जातीय गणना 2024 तथा 'पसमांदा एजेंडा' भेंट की. जो इन्हीं विषयों पर लिखी गई है. उन्होंने कहा कि बिहार की जाति आधारित गणना से यह साबित हो गया है कि मुसलमान में करीब एक दर्जन ऐसी जातियां हैं जिनकी हालत हिंदू दलित से भी खराब है.

'आयोग पर भरोसा नहीं' : अली अनवर ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि पूर्व की सरकारों ने तीन-तीन आयोग का गठन किया था. तीनों आयोग ने अपने रिपोर्ट में पसमांदा समाज एवं ईसाइयों के बारे में वास्तविक रिपोर्ट पेश की थी. लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार उन कमेटी की सिफारिश को लागू न करके सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में यह दलील दी की एक नया आयोग का गठन किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी का गठन किया गया. जिसपर उनको भरोसा नहीं है कि वह कमेटी उन लोगों के हित में काम करेगी.

''मोदी जी 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान एक तरफ भोपाल की सभा में यह कहते हैं कि मुसलमान में पसमांदा समाज के साथ भेदभाव किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ सरकार के अटॉर्नी जनरल कोर्ट में जवाब देते हैं कि ईसाई और मुसलमान में कोई भी छुआछूत जैसी व्यवस्था नहीं है. इससे साफ जाहिर होता है कि केंद्र सरकार की मंशा हम लोगों के प्रति कैसी है. अली अनवर ने बताया कि उन्हें इस जांच कमेटी से कोई उम्मीद नहीं है. वैसे हम लोगों ने अपनी बात कमेटी के सामने रख दी है.''-अली अनवर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पसमांदा समाज

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तीन सदस्यों की कमेटी का गठन : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी का गठन हुआ था. केजी बालाकृष्णन के अलावा तीन सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ. रविंदर कुमार जैन और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य प्रोफेसर सुषमा यादव भी शामिल हैं. इस कमेटी का गठन अक्टूबर 2022 में किया गया था.

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बता दें कि बालकृष्णन जांच आयोग पसमांदा महाज के लोगों को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा देने पर आकलन करेगा, जिनका किसी न किसी रूप से अनुसूचित जाति से ताल्लुक है, लेकिन उन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया है. संविधान में कहा गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है. इसी के आकलन के लिए इस कमेटी का गठन किया गया था.

मुस्लिम ‘दलित’ जातियों की SC में शामिल होने की मांग क्यों? : मुस्लिम में आने वाली पिछड़ी जातियों में भटियारा, नट, मुस्लिम, धोबी, हलालखोर, मेहतर, भंगी, बक्खो, मोची, भाट, डफाली, पमरिया, नालबंद, रंगरेज, हजाम, चीक, चूड़ीहार, पासी, मछुआरा है. पसमांदा समाज के अंदर आने वाले इन जातियों का कहना है कि, हमलोग बिल्कुल नीच हैं, तो हमें नीच श्रेणी का दर्जा दिया जाए. वे सामाजिक तौर पर बहिष्कार झेलते हैं और आर्थिक तथा शैक्षणिक तौर पर भी एकदम निचले पायदान पर खड़े हैं. इसलिए उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए. बिहार सरकार ने 2023 में जाति आधारित गणना करवाया था. जिसमें मुसलमान के एक दर्जन जातियों के बारे में कहा गया था कि उनकी आर्थिक शैक्षणिक स्थिति बहुत ही खराब है.

क्या कहना है इन लोगों का : बिहार में अति पिछड़ा आयोग के सदस्य रह चुके उस्मान हलालखोर का कहना है कि उनके पूर्वज दलित हिंदू थे. हिंदुओं में छुआछूत के कारण उनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया, लेकिन इस्लाम धर्म कबूल करने के बाद भी वहां ऐसी ही कुप्रथा देखने को मिली. उन लोगों के साथ अभी भी दोयम दर्जे का सुलूक किया जाता है. आज भी मुसलमानों में पसमांदा समाज को नीचे के तबके के लोगों जैसा सलूक होता है. 500 साल पहले मुसलमान में मोहब्बत और एकता को देखते हुए उनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया था. लेकिन यहां भी सदियों से इसी तरीके की छुआछूत हो रही है.

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'मुसलमान रखते हैं पसमांदा से दूरी' : मेहतर, हलालखोर , भटियारा, धोबी दर्जन भर जातियां हैं, जिनके साथ यहां भी छुआछूत वाली व्यवस्था है. सदियों बिताने के बाद भी इन लोगों को मुसलमान ने अपना नहीं माना. "उस्मान हलालखोर" ने आयोग के सदस्यों से मिलकर मांग की है कि उन लोगों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया जाए. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि आज भी मुसलमान में अनेक ऐसी जातियां हैं जिनके यहां मुसलमान न खान-पान रखता है ना शादी विवाह में शामिल होता है.

'मुस्लिमों में हिन्दुओं से ज्यादा जातिवाद' : मेहतर समुदाय हलखोर समुदाय के लोगों को लोग अपने यहां बैठने तक नहीं देते हैं. सासाराम के रहने वाले "हसनैन गधेड़ी" का कहना है कि जिस तरीके का जातिवाद हिंदुओं में है उससे कहीं ज्यादा मुसलमानों में है. इन लोगों का परंपरागत पैसा मजदूरी था. घर बनाने में वह ईट और बालू उठाने के लिए गधों का प्रयोग करते थे. इसीलिए उन लोगों के पीछे गधेरी टाइटल लगा दिया गया. आज भी उन लोगों को कोई अच्छे कामों में अपने यहां नहीं बुलाता है. उन लोगों को भी वही हक मिलना चाहिए जो हिंदुओं में दलितों को मिलता है.

'एससी में शामिल हों पसमांदा मुस्लिम' : "फारूकी भटियारा" का कहना है कि इन लोगों के पूर्वजों ने सबसे पहले सराय और सड़कों के किनारे होटल चलने का काम शुरू किया था. लेकिन संभ्रांत मुस्लिम परिवार उनके रोजगार से अपने आप को अलग रखने लगे. नीचे तबके के आने के कारण इन लोगों को आज भी यह लोग अपना नहीं मानते हैं. यहां तक की उनके टाइटल को ऐसे प्रयोग करते हैं जैसे वह लोग किसी बात के लिए गुनाहगार हों. फारूकी का कहना है कि हिंदुओं में जिस तरीके से दलितों को कानूनी अधिकार मिला हुआ है, वैसे ही इन लोगों को भी कानूनी अधिकार मिले, ताकि वह भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें.

जांच कमेटी से मिले पसमांदा समाज के प्रतिनिधि : के जी बालाकृष्णन जांच आयोग की टीम से ऑल इंडिया पसमांदा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद अली अनवर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की. पसमांदा समाज के प्रतिनिधियों ने जांच आयोग के सामने खुलकर अपनी बात रखी. ईटीवी भारत से बातचीत में पूर्व सांसद अली अनवर ने कहा कि केंद्र सरकार ने संविधान की धारा 341 में उल्लेखित जातियों के अलावा दलित मुस्लिम और दलित ईसाइयों को शामिल करने की मांग के लिए इस आयोग का गठन किया था.

ईटीवी भारत GFX
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''इस संबंध में पूर्व की सरकार ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन किया था, जिसने संविधान की धारा 341 पर धार्मिक प्रबंध को संविधान बताते हुए उसमें अन्य धर्म के दलितों को भी शामिल करने की सिफारिश की थी. इसी तरह की सिफारिश सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी की गई थी. मुसलमान और ईसाइयों में भी कई ऐसी जातियां हैं जिनके साथ दूसरे मुसलमान या इसाई छुआछूत जैसा व्यवहार करते हैं.'' -अली अनवर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पसमांदा समाज

'पसमांदा मुस्लिम की हालत हिंदू दलित से भी खराब' : ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अली अनवर ने जांच कमेटी को तीन पुस्तक 'मसावत की जंग', 'संपूर्ण दलित आंदोलन पसमांदा तसव्वुर', और बिहार जातीय गणना 2024 तथा 'पसमांदा एजेंडा' भेंट की. जो इन्हीं विषयों पर लिखी गई है. उन्होंने कहा कि बिहार की जाति आधारित गणना से यह साबित हो गया है कि मुसलमान में करीब एक दर्जन ऐसी जातियां हैं जिनकी हालत हिंदू दलित से भी खराब है.

'आयोग पर भरोसा नहीं' : अली अनवर ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि पूर्व की सरकारों ने तीन-तीन आयोग का गठन किया था. तीनों आयोग ने अपने रिपोर्ट में पसमांदा समाज एवं ईसाइयों के बारे में वास्तविक रिपोर्ट पेश की थी. लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार उन कमेटी की सिफारिश को लागू न करके सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में यह दलील दी की एक नया आयोग का गठन किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी का गठन किया गया. जिसपर उनको भरोसा नहीं है कि वह कमेटी उन लोगों के हित में काम करेगी.

''मोदी जी 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान एक तरफ भोपाल की सभा में यह कहते हैं कि मुसलमान में पसमांदा समाज के साथ भेदभाव किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ सरकार के अटॉर्नी जनरल कोर्ट में जवाब देते हैं कि ईसाई और मुसलमान में कोई भी छुआछूत जैसी व्यवस्था नहीं है. इससे साफ जाहिर होता है कि केंद्र सरकार की मंशा हम लोगों के प्रति कैसी है. अली अनवर ने बताया कि उन्हें इस जांच कमेटी से कोई उम्मीद नहीं है. वैसे हम लोगों ने अपनी बात कमेटी के सामने रख दी है.''-अली अनवर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पसमांदा समाज

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Last Updated : Aug 24, 2024, 6:31 PM IST
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