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सुखविंदर सरकार के लिए कंगाली में आटा गीला, आखिर क्या है हिमाचल भवन दिल्ली के कुर्की आदेश का पूरा मामला

हाईकोर्ट द्वारा दिल्ली में हिमाचल भवन के कुर्की के आदेश पर राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ है. डिटेल में पढ़ें खबर...

हिमाचल भवन के कुर्की के आदेश
हिमाचल भवन के कुर्की के आदेश (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

शिमला: पहाड़ में सर्द मौसम के दौरान पारा गिरता है, लेकिन इस समय हिमाचल का राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ है. कारण है हाईकोर्ट का एक आदेश. हिमाचल हाईकोर्ट ने एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से जुड़े मामले में आर्बिट्रेशन अवार्ड की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली स्थित हिमाचल भवन को कुर्क करने के आदेश जारी किए. ये आदेश सामने आते ही पहाड़ की सियासत में घमासान मच गया. खासकर राज्य की सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के लिए ये आदेश कंगाली में आटा गीला होने के समान है.

वजह ये कि हाईकोर्ट ने 64 करोड़ रुपये की अपफ्रंट मनी को सात फीसदी ब्याज दर सहित लौटाने के आदेश जारी किए हैं. ब्याज सहित ये रकम 100 करोड़ रुपये के करीब भी हो सकती है. कर्ज के सहारे गाड़ी खींच रही सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के लिए ये पैसा जुटाना बेशक आसान है, लेकिन इसका बोझ खजाने पर पड़ेगा. सीएम सुक्खू ने भी अपने बयान में कहा कि सरकार के लिए 64 करोड़ रुपये कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने इस मामले का ठीकरा पूर्व की जयराम सरकार पर भी फोड़ा.

हिमाचल भवन के कुर्की के आदेश (ETV Bharat)

मामले ने इतना तूल पकड़ा है कि भाजपा आरोप लगाने लगी कि सुक्खू सरकार आखिरकार क्या-क्या बिकवाएगी. भाजपा ने कुर्की आदेश में हिमाचल भवन दिल्ली का नाम आने पर इसे राज्य की अस्मिता का सवाल बता दिया. वहीं, सरकार इस मामले में एलपीए दाखिल करने जा रही है. यानी कुर्की आदेश को डबल बैंच में अपील के जरिए चुनौती देगी.

आखिर क्या है पूरा मामला?

साल 2009 में 320 मेगावाट का प्रोजेक्ट आवंटन लाहौल-स्पीति में चिनाब नदी पर एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाया जाना प्रस्तावित हुआ तब राज्य में बीजेपी की सरकार थी. सेली हाइड्रो पावर कंपनी इस प्रोजेक्ट को लगाने की इच्छुक थी. इसके लिए अपफ्रंट प्रीमियम या अपफ्रंट मनी जमा करनी होती है. ये मनी या प्रीमियम राज्य की उर्जा नीति का हिस्सा है.

राज्य में साल 2006 में विद्या स्टोक्स के पावर मिनिस्टर रहते हुए ऊर्जा नीति में अपफ्रंट प्रीमियम लागू करने का फैसला हुआ था यानी जो कंपनी प्रोजेक्ट लगाना चाहती है, उसे एक निश्चित रकम राज्य को देनी होती है. यदि प्रोजेक्ट शुरू न हो पाए या फिर वाएबल ना हो तो ये रकम वापस करने का प्रावधान शर्तों के अनुसार होता है. खैर, प्रोजेक्ट को वाएबल बनाने के लिए सड़क निर्माण का काम बार्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को दिया गया. कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर सरकार के पास 64 करोड़ रुपये जमा करवा दिए. ये सारा घटनाक्रम वर्ष 2009 का है.

दिल्ली में हिमाचल भवन
दिल्ली में हिमाचल भवन (फाइल फोटो)

सुविधाएं मिली नहीं, प्रोजेक्ट सिरे चढ़ा नहीं

अब किसी भी हाइड्रो पावर को शुरू करने के लिए मशीनरी लानी होती है. हैवी मशीनरी के लिए अच्छा रोड व अन्य सुविधाएं जरूरी होती हैं. कंपनी को ये सुविधाएं नहीं मिली तो उसने प्रोजेक्ट से वापस हाथ खींच लिए. उधर, सरकार ने कंपनी की तरफ से जमा 64 करोड़ रुपये की अपफ्रंट प्रीमियम की रकम को एक तरह से जब्त कर लिया. यानी ये रकम कंपनी को वापस नहीं की गई. कंपनी का मानना है कि सुविधाएं उपलब्ध करवाना सरकार का काम है.

सरकार बिड खोलती है और ये मानती है कि प्रोजेक्ट वाएबल है. कंपनी को तो तब पता चलता है, जब सुविधाएं मिलती नहीं और प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाता. ऐसे में वाएबिलिटी का ठीकरा कंपनी पर नहीं फोड़ा जा सकता. इसी तर्क के साथ कंपनी 64 करोड़ रुपये वापस पाने के लिए याचिका के जरिए वर्ष 2017 में हाईकोर्ट चली गई.मामला आर्बिट्रेशन में गया और वहां से कंपनी के हक में फैसला आया. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कंपनी को रकम चुकाने को कहा.

कानूनी पहलू यहां समझें

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने पिछले साल 13 जनवरी को मामले की सुनवाई की और राज्य सरकार को आदेश जारी किए कि 64 करोड़ रुपये का अपफ्रंट प्रीमियम कंपनी को ब्याज सहित वापस करे. फिर मामला डबल बेंच में गया और एक शर्त पर स्टे मिल गया. सिंगल बेंच के फैसले पर डबल बेंच ने इस शर्त के साथ स्टे लगाया कि यदि सरकार यानी प्रतिवादी अपफ्रंट प्रीमियम जमा करवाने में असफल रहता है तो स्टे हटा दिया जाएगा. ये रकम जमा करवाने के लिए 15 जुलाई 2024 तक का समय था. सरकार ने राशि जमा नहीं करवाई तो अदालत ने स्टे हटा दिया.

अनुपालना ना करने पर हिमाचल भवन को कुर्की का आदेश

सेली हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ने हाईकोर्ट में अनुपालना याचिका दाखिल की जिसकी सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने आर्बिट्रेशन अवॉर्ड की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली के हिमाचल भवन को कुर्क करने के आदेश जारी किए. मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर को तय की गई साथ ही न्यायमूर्ति गोयल ने सरकार को इस बात का पता लगाने के आदेश भी दिए कि कौन से अधिकारियों की चूक के कारण ये अवार्ड यानी अपफ्रंट प्रीमियम की रकम कोर्ट में जमा नहीं हुई.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

अदालत का कंसर्न ये था कि समय पर राशि जमा ना करने से दैनिक आधार पर ब्याज की रकम बढ़ती जा रही है. हिमाचल भवन ही क्यों अवॉर्ड की अनुपालना ना होने पर अदालत कुर्की आदेश पारित करती है. सरकार की कौन सी संपत्ति को कुर्क करने के आदेश जारी करने हैं, ये सारा का सारा अधिकार न्यायालय का है. एडवोकेट पंकज चौहान का कहना है कि जब सरकार आर्बिट्रेशन अवॉर्ड की अनुपालना ना करे तो न्यायालय संबंधित पक्ष से लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी मांगता है कि कौन-कौन सी संपत्ति है, जिसे बेचकर उसका बकाया चुकाया जा सकता है.

एक संभावना यह है कि इस केस में भी कंपनी ने अदालत में राज्य सरकार की संपत्तियों की लिस्ट दी होगी और आग्रह किया होगा कि हिमाचल भवन दिल्ली की संपत्ति अटैच करने से उसकी रकम की भरपाई हो सकती है. वहीं, हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट विक्रांत ठाकुर का कहना है कि अदालत के इस आदेश में विस्तार से ये नहीं बताया गया है कि कौन प्रॉपर्टी अटैच करेगा और क्या प्रोसेस रहेगा.

अमूमन वो प्रॉपर्टी अटैच होती है, जिसके साथ विवाद हो. उदाहरण के लिए ये विवाद ऊर्जा विभाग के साथ है तो उसकी कोई संपत्ति अटैच हो सकती थी. अब हिमाचल भवन दिल्ली को कुर्क करने के आदेश के पीछे क्या कारण हैं, ये स्पष्ट नहीं कह सकते. ये भी संभव है कि कोर्ट ने लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी मांगी हो और संबंधित हाइड्रो पावर कंपनी ने उसमें दिल्ली के हिमाचल भवन का जिक्र किया हो कि उस संपत्ति को कुर्क करने से उसका काम बनेगा.

वहीं, राज्य के सीनियर एडिशनल एडवोकेट जनरल आईएन मेहता का कहना है कि अमूमन लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी कोर्ट में पेश की जाती है और उसी के आधार पर कुर्की के आदेश होते हैं. इस केस में वास्तव में क्या हुआ है, ये माननीय न्यायालय का फैसला पढ़ने के बाद ही कहा जा सकता है. हिमाचल भवन दिल्ली जीएडी यानी सामान्य प्रशासन विभाग की संपत्ति है और मामला ऊर्जा विभाग का है. संभव है कि लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी कोर्ट में पेश की गई हो और उसके आधार पर ये फैसला आया हो.

सरकार करेगी उचित कानूनी उपाय

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि इस मामले में सरकार उचित कानूनी उपाय सुनिश्चित करेगी. सीएम ने पूर्व सरकार पर आरोप लगाया कि वे मामले की पैरवी करने में नाकाम रही. सीएम के अनुसार 320 मेगावाट की परियोजना 2009 में सेली हाईड्रो पावर कंपनी को आवंटित की गई थी. अब हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उचित कानूनी विकल्प देखा जाएगा.

वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि इस मामले में सुक्खू सरकार विफल रही है. सरकार की नाकामी से दिल्ली में हिमाचल की शान के नीलाम होने के नौबत आई है. भाजपा नेता अनुराग ठाकुर व हिमाचल भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल ने भी सरकार को घेरा है. फिलहाल, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिमाचल से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल मची है.

ये भी पढ़ें: दिल्ली में हिमाचल भवन के कुर्की वाले आदेश पर बोले सीएम, मैनें अभी नहीं पढ़ा HC का फैसला

शिमला: पहाड़ में सर्द मौसम के दौरान पारा गिरता है, लेकिन इस समय हिमाचल का राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ है. कारण है हाईकोर्ट का एक आदेश. हिमाचल हाईकोर्ट ने एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से जुड़े मामले में आर्बिट्रेशन अवार्ड की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली स्थित हिमाचल भवन को कुर्क करने के आदेश जारी किए. ये आदेश सामने आते ही पहाड़ की सियासत में घमासान मच गया. खासकर राज्य की सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के लिए ये आदेश कंगाली में आटा गीला होने के समान है.

वजह ये कि हाईकोर्ट ने 64 करोड़ रुपये की अपफ्रंट मनी को सात फीसदी ब्याज दर सहित लौटाने के आदेश जारी किए हैं. ब्याज सहित ये रकम 100 करोड़ रुपये के करीब भी हो सकती है. कर्ज के सहारे गाड़ी खींच रही सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के लिए ये पैसा जुटाना बेशक आसान है, लेकिन इसका बोझ खजाने पर पड़ेगा. सीएम सुक्खू ने भी अपने बयान में कहा कि सरकार के लिए 64 करोड़ रुपये कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने इस मामले का ठीकरा पूर्व की जयराम सरकार पर भी फोड़ा.

हिमाचल भवन के कुर्की के आदेश (ETV Bharat)

मामले ने इतना तूल पकड़ा है कि भाजपा आरोप लगाने लगी कि सुक्खू सरकार आखिरकार क्या-क्या बिकवाएगी. भाजपा ने कुर्की आदेश में हिमाचल भवन दिल्ली का नाम आने पर इसे राज्य की अस्मिता का सवाल बता दिया. वहीं, सरकार इस मामले में एलपीए दाखिल करने जा रही है. यानी कुर्की आदेश को डबल बैंच में अपील के जरिए चुनौती देगी.

आखिर क्या है पूरा मामला?

साल 2009 में 320 मेगावाट का प्रोजेक्ट आवंटन लाहौल-स्पीति में चिनाब नदी पर एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाया जाना प्रस्तावित हुआ तब राज्य में बीजेपी की सरकार थी. सेली हाइड्रो पावर कंपनी इस प्रोजेक्ट को लगाने की इच्छुक थी. इसके लिए अपफ्रंट प्रीमियम या अपफ्रंट मनी जमा करनी होती है. ये मनी या प्रीमियम राज्य की उर्जा नीति का हिस्सा है.

राज्य में साल 2006 में विद्या स्टोक्स के पावर मिनिस्टर रहते हुए ऊर्जा नीति में अपफ्रंट प्रीमियम लागू करने का फैसला हुआ था यानी जो कंपनी प्रोजेक्ट लगाना चाहती है, उसे एक निश्चित रकम राज्य को देनी होती है. यदि प्रोजेक्ट शुरू न हो पाए या फिर वाएबल ना हो तो ये रकम वापस करने का प्रावधान शर्तों के अनुसार होता है. खैर, प्रोजेक्ट को वाएबल बनाने के लिए सड़क निर्माण का काम बार्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को दिया गया. कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर सरकार के पास 64 करोड़ रुपये जमा करवा दिए. ये सारा घटनाक्रम वर्ष 2009 का है.

दिल्ली में हिमाचल भवन
दिल्ली में हिमाचल भवन (फाइल फोटो)

सुविधाएं मिली नहीं, प्रोजेक्ट सिरे चढ़ा नहीं

अब किसी भी हाइड्रो पावर को शुरू करने के लिए मशीनरी लानी होती है. हैवी मशीनरी के लिए अच्छा रोड व अन्य सुविधाएं जरूरी होती हैं. कंपनी को ये सुविधाएं नहीं मिली तो उसने प्रोजेक्ट से वापस हाथ खींच लिए. उधर, सरकार ने कंपनी की तरफ से जमा 64 करोड़ रुपये की अपफ्रंट प्रीमियम की रकम को एक तरह से जब्त कर लिया. यानी ये रकम कंपनी को वापस नहीं की गई. कंपनी का मानना है कि सुविधाएं उपलब्ध करवाना सरकार का काम है.

सरकार बिड खोलती है और ये मानती है कि प्रोजेक्ट वाएबल है. कंपनी को तो तब पता चलता है, जब सुविधाएं मिलती नहीं और प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाता. ऐसे में वाएबिलिटी का ठीकरा कंपनी पर नहीं फोड़ा जा सकता. इसी तर्क के साथ कंपनी 64 करोड़ रुपये वापस पाने के लिए याचिका के जरिए वर्ष 2017 में हाईकोर्ट चली गई.मामला आर्बिट्रेशन में गया और वहां से कंपनी के हक में फैसला आया. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कंपनी को रकम चुकाने को कहा.

कानूनी पहलू यहां समझें

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने पिछले साल 13 जनवरी को मामले की सुनवाई की और राज्य सरकार को आदेश जारी किए कि 64 करोड़ रुपये का अपफ्रंट प्रीमियम कंपनी को ब्याज सहित वापस करे. फिर मामला डबल बेंच में गया और एक शर्त पर स्टे मिल गया. सिंगल बेंच के फैसले पर डबल बेंच ने इस शर्त के साथ स्टे लगाया कि यदि सरकार यानी प्रतिवादी अपफ्रंट प्रीमियम जमा करवाने में असफल रहता है तो स्टे हटा दिया जाएगा. ये रकम जमा करवाने के लिए 15 जुलाई 2024 तक का समय था. सरकार ने राशि जमा नहीं करवाई तो अदालत ने स्टे हटा दिया.

अनुपालना ना करने पर हिमाचल भवन को कुर्की का आदेश

सेली हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ने हाईकोर्ट में अनुपालना याचिका दाखिल की जिसकी सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने आर्बिट्रेशन अवॉर्ड की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली के हिमाचल भवन को कुर्क करने के आदेश जारी किए. मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर को तय की गई साथ ही न्यायमूर्ति गोयल ने सरकार को इस बात का पता लगाने के आदेश भी दिए कि कौन से अधिकारियों की चूक के कारण ये अवार्ड यानी अपफ्रंट प्रीमियम की रकम कोर्ट में जमा नहीं हुई.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

अदालत का कंसर्न ये था कि समय पर राशि जमा ना करने से दैनिक आधार पर ब्याज की रकम बढ़ती जा रही है. हिमाचल भवन ही क्यों अवॉर्ड की अनुपालना ना होने पर अदालत कुर्की आदेश पारित करती है. सरकार की कौन सी संपत्ति को कुर्क करने के आदेश जारी करने हैं, ये सारा का सारा अधिकार न्यायालय का है. एडवोकेट पंकज चौहान का कहना है कि जब सरकार आर्बिट्रेशन अवॉर्ड की अनुपालना ना करे तो न्यायालय संबंधित पक्ष से लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी मांगता है कि कौन-कौन सी संपत्ति है, जिसे बेचकर उसका बकाया चुकाया जा सकता है.

एक संभावना यह है कि इस केस में भी कंपनी ने अदालत में राज्य सरकार की संपत्तियों की लिस्ट दी होगी और आग्रह किया होगा कि हिमाचल भवन दिल्ली की संपत्ति अटैच करने से उसकी रकम की भरपाई हो सकती है. वहीं, हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट विक्रांत ठाकुर का कहना है कि अदालत के इस आदेश में विस्तार से ये नहीं बताया गया है कि कौन प्रॉपर्टी अटैच करेगा और क्या प्रोसेस रहेगा.

अमूमन वो प्रॉपर्टी अटैच होती है, जिसके साथ विवाद हो. उदाहरण के लिए ये विवाद ऊर्जा विभाग के साथ है तो उसकी कोई संपत्ति अटैच हो सकती थी. अब हिमाचल भवन दिल्ली को कुर्क करने के आदेश के पीछे क्या कारण हैं, ये स्पष्ट नहीं कह सकते. ये भी संभव है कि कोर्ट ने लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी मांगी हो और संबंधित हाइड्रो पावर कंपनी ने उसमें दिल्ली के हिमाचल भवन का जिक्र किया हो कि उस संपत्ति को कुर्क करने से उसका काम बनेगा.

वहीं, राज्य के सीनियर एडिशनल एडवोकेट जनरल आईएन मेहता का कहना है कि अमूमन लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी कोर्ट में पेश की जाती है और उसी के आधार पर कुर्की के आदेश होते हैं. इस केस में वास्तव में क्या हुआ है, ये माननीय न्यायालय का फैसला पढ़ने के बाद ही कहा जा सकता है. हिमाचल भवन दिल्ली जीएडी यानी सामान्य प्रशासन विभाग की संपत्ति है और मामला ऊर्जा विभाग का है. संभव है कि लिस्ट ऑफ प्रॉपर्टी कोर्ट में पेश की गई हो और उसके आधार पर ये फैसला आया हो.

सरकार करेगी उचित कानूनी उपाय

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि इस मामले में सरकार उचित कानूनी उपाय सुनिश्चित करेगी. सीएम ने पूर्व सरकार पर आरोप लगाया कि वे मामले की पैरवी करने में नाकाम रही. सीएम के अनुसार 320 मेगावाट की परियोजना 2009 में सेली हाईड्रो पावर कंपनी को आवंटित की गई थी. अब हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उचित कानूनी विकल्प देखा जाएगा.

वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि इस मामले में सुक्खू सरकार विफल रही है. सरकार की नाकामी से दिल्ली में हिमाचल की शान के नीलाम होने के नौबत आई है. भाजपा नेता अनुराग ठाकुर व हिमाचल भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल ने भी सरकार को घेरा है. फिलहाल, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिमाचल से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल मची है.

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