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केवल सुसाइड नोट में नाम होने से कोई दोषी नहीं होता, जानिए- किस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने की ये टिप्पणी - Delhi HC Comment on Suicide Note

एक सास की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ सुसाइड नोट में नाम होने से कोई सुसाइड के लिए उकसाने का दोषी नहीं हो सकता. बता दें कि महिला ने अपने पति के सुसाइड के लिए बहू को जिम्मेदार बताया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.

दिल्ली हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Apr 12, 2024, 10:11 AM IST

Updated : Apr 12, 2024, 10:26 AM IST

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सुसाइड नोट में केवल लोगों का नाम लेने और मौत के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहरा देने से भारतीय दंड संहिता के तहत खुदकुशी के लिए उकसाने का दोषी नहीं हो जाता है. जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की बेंच ने एक सास की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.

हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ सुसाइड नोट में कुछ लोगों के नाम का जिक्र करना और ये कहना कि वे उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं, भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत सुसाइड के लिए उकसाने के लिए दोषी करार देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है.

यह है मामला
दरअसल, याचिकाकर्ता सास की बहू ने 9 मार्च 2014 को अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए अपने पति का घर छोड़ दिया. 23 मार्च 2014 को बहू के पति यानि याचिकाकर्ता के पुत्र ने अपनी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि वो गहनों और सामान के साथ चली गई है. 31 मार्च 2014 को याचिकाकर्ता महिला के पति (बहू के ससुर) ने खुदकुशी कर ली.

सास के पति की खुदकुशी के बाद सास ने एफआईआर दर्ज कराई जिसमें उनकी बहू और उसके माता-पिता द्वारा उत्पीड़न के कारण अपने पति की खुदकुशी का आरोप लगाया गया था. एफआईआर के बाद पुलिस ने जांच की जिसमें इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं मिला जिससे सुसाइड नोट को अपराध से जोड़ा जाए, जिसके बाद पुलिस ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, जिसका याचिकाकर्ता सास ने विरोध किया. सास की विरोध याचिका को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था, जिस पर एडिशनल सेशंस जज ने भी मुहर लगाई. एडिशनल सेशंस जज के फैसले को महिला सास ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

ये भी पढ़ेंः गाजियाबाद में 12वीं के स्टूडेंट ने 23वें फ्लोर से कूदकर दी जान, दोस्त से मिलने आया था- सुसाइड नोट मिला

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सुसाइड नोट में केवल लोगों का नाम लेने और मौत के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहरा देने से भारतीय दंड संहिता के तहत खुदकुशी के लिए उकसाने का दोषी नहीं हो जाता है. जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की बेंच ने एक सास की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.

हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ सुसाइड नोट में कुछ लोगों के नाम का जिक्र करना और ये कहना कि वे उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं, भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत सुसाइड के लिए उकसाने के लिए दोषी करार देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है.

यह है मामला
दरअसल, याचिकाकर्ता सास की बहू ने 9 मार्च 2014 को अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए अपने पति का घर छोड़ दिया. 23 मार्च 2014 को बहू के पति यानि याचिकाकर्ता के पुत्र ने अपनी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि वो गहनों और सामान के साथ चली गई है. 31 मार्च 2014 को याचिकाकर्ता महिला के पति (बहू के ससुर) ने खुदकुशी कर ली.

सास के पति की खुदकुशी के बाद सास ने एफआईआर दर्ज कराई जिसमें उनकी बहू और उसके माता-पिता द्वारा उत्पीड़न के कारण अपने पति की खुदकुशी का आरोप लगाया गया था. एफआईआर के बाद पुलिस ने जांच की जिसमें इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं मिला जिससे सुसाइड नोट को अपराध से जोड़ा जाए, जिसके बाद पुलिस ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, जिसका याचिकाकर्ता सास ने विरोध किया. सास की विरोध याचिका को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था, जिस पर एडिशनल सेशंस जज ने भी मुहर लगाई. एडिशनल सेशंस जज के फैसले को महिला सास ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

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Last Updated : Apr 12, 2024, 10:26 AM IST
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