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देहरादून IIP ने किया कमाल, बायोगैस से तैयार किया PNG और CNG का विकल्प, शुरू हुआ इंडस्ट्रियल यूज - Industrial use of biogas

Industrial use of biogas, Biogas becomes an alternative to PNG CNG बायोगैस पर देशभर में काम किया जा रहा है. इस कड़ी में देहरादून आईआईपी के वैज्ञानिकों ने कमाल किया है.आईआईपी के वैज्ञानिकों ने पारंपरिक बायोगैस को PNG और CNG के बेहतर विकल्प के तौर पर तैयार किया है. इसके बाद धीरे धीरे इसका इंडस्ट्रियल यूज भी होने लगा है.

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देहरादून IIP ने किया कमाल (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 28, 2024, 6:42 PM IST

Updated : Jun 28, 2024, 8:55 PM IST

देहरादून IIP ने किया कमाल (Etv Bharat)

देहरादून: बायोगैस को लेकर आम आदमी की जानकारी पारंपरिक बायोगैस से है. जिसमें घरों में गले ऑर्गेनिक कूड़े के माध्यम से बायोगैस बनाई जाती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार बायोगैस के इस्तेमाल को लेकर कह चुके हैं. इस बायोगैस का व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल को लेकर के अभी तक कोई विकल्प मौजूद नहीं था. देहरादून आईआईपी के शोधकर्ताओं ने घरों में पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाली इस सामान्य लो प्रेशर और कार्बन युक्त बायोगैस को एफिशिएंट वैक्यूम स्विंग एडसरप्शन तकनीक की मदद से घरेलू इस्तेमाल के लिए उपयोग होने वाली पीएनजी और गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली सीएनजी गैस के रूप में इस्तेमाल लायक बनाने के कारनामे को कर दिखाया है. इसी तकनीक की मदद से शोधकर्ताओं ने कोविड-19 महामारी के दौर में सामान्य हवा से ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिया को भी अंजाम दिया था.

Dehradun IIP Scientists
बायोगैस को बना PNG और CNG का विकल्प (ईटीवी भारत)

क्या है वैक्यूम स्विंग एडसरप्शन (VSA) तकनीक ?: देहरादून आईआईपी इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट सौमेन दास गुप्ता ने बताया अब तक सामान्य बायो गैस 35 तो 45% कार्बन डाइऑक्साइड और 55 से 65% मीथेन के अलावा हाइड्रोजन सल्फाइड वाली गैस होती है, जो मॉइश्चर से भरी हुई रहती है. वैज्ञानिक के अनुसार बायोगैस को फ्यूल एफिशिएंट बनाने के लिए इसमें मीथेन की क्वांटिटी को ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड के अनुसार 90 फीसदी से ऊपर ले जाना पड़ता है. फ्यूल क्वालिटी को घटाने वाली सभी प्रॉपर्टी मॉइश्चर और कार्बन डाइऑक्साइड को कम करना पड़ता है.

Dehradun IIP Scientists
बायोगैस का इंडस्ट्रियल यूज शुरू (ईटीवी भारत)

वहीं इसके अलावा सामान्य बायोगैस में हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा होती है जो की बेहद टॉक्सिक गैस है. यह ह्यूमन एंड एनिमल बॉडी के लिए भी बेहद जहरीली है. इस तरह से एक विशेष सरफेस पर सामान्य बायोगैस को प्रभावित किया जा रहा जाता है. यह विशेष सॉलि़ड सर्फेस बायोगैस में से जिन पार्टिकल्स को हटाना है उनको अवशोषित कर लेता है. जिसमेंं कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड को अवशोषित किया जाता है. इसके बाद गैस में मीथेन की मात्रा 90 फ़ीसदी से ज्यादा बढ़ जाती है. वहीं मॉइश्चर को पहले ही बायोगैस से अलग कर दिया जाता है. इस तरह से इस पूरी प्रक्रिया के बाद एक हाय फ्यूल एफिशिएंट गैस तैयार होती है. जिसको थोड़ा कम प्रेशर पर रखना पर पीएनजी गैस और अधिक प्रेशर पर रखने पर सीएनजी गैस प्राप्त होती है.

Dehradun IIP Scientists
बायोगैस का इस्तेमाल (ईटीवी भारत)

बायोगैस का इंडस्ट्रियल उपयोग: बायोगैस को एफिशिएंट फ्यूल गैस में बदलने की इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कई जगह इसके इंडस्ट्रियल प्लांट भी लगाए जा चुके हैं. जहां पर इस तकनीक का बेहतर उपयोग किया जा रहा है. लुधियाना में बायोफ्यूल इंडस्ट्री चला रहे श्यामसुंदर गोयल ने बताया वह काऊ डंग से बायो सीएनजी बनाने का काम करते हैं. जिसS वह इंडियन ऑयल को भेजते हैं. इसके अलावा बचने वाले वेस्ट को ऑर्गेनिक खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बायोगैस का पारंपरिक प्लांट लगाया, उसमें उन्हें काफी घाटा हुआ था. आईआईपी देहरादून द्वारा ईजाद की गई VAS टेक्नोलॉजी के माध्यम से बायोगैस से सीएनजी बनाने और उसके इंडस्ट्रियल इस्तेमाल से उनके घाटे की भरपाई हुई है. लगातार वह इस दिशा में काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया जिस तरह से यह तकनीक काम कर रही है वह आगे सोदो प्लांट लगाने की सोच रहे हैं.

Dehradun IIP Scientists
बायोगैस से कमाल कर रहे वैज्ञानिक (ईटीवी भारत)

देहरादून इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम और बायो सीएनजी इंडस्ट्री के बीच ब्रिज का काम करने वाले टेक्निकल कोऑर्डिनेटर ML धीमान ने बताया उनके द्वारा इसी टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर तीन अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट तैयार किए गए हैं. जिसमें बायो ऑक्सीजन एक प्रमुख प्रोडक्ट है. बायों सीएनजी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा खराब बायोवेस्ट से बायोफ्यूल बनती है. उसको अगर प्यूरिफाई किया जाए तो उससे बायो सीएनजी बनती है. उन्होंने बताया पारंपरिक रूप से होने वाले बायोगैस एक रॉ मैटेरियल है, जिसका केवल डोमेस्टिक इस्तेमाल ही संभव है. इसे प्यूरिफाई कर इसका सीएनजी के रूप में इस्तेमाल करना ही बायोगैस का इंडस्ट्रियल इस्तेमाल है.

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पढे़ं- उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा फंगस, Black Carbon को करेगा खत्म

देहरादून IIP ने किया कमाल (Etv Bharat)

देहरादून: बायोगैस को लेकर आम आदमी की जानकारी पारंपरिक बायोगैस से है. जिसमें घरों में गले ऑर्गेनिक कूड़े के माध्यम से बायोगैस बनाई जाती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार बायोगैस के इस्तेमाल को लेकर कह चुके हैं. इस बायोगैस का व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल को लेकर के अभी तक कोई विकल्प मौजूद नहीं था. देहरादून आईआईपी के शोधकर्ताओं ने घरों में पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाली इस सामान्य लो प्रेशर और कार्बन युक्त बायोगैस को एफिशिएंट वैक्यूम स्विंग एडसरप्शन तकनीक की मदद से घरेलू इस्तेमाल के लिए उपयोग होने वाली पीएनजी और गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली सीएनजी गैस के रूप में इस्तेमाल लायक बनाने के कारनामे को कर दिखाया है. इसी तकनीक की मदद से शोधकर्ताओं ने कोविड-19 महामारी के दौर में सामान्य हवा से ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिया को भी अंजाम दिया था.

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बायोगैस को बना PNG और CNG का विकल्प (ईटीवी भारत)

क्या है वैक्यूम स्विंग एडसरप्शन (VSA) तकनीक ?: देहरादून आईआईपी इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट सौमेन दास गुप्ता ने बताया अब तक सामान्य बायो गैस 35 तो 45% कार्बन डाइऑक्साइड और 55 से 65% मीथेन के अलावा हाइड्रोजन सल्फाइड वाली गैस होती है, जो मॉइश्चर से भरी हुई रहती है. वैज्ञानिक के अनुसार बायोगैस को फ्यूल एफिशिएंट बनाने के लिए इसमें मीथेन की क्वांटिटी को ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड के अनुसार 90 फीसदी से ऊपर ले जाना पड़ता है. फ्यूल क्वालिटी को घटाने वाली सभी प्रॉपर्टी मॉइश्चर और कार्बन डाइऑक्साइड को कम करना पड़ता है.

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बायोगैस का इंडस्ट्रियल यूज शुरू (ईटीवी भारत)

वहीं इसके अलावा सामान्य बायोगैस में हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा होती है जो की बेहद टॉक्सिक गैस है. यह ह्यूमन एंड एनिमल बॉडी के लिए भी बेहद जहरीली है. इस तरह से एक विशेष सरफेस पर सामान्य बायोगैस को प्रभावित किया जा रहा जाता है. यह विशेष सॉलि़ड सर्फेस बायोगैस में से जिन पार्टिकल्स को हटाना है उनको अवशोषित कर लेता है. जिसमेंं कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड को अवशोषित किया जाता है. इसके बाद गैस में मीथेन की मात्रा 90 फ़ीसदी से ज्यादा बढ़ जाती है. वहीं मॉइश्चर को पहले ही बायोगैस से अलग कर दिया जाता है. इस तरह से इस पूरी प्रक्रिया के बाद एक हाय फ्यूल एफिशिएंट गैस तैयार होती है. जिसको थोड़ा कम प्रेशर पर रखना पर पीएनजी गैस और अधिक प्रेशर पर रखने पर सीएनजी गैस प्राप्त होती है.

Dehradun IIP Scientists
बायोगैस का इस्तेमाल (ईटीवी भारत)

बायोगैस का इंडस्ट्रियल उपयोग: बायोगैस को एफिशिएंट फ्यूल गैस में बदलने की इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कई जगह इसके इंडस्ट्रियल प्लांट भी लगाए जा चुके हैं. जहां पर इस तकनीक का बेहतर उपयोग किया जा रहा है. लुधियाना में बायोफ्यूल इंडस्ट्री चला रहे श्यामसुंदर गोयल ने बताया वह काऊ डंग से बायो सीएनजी बनाने का काम करते हैं. जिसS वह इंडियन ऑयल को भेजते हैं. इसके अलावा बचने वाले वेस्ट को ऑर्गेनिक खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बायोगैस का पारंपरिक प्लांट लगाया, उसमें उन्हें काफी घाटा हुआ था. आईआईपी देहरादून द्वारा ईजाद की गई VAS टेक्नोलॉजी के माध्यम से बायोगैस से सीएनजी बनाने और उसके इंडस्ट्रियल इस्तेमाल से उनके घाटे की भरपाई हुई है. लगातार वह इस दिशा में काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया जिस तरह से यह तकनीक काम कर रही है वह आगे सोदो प्लांट लगाने की सोच रहे हैं.

Dehradun IIP Scientists
बायोगैस से कमाल कर रहे वैज्ञानिक (ईटीवी भारत)

देहरादून इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम और बायो सीएनजी इंडस्ट्री के बीच ब्रिज का काम करने वाले टेक्निकल कोऑर्डिनेटर ML धीमान ने बताया उनके द्वारा इसी टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर तीन अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट तैयार किए गए हैं. जिसमें बायो ऑक्सीजन एक प्रमुख प्रोडक्ट है. बायों सीएनजी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा खराब बायोवेस्ट से बायोफ्यूल बनती है. उसको अगर प्यूरिफाई किया जाए तो उससे बायो सीएनजी बनती है. उन्होंने बताया पारंपरिक रूप से होने वाले बायोगैस एक रॉ मैटेरियल है, जिसका केवल डोमेस्टिक इस्तेमाल ही संभव है. इसे प्यूरिफाई कर इसका सीएनजी के रूप में इस्तेमाल करना ही बायोगैस का इंडस्ट्रियल इस्तेमाल है.

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Last Updated : Jun 28, 2024, 8:55 PM IST
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