नई दिल्ली: भारतीय शास्त्रीय नृत्य की बात करें तो इस विधा में एक से बढ़कर एक दिग्गज मौजूद हैं, जो न सिर्फ लोगों के लिए प्रेरणा बने, बल्कि औरों के लिए इस क्षेत्र में नाम बनाने का मार्ग भी प्रशस्त किया. इन्हीं में एक हैं सोनल मानसिंह. करीब 90 देशों को हिन्दुस्तानी नृत्य शैली से परिचित कराने वाली सोनल मानसिंह, किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. मात्र सात वर्ष की आयु से भारतीय शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में कदम रखने के बाद, आज वह पद्मभूषण, पद्मविभूषण पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं. आगामी 16 फरवरी को वह मोदी सरकार की महिलाओं को सशक्त करने वाली योजनाओं को नृत्य शैली में प्रस्तुत करेंगी. उन्होंने इस प्रस्तुति के साथ अन्य चीजों के बारे में बात की..
सवाल: आपको अयोध्या में आयोजित रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का हिस्सा बनने का मौका मिला. कैसा रहा आपका अनुभव ?
जवाब: यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अयोध्या में आयोजित रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा बनने का मौका मिला. उस अनुभव को शब्दों में बयां कर पाना नामुमकिन है. यह अनुभव दैविक और अद्वितीय रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही राम मंदिर का निर्माण संभव हो पाया है.
सवाल: 16 फरवरी को राजधानी में आपकी 'कर्मयोगी' नाम की एक प्रस्तुति होनी है. कैसी तैयारियां हैं उसकी?
जवाब: जी 16 फरवरी को मैं कर्मयोगी नाम की प्रस्तुति दूंगी. इसमें मोदी सरकार की कुछ योजनाओं को नृत्य शैली में प्रस्तुत किया जाएगा. वैसे तो भारतीय नृत्य की आठ विधाएं होती हैं. वहीं लोक और ट्राइबल नृत्य अनगिनत है. वीडियो और सिनेमा के माध्यम से कई बार सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार किया जाता रहा है, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब संगीत नृत्य के माध्यम से लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाएगी. इसमें सभी योजनाओं को शामिल करना मुश्किल है, पर मेरा प्रयास है कि महिलाओं को सशक्त बनाने वाली सभी योजनओं को शामिल किया जाए.
इसमें श्री राम मंदिर, सौभाग्य योजना, उज्ज्वला योजना, हर घर नल योजना, नारी शक्ति बंधन योजना, वसुधैव कुटुम्बकम्, सुकन्या समृद्धि योजना, मातृत्व वंदन योजना, श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, आयुष्मान भारत योजना जैसे कई योजनाओं की जानकारियां शामिल है. मोदी सरकार की योजनाओं ने महिलाओं की जिंदगी बदला दी है. मेरा मानना है भारत के हर व्यक्ति इन योजनाओं की जानकारी हो, ताकि वह इनका भरपूर लाभ उठा सके. ऐसा करने के लिए मैंने विचार किया कि सभी योजनाओं को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
सवाल: आपको ऐसा करने का विचार कब बनाया?
जवाब: मैं सच बताऊं तो किसी प्रोडक्शन के लिए अचानक ही विचार आता है और मैं उसकी जमीनी स्तर पर उसकी तैयारियां शुरू कर देती हूं. मेरा मन और मस्तिष्क मां भगवती को समर्पित है. वही रास्ते दिखतीं हैं. दो महीने पहले इस तरह का कार्यक्रम को करने का विचार आया था, जिसके बाद इसका नाम कर्मयोगी रखा.
सवाल: नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में 25वां भारत रंग महोत्सव चल रहा है. उसमें आपकी प्रस्तुति कब होगी?
जवाब: भारंगम के अंतिम दिन 21 फरवरी को कमानी सभागार में 'अप दीपो भव:' प्रस्तुत करूंगी. ऐसा कहा जाता है कि यह भगवान बुद्ध के परिनिर्माण का आखिरी उपदेश था. उनके प्रिये शिष्य आनंद (स्थविर) ने भगवान बुद्ध से पूछा कि अब हमारा मार्गदर्शन कौन करेगा, तब उन्होंने अप दीपो भव: का उपदेश दिया था. इसका अर्थ है आप अपना दीपक खुद प्रकट करो. इसमें आत्म ज्ञान और आत्म निर्भरता दोनों ही बातें शामिल हैं. इस प्रस्तुति में भी महिलाओं को प्रमुखता दी गई है. इस प्रस्तुति में उन महिलाओं के योगदान को दर्शाया जाएगा, जिन्होंने राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बनाने की यात्रा में उन साथ दिया, जैसे आम्रपाली और यशोधरा.
सवाल: बहुत से परिवार आज भी नहीं चाहते कि उनके बच्चे डांस करें या इस क्षेत्र में भविष्य बनाएं. शुरुआती दिनों में आपने भी संघर्ष किया. आज के वक्त में ऐसे अभिभावकों को क्या संदेश देना चाहती हैं आप?
जवाब: मेरा समय तो बिलकुल अलग था. 1963 में जब में 18 वर्ष की थी तब ऐसा हुआ था जो की पिछली सदी थी, लेकिन वर्तमान में दो तरह के लोग हैं. इसमें कुछ अभिभावकों का ध्यान ग्रेड्स और डिग्री की ओर ज्यादा है. वहीं एक तबका ऐसा भी सोचता है कि नृत्य के क्षेत्र में कितनी कमाई होगी? चलिए मैं मानती हूँ आपने पैसे भी कमा लिए, उपाधि भी हासिल हुई, लेकिन इसके बाद भी लोग कुछ ढूंढते रहते हैं और वह सुखी नहीं हैं. इसकी सचाई आपको सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर दिख जाएगी.
इसको लेकर तमाम सतसंगी, बाबा, साधु कई तरह कि मुद्राओं को बताते हैं कि इसको करने से मन शांत रहेगा. वहीं अगर कोई नृत्य के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाता है, तो उसके लिए उनका पूरा शरीर ही मंदिर होता है. इसके साथ आप सनातन और दिव्यता को प्रस्तुत करते हैं. जो मूल और शास्वत है. भारत की जो पौराणिक कहानियां हैं उसमें कई ऐसे संदेश है. उनको सुंदर तरीके से लोगों का पहुंचाना ये एक नृत्य कलाकार का काम है. इसके अलावा, आज कल लोग खुद को फिट रखने के लिए जिम जाते हैं, लेकिन मैं कभी जिम नहीं गई. अगर में 80 वर्ष की आयु में भी काम कर पा रही हूं, तो इसकी सबसे बड़ी वजह नृत्य ही है. वर्तमान में अभिभावकों को यह समझना या कहें कि समझाना बहुत जरुरी है, पैसा ही सब कुछ नहीं है. नृत्य उनके बच्चे के व्यवहार और भविष्य को भी संवार सकता है.
सवाल: आपने सात वर्ष की आयु से नृत्य करना शुरू किया था और अब 80 वर्ष की आयु में भी नृत्य कर रही हैं? आप किस तरह की डाइट फॉलो करती हैं?
जवाब: मेरी कोई विशेष डाइट नहीं है. मुझे शुरू से ही तला-भुना खाना पसंद नहीं है. हां, मुझे मीठा खाना काफी पसंद है. पहले की तुलना में मैंने डाइट में कुछ बदलाव जरूर किए हैं. अब मैं कम खाना कहती हूं. ऐसा नहीं है एक साथ खूब खा लूं और उसके बाद उनको डाइजेस्ट करने के लिए दवाओं का सहारा लेना पड़े.
सवाल: आप भरत नाट्यम और ओडिसी नृत्य शैली की गुरु हैं. दोनों ही नृत्य शैली में कितना अंतर है?
जवाब: दोनों ही नृत्य एक दूसरे के पूरक हैं. दोनों के बाहरी अंदाज बिलकुल अलग है. भरत नाट्यम की प्रस्तुति के दौरान कलाकार दक्षिण भारत के आभूषण पहनते हैं. वहीं ओडिशी नृत्य में चांदी के आभूषाओं को पहना जाता है. दोनों की ड्रेस, टेक्निक, संगीत भी बिलकुल अलग है. नृत्य एक दृश्य कला है और इसे शब्दों में समझा पाना मुश्किल है.
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