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झारखंड में डिजिटल अरेस्ट के जरिए अब तक की सबसे बड़ी ठगी, साइबर अपराधियों ने रांची के प्रोफेसर से ठग लिए 1.78 करोड़ - Cyber ​​fraud in ranchi

Digital arrest रांची में साइबर ठगी का मामला सामने आया है. यह ठगी डिजिटल अरेस्ट के जरिए एक प्रोफेसर से की गई है. यह झारखंड में डिजिटल अरेस्ट के जरिए अब तक की सबसे बड़ी ठगी.

Cyber ​​​​criminals in Ranchi defrauded professor of Rs 1 crore 78 lakh through digital arrest
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 21, 2024, 7:55 AM IST

रांचीः झारखंड की राजधानी रांची में डिजिटल अरेस्ट कर साइबर अपराधियों ने एक प्रोफेसर से बड़ी ठगी को अंजाम दिया है. साइबर अपराधियो ने प्रोफेसर से 1 करोड़ 78 लाख रूपये ठग लिए हैं. मामले को लेकर प्रोफेसर ने सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच में एफआईआर दर्ज कराई है.

दिल्ली पुलिस का अफसर बन ठगी

रांची के एक नामी और प्रतिष्ठित कॉलेज के प्रोफेसर से साइबर ठगों ने बड़ी ठगी को अंजाम दिया है. साइबर अपराधियों ने दिल्ली पुलिस का अफसर बन कर प्रोफेसर को व्हाट्सएप कॉल के जरिये मनी लाउंड्रिंग का आरोपी बताते हुए उनकी गिरफ्तारी की बात कह डिजिटल अरेस्ट कर लिया. फर्जी पुलिस वालों को असली समझ प्रोफेसर ने साइबर अपराधियो को एक करोड़ 78 लाख रुपये दे दिए.

नाम नहीं छापने की शर्त पर प्रोफेसर ने बताया कि साइबर अपराधियों ने एक तरह से उन्हें सम्मोहित कर लिया था, जिसकी वजह से वह उनकी चाल में फंसते चले गए. साइबर अपराधी ने उनसे कहा था कि करोड़ों का घोटाला हुआ है, उसमें से एक तिहाई रकम अगर बैंक में जमा करवा देते हैं तो उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग का आरोपी नहीं बनाया जाएगा.

खबरों में देखा तब पहुचे सीआईडी

साइबर अपराधियों को वास्तविक पुलिस समझ कर खौफ के साए में जी रहे प्रोफेसर ने एक दिन खबरों में देखा कि साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट कर लोगों से पैसे की ठगी कर रहे हैं. खबर देखने के बाद प्रोफेसर को लगा कि कहीं उनके साथ भी साइबर अपराधियों ने ठगी तो नहीं की है, जिसके बाद वो सीआईडी के पास पहुंचे. सीआईडी के पास पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उनके साथ साइबर अपराधियों के द्वारा ठगी की गई है.

जांच जारी

साइबर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के अनुसार प्रोफेसर के बयान पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है. प्रोफेसर के द्वारा जिन-जिन बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर किए गए थे, उस संबंध में जानकारी जुटाई जा रही है.

डिजिटल अरेस्ट बनी बड़ी आफत

साइबर अपराधियों के लिए बदनाम झारखंड में अब डिजिटल अरेस्ट एक बड़ी परेशानी का सबब बन गया है. सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच में डिजिटल अरेस्ट के चार मामले पहले सामने आ चुके हैं. प्रोफेसर के साथ हुई ठगी राज्य का सबसे बड़ा मामला है, जिसमे एक करोड़ 78 लाख ठग लिए गए. डिजिटल अरेस्ट करने के लिए साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की फेक आईडी का सहारा ले रहे हैं.

कैसे करते हैं टारगेट

साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ काम करते हैं. जिस व्यक्ति से उन्हें ठगी करना है उसका वह पूरा प्रोफाइल तैयार करते हैं. साइबर अपराधी यह जानते हैं कि किसी बड़े बिजनेसमैन, डॉक्टर और रिटायर अधिकारियों को इलीगल ट्रांजेक्सन और मनी लाउंड्रिंग जैसे मामले में डराया जा सकता है.

इसके लिए सबसे पहले साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अधिकारियों की तस्वीर और एजेंसी के लोगो की जुगाड़ करते हैं. उसके बाद अपने शिकार को फोन करके यह बताते हैं कि उनके खाते और मोबाइल सिम का प्रयोग इलीगल ट्रांजेक्शन और मनी लाउंड्रिंग के लिए किया गया है. साइबर अपराधी अपने शिकार को यह भी बताते हैं कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो चुका है.

अपने शिकार के नाम का गिरफ्तारी वारंट भी है उसके व्हाट्सएप पर या फिर ईमेल आईडी पर भेज देते हैं. साइबर अपराधियों की धमकी से डरा हुआ व्यक्ति जब इस मामले से अपने आप को निर्दोष बताते हुए मदद के भीख मांगता है तब साइबर अपराधी उन्हें अलग-अलग एकाउंट नंबर देकर लाखों रुपए की डिमांड करते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के नाम के वारंट को देखकर लोग पैसे ट्रांसफर कर देते हैं.

करोड़ों का घोटाला बोल मांगते हैं पैसा

साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार साइबर अपराधी किसी बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर ऐसे व्यक्ति को फोन करते है जो अधिकारी हो या अधिकारी रह चुका हो. सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी बनकर साइबर अपराधी फेक अरेस्ट वारंट भेजते है ,उसको बाद वह अपने शिकार को यह विश्वास दिला देते है की एजेंसी किसी भी वक्त उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. एक तरह से साइबर अपराधी अपने शिकार को हिप्टोनाइज कर देते हैं. उसके बाद साइबर अपराधी अपने शिकार को यह बताते हैं कि जितने रुपए का घोटाला किया गया है उसका एक तिहाई अगर वह तुरंत एकाउंट में जमा कर देंगे तो इस घोटाले में उन्हें राहत दिलाई जा सकती है. सुरक्षा एजेंसी से बचने के लिए लोग लाखों रुपए साइबर अपराधियों के खातों में डाल देते हैं.

सावधानी ही एक मात्र है बचाव

सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार डिजिटल अरेस्ट से बचने का एकमात्र तरीका है सावधानी. लोगों को यह जानना होगा कि कोई भी सुरक्षा एजेंसी किसी भी व्यक्ति को वीडियो कॉल के जरिए कभी भी पूछताछ नहीं करती है. पूर्व में अगर कोई मामला ना हो तो ऐसे में वारंट जारी ही नहीं हो सकता है. इन सब चीजों को आम लोगों को समझना जरूरी है.

फ़ोन आने पर क्या करें

  • किसी भी हाल में डरे मत
  • साइबर अपराधी अगर मोबाइल कॉल ना काटने दे तो भी आप फोन डिस्कनेक्ट कर दे
  • तुरंत साइबर क्राइम ब्रांच के हेल्पलाइन नंबर या फिर नजदीकी साइबर थाना से संपर्क करें
  • साइबर अपराधियों के द्वारा भेजे जाने वाले वारंट का सत्यापन करवाए
  • अपने दोस्तों और परिवार वालों को पूरी बात बताएं
  • जरूरत हो तो साइबर क्राइम ब्रांच के द्वारा जारी किए गए अधिकारियों के नंबर पर सीधे संपर्क करें

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दिल्ली पुलिस का अफसर बन ठगी

रांची के एक नामी और प्रतिष्ठित कॉलेज के प्रोफेसर से साइबर ठगों ने बड़ी ठगी को अंजाम दिया है. साइबर अपराधियों ने दिल्ली पुलिस का अफसर बन कर प्रोफेसर को व्हाट्सएप कॉल के जरिये मनी लाउंड्रिंग का आरोपी बताते हुए उनकी गिरफ्तारी की बात कह डिजिटल अरेस्ट कर लिया. फर्जी पुलिस वालों को असली समझ प्रोफेसर ने साइबर अपराधियो को एक करोड़ 78 लाख रुपये दे दिए.

नाम नहीं छापने की शर्त पर प्रोफेसर ने बताया कि साइबर अपराधियों ने एक तरह से उन्हें सम्मोहित कर लिया था, जिसकी वजह से वह उनकी चाल में फंसते चले गए. साइबर अपराधी ने उनसे कहा था कि करोड़ों का घोटाला हुआ है, उसमें से एक तिहाई रकम अगर बैंक में जमा करवा देते हैं तो उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग का आरोपी नहीं बनाया जाएगा.

खबरों में देखा तब पहुचे सीआईडी

साइबर अपराधियों को वास्तविक पुलिस समझ कर खौफ के साए में जी रहे प्रोफेसर ने एक दिन खबरों में देखा कि साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट कर लोगों से पैसे की ठगी कर रहे हैं. खबर देखने के बाद प्रोफेसर को लगा कि कहीं उनके साथ भी साइबर अपराधियों ने ठगी तो नहीं की है, जिसके बाद वो सीआईडी के पास पहुंचे. सीआईडी के पास पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उनके साथ साइबर अपराधियों के द्वारा ठगी की गई है.

जांच जारी

साइबर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के अनुसार प्रोफेसर के बयान पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है. प्रोफेसर के द्वारा जिन-जिन बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर किए गए थे, उस संबंध में जानकारी जुटाई जा रही है.

डिजिटल अरेस्ट बनी बड़ी आफत

साइबर अपराधियों के लिए बदनाम झारखंड में अब डिजिटल अरेस्ट एक बड़ी परेशानी का सबब बन गया है. सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच में डिजिटल अरेस्ट के चार मामले पहले सामने आ चुके हैं. प्रोफेसर के साथ हुई ठगी राज्य का सबसे बड़ा मामला है, जिसमे एक करोड़ 78 लाख ठग लिए गए. डिजिटल अरेस्ट करने के लिए साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की फेक आईडी का सहारा ले रहे हैं.

कैसे करते हैं टारगेट

साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ काम करते हैं. जिस व्यक्ति से उन्हें ठगी करना है उसका वह पूरा प्रोफाइल तैयार करते हैं. साइबर अपराधी यह जानते हैं कि किसी बड़े बिजनेसमैन, डॉक्टर और रिटायर अधिकारियों को इलीगल ट्रांजेक्सन और मनी लाउंड्रिंग जैसे मामले में डराया जा सकता है.

इसके लिए सबसे पहले साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अधिकारियों की तस्वीर और एजेंसी के लोगो की जुगाड़ करते हैं. उसके बाद अपने शिकार को फोन करके यह बताते हैं कि उनके खाते और मोबाइल सिम का प्रयोग इलीगल ट्रांजेक्शन और मनी लाउंड्रिंग के लिए किया गया है. साइबर अपराधी अपने शिकार को यह भी बताते हैं कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो चुका है.

अपने शिकार के नाम का गिरफ्तारी वारंट भी है उसके व्हाट्सएप पर या फिर ईमेल आईडी पर भेज देते हैं. साइबर अपराधियों की धमकी से डरा हुआ व्यक्ति जब इस मामले से अपने आप को निर्दोष बताते हुए मदद के भीख मांगता है तब साइबर अपराधी उन्हें अलग-अलग एकाउंट नंबर देकर लाखों रुपए की डिमांड करते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के नाम के वारंट को देखकर लोग पैसे ट्रांसफर कर देते हैं.

करोड़ों का घोटाला बोल मांगते हैं पैसा

साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार साइबर अपराधी किसी बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर ऐसे व्यक्ति को फोन करते है जो अधिकारी हो या अधिकारी रह चुका हो. सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी बनकर साइबर अपराधी फेक अरेस्ट वारंट भेजते है ,उसको बाद वह अपने शिकार को यह विश्वास दिला देते है की एजेंसी किसी भी वक्त उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. एक तरह से साइबर अपराधी अपने शिकार को हिप्टोनाइज कर देते हैं. उसके बाद साइबर अपराधी अपने शिकार को यह बताते हैं कि जितने रुपए का घोटाला किया गया है उसका एक तिहाई अगर वह तुरंत एकाउंट में जमा कर देंगे तो इस घोटाले में उन्हें राहत दिलाई जा सकती है. सुरक्षा एजेंसी से बचने के लिए लोग लाखों रुपए साइबर अपराधियों के खातों में डाल देते हैं.

सावधानी ही एक मात्र है बचाव

सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार डिजिटल अरेस्ट से बचने का एकमात्र तरीका है सावधानी. लोगों को यह जानना होगा कि कोई भी सुरक्षा एजेंसी किसी भी व्यक्ति को वीडियो कॉल के जरिए कभी भी पूछताछ नहीं करती है. पूर्व में अगर कोई मामला ना हो तो ऐसे में वारंट जारी ही नहीं हो सकता है. इन सब चीजों को आम लोगों को समझना जरूरी है.

फ़ोन आने पर क्या करें

  • किसी भी हाल में डरे मत
  • साइबर अपराधी अगर मोबाइल कॉल ना काटने दे तो भी आप फोन डिस्कनेक्ट कर दे
  • तुरंत साइबर क्राइम ब्रांच के हेल्पलाइन नंबर या फिर नजदीकी साइबर थाना से संपर्क करें
  • साइबर अपराधियों के द्वारा भेजे जाने वाले वारंट का सत्यापन करवाए
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  • जरूरत हो तो साइबर क्राइम ब्रांच के द्वारा जारी किए गए अधिकारियों के नंबर पर सीधे संपर्क करें

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