बागेश्वर: उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में भी चमोली के ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) जैसे हालात बन गए हैं. बागेश्वर जिले के दो दर्जन से अधिक गांवों में घरों के अंदर ज्योतिर्मठ की तरह दरारें पड़ गई हैं, जिससे स्थानीय लोग काफी चिंतित हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि समय के साथ भूमि धंसने की समस्या और भी गंभीर हो गई है. इसका बड़ा कारण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सोप स्टोन खनन और ठेकेदारों द्वारा खोदी गई खाइयों को बिना उपचार के छोड़ जाना है.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि सोप स्टोन खनन के लिए अक्सर विस्फोट किया जाता और खुदाई के लिए भारी मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो खनन मानदंडों के सीधे-सीधे खिलाफ है. वहीं इन आरोपों पर जिला खनन अधिकारी जिज्ञासा बिष्ट ने कहा कि बीते दो सालों से क्षेत्र में खनन बंद है. हालांकि उन्होंने कांडा गांव में कम से कम सात से आठ घरों की दीवारों और छातों में दरारें देखी है. तीन सितंबर को उन्होंने एक भूविज्ञानी और राजस्व अधिकारियों के साथ गांव का दौरा किया था.
बागेश्वर में बने जोशीमठ जैसे हालात: बता दें कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थिति जोशीमठ, जिसका नाम बदलकर ज्योतिर्मठ रखा गया है, वहां पर भी साल 2023 की शुरुआत में भूमि धंसने के कारण दीवारों और फर्श पर बड़ी दरारें आने के कारण लगभग 1,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा.
25 से अधिक गांवों में घरों में दरारें पड़ी: बागेश्वर कलेक्ट्रेट में जनता दरबार के दौरान स्थानीय लोगों ने घरों में दरारें पड़ने का मुद्दा उठाया था, जिसके बाद ही प्रशासन का ध्यान इस खतरे की तरफ गया. जिला खनन अधिकारी जिज्ञासा बिष्ट ने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने बागेश्वर जिले में ऐसी किसी घटना का संज्ञान नहीं लिया है. बिष्ट के मुताबिक जिले में अभी भी जिन क्षेत्रों में खनन चल रहा है, उनके आस-पास के 25 से अधिक गांवों में घरों में दरारें आ गई हैं. ये ज्यादातर ऐसे गांव हैं, जिनके निवासियों ने खनन कार्य करने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया था.
100 से अधिक गांवों में लैंडस्लाइड का खतरा: वहीं स्थानीय निवासी घनश्याम जोशी ने कहा कि जिले के कुल 402 में से 100 से अधिक गांवों में धीरे-धीरे भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है. वहीं जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शिखा सुयाल के अनुसार 11 गांवों में 131 से अधिक परिवारों को पुनर्वास के लिए चिह्नित किया गया है, क्योंकि भूस्खलन से उनके आवास को खतरा है. ऐसे और गांवों का भी सर्वेक्षण किया जाएगा.
अधिकारियों का दावा: इसके अलावा संबंधित विभागों के अधिकारियों ने शिकायतें मिलने के बाद कपकोट ब्लॉक के कालिका मंदिर का दौरा भी किया. लेकिन खनन नियमों का कोई उल्लंघन नहीं पाया. खनन अधिकारी बिष्ट ने कहा कि कपकोट के कालिका मंदिर क्षेत्र में खदानें दो साल पहले ही बंद कर दी गई थी, लेकिन घरों में दरारें अभी भी आ रही हैं.
जिले में कितनी सोप स्टोन खदानें: बागेश्वर के सनेती क्षेत्र में सोप स्टोन खदान के मालिक और कपकोट के पूर्व विधायक व वरिष्ठ भाजपा नेता बलवंत भौरियाल ने कहा कि इस क्षेत्र में सोप स्टोन खनन ग्रामीणों द्वारा खनन के लिए दिए गए खेतों में किया जाता है. इसीलिए उनकी इच्छा के विरुद्ध खनन किए जाने का सवाल ही नहीं उठता. एक समय में जिले में 121 सोप स्टोन खदानें थी, जिनमें से वर्तमान में केवल 50 ही चल रही हैं.
मॉनसून में खतरा बढ़ जाता है: बागेश्वर के गांवों में सोप स्टोन खनन के प्रभावों का अध्ययन कर रहे चंद्र शेखर द्विवेदी ने कहा कि कपकोट और कांडा ब्लॉक के क्षेत्रों में सबसे अधिक खदानें हैं और आस-पास खनन गतिविधियों के कारण, लगभग हर मानसून में गांवों में भूस्खलन और घरों में दरारें पड़ जाती हैं.
द्विवेदी ने कहा कि जब ठेकेदार विस्फोट और जेसीबी मशीनों (खुदाई करने वाली मशीनों) का उपयोग करके खनन मानदंडों का उल्लंघन करते हैं, तो ग्रामीणों को शांत करने और विरोध को रोकने के लिए वे विभिन्न तरीकों से मुआवजा देते हैं. यह भी धंसाव की बढ़ती समस्या के लिए जिम्मेदार है.
उन्होंने कहा कि अधिकांश ग्रामीणों को इन खदानों में मुआवजे के रूप में नौकरी मिलती है, जो उन्हें लापरवाह खनन से अपने खेतों को हुए नुकसान की रिपोर्ट करने से रोकती है. जिला खनन अधिकारी बिष्ट ने कहा कि कांडेकन्याल गांव में अधिकांश घर खाली हैं. वहां केवल पांच परिवार रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अभी तक मामले पर ध्यान नहीं दिया है और उन्हें कोई निर्देश जारी नहीं किए हैं.
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