नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को हिमाचल प्रदेश में जिला और ब्लॉक इकाइयों के साथ-साथ संपूर्ण प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) इकाई को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया. इस कदम को कांग्रेस की हिमाचल इकाई के पुनर्गठन की योजना के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है. पहाड़ी राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से पीसीसी में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की निवर्तमान अध्यक्ष प्रतिभा सिंह पहले ही कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की सदस्य बन चुकी हैं, जो पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है. पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को अप्रैल 2022 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. बता दें कि, चार महीने पहले खड़गे ने पूरी ओडिशा इकाई को भंग कर दिया था, जिसे अभी तक पुनर्गठित नहीं किया गया है.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के सी वेणुगोपाल की ओर से जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है, "कांग्रेस अध्यक्ष ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की संपूर्ण राज्य इकाई, जिला अध्यक्षों और ब्लॉक कांग्रेस समितियों को तत्काल प्रभाव से भंग करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है."
हिमाचल प्रदेश के प्रभारी एआईसीसी सचिव चेतन चौहान ने ईटीवी भारत को बताया कि, पूरी राज्य इकाई में बदलाव किया जाएगा. उन्होंने कहा कि, यह योजना पाइपलाइन में थी और पिछले कई सालों से राज्य की टीम में बदलाव नहीं किया गया था, इसलिए यह किया जा रहा है. अब कई नए चेहरों को पार्टी में अहम भूमिकाएं दी जाएंगी और इससे संगठन मजबूत होगा,"
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस गुटबाजी से ग्रस्त है, जो फरवरी में राज्यसभा चुनाव के दौरान देखने को मिली थी, जब सत्तारूढ़ कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक सिंघवी भाजपा के हर्ष महाजन से चुनाव हार गए थे, क्योंकि कुछ कांग्रेस विधायकों ने उनके पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी.
प्रतिभा सिंह को उनके दिवंगत पति और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विरासत को भुनाने और भाजपा को हराने के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों से महीनों पहले आलाकमान द्वारा लाया गया था. उनके पक्ष में यह भी तथ्य रहा कि प्रतिभा सिंह ने मंडी लोकसभा उपचुनाव जीता, जबकि बीजेपी ने 2019 में राज्य की सभी चार संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी.
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, मुख्यमंत्री सुक्खू ने राज्य की चार में से कम से कम दो सीटें जीतने का हाईकमान को आश्वासन दिया था, लेकिन वे बुरी तरह विफल रहे क्योंकि भगवा पार्टी ने 2019 की पुनरावृत्ति में सभी सीटें जीत लीं. विक्रमादित्य सिंह मंडी लोकसभा सीट भाजपा नेता और अभिनेत्री कंगना रनौत से हार गए. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि राज्य टीम में बदलाव की आवश्यकता जल्द ही हाईकमान के सामने आ गई, लेकिन इस कदम को आगे बढ़ाने में थोड़ा समय लगा, जिन्होंने स्वीकार किया कि AICC हिमाचल इकाई के कई पदाधिकारियों के कामकाज से नाराज थी.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि, राज्य सरकार की कार्यप्रणाली, खासकर रेहड़ी-पटरी वालों के लिए नेमप्लेट लगाने के आदेश को लेकर अवांछित विवाद और मंडी के संजौली में एक अवैध मस्जिद को लेकर सांप्रदायिक झड़पों ने भी आलाकमान के मन में संदेह पैदा किया है.
हिमाचल प्रदेश के मंत्री राजेश धर्माणी ने ईटीवी भारत को बताया. "राज्य इकाई को भंग करने का कदम राज्य सरकार के कामकाज से जुड़ा नहीं है. जहां तक मैं समझता हूं, पार्टी प्रमुख के आदेश में पीसीसी प्रमुख के पद का उल्लेख नहीं है, लेकिन अंत में कांग्रेस अध्यक्ष को ऐसे सभी मामलों में अंतिम फैसला लेना है. अगर वह चाहें तो बदलाव हो सकता है. जिला और ब्लॉक स्तर पर बदलाव लंबे समय से नहीं किए गए थे."
यह अचानक आदेश उस समय आया जब खड़गे चुनावी राज्य में महा विकास अघाड़ी की रैली में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र में थे. पिछले कुछ दिनों में सुखू की सरकार को खड़गे से समर्थन मिला, जिन्होंने पीएम मोदी के आरोपों का मुकाबला करने के लिए लागू की जा रही सामाजिक कल्याण योजनाओं पर प्रकाश डाला.
ये भी पढ़ें: '36 घंटे के अंदर जारी करें डिस्क्लेमर', घड़ी चुनाव चिह्न को लेकर अजित पवार को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश