हैदराबाद: तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बच्चों का अपनी मां द्वारा अर्जित संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है. साथ ही मां अपनी संपत्ति किसी भी शख्स को गिफ्ट में दे सकती है. जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस एमजी प्रियदर्शिनी की पीठ ने बजरंगलाल अग्रवाल द्वारा दायर याचिका के जवाब में यह फैसला सुनाया.
बता दें कि बजरंगलाल ने होई कोर्ट में सिविल कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें सिविल कोर्ट ने उनकी मां सुशील अग्रवाल द्वारा अपने बड़े बेटे को अपनी संपत्ति उपहार में देने के निर्णय को बरकरार रखा था.
क्या है मामला?
यह मामला हैदराबाद के जुबली हिल्स इलाके स्थित मकान के एक तिहाई हिस्से के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे सुशील अग्रवाल के पति ने 1988 में उनके नाम पर खरीदा था. उनकी मृत्यु के बाद सुशील अग्रवाल ने शुरू में एक वसीयत बनाई थी, जिसमें संपत्ति को अपने तीन बेटों के बीच बराबर-बराबर बांटने की बात कही गई थी.
हालांकि, बाद में उन्होंने इस वसीयत को रद्द कर दिया और संपत्ति का अपना हिस्सा अपने सबसे बड़े बेटे को ट्रांसफर कर दिया. छोटे बेटे बजरंगलाल अग्रवाल ने इस फैसले का विरोध करते हुए तर्क दिया कि संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति माना जाना चाहिए और उन्हें एक तिहाई हिस्सा मिलना चाहिए.
सुशील अग्रवाल का प्रतिनिधित्व करते हुए उनके वकील ने कहा कि चूंकि संपत्ति माता-पिता द्वारा खरीदी गई थी और मां के नाम पर पंजीकृत थी, इसलिए बेटों का इस पर कोई कानूनी दावा नहीं है.
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने फैसला सुनाया कि मां के अधिकारों को सिर्फ इसलिए चुनौती देना उचित नहीं है, क्योंकि उसने पहले वसीयतनामा बनाया था, जिसे बाद में उसने उपहार विलेख के पक्ष में रद्द कर दिया.
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि कानूनी मुकदमा तभी दायर किया जाना चाहिए जब स्पष्ट अधिकार मौजूद हों. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया