छिंदवाड़ा। आमतौर पर एक लोकसभा में कई प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं, लेकिन जीत का सेहरा सिर्फ एक के सिर पर सजता है, लेकिन एमपी की एक ऐसी भी सीट है, जहां एक ही बार में यहां की जनता ने दो लोगों को चुना था और उन्हें सदन भेजा था. यह सीट कोई और नहीं बल्कि कमलनाथ का गढ़ और एमपी की हाई प्रोफाइल सीट छिंदवाड़ा है. जहां एक बार चुनाव में यहां की जनता ने दो लोगों को चुना था.आईए बताते हैं क्या है पूरा मामला...
1957 के आम चुनाव में छिंदवाड़ा लोकसभा से चुने गए थे दो सांसद
देश में जब 1957 में दूसरे आम चुनाव हुए, उस दौरान छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से दो नेता चुनकर संसद में पहुंचे थे. कांग्रेस के भिकूलाल लक्ष्मी चंद चांडक ने प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के गौरीशंकर को हराया, तो वहीं कांग्रेस के नारायण राव वाडीवा ने प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के संग्राम शाह को हराया था. यह दोनों नेता छिंदवाड़ा लोकसभा से एक ही बार में एक साथ सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे थे.
हर चुनाव के पहले होता था परिसीमन
1957 के लोकसभा चुनाव में भैंसदेही, बैतूल, मुलताई, परासिया, पगारा, सौंसर, सिवनी, बरघाट और भौमा सहित छिंदवाड़ा विधानसभा को मिलाया गया. इस बार यहां पर 7 लाख 65 हजार से ज्यादा मतदाता थे. इस चुनाव में छिंदवाड़ा लोकसभा को अनुसूचित जनजाति और सामान्य के लिए सीट रिजर्व कर दो सांसदों वाला संसदीय क्षेत्र बना दिया गया था. नारायण राव वाडीवा को अनुसूचित जनजाति और भिकूलाल चांडक को सामान्य वर्ग से कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया, जो चुनकर पहुंचे थे, हालांकि 1957 के बाद इस तरह का प्रयोग दोबारा देश में कहीं नहीं हुआ.
1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव के दौरान थी ऐसी व्यवस्था
आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज के राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर यूके शुक्ला ने बताया कि 'देश में पहले आम चुनाव 1952 में हुए 1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसी व्यवस्था थी कि एक सीट पर दो-दो सांसदों को चुना जाता था. यह व्यवस्था इसलिए लागू की गई थी, ताकि आरक्षित वर्ग को भी प्रतिनिधित्व मिल सके. हालांकि विरोध के बाद 1962 में इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया. उन्होंने बताया कि 1952 के आम चुनाव में देशभर की 89 लोकसभा सीटों पर और साल 1957 के लोकसभा चुनाव में 90 सीटों पर दो-दो उम्मीदवार चुनाव जीते थे. सबसे बड़ी बात यह थी कि इन दोनों सीटों में एक सीट सामान्य वर्ग के लिए तो दूसरी सीट आरक्षित मतदाता की संख्या के हिसाब से यानि एससी-एसटी वर्ग के लिए हुआ करती थी.
अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाता से ज्यादा अपनाया फार्मूला
राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर ने बताया कि 1957 के आम चुनाव के दौरान लोकसभा का परिसीमन हुआ, तो उस दौरान छिंदवाड़ा लोकसभा में सामान्य वर्ग के मतदाताओं के बाद दूसरी सबसे ज्यादा संख्या के मतदाता अनुसूचित जनजाति वर्ग के थे. इसलिए अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए दो सांसदों वाला फार्मूला अपनाया गया था.'
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मतदाता भी करते थे दो वोट, होते थे अलग-अलग मतपत्र
राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर यूके शुक्ला ने बताया कि '1952 में आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक सीट पर दो-दो सांसदों का फार्मूला अपनाया गया. खास बात यह थी कि इन सीटों पर जनता को भी दो-दो वोट डालने का अधिकार दिया जाता था, लेकिन कोई भी मतदाता अपने दोनों वोट एक ही उम्मीदवार को नहीं दे सकता था. इसके बाद वोटों की गिनती के दौरान सामान्य वर्ग के जिस भी उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते थे. उसे विजय घोषित किया जाता था. इसी तरह का नियम आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार के लिए भी पालन किया जाता था.