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रावण भक्त गांव, दीपावली पर होता है सवा महीने का मातम, लंकापति का अनूठा वरदान

छिंदवाड़ा के रावनवाड़ा गांव में दीपावली पर खुशियां नहीं मनाई जाती. यहां सवा महीने तक मातम होता है. आखिर क्यों होता है ऐसा.

MOURNING OBSERVED RAVANWADA VILLAGE
MP का रावण भक्त गांव (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 5 hours ago

Updated : 2 hours ago

छिंदवाड़ा: दिवाली के मौके पर देश के हर घर में रोशनी होती है. मंदिरों और मठों में पूजा की जाती है. लेकिन मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव है जहां के आदिवासी न तो इस दिन दीये जलाते हैं और न ही घरों में रोशनी करते हैं. क्योंकि यह लोग दशहरा के बाद से सवा महीने का मातम मनाते हैं. आखिर क्यों छाया रहता है उनके गांव में मातम, जानिए कहानी.

सवा महीने रावण की मौत का मनाते हैं मातम
छिंदवाड़ा के रावनवाड़ा गांव में मूल रूप से आदिवासी लोग निवास करते हैं. यहां के लोग दशहरा के बाद से ही सवा महीने तक मातम मनाते हैं. इसलिए दिवाली के दिन ना तो घर में दीपक जलाते हैं और ना ही किसी तरह की रोशनी करते हैं.

Mourning observed on Diwali MP
रावनवाड़ा में दीपावली पर सवा महीने का मातम (ETV Bharat)

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के जिला अध्यक्ष महेश सराठी ने बताया कि, ''मान्यता है कि आदिवासियों के आराध्य रावण की मृत्यु के सवा महीने पूरे नहीं होने पर दिवाली में मातम मनाते हैं. आदिवासियों का मानना है कि आपदा आने पर रावण और मेघनाथ उनकी रक्षा करते हैं. दशहरा पर श्री राम ने रावण को परास्त किया था उसके बाद रावण वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इसलिए ना तो उनके देव स्थल पर रोशनी होती है और ना दिवाली पर किसी तरह का जश्न.

गांव में है रावण का मंदिर, गांव का नाम रावनवाड़ा
गांव की एक पहाड़ी पर रावण का मंदिर है. यहां पर आदिवासी लोग पूजा पाठ करते हैं. दशहरा के मौके पर भले ही पूरे देश में बुराई के प्रतीक के रूप में रावण का दहन किया जाता है लेकिन इस गांव में रावण की पूजा होती है. उसके बाद ही सवा महीने तक मातम मनाया जाता है.

MOURNING OBSERVED RAVANWADA VILLAGE
गांव में बना है रावण का मंदिर (ETV Bharat)

इसी तरह की परंपरा चारगांव के रावण गोठुल और उमरेठ के मेघनाथ खंडेरा में भी की जाती है. आदिवासी समाज के ब्लॉक उपाध्यक्ष राहुल सराठी ने बताया कि, ''आदिवासी समाज सनातन धर्म को भी मानता है, जिसमें सभी हिंदू धर्म के अनुसार पूजन विधि करते हैं. दिवाली पर घरों की साफ सफाई की जाती है. धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं. लेकिन ना तो रोशनी की जाती है और ना ही किसी तरह से दिया जलाया जाता है.''

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रावण ने किया था तप, शिवजी ने दर्शन दे आशीर्वाद दिया
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में रावण ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी. उसी के बाद से इस गांव का नाम रावनवाड़ा पड़ा. कहा जाता है कि पहले इस इलाके में घनघोर जंगल हुआ करता था. इसी जंगल के बीचों बीच रावण ने भगवान शिव की आराधना की. भगवान शिव ने दर्शन देकर यहीं पर आशीर्वाद दिया था.

Mourning on Diwali FOR ravana DEATH
आदिवासियों के आराध्य हैं रावण (ETV Bharat)

लोगों का विश्वास पुख्ता इसलिए भी होता है कि रावनवाड़ा के अगल-बगल से ही विष्णुपुरी और महादेवपुरी नाम के 2 गांव स्थित हैं. जहां पर वेस्टर्न कोलफील्ड्स की कोयला खदानें संचालित होती थीं. गांव के आदिवासी रावण को आराध्य देव के रूप में पूजते हैं. रावनवाड़ा के रहने वाले राजेश धुर्वे बताते हैं कि ''उनके ही खेत में रावण देव का मंदिर है, उनकी कई पीढ़ियों से रावण की पूजा की जाती रही है.''

छिंदवाड़ा: दिवाली के मौके पर देश के हर घर में रोशनी होती है. मंदिरों और मठों में पूजा की जाती है. लेकिन मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव है जहां के आदिवासी न तो इस दिन दीये जलाते हैं और न ही घरों में रोशनी करते हैं. क्योंकि यह लोग दशहरा के बाद से सवा महीने का मातम मनाते हैं. आखिर क्यों छाया रहता है उनके गांव में मातम, जानिए कहानी.

सवा महीने रावण की मौत का मनाते हैं मातम
छिंदवाड़ा के रावनवाड़ा गांव में मूल रूप से आदिवासी लोग निवास करते हैं. यहां के लोग दशहरा के बाद से ही सवा महीने तक मातम मनाते हैं. इसलिए दिवाली के दिन ना तो घर में दीपक जलाते हैं और ना ही किसी तरह की रोशनी करते हैं.

Mourning observed on Diwali MP
रावनवाड़ा में दीपावली पर सवा महीने का मातम (ETV Bharat)

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के जिला अध्यक्ष महेश सराठी ने बताया कि, ''मान्यता है कि आदिवासियों के आराध्य रावण की मृत्यु के सवा महीने पूरे नहीं होने पर दिवाली में मातम मनाते हैं. आदिवासियों का मानना है कि आपदा आने पर रावण और मेघनाथ उनकी रक्षा करते हैं. दशहरा पर श्री राम ने रावण को परास्त किया था उसके बाद रावण वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इसलिए ना तो उनके देव स्थल पर रोशनी होती है और ना दिवाली पर किसी तरह का जश्न.

गांव में है रावण का मंदिर, गांव का नाम रावनवाड़ा
गांव की एक पहाड़ी पर रावण का मंदिर है. यहां पर आदिवासी लोग पूजा पाठ करते हैं. दशहरा के मौके पर भले ही पूरे देश में बुराई के प्रतीक के रूप में रावण का दहन किया जाता है लेकिन इस गांव में रावण की पूजा होती है. उसके बाद ही सवा महीने तक मातम मनाया जाता है.

MOURNING OBSERVED RAVANWADA VILLAGE
गांव में बना है रावण का मंदिर (ETV Bharat)

इसी तरह की परंपरा चारगांव के रावण गोठुल और उमरेठ के मेघनाथ खंडेरा में भी की जाती है. आदिवासी समाज के ब्लॉक उपाध्यक्ष राहुल सराठी ने बताया कि, ''आदिवासी समाज सनातन धर्म को भी मानता है, जिसमें सभी हिंदू धर्म के अनुसार पूजन विधि करते हैं. दिवाली पर घरों की साफ सफाई की जाती है. धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं. लेकिन ना तो रोशनी की जाती है और ना ही किसी तरह से दिया जलाया जाता है.''

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रावण ने किया था तप, शिवजी ने दर्शन दे आशीर्वाद दिया
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में रावण ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी. उसी के बाद से इस गांव का नाम रावनवाड़ा पड़ा. कहा जाता है कि पहले इस इलाके में घनघोर जंगल हुआ करता था. इसी जंगल के बीचों बीच रावण ने भगवान शिव की आराधना की. भगवान शिव ने दर्शन देकर यहीं पर आशीर्वाद दिया था.

Mourning on Diwali FOR ravana DEATH
आदिवासियों के आराध्य हैं रावण (ETV Bharat)

लोगों का विश्वास पुख्ता इसलिए भी होता है कि रावनवाड़ा के अगल-बगल से ही विष्णुपुरी और महादेवपुरी नाम के 2 गांव स्थित हैं. जहां पर वेस्टर्न कोलफील्ड्स की कोयला खदानें संचालित होती थीं. गांव के आदिवासी रावण को आराध्य देव के रूप में पूजते हैं. रावनवाड़ा के रहने वाले राजेश धुर्वे बताते हैं कि ''उनके ही खेत में रावण देव का मंदिर है, उनकी कई पीढ़ियों से रावण की पूजा की जाती रही है.''

Last Updated : 2 hours ago
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