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एमपी की अनोखी लोकसभा सीट 'छिंदवाड़ा', जहां 72 सालों से केवल बाहरी प्रत्याशी ही जीता, कमलनाथ भी यहां के नहीं - Chhindwara Loksabha Seat Analysis

कमलनाथ लोकसभा चुनाव को लेकर जनता को अपना 44 सालों का रिश्ता याद दिला रहे हैं, जबकि बीजेपी का कहना है कि कमलनाथ बाहरी प्रत्याशी हैं. आपको जानकर हैरानी होगी के ये सच है. छिंदवाड़ा सीट से आजतक जितने भी सांसद रहे वे सभी बाहरी रहे हैं.

CHHINDWARA LOKSABHA SEAT ANALYSIS
एमपी की अनोखी लोकसभा सीट 'छिंदवाड़ा', जहां 72 सालों से केवल बाहरी प्रत्याशी ही जीता, कमलनाथ भी यहां के नहीं
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 7, 2024, 10:17 AM IST

Updated : Apr 7, 2024, 3:15 PM IST

छिन्दवाड़ा. देश की सबसे चर्चित सीटों में से एक छिंदवाड़ा लोकसभा सीट और भी कई मायनों में अहम है. 1952 में इस लोक सभा सीट पर पहला चुनाव हुआ था, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 72 सालों में छिंदवाड़ा जिले का निवासी इस सीट से कभी सांसद नहीं चुना गया है. 1952 में हुए सबसे पहले लोकसभा चुनाव में गुजरात के रहने वाले रायचंद भाई शाह यहां कांग्रेस से सांसद बने थे. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी पन्नालाल भार्गव को हराया था. रायचंद भाई शाह का जन्म गुजरात के जामनगर जिले के गगवा गांव में हुआ था.

महाराष्ट्र के दो नेता भी छिंदवाड़ा से बन चुके सांसद

1957 और 1962 के आम चुनाव में यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भिकूलाल चांडक चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे थे. पहली बार इन्होंने प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के गौरी शंकर शर्मा और 1962 में जनसंख्या संत कुमार मुखर्जी को चुनाव हराया था. 1967 के आम चुनाव में फिर यहां कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदलकर नागपुर के गार्गीशंकर मिश्र को मैदान में उतारा, जो 1967 में जनसंघ के एचएस अग्रवाल, 1971 में जनसंघ के पुरुषोत्तम गुप्ता और 1977 में भारतीय लोकदल के प्रतुलचंद्र द्विवेदी को चुनाव हराकर छिंदवाड़ा लोकसभा से सांसद बने थे.

CHHINDWARA LOKSABHA SEAT ANALYSIS
एमपी की अनोखी लोकसभा सीट छिंदवाड़ा

1980 से कमलनाथ के परिवार का कब्जा

छिंदवाड़ा के सांसद गार्गी शंकर स्थानीय कांग्रेस के नेताओं को तवज्जो नहीं दे रहे थे. उनके विरोध के चलते इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा बताते हुए छिंदवाड़ा में कमलनाथ की एंट्री कराई थी. 1996 तक कमलनाथ छिंदवाड़ा के सांसद रहे. 1996 में कांग्रेस ने कमलनाथ का टिकट काटकर उनकी पत्नी अलका नाथ को यहां से मैदान में उतारा और वे भी चुनाव जीत गईं. इसके बाद फिर 1998 से लगातार 2019 तक कमलनाथ छिंदवाड़ा के सांसद रहे. 2019 में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने कांग्रेस के टिकट पर ही छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव जीता. बता दें कमलनाथ का परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला है.

1997 में बीजेपी ने जीती थी सीट, तब भी प्रत्याशी बाहरी

पिछले 72 सालों में छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. एकमात्र 1997 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में बीजेपी ने कमलनाथ को चुनाव हराया था. लेकिन इस बार भी बीजेपी का प्रत्याशी छिंदवाड़ा जिले का नहीं था. कमलनाथ को चुनाव हराने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा थे, जो मध्य प्रदेश के नीमच जिले के निवासी थे.

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कमलनाथ बता रहे 44 सालों का रिश्ता, बीजेपी ने किया पलटवार

पिछले 44 सालों से छिंदवाड़ा में राजनीति कर रहे कमलनाथ का कहना है कि वे छिंदवाड़ा की जनता से सिर्फ वोट लेकर ही संसद, विधानसभा में नहीं पहुंचते हैं बल्कि छिंदवाड़ा की जनता का प्यार और आशीर्वाद उनकी सबसे बड़ी पूंजी है. उनका कहना है कि वे भले ही कानपुर के रहने वाले हों लेकिन छिंदवाड़ा ही उनका असली परिवार है. वहीं अब बीजेपी इसे बाहरी प्रत्याशी और स्थानीय नेता का चुनाव बता रही है. बीजेपी का कहना है कि बाहरी लोगों का छिंदवाड़ा में बहुत कब्जा रहा है. अब यहां की जनता स्थानीय व्यक्ति को चुनेगी, जो सुख-दुख में हमेशा साथ रहे. ऐसे व्यक्ति को जनता मोदी की गारंटी पूरा करने के लिए चुनाव जिताएगी.

छिन्दवाड़ा. देश की सबसे चर्चित सीटों में से एक छिंदवाड़ा लोकसभा सीट और भी कई मायनों में अहम है. 1952 में इस लोक सभा सीट पर पहला चुनाव हुआ था, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 72 सालों में छिंदवाड़ा जिले का निवासी इस सीट से कभी सांसद नहीं चुना गया है. 1952 में हुए सबसे पहले लोकसभा चुनाव में गुजरात के रहने वाले रायचंद भाई शाह यहां कांग्रेस से सांसद बने थे. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी पन्नालाल भार्गव को हराया था. रायचंद भाई शाह का जन्म गुजरात के जामनगर जिले के गगवा गांव में हुआ था.

महाराष्ट्र के दो नेता भी छिंदवाड़ा से बन चुके सांसद

1957 और 1962 के आम चुनाव में यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भिकूलाल चांडक चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे थे. पहली बार इन्होंने प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के गौरी शंकर शर्मा और 1962 में जनसंख्या संत कुमार मुखर्जी को चुनाव हराया था. 1967 के आम चुनाव में फिर यहां कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदलकर नागपुर के गार्गीशंकर मिश्र को मैदान में उतारा, जो 1967 में जनसंघ के एचएस अग्रवाल, 1971 में जनसंघ के पुरुषोत्तम गुप्ता और 1977 में भारतीय लोकदल के प्रतुलचंद्र द्विवेदी को चुनाव हराकर छिंदवाड़ा लोकसभा से सांसद बने थे.

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एमपी की अनोखी लोकसभा सीट छिंदवाड़ा

1980 से कमलनाथ के परिवार का कब्जा

छिंदवाड़ा के सांसद गार्गी शंकर स्थानीय कांग्रेस के नेताओं को तवज्जो नहीं दे रहे थे. उनके विरोध के चलते इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा बताते हुए छिंदवाड़ा में कमलनाथ की एंट्री कराई थी. 1996 तक कमलनाथ छिंदवाड़ा के सांसद रहे. 1996 में कांग्रेस ने कमलनाथ का टिकट काटकर उनकी पत्नी अलका नाथ को यहां से मैदान में उतारा और वे भी चुनाव जीत गईं. इसके बाद फिर 1998 से लगातार 2019 तक कमलनाथ छिंदवाड़ा के सांसद रहे. 2019 में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने कांग्रेस के टिकट पर ही छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव जीता. बता दें कमलनाथ का परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला है.

1997 में बीजेपी ने जीती थी सीट, तब भी प्रत्याशी बाहरी

पिछले 72 सालों में छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. एकमात्र 1997 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में बीजेपी ने कमलनाथ को चुनाव हराया था. लेकिन इस बार भी बीजेपी का प्रत्याशी छिंदवाड़ा जिले का नहीं था. कमलनाथ को चुनाव हराने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा थे, जो मध्य प्रदेश के नीमच जिले के निवासी थे.

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पिछले 44 सालों से छिंदवाड़ा में राजनीति कर रहे कमलनाथ का कहना है कि वे छिंदवाड़ा की जनता से सिर्फ वोट लेकर ही संसद, विधानसभा में नहीं पहुंचते हैं बल्कि छिंदवाड़ा की जनता का प्यार और आशीर्वाद उनकी सबसे बड़ी पूंजी है. उनका कहना है कि वे भले ही कानपुर के रहने वाले हों लेकिन छिंदवाड़ा ही उनका असली परिवार है. वहीं अब बीजेपी इसे बाहरी प्रत्याशी और स्थानीय नेता का चुनाव बता रही है. बीजेपी का कहना है कि बाहरी लोगों का छिंदवाड़ा में बहुत कब्जा रहा है. अब यहां की जनता स्थानीय व्यक्ति को चुनेगी, जो सुख-दुख में हमेशा साथ रहे. ऐसे व्यक्ति को जनता मोदी की गारंटी पूरा करने के लिए चुनाव जिताएगी.

Last Updated : Apr 7, 2024, 3:15 PM IST
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